HI/Prabhupada 1027 - मेरी पत्नी, मेरे बच्चे और समाज मेरे सैनिक हैं । अगर मैं मुसीबत मे हूँ, वे मेरी मदद करेंगे: Difference between revisions
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तो तुम कृष्ण के कानून का | तो तुम कृष्ण के कानून का, या प्रकृति के नियमों का, उल्लंघन नहीं कर सकते, यह संभव नहीं है। तुम बिल्कुल भी स्वतंत्र नहीं हो । क्योंकि ये धूर्त, वे इस बात को समझ नहीं सकेंगे । वे हमेशा सोच रहे हैं, हम स्वतंत्र हैं । यही सभी दुखों का कारण है । कोई भी स्वतंत्र नहीं है । तुम स्वतंत्र कैसे हो सकते हो ? कोई भी स्वतंत्र नहीं है, न तो तुम स्वतंत्र हो सकते हो, न तो कोई भी स्वतंत्र हो सकता है । यही तथ्य है, कौन स्वतंत्र है ? | ||
:कृष्ण भुलिया जीव | यहाँ तुम बैठे हो, इतने सारे लड़के और लड़कियॉ, कौन कह सकता है, "मैं हर तरह से स्वतंत्र हूँ "? नहीं, कोई भी नहीं कह सकता है । तो यह हमारी गलती है, और हमारी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करके हम कई तरीको से इस भौतिक दुनिया में पीड़ित हैं । इसका सुधार करना है । इसको रोकना है । यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । चैतन्य महाप्रभु नें, प्रचार किया है जीवेर स्वरूप हय नित्य कृष्ण दास ([[Vanisource:CC Madhya 20.108-109|चैतन्य चरितामृत मध्य २०.१०८-१०९]]) । हम जीव हैं, हम कृष्ण के नित्य दास हैं । यही हमारी स्थिति है । लेकिन अगर हम इस स्थिति से इनकार करते हैं, "मैं क्यों कृष्ण का दास बनूं ? मैं स्वतंत्र हूँ, "फिर पीड़ा शुरू होती है, तुरंत । कृष्ण भुलिया जीव भोगा वांछा करे... जैसे ही तुम स्वतंत्र रूप से आनंद लेने की इच्छा करते हो, तुरंत... मतलब माया के द्वारा उसपर कब्जा हो जाता है । | ||
:श्री कृष्ण भुलिया जीव भोग वांछा करे | |||
:पाशेते माया तारे जापटिया धरे । | |||
यह समझने में बहुत आसान है । जैसे अगर तुम सरकार के कानूनों की परवाह नहीं करते हो, तुम स्वतंत्र रूप से जीना चाहते हो, मतलब तुम तरुंत पुलिस बल के चंगुल में हो । तुम्हे बनाने की ज़रूरत नहीं है, यह पहले से ही है । तो हमारी स्थिति है सदैव भगवान पर निर्भर रहना । हमें इस बात को समझना चाहिए । यह कृष्ण भावनामृत है । इसलिए भक्तिविनोद ठाकुर का एक गाना है, | |||
:मानसो देहो गेहो यो किच्छु मोर | |||
:अर्पिलु तुया पदे नंद किशोर । | |||
ये गलती हो रही है, कि मैं स्वतंत्र हूँ, राजा, और मेरे सैनिक या मेरा समाज, समुदाय, परिवार या - तो कई हमने बनाए हैं - लेकिन | |||
जैसे एक अादमी लडता है, जैसे हिटलर नें युद्ध की घोषणा की | :देहापत्य कलत्रादिषु | ||
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:तेषाम निधनम प्रमत्त: | |||
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जैसे एक अादमी लडता है, जैसे हिटलर नें युद्ध की घोषणा की थी, या कई युद्ध घोषित हुए थे । यह आदमी घोषणा करता है, हर कोई सोच रहा है, "मैं स्वतंत्र हूँ।" तो, और हम सोच रहे हैं कि, हमारे पास इतने सारे सैनिक हैं, इतने सारे परमाणु बम, और इतने सारे हवाई जहाज, हम विजयी होंगे । इसी तरह, हम में से प्रत्येक, हम सोच रहे हैं, "मैं स्वतंत्र हूँ, और मेरी पत्नी, मेरे बच्चे, मेरा समाज, वे मेरे सैनिक हैं । अगर मैं खतरे में पडा, तो वे मेरी मदद करेंगे ।" यह चल रहा है । यही माया कहलाता है । प्रमत्त: तेषाम निधनम पश्यन्न अपि न पश्यति । क्योंकि हम पागल हो गए हैं इस तथाकथित आजादी के पीछे, भगवान से आजादी । हम सोचते हैं कि ये सारी चीज़ें हमारी मदद करेंगी, हमारी रक्षा करेंगी, लेकिन यह माया है । | |||
तेषाम निधनम, सब कुछ नष्ट हो जाएगा । कोई भी हमें सुरक्षा देने में सक्षम नहीं होगा । अगर असली सुरक्षा चाहते हो, तो उसे कृष्ण का संरक्षण लेना होगा । यही भगवद गीता का निर्देश है, सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज ([[HI/BG 18.66|भ.गी. १८.६६]]) | धूर्त, तुम सोच रहे हो कि ये सारी चीजें तुम्हे संरक्षण देंगी । यह संभव नहीं होगा । तुम खत्म हो जाअोगे, और तुम्हारे तथाकथित रक्षक, और दोस्त, और सैनिक, वे खत्म हो जाऍगे । तुम उन पर निर्भर मत रहना । सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज ([[HI/BG 18.66|भ.गी. १८.६६]]) । तुम केवल मुझे आत्मसमर्पण करो, मैं तुम्हें संरक्षण दूँगा । अहम त्वाम सर्व पापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: । यही असली संरक्षण है । | |||
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Latest revision as of 19:35, 17 September 2020
731129 - Lecture SB 01.15.01 - New York
तो तुम कृष्ण के कानून का, या प्रकृति के नियमों का, उल्लंघन नहीं कर सकते, यह संभव नहीं है। तुम बिल्कुल भी स्वतंत्र नहीं हो । क्योंकि ये धूर्त, वे इस बात को समझ नहीं सकेंगे । वे हमेशा सोच रहे हैं, हम स्वतंत्र हैं । यही सभी दुखों का कारण है । कोई भी स्वतंत्र नहीं है । तुम स्वतंत्र कैसे हो सकते हो ? कोई भी स्वतंत्र नहीं है, न तो तुम स्वतंत्र हो सकते हो, न तो कोई भी स्वतंत्र हो सकता है । यही तथ्य है, कौन स्वतंत्र है ?
यहाँ तुम बैठे हो, इतने सारे लड़के और लड़कियॉ, कौन कह सकता है, "मैं हर तरह से स्वतंत्र हूँ "? नहीं, कोई भी नहीं कह सकता है । तो यह हमारी गलती है, और हमारी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करके हम कई तरीको से इस भौतिक दुनिया में पीड़ित हैं । इसका सुधार करना है । इसको रोकना है । यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । चैतन्य महाप्रभु नें, प्रचार किया है जीवेर स्वरूप हय नित्य कृष्ण दास (चैतन्य चरितामृत मध्य २०.१०८-१०९) । हम जीव हैं, हम कृष्ण के नित्य दास हैं । यही हमारी स्थिति है । लेकिन अगर हम इस स्थिति से इनकार करते हैं, "मैं क्यों कृष्ण का दास बनूं ? मैं स्वतंत्र हूँ, "फिर पीड़ा शुरू होती है, तुरंत । कृष्ण भुलिया जीव भोगा वांछा करे... जैसे ही तुम स्वतंत्र रूप से आनंद लेने की इच्छा करते हो, तुरंत... मतलब माया के द्वारा उसपर कब्जा हो जाता है ।
- श्री कृष्ण भुलिया जीव भोग वांछा करे
- पाशेते माया तारे जापटिया धरे ।
यह समझने में बहुत आसान है । जैसे अगर तुम सरकार के कानूनों की परवाह नहीं करते हो, तुम स्वतंत्र रूप से जीना चाहते हो, मतलब तुम तरुंत पुलिस बल के चंगुल में हो । तुम्हे बनाने की ज़रूरत नहीं है, यह पहले से ही है । तो हमारी स्थिति है सदैव भगवान पर निर्भर रहना । हमें इस बात को समझना चाहिए । यह कृष्ण भावनामृत है । इसलिए भक्तिविनोद ठाकुर का एक गाना है,
- मानसो देहो गेहो यो किच्छु मोर
- अर्पिलु तुया पदे नंद किशोर ।
ये गलती हो रही है, कि मैं स्वतंत्र हूँ, राजा, और मेरे सैनिक या मेरा समाज, समुदाय, परिवार या - तो कई हमने बनाए हैं - लेकिन
- देहापत्य कलत्रादिषु
- अात्म सैन्येषु असत्स्व अपि
- तेषाम निधनम प्रमत्त:
- पश्यन्न अपि न पष्यति
- (श्रीमद भागवतम २.१.४) ।
जैसे एक अादमी लडता है, जैसे हिटलर नें युद्ध की घोषणा की थी, या कई युद्ध घोषित हुए थे । यह आदमी घोषणा करता है, हर कोई सोच रहा है, "मैं स्वतंत्र हूँ।" तो, और हम सोच रहे हैं कि, हमारे पास इतने सारे सैनिक हैं, इतने सारे परमाणु बम, और इतने सारे हवाई जहाज, हम विजयी होंगे । इसी तरह, हम में से प्रत्येक, हम सोच रहे हैं, "मैं स्वतंत्र हूँ, और मेरी पत्नी, मेरे बच्चे, मेरा समाज, वे मेरे सैनिक हैं । अगर मैं खतरे में पडा, तो वे मेरी मदद करेंगे ।" यह चल रहा है । यही माया कहलाता है । प्रमत्त: तेषाम निधनम पश्यन्न अपि न पश्यति । क्योंकि हम पागल हो गए हैं इस तथाकथित आजादी के पीछे, भगवान से आजादी । हम सोचते हैं कि ये सारी चीज़ें हमारी मदद करेंगी, हमारी रक्षा करेंगी, लेकिन यह माया है ।
तेषाम निधनम, सब कुछ नष्ट हो जाएगा । कोई भी हमें सुरक्षा देने में सक्षम नहीं होगा । अगर असली सुरक्षा चाहते हो, तो उसे कृष्ण का संरक्षण लेना होगा । यही भगवद गीता का निर्देश है, सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज (भ.गी. १८.६६) | धूर्त, तुम सोच रहे हो कि ये सारी चीजें तुम्हे संरक्षण देंगी । यह संभव नहीं होगा । तुम खत्म हो जाअोगे, और तुम्हारे तथाकथित रक्षक, और दोस्त, और सैनिक, वे खत्म हो जाऍगे । तुम उन पर निर्भर मत रहना । सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज (भ.गी. १८.६६) । तुम केवल मुझे आत्मसमर्पण करो, मैं तुम्हें संरक्षण दूँगा । अहम त्वाम सर्व पापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: । यही असली संरक्षण है ।