HI/Prabhupada 1032 - अपने आपक को भौतिक शक्ति से आध्यात्मिक शक्ति की और ले जाने की पद्धति: Difference between revisions
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मधुद्विष: मैं जानता हूं कि | मधुद्विष: मैं जानता हूं कि आप कृष्णकृपामूर्ति से और सवाल पूछने के लिए उत्सुक हो सकते । तो अगर कोई भी सवाल है, तो अाप अपना हाथ खडा कर सकते हैं और हम सवाल पूछ सकते हैं, अगर अाप चाहो । (लंबा ठहराव) कोई सवाल नहीं ? मतलब हर कोई इससे सहमत हैं । (हंसी) | ||
प्रभुपाद: पूर्ण सहमति । यह अच्छा है । | प्रभुपाद: पूर्ण सहमति । यह अच्छा है । | ||
अतिथि (१): | अतिथि (१): आपके भक्त कहते हैं कि आपका उद्देश्य है भौतिक अस्तित्व के रोग के पार करना । मुझे वह करने की पद्धति समझ नहीं अाई, लेकिन क्या आप मुझे बता सकते हैं कि अंतिम परिणाम क्या है इस रोग के पार करने के बाद । | ||
प्रभुपाद: क्या ? | प्रभुपाद: क्या ? | ||
मधुद्विष: | मधुद्विष: कृष्ण भावनामृत में, प्रक्रिया है भौतिक अस्तित्व के रोग को पार करने की । उनके सवाल का पहला हिस्सा है, "यह कैसे करना है ?" उनके प्रश्न का दूसरा हिस्सा है, "इस प्रक्रिया को करने के बाद अंतिम परिणाम क्या है ?" | ||
प्रभुपाद: प्रक्रिया यह है कि अाप भौतिक शक्ति से आध्यात्मिक शक्ति में जाऍ । हम शक्ति के तहत हैं । भगवान की दो शक्तियॉ हैं - भौतिक शक्ति अौर आध्यात्मिक शक्ति । हम भी शक्ति हैं । हम तटस्थ शक्ति हैं । तो तटस्थ शक्ति का अर्थ है कि हम या तो भौतिक शक्ति के तहत रह सकते हैं या आध्यात्मिक शक्ति के तहत, यह हमारे चुनाव के अनुसार है । तटस्थ ... जैसे आप समुद्र के तट पर पाअोगे कभी कभी पानी की सीमा पर, पानी भूमि को ढकता है, और कभी कभी भूमि | प्रभुपाद: प्रक्रिया यह है कि अाप भौतिक शक्ति से आध्यात्मिक शक्ति में जाऍ । हम शक्ति के तहत हैं । भगवान की दो शक्तियॉ हैं - भौतिक शक्ति अौर आध्यात्मिक शक्ति । हम भी शक्ति हैं । हम तटस्थ शक्ति हैं । तो तटस्थ शक्ति का अर्थ है कि हम या तो भौतिक शक्ति के तहत रह सकते हैं या आध्यात्मिक शक्ति के तहत, यह हमारे चुनाव के अनुसार है । तटस्थ... जैसे आप समुद्र के तट पर पाअोगे कभी कभी पानी की सीमा पर, पानी भूमि को ढकता है, और कभी कभी भूमि खुली रहती है । इसे तटस्थ स्थिति कहा जाता है । इसी तरह, हम जीव, भगवान की, तटस्थ शक्ति हैं । तो हम पानी के नीचे रह सकते हैं, मतलब भौतिक शक्ति, या हम यह खुले में रह सकते हैं, आध्यात्मिक शक्ति । | ||
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Latest revision as of 17:51, 1 October 2020
740628 - Lecture at St. Pascal's Franciscan Seminary - Melbourne
मधुद्विष: मैं जानता हूं कि आप कृष्णकृपामूर्ति से और सवाल पूछने के लिए उत्सुक हो सकते । तो अगर कोई भी सवाल है, तो अाप अपना हाथ खडा कर सकते हैं और हम सवाल पूछ सकते हैं, अगर अाप चाहो । (लंबा ठहराव) कोई सवाल नहीं ? मतलब हर कोई इससे सहमत हैं । (हंसी)
प्रभुपाद: पूर्ण सहमति । यह अच्छा है ।
अतिथि (१): आपके भक्त कहते हैं कि आपका उद्देश्य है भौतिक अस्तित्व के रोग के पार करना । मुझे वह करने की पद्धति समझ नहीं अाई, लेकिन क्या आप मुझे बता सकते हैं कि अंतिम परिणाम क्या है इस रोग के पार करने के बाद ।
प्रभुपाद: क्या ?
मधुद्विष: कृष्ण भावनामृत में, प्रक्रिया है भौतिक अस्तित्व के रोग को पार करने की । उनके सवाल का पहला हिस्सा है, "यह कैसे करना है ?" उनके प्रश्न का दूसरा हिस्सा है, "इस प्रक्रिया को करने के बाद अंतिम परिणाम क्या है ?"
प्रभुपाद: प्रक्रिया यह है कि अाप भौतिक शक्ति से आध्यात्मिक शक्ति में जाऍ । हम शक्ति के तहत हैं । भगवान की दो शक्तियॉ हैं - भौतिक शक्ति अौर आध्यात्मिक शक्ति । हम भी शक्ति हैं । हम तटस्थ शक्ति हैं । तो तटस्थ शक्ति का अर्थ है कि हम या तो भौतिक शक्ति के तहत रह सकते हैं या आध्यात्मिक शक्ति के तहत, यह हमारे चुनाव के अनुसार है । तटस्थ... जैसे आप समुद्र के तट पर पाअोगे कभी कभी पानी की सीमा पर, पानी भूमि को ढकता है, और कभी कभी भूमि खुली रहती है । इसे तटस्थ स्थिति कहा जाता है । इसी तरह, हम जीव, भगवान की, तटस्थ शक्ति हैं । तो हम पानी के नीचे रह सकते हैं, मतलब भौतिक शक्ति, या हम यह खुले में रह सकते हैं, आध्यात्मिक शक्ति ।