HI/Prabhupada 1036 - सात ग्रह प्रणालियॉ हमारे उपर हैं और सात ग्रह प्रणालियॉ नीचे भी हैं: Difference between revisions
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श्यामसंदर: सात ग्रह प्रणालि, क्या वे सात रंगों और योगी | श्यामसंदर: सात ग्रह प्रणालि, क्या वे सात रंगों और योगी की सात सिद्धियों के अनुरूप हैं ? | ||
प्रभुपाद: नहीं । सात ग्रह प्रणालि हमारे उपर हैं और सात ग्रह प्रणालि नीचे भी हैं । इसलिए इस ब्रह्मांड को | प्रभुपाद: नहीं । सात ग्रह प्रणालि हमारे उपर हैं और सात ग्रह प्रणालि नीचे भी हैं । इसलिए इस ब्रह्मांड को चतुर्दश-भवन कहा जाता है: "चौदह ग्रह प्रणालियॉ ।" इसे भुर्लोक कहा जाता है । इसके ऊपर, भुवर्लोक है । उसके ऊपर, जनलोक है । उसके ऊपर, महरलोक है । उसके ऊपर, सत्यलोक है । उसके ऊपर, ब्रह्मलोक है, सबसे उच्चतम ग्रह । इसी तरह, नीचे भी हैं, तल, अतल, तलातल, वितल, पाताल, रसातल । यह जानकारी हमें वैदिक साहित्य से मिलती है, चौदह लोक । प्रत्येक ब्रह्मांड में ये चौदह ग्रह प्रणालियॉ हैं, और असंख्य ब्रह्मांड हैं । तो यह जानकारी भी मिलती है हमें ब्रह्म-संहिता से । | ||
यस्य प्रभा प्रभवतो जगद अंड कोटि (ब्रह्मसंहिता ५.४०) । जगद अंड कोटि । जगद अंड का अर्थ है कि यह यह ब्रह्मांड एक बड़ा, मेरे कहने का मतलब है, बडा । जैसे कि अंडा । सब कुछ, हर ग्रह अंडे की तरह है । यह ब्रह्माण्ड, यह ब्रह्मांड, भी अंडे की तरह है । तो कई, कई लाख जगद अंड हैं । और प्रत्येक जगद अंड में, कोटीषु वसुधादि विभूति भिन्नम, असंख्य ग्रह भी हैं । तो वैदिक साहित्य से हमें यह जानकारी मिलती है । अगर तुम चाहो, तो तुम स्वीकार कर सकते हो । अगर तुम्हे नापसंद है, तो तुम अस्वीकार कर सकते हो । यह तुम पर निर्भर करता है । | |||
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Latest revision as of 17:36, 30 October 2018
720403 - Lecture SB 01.02.05 - Melbourne
श्यामसंदर: सात ग्रह प्रणालि, क्या वे सात रंगों और योगी की सात सिद्धियों के अनुरूप हैं ?
प्रभुपाद: नहीं । सात ग्रह प्रणालि हमारे उपर हैं और सात ग्रह प्रणालि नीचे भी हैं । इसलिए इस ब्रह्मांड को चतुर्दश-भवन कहा जाता है: "चौदह ग्रह प्रणालियॉ ।" इसे भुर्लोक कहा जाता है । इसके ऊपर, भुवर्लोक है । उसके ऊपर, जनलोक है । उसके ऊपर, महरलोक है । उसके ऊपर, सत्यलोक है । उसके ऊपर, ब्रह्मलोक है, सबसे उच्चतम ग्रह । इसी तरह, नीचे भी हैं, तल, अतल, तलातल, वितल, पाताल, रसातल । यह जानकारी हमें वैदिक साहित्य से मिलती है, चौदह लोक । प्रत्येक ब्रह्मांड में ये चौदह ग्रह प्रणालियॉ हैं, और असंख्य ब्रह्मांड हैं । तो यह जानकारी भी मिलती है हमें ब्रह्म-संहिता से ।
यस्य प्रभा प्रभवतो जगद अंड कोटि (ब्रह्मसंहिता ५.४०) । जगद अंड कोटि । जगद अंड का अर्थ है कि यह यह ब्रह्मांड एक बड़ा, मेरे कहने का मतलब है, बडा । जैसे कि अंडा । सब कुछ, हर ग्रह अंडे की तरह है । यह ब्रह्माण्ड, यह ब्रह्मांड, भी अंडे की तरह है । तो कई, कई लाख जगद अंड हैं । और प्रत्येक जगद अंड में, कोटीषु वसुधादि विभूति भिन्नम, असंख्य ग्रह भी हैं । तो वैदिक साहित्य से हमें यह जानकारी मिलती है । अगर तुम चाहो, तो तुम स्वीकार कर सकते हो । अगर तुम्हे नापसंद है, तो तुम अस्वीकार कर सकते हो । यह तुम पर निर्भर करता है ।