HI/Prabhupada 1048 - तुम कभी सुखी नहीं रहोगे - पूर्ण शिक्षा - जब तक तुम भगवद धाम वापस नहीं जाते हो: Difference between revisions

 
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हम बद्ध अवस्था में हैं जीवन की क्योंकि हम अलग हो गए हैं अपने मूल व्यक्ति से, श्री कृष्ण । क्योंकि हम अंशस्वरूप हैं श्री कृष्ण का । हम यहभूल गए हैं । हम सोच रहे हैं कि हम हिस्सा हैं अमेरिका या भारत का । यही भ्रम कहलाता है । वे रुचि रखते हैं ... कोई अपने देश में रुचि रखता है; कोई अपने समाज या परिवार में रुचि रखता है । वहाँ, हमने इतनी सारी चीजें को बनाया है, कर्तव्य । इसलिए शास्त्र कहता है कि "ये धूर्त अपने वास्तविक स्वार्थ को नहीं जानते हैं ।" न ते विदु: स्वार्थ गतिं हि विष्णुं दुराशया । वह कुछ उम्मीद रखता है जो कभी पूरा नहीं होगा । इसलिए वह धूर्त है । हम चीजों को समायोजित करने की कोशिश कर रहे हैं इस भौतिक दुनिया में सुखी होने के लिए, लेकिन वह धूर्त यह नहीं जानता है कि जब तक वह इस भौतिक दुनिया में रहेगा, खुशी का कोई सवाल ही नहीं है । यही धूर्तता है ।
हम जीवन की इस बद्ध अवस्था में हैं क्योंकि हम अपने मूल व्यक्ति से, श्री कृष्ण से, अलग हो गए हैं । क्योंकि हम श्री कृष्ण के अंशस्वरूप हैं । हम यह भूल गए हैं । हम सोच रहे हैं कि हम हिस्सा हैं अमेरिका या भारत का । यही भ्रम कहलाता है । वे रुचि रखते हैं... कोई अपने देश में रुचि रखता है; कोई अपने समाज या परिवार में रुचि रखता है । हमने इतनी सारी चीज़ो को, कर्तव्यों को, बनाया है । इसलिए शास्त्र कहता है कि "ये धूर्त अपने वास्तविक स्वार्थ को नहीं जानते हैं ।" न ते विदु: स्वार्थ गतिम हि विष्णुम दुराशया । वह कुछ उम्मीद रखता है जो कभी पूरा नहीं होगा । इसलिए वह धूर्त है । हम चीजों को समायोजित करने की कोशिश कर रहे हैं इस भौतिक दुनिया में सुखी होने के लिए, लेकिन वह धूर्त यह नहीं जानता है कि जब तक वह इस भौतिक दुनिया में रहेगा, सुख का कोई सवाल ही नहीं है । यही धूर्तता है ।  


श्री कृष्ण कहते हैं कि यह जगह दुक्खालयं अशाश्वतं है ([[Vanisource:BG 8.15|भ गी ८।१५]]) । यह भौतिक दुनिया, जहां अब हम रह रहे हैं, एक के बाद अलग अलत शरीर में, यह दुक्खालयं है । क्यों मुझे अपने शरीर को बदलना पडता है ? क्यों नहीं ... मैं शाश्वत हूँ । न हंयते हंन्यमाने शरीरे ([[Vanisource:BG 2.20|भ गी २।२०]]) इसलिए हमें सीखना हो, हम शिक्षित होना होगा, हमें पूर्ण से ज्ञान प्राप्त करना होगा । और व्यक्तिगत रूप से श्री कृष्ण, परम पूर्ण व्यक्ति, तुम्हे ज्ञान दे रहे हैं । अौर अगर हम इतने दुर्भाग्यशाली हैं कि हम पूर्ण से ज्ञान नहीं लेते हैं - -हम गढ़ते हैं, हम कल्पना करते हैं, हम अपने विचार लाते हैं - तो यह समझा जा सकता है कि दुराशया । हम सोच रहे हैं "मैं इस तरह से सुखी हो जाऊंगा । मैं इस में सुखी हो जाऊंगा." कुछ नहीं । तुम कभी भी सुखी नहीं हो सकते हो - यही पूर्ण निर्देश है - जब तक तुम वापस घर, भगवद धाम नहीं जाते हो । जैसे एक पागल लड़का, उसने अपने पिता छोड़ दिया है । उसके पिता अमीर आदमी हैं, सब कुछ है, लेकिन वह हिप्पी बन गया है । तो इसी तरह, हम भी ऐसे ही हैं । हमारे पिता श्री कृष्ण हैं । हम बहुत आराम से वहां रह सकते हैं, बिना किसी भी परेशानी के, बिना पैसे कमाने के प्रयास के लेकिन हमने तय किया है कि हम इस भौतिक दुनिया में यहाँ रहेंगे । यही गधा कहा जाता है। यह ....इसलिए मूढा
श्री कृष्ण कहते हैं कि यह जगह दुःखालयम अशाश्वतम है ([[HI/BG 8.15|भ.गी. ८.१५]]) । यह भौतिक दुनिया, जहां अभी हम रह रहे हैं, एक के बाद एक अलग अलग शरीर में, यह दुःखालयम है । क्यों मुझे अपने शरीर को बदलना पडता है ? क्यों नहीं... मैं शाश्वत हूँ । न हन्यते हन्यमाने शरीरे ([[HI/BG 2.20|भ.गी. २.२०]]) | इसलिए हमें सीखना होगा, हमें शिक्षित होना होगा, हमें पूर्ण व्यक्ति से ज्ञान प्राप्त करना होगा । और व्यक्तिगत रूप से श्री कृष्ण, परम पूर्ण व्यक्ति, तुम्हे ज्ञान दे रहे हैं । अौर अगर हम इतने दुर्भाग्यशाली हैं कि हम पूर्ण व्यक्ति से ज्ञान नहीं लेते हैं - हम कल्पना करते हैं, हम कल्पना करते हैं, हम अपने विचार लाते हैं - तो यह समझा जा सकता है कि दुराशया । हम सोच रहे हैं "मैं इस तरह से सुखी हो जाऊंगा । मैं इस में सुखी हो जाऊंगा..." कुछ नहीं । तुम कभी भी सुखी नहीं हो सकते हो - यही पूर्ण शिक्षा है - जब तक तुम वापस घर, भगवद धाम, नहीं जाते हो । जैसे एक पागल लड़का, उसने अपने पिता को छोड़ दिया है । उसके पिता अमीर आदमी हैं, सब कुछ है, लेकिन वह हिप्पी बन गया है । तो इसी तरह, हम भी ऐसे ही हैं । हमारे पिता श्री कृष्ण हैं । हम बहुत आराम से वहां रह सकते हैं, बिना किसी भी परेशानी के, बिना पैसे कमाने के प्रयास के, लेकिन हमने तय किया है कि हम इस भौतिक दुनिया में यहाँ रहेंगे । यही गधा कहा जाता है । यह... इसलिए मूढ ।  


हम नहीं जानते हैं अपना स्वार्थ क्या है । और हम गलत अाशा किए जा रहे हैं "मैं इस तरह से सुखी हो जाऊंगा । मैं इस तरह से सुखी हो जाऊंगा ।" इसलिए इस शब्द का प्रयोग किया जाता है, मूढा । वे जानते नहीं हैं कि वास्तव में उसका सुख क्या है, और वह है एक के बाद कोशिश कर रहा है, "अब मैं सुखी हो जाऊंगा ।" गधा । गधा ... कभी कभी धोबी उसकी पीठ पर बैठता है और घास का एक गुच्छा लेता है और गधे के सामने डालता है, और गधा घास लेना चाहता है । लेकिन जैसे ही वह आगे बढ़ता है, घास भी आगे बढ़ रहा है । (हंसी) और वह सोचता है, " सिर्फ एक कदम आगे, मुझे घास मिल जाएगा ।" अौर , क्योंकि वह गधा है, वह नहीं जानता, कि "घास इस तरह से रखी गई है कि मैं लाखों वर्षों तक यही करता रहूं, फिर भी, मुझे सुख प्राप्त नहीं होगा.... यही गधा है । वह अपने होश में नहीं आता है कि " लाखों और अरबों सालों के लिए मैं इस भौतिक दुनिया में सुखी होने के लिए प्रयास कर सकता हूं । मैं कभी सुखी नहीं हो सकता ।"
हम नहीं जानते हैं अपना स्व-हित क्या है । और हम गलत अाशा किए जा रहे हैं "मैं इस तरह से सुखी हो जाऊंगा । मैं इस तरह से सुखी हो जाऊंगा ।" इसलिए इस शब्द का प्रयोग किया जाता है, मूढ । वे जानते नहीं हैं कि वास्तव में उसका सुख क्या है, और वह है एक के बाद कोशिश कर रहा है, "अब मैं सुखी हो जाऊंगा ।" गधा । गधा... कभी कभी धोबी उसकी पीठ पर बैठता है और घास का एक गुच्छा लेता है, और गधे के सामने डालता है, और गधा घास लेना चाहता है । लेकिन जैसे ही वह आगे बढ़ता है, घास भी आगे बढ़ रहा है । (हंसी) और वह सोचता है, "सिर्फ एक कदम आगे, मुझे घास मिल जाएगा ।" अौर, क्योंकि वह गधा है, वह नहीं जानता, की "घास इस तरह से रखी गई है कि मैं लाखों वर्षों तक यही करता रहूं, फिर भी, मुझे सुख प्राप्त नहीं होगा..." यही गधा है । वह अपने होश में नहीं आता है कि "लाखों और अरबों सालों से मैं इस भौतिक दुनिया में सुखी होने के लिए प्रयास कर सकता हूं । मैं कभी सुखी नहीं हो सकता ।"  


इसलिए तुम्हे गुरु से ज्ञान लेना चाहिए जो सब जानता है । इसलिए गुरु पूजा की जाती है:
इसलिए तुम्हे गुरु से ज्ञान लेना चाहिए जो सब जानता है । इसलिए गुरु पूजा की जाती है:  


:अज्ञान तिमिरंधस्य
:अज्ञान तिमिरांधस्य
:ज्ञानान्जन शलाकया
:ज्ञानान्जन शलाकया  
:चक्षुर उन्मिलतं येन
:चक्षुर उन्मिलतम येन  
:तस्मआ श्री गुरुवे नम:
:तस्मै श्री गुरुवे नम: |
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Latest revision as of 17:52, 1 October 2020



750712 - Lecture SB 06.01.26-27 - Philadelphia

हम जीवन की इस बद्ध अवस्था में हैं क्योंकि हम अपने मूल व्यक्ति से, श्री कृष्ण से, अलग हो गए हैं । क्योंकि हम श्री कृष्ण के अंशस्वरूप हैं । हम यह भूल गए हैं । हम सोच रहे हैं कि हम हिस्सा हैं अमेरिका या भारत का । यही भ्रम कहलाता है । वे रुचि रखते हैं... कोई अपने देश में रुचि रखता है; कोई अपने समाज या परिवार में रुचि रखता है । हमने इतनी सारी चीज़ो को, कर्तव्यों को, बनाया है । इसलिए शास्त्र कहता है कि "ये धूर्त अपने वास्तविक स्वार्थ को नहीं जानते हैं ।" न ते विदु: स्वार्थ गतिम हि विष्णुम दुराशया । वह कुछ उम्मीद रखता है जो कभी पूरा नहीं होगा । इसलिए वह धूर्त है । हम चीजों को समायोजित करने की कोशिश कर रहे हैं इस भौतिक दुनिया में सुखी होने के लिए, लेकिन वह धूर्त यह नहीं जानता है कि जब तक वह इस भौतिक दुनिया में रहेगा, सुख का कोई सवाल ही नहीं है । यही धूर्तता है ।

श्री कृष्ण कहते हैं कि यह जगह दुःखालयम अशाश्वतम है (भ.गी. ८.१५) । यह भौतिक दुनिया, जहां अभी हम रह रहे हैं, एक के बाद एक अलग अलग शरीर में, यह दुःखालयम है । क्यों मुझे अपने शरीर को बदलना पडता है ? क्यों नहीं... मैं शाश्वत हूँ । न हन्यते हन्यमाने शरीरे (भ.गी. २.२०) | इसलिए हमें सीखना होगा, हमें शिक्षित होना होगा, हमें पूर्ण व्यक्ति से ज्ञान प्राप्त करना होगा । और व्यक्तिगत रूप से श्री कृष्ण, परम पूर्ण व्यक्ति, तुम्हे ज्ञान दे रहे हैं । अौर अगर हम इतने दुर्भाग्यशाली हैं कि हम पूर्ण व्यक्ति से ज्ञान नहीं लेते हैं - हम कल्पना करते हैं, हम कल्पना करते हैं, हम अपने विचार लाते हैं - तो यह समझा जा सकता है कि दुराशया । हम सोच रहे हैं "मैं इस तरह से सुखी हो जाऊंगा । मैं इस में सुखी हो जाऊंगा..." कुछ नहीं । तुम कभी भी सुखी नहीं हो सकते हो - यही पूर्ण शिक्षा है - जब तक तुम वापस घर, भगवद धाम, नहीं जाते हो । जैसे एक पागल लड़का, उसने अपने पिता को छोड़ दिया है । उसके पिता अमीर आदमी हैं, सब कुछ है, लेकिन वह हिप्पी बन गया है । तो इसी तरह, हम भी ऐसे ही हैं । हमारे पिता श्री कृष्ण हैं । हम बहुत आराम से वहां रह सकते हैं, बिना किसी भी परेशानी के, बिना पैसे कमाने के प्रयास के, लेकिन हमने तय किया है कि हम इस भौतिक दुनिया में यहाँ रहेंगे । यही गधा कहा जाता है । यह... इसलिए मूढ ।

हम नहीं जानते हैं अपना स्व-हित क्या है । और हम गलत अाशा किए जा रहे हैं "मैं इस तरह से सुखी हो जाऊंगा । मैं इस तरह से सुखी हो जाऊंगा ।" इसलिए इस शब्द का प्रयोग किया जाता है, मूढ । वे जानते नहीं हैं कि वास्तव में उसका सुख क्या है, और वह है एक के बाद कोशिश कर रहा है, "अब मैं सुखी हो जाऊंगा ।" गधा । गधा... कभी कभी धोबी उसकी पीठ पर बैठता है और घास का एक गुच्छा लेता है, और गधे के सामने डालता है, और गधा घास लेना चाहता है । लेकिन जैसे ही वह आगे बढ़ता है, घास भी आगे बढ़ रहा है । (हंसी) और वह सोचता है, "सिर्फ एक कदम आगे, मुझे घास मिल जाएगा ।" अौर, क्योंकि वह गधा है, वह नहीं जानता, की "घास इस तरह से रखी गई है कि मैं लाखों वर्षों तक यही करता रहूं, फिर भी, मुझे सुख प्राप्त नहीं होगा..." यही गधा है । वह अपने होश में नहीं आता है कि "लाखों और अरबों सालों से मैं इस भौतिक दुनिया में सुखी होने के लिए प्रयास कर सकता हूं । मैं कभी सुखी नहीं हो सकता ।"

इसलिए तुम्हे गुरु से ज्ञान लेना चाहिए जो सब जानता है । इसलिए गुरु पूजा की जाती है:

अज्ञान तिमिरांधस्य
ज्ञानान्जन शलाकया
चक्षुर उन्मिलतम येन
तस्मै श्री गुरुवे नम: |