NE/Prabhupada 1071 - यदी हामी भगवान सँग संगत गर्यौ, उहाँ सँग मिलेर काम गर्यौ भने हामी आनन्दित हुनेछौ: Difference between revisions

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अब उस नित्य चिन्मय आकाश का वर्णन ... जब हम आकाश की बात करते हैं, क्योंकि हमें अाकाश की भौतिक अवधारणा है, इसलिए हम सूरज, चॉद, तारे, अादि के सम्बन्ध में सोचते हैं । लेकिन भगवान बताते हैं कि नित्य आकाश में, सूरज की कोई अावश्यक्ता नहीं है । न तद्भासयते सूर्यो न शशांको न पावक: ([[Vanisource:BG 15.6|भ गी १५।६]]) । न ही नित्य आकाश में चंद्रमा की अावश्यक्ता है । न पावक: का अर्थ है न तो बिजली या अग्नि की आवश्यकता है प्रकाश के लिए क्योंकि वह नित्य अाकाश ब्रह्मज्योति द्वारा प्रकाशित है । ब्रह्मज्योति, यस्य प्रभा (ब्र स ५।४०), परम धाम से निकलने वाली ज्योति । अब इन दिनों जब लोग अन्य ग्रहों तक पहुँचने का प्रयास कर रहे हैं, परमेश्वर के धाम को जानना कठिन नहीं है । भगवान का धाम नित्य अाकाश में है, अौर गोलोक कहलाता है । ब्रह्म-संहिता में इसका अतीव सुंदर वर्णन मिलता है, गोलोक एव निवसति अखिलात्म भूत: ( ब्र स ५।३७) । भगवान अपने धाम में नित्य निवास करते हैं, गोलोक, फिर भी वे अखिलात्म भूत: हैं, उन तक इस लोक से भी पहॅचा जा सकता है । और भगवान इसलिए अपने सच्चिदानन्द विग्रह रूप को व्यक्त करते हैं (ब्र स ५।१), ताकि हमें कल्पना न करनी पडे । कल्पना का कोई सवाल ही नहीं है ।
अब उस नित्य चिन्मय आकाश का वर्णन ... जब हम आकाश की बात करते हैं, क्योंकि हमें अाकाश की भौतिक अवधारणा है, इसलिए हम सूरज, चॉद, तारे, अादि के सम्बन्ध में सोचते हैं । लेकिन भगवान बताते हैं कि नित्य आकाश में, सूरज की कोई अावश्यक्ता नहीं है । न तद्भासयते सूर्यो न शशांको न पावक: ([[Vanisource:BG 15.6 (1972)|भ गी १५।६]]) । न ही नित्य आकाश में चंद्रमा की अावश्यक्ता है । न पावक: का अर्थ है न तो बिजली या अग्नि की आवश्यकता है प्रकाश के लिए क्योंकि वह नित्य अाकाश ब्रह्मज्योति द्वारा प्रकाशित है । ब्रह्मज्योति, यस्य प्रभा (ब्र स ५।४०), परम धाम से निकलने वाली ज्योति । अब इन दिनों जब लोग अन्य ग्रहों तक पहुँचने का प्रयास कर रहे हैं, परमेश्वर के धाम को जानना कठिन नहीं है । भगवान का धाम नित्य अाकाश में है, अौर गोलोक कहलाता है । ब्रह्म-संहिता में इसका अतीव सुंदर वर्णन मिलता है, गोलोक एव निवसति अखिलात्म भूत: ( ब्र स ५।३७) । भगवान अपने धाम में नित्य निवास करते हैं, गोलोक, फिर भी वे अखिलात्म भूत: हैं, उन तक इस लोक से भी पहॅचा जा सकता है । और भगवान इसलिए अपने सच्चिदानन्द विग्रह रूप को व्यक्त करते हैं (ब्र स ५।१), ताकि हमें कल्पना न करनी पडे । कल्पना का कोई सवाल ही नहीं है ।


'''Nepali'''
'''Nepali'''

Latest revision as of 22:01, 29 January 2021



660219-20 - Lecture BG Introduction - New York


Hindi

अगर हम भगवान के साथ संगति करते हैं, उनके साथ सहयोग करते हैं, तो हम सुखी बन जाते हैं हमें यह याद रखना होगा कि जब हम "श्री कृष्ण" कि बात करते हैं तो हम किसी सांप्रदायिक नाम का उल्लेख नहीं करते हैं । "श्री कृष्ण" नाम का अर्थ है सर्वोच्च अानन्द । इसकी पुष्टि की गई है कि परमेश्वर समस्त अानन्द के अागार हैं । हम सभी अानन्द की खोज में हैं । अानन्दमयोअभ्यासात् (वेदांत-सूत्र १।१।१२) । जीव या भगवान, क्योंकि हम चेतना से पूर्ण हैं, इसलिए हमारी चेतना सुख की खोज में रहती है । सुख । भगवान तो नित्य सुखी हैं, अौर यदि हम उनके साथ संगति करते हैं, उनके साथ सहयोग करते हैं, उनके साथ संगति करते हैं, तो हम भी सखी बन जाते हैं । भगवान इस मर्त्य लोक में सुख से पूर्ण अपनी वृन्दावन लीलाओं को प्रदर्शित करने के लिए अवतरित होते हैं । जब श्री कृष्ण वृन्दावन में थे, उनके गोपमित्रों के साथ उनकी लीलाऍ, उनकी गोप सखियों के साथ, उनके मित्रों के साथ, गोपियों के साथ, और वृन्दावन के निवासियों के साथ और बचपन में गायों को चराने की उनकी लीला, और श्री कृष्ण की ये सभी लीलाऍ सुख से अोतप्रोत थीं । सारा वृन्दावन, वृन्दावन की सारी जनता, उनको ही जानती थी । वे श्री कृष्ण के अतिरिक्त किसी को नहीं जानते थे । यहां तक ​​कि भगवान कृष्ण नें अपने पिता को निरुत्साहित किया, नंद महाराज को इंद्रदेव की पूजा करने से, क्योंकि वे इस तथ्य को प्रतिष्ठित करना चाहते थे कि लोगों को किसी भी देवता की पूजा करने की अावश्यक्ता नहीं है, सिवाय परमेश्वर के । क्योंकि जीवन का चरम लक्ष्य भगवद्धाम को वापस जाना है । भगवान कृष्ण के धाम का वर्णन भगवद् गीता में है, पंद्रहवें अध्याय, छटे श्लोक में,

न तद्भासयते सूर्यो
न शशांको न पावक:
यद गत्वा न निवर्तन्ते
तद धाम परमं मम
(भ गी १५।६)

अब उस नित्य चिन्मय आकाश का वर्णन ... जब हम आकाश की बात करते हैं, क्योंकि हमें अाकाश की भौतिक अवधारणा है, इसलिए हम सूरज, चॉद, तारे, अादि के सम्बन्ध में सोचते हैं । लेकिन भगवान बताते हैं कि नित्य आकाश में, सूरज की कोई अावश्यक्ता नहीं है । न तद्भासयते सूर्यो न शशांको न पावक: (भ गी १५।६) । न ही नित्य आकाश में चंद्रमा की अावश्यक्ता है । न पावक: का अर्थ है न तो बिजली या अग्नि की आवश्यकता है प्रकाश के लिए क्योंकि वह नित्य अाकाश ब्रह्मज्योति द्वारा प्रकाशित है । ब्रह्मज्योति, यस्य प्रभा (ब्र स ५।४०), परम धाम से निकलने वाली ज्योति । अब इन दिनों जब लोग अन्य ग्रहों तक पहुँचने का प्रयास कर रहे हैं, परमेश्वर के धाम को जानना कठिन नहीं है । भगवान का धाम नित्य अाकाश में है, अौर गोलोक कहलाता है । ब्रह्म-संहिता में इसका अतीव सुंदर वर्णन मिलता है, गोलोक एव निवसति अखिलात्म भूत: ( ब्र स ५।३७) । भगवान अपने धाम में नित्य निवास करते हैं, गोलोक, फिर भी वे अखिलात्म भूत: हैं, उन तक इस लोक से भी पहॅचा जा सकता है । और भगवान इसलिए अपने सच्चिदानन्द विग्रह रूप को व्यक्त करते हैं (ब्र स ५।१), ताकि हमें कल्पना न करनी पडे । कल्पना का कोई सवाल ही नहीं है ।

Nepali

हामीले यो कुरा पनि सम्झनु पर्छकी जब हाम कृष्णको कुरा गर्द छौ, हामीले कुनै सांप्रदायिक नाम लिएको हैन यो "कृष्ण " नाम भनेको उच्चतम खुशी हो। यो कुराको पुष्टि छ कि सर्वोच्च भगवान समस्त आनन्दको सागर हुनुहुन्छ। हामीहरु सबै खुशीको प्रती आशावादी छौ । अानन्दमयोअभ्यासात् (वेदांत-सूत्र १।१।१२) । जीव या भगवान, किन भने हामी चेतनाले पूर्ण छौ । त्यसैले हाम्रो चेतना आनन्दको पछि छ । आनन्द । भगवान नित्य आनन्दित हुनुहुन्छ, र यदी हामी भगवान सँग सम्बन्ध राख्छौ, संगत गर्छौ, उहा सँग संगत गर्एउ भने तसर्त हामी पनि खुशी बन्द छौ । भगवान यो मर्त्य लोकमा सुखले पूर्ण भएर आफ्नो नित्य लोक वृन्दावनमा आफ्नो लीलाहरु प्रदसित गर्न अवतरित हुनुभएको हो । जब भगवान श्री कृष्ण वृन्दावनमा हुनुहुन्थियो, उहाको लीला ग्वाल मित्रहरु, उहाको गोपिनीहरु, उहाको साथीहरु, र व्रज बासीहरु र उहाको बाल्यकालको गौचरन को कार्य, यी सबै भगवानको लीलाहरु खुशीले पूर्ण छ। सारा वृन्दावन, वृन्दावनको सारा जनता, उहाको पछी थियो । उनीहरु लाई कृष्ण बाहेक अरु केही थाहा थिएन । कृष्णले स्वयम आफ नु पितालाई पनि निशेद गर्नु भएको थियो नन्द महाराजलाई ईन्द्रजिको पूजा गर्न बाट, किनभने उहाले यो तथ्यको प्रतिषठा गर्न चाहनु हुन्थियो कि भगवानको पूजा बहेक देवीदेउताको पूजा गर्न आवशक छैन । किनभने जीवनको अन्तिम लक्ष्य भगवद्धाम फर्किनु हो। भगवान श्रीकृष्णको धामको बारेमा भगवद् गीताको पन्ध्रौ अध्यायको छैटौ श्लोकमा उल्लेख गरिएको छ । न तद्भासयते सूर्यो न शशांको न पावक: यद गत्वा न निवर्तन्ते तद धाम परमं मम ( भ गी १५।६) । अब त्यो नित्य आकाशको विवरण.. जब हामी आकाशको कुरा गर्छौ, किनभने हामीमा आकाशको भौतिक अवधारणा हुन्छ, त्यसैले हामी सुर्य, चन्द्र, तरहरु भएको आकाशको बिचार गर्छौ । तर भगवान भन्नु हुन्छ कि अनन्त आकाशमा सुर्यको आवसक्त हुँदैन न तद्भासयते सूर्यो न शशांको न पावक: ( भ गी १५।६) । न त नित्य आकाशमा चन्द्रको आवसक्ता छ। न पावक: न त बिजुलिको न त आगोको आवसक्ता छ उज्यालो पार्नको लागि किन भने अनन्त आकाश पहिले नै ब्रम्ह ज्योति बाट प्रज्वोलित छ । ब्रह्मज्योति, यस्य प्रभा (ब्र स ५।४०), परम धामको किरणहरु । अब यी दिनहरुमा जब मान्छेहरु अन्य ग्रहमा पुग्न प्रयास गर्दै गर्दा, भगवानको धाम लाई कठीन गाह्रो छैन । भगवानको धाम नित्य आकाशमा छ, र त्यसलाई गोलोक धाम भनिन्छ । ब्रह्म-संहितामा यसको बारेमा राम्रो सँग उल्लेख गरिएको छ, गोलोक एव निवसति अखिलात्म भूत: ( ब्र स ५।३७) । भगवान, आफ्नो धाम, गोलोक धाममा अनन्त रूप म बस्नु भयता पनि, उहा अझै अखिलात्म भूत: हुनुहुन्छ, उहा लाई यो लोकसम्म यहाँ बाट पनि पुग्न सकिन्छ । अनी भगवान त्यसै कारण आफ्नो सच्चिदानन्द विग्रह रूपलाई व्यक्त गर्नु हुन्छ (ब्र स ५।१), ताकि हामीले कल्पना गर्नु न परोस। कल्पना गर्नु पर्ने कुनै प्रश्न नै छैन।