समस्त भौतिक प्रकृति, प्रकृति के तीन गुणों- सतो गुण, रजों गुण और तमों गुण के प्रभाव के अधीन है। हम समस्त मानव जाति को एक ही श्रेणी में वर्गीकृत नहीं कर सकते। जब तक हम इस भौतिक संसार में हैं, तब तक सभी को एक ही स्तर पर नहीं रख सकते। यह इस लिए संभव नहीं, क्योंकि प्रत्येक जीव प्रकृति के अलग-अलग गुणों के प्रभाव से कर्म कर रहा है। इसलिए इसका विभाजन, प्राकृतिक विभाजन होना चाहिए। इस मुद्दे पर हमने पहले चर्चा की हुई है। किन्तु जब हम इस भौतिक स्तर से परे हो जाते हैं, तब सब समान होते हैं। तब कोई विभाजन नहीं होता। तो फिर परे कैसे हो? वह दिव्य प्रकृति कृष्ण भावनामृत है। जैसे ही हम कृष्ण भावनामृत में पूर्णतया लीन हो जाते हैं, वैसे ही हम प्रकृति के इन तीन गुणों से परे, दिव्यता प्राप्त कर लेते हैं।
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