कृष्ण सभी के हृदय में स्थित हैं । ऐसा नहीं है कि क्योंकि मैं एक संन्यासी हूं, कृष्ण मेरे हृदय के भीतर बैठे हैं । नहीं । कृष्ण सभी के हृदय में बैठे हैं । ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति (भ.गी. १८.६१) । तो... और वे संवेदनशील है । वे ज्ञान में परिपूर्ण है । इसलिए केवल यह कार्य, की व्यक्ति कृष्ण को समझने की कोशिश कर रहा है, यह कृष्ण बहुत प्रसन्न करती हैं । क्योंकि आप कृपापूर्वक यहां आए हैं, और कृष्ण आपके भीतर हैं, और क्योंकि आप धैर्य से सुन रहे है, वे पहले से ही प्रसन्न है । वे पहले से ही आप पर प्रसन्न है । और इसका प्रभाव यह होगा कि श्रुण्वतां स्वकथा: कृष्ण: पुण्यश्रवणकीर्तन:, हृदि अंत: स्थो ही अभद्राणि । अभद्र का अर्थ होता है ऐसी घिनौनी चीजें जो हम जन्मो जन्मो से अपने हृदय के भीतर संजोए हुए हैं ।
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