HI/680829 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
कोई भी जीवात्मा जो इस भौतिक जगत के भीतर है, वे यहाँ दो सिद्धांतों- इच्छा, द्वेष के साथ आयी हैं। इच्छा का अर्थ है कि वे भौतिक भोग से प्रसन्न होना चाहती हैं तथा "क्या भगवान हैं? या मैं भगवान हूँ।" सारी बीमारी इन दो सिद्धांतों पर आधारित है - भगवान के अस्तित्व को नकारना और भौतिक समायोजन से प्रसन्न रहने का प्रयास करना। परंतु ऐसा संभव नहीं है। यह बस आपको परेशान कर रहा है। बस परेशान कर रहा है। |
680829 - प्रवचन SB 07.09.13-14 - मॉन्ट्रियल |