जब भगवद प्रेम का काजल हमारे नेत्रों में लगाया जाएगा, तो इन्हीं से हम भगवान का दर्शन कर पाएंगे। भगवान अदृश्य नहीं हैं। ठीक जैसे एक व्यक्ति जो मोतियाबिंद या किसी अन्य नेत्र रोग से पीड़ित है, वह नहीं देख सकता। इसका अर्थ यह नहीं है कि चीजें विद्यमान नहीं हैं। बस वह देख नहीं सकता। भगवान हैं, परंतु क्योंकि हमारी आँखें परमेश्वर को देखने के लिए सक्षम नहीं हैं, इसलिए हम ईश्वर के अस्तित्व को नकारते हैं। भगवान हर स्थान पर विद्यमान हैं। तो हमारे जीवन की भौतिक स्थिति में, हमारी आंखें जड़ हैं। न केवल आँखें, अपितु प्रत्येक इंद्री। विशेष रूप से आँखें। क्योंकि हमें अपनी आंखों पर बहुत गर्व है, और हम कहते हैं, 'क्या आप मुझे भगवान दिखा सकते हैं?' आप देखते हैं। परंतु वे यह नहीं सोचते कि क्या उनकी आँखें भगवान को देखने के लिए सक्षम हैं। यह ही नास्तिकता है।
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