HI/Prabhupada 0011 - मन में कृष्ण की पूजा की जा सकती है
Lecture on BG 4.28 -- Bombay, April 17, 1974
भक्ति-रसामृत-सिंधुमें, एक कहानी है ... कहानी नहीं । तथ्य । वहाँ वर्णित है कि एक ब्राह्मण- वह एक महान भक्त था वह मंदिरकी पूजामें बहुत शानदार सेवा अर्पण करना चाहता था, अर्चना । लेकिन उसके पास धन नहीं था । लेकिन एक दिनकी बात है वह एक भागवत पाठमें बैठा हुआ था और उसने सुना कि कृष्ण मनके भीतर भी पूजे जा सकते हैं । तो उसने इस अवसर का लाभ उठाया क्योंकि वह एक लंबे समयसे सोच रहा था कि कैसे बहुत शानसे कृष्णकी पूजा करूं, लेकिन उसके पास कोई धन नहीं था ।
तो वह, जब वह ये समझ गया, कि मनके भीतर कृष्णकी पूजा कर सकते हैं, तो गोदावरी नदीमें स्नान करनेके बाद, वह एक पेड़के नीचे बैठा हुआ था और अपने मनके भीतर वह बहुत खूबसूरत सिंहासनका निर्माण कर रहा था, गहनोंके साथ लदी और सिंहासन पर भगवानके अर्च विग्रह को रखते हुए, वह अर्च विग्रहका अभिषेक कर रहा था गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, कावेरीके जल के साथ । फिर बहुत अच्छी तरहसे अर्च विग्रहका श्रृंगार कर रहा था, अौर फूल, मालाके साथ पूजा कर रहा था ।
फिर वह बहुत अच्छी तरह से भोजन पका रहा था, और वह परमान्न, खीर पका रहा था । तो वह परखना चाहता था, क्या वह बहुत गर्म था । क्योंकि परमान्न ठंडा लिया जाता है । परमान्न बहुत गर्म नहीं लिया जाता । तो उसने परमान्नमें अपनी उंगली डाली और उसकी उंगली जल गई । तब उसका ध्यान तूटा क्योंकि वहाँ कुछ भी नहीं था । केवल अपने मनके भीतर वह सब कुछ कर रहा था । तो ... लेकिन उसने अपनी उंगली जली हुइ देखी । तो वह चकित रह गया ।
इस तरह, वैकुन्ठसे नारायण, मुस्कुरा रहे थे । लक्ष्मीजी ने पूछा, "अाप क्यों मुस्कुरा रहे हैं ?" "मेरा एक भक्त इस तरह पूजा कर रहा है । तो मेरे दूतों को तुरंत भेजो उसे वैकुन्ठ लानेके लिए ।"
तो भक्ति-योग इतना अच्छा है कि भले ही तुम्हारे पास भगवानकी भव्य पूजाके लिए साधन न हो, तुम मनके भीतर यह कर सकते हो । यह भी संभव है ।