HI/Prabhupada 0016 - मैं काम करना चाहता हूँ
Lecture on BG 7.1 -- San Francisco, March 17, 1968
तो कृष्ण से कैसे सम्पर्क करना है यह पता होना चाहिए । कृष्ण हर जगह हैं । यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । यह कृष्ण भावनामृत है । हमको पता होना चाहिए कि कैसे हम प्राप्त कर सकते हैं कृष्ण के विभिन्न रूपों से लकड़ी या लोहे या धातु में ... कोई फर्क नहीं पड़ता । कृष्ण हर जगह हैं । तुम्हे सीखना होगा कि हर चीज़ को कृष्ण से कैसे जोडें । यही योग की इस प्रणाली में समझाया जाएगा । तुम यह सीखोगे । तो कृष्ण भावनामृत भी एक योग है, पूर्ण योग, सभी योग प्रणालियों में सबसे उच्चतम । कोई भी, कोई भी योगी आ सकता है, और हम चुनौती दे सकते हैं और हम कह सकते हैं कि यह ए -१ योग प्रणाली है । यह ए-१ है, और यह उसी समय बहुत सरल है । तुम्हे अपने शरीर से व्यायाम करने कि ज़रूरत नहीं । अगर तुम कमजोर हो या कुछ थकान महसूस कर रहे हो, लेकिन कृष्ण भावनामृत में तुम्हे एसा महसूस नहीं होगा । हमारे सभी छात्र, वे केवल उत्सुक हैं काम से लादे जाने ले लिए, कृष्ण भावनामृत । "स्वामी जी, मैं क्या करूँ ? मैं क्या कर सकता हूं ?" वे वास्तव में कर रहे हैं । अच्छी तरह से । बहुत अच्छे से । वे थकान महसूस नहीं करते । यही कृष्ण भावनामृत है ।
भौतिक जगत में यदि तुम कुछ समय के लिए काम करो, तो तुम थकान महसूस करोगे । तुम्हे अाराम की आवश्यकता होगी । बेशक, मैं नहीं करता, मेरे कहने का मतलब है, मैं अपने आप की अतिशयोक्ति नहीं कर रहा हूँ । मैं बहत्तर साल का एक बूढ़ा आदमी हूँ । ओह, मैं बीमार था । मैं भारत वापस चला गया । मैं फिर से आया हूँ । मैं काम करना चाहता हूँ ! मैं काम करना चाहता हूँ । स्वाभाविक रूप से, मैं इन सब गतिविधियों से सेवानिवृत्त हो जाता, लेकिन मुझे नहीं लगता ... जब तक मैं कर सकता हूँ, मैं काम करना चाहता हूँ । मैं करना चाहता हूँ ..., दिन और रात । रातमें मैं डिक्टाफोन के साथ काम करता हूँ । तो मुझे बुरा लगता है ... मैं काम नहीं कर सकता तो मुझे बुरा लगता है । यह कृष्ण भावनामृत है । व्यक्ति को काम करने के लिए बहुत ज्यादा उत्सुक होना चाहिए । एसा नहीं है कि यह एक अालसी समाज है । नहीं । हमारे पास पर्याप्त कार्य है । वे लेखन का संपादन कर रहे हैं, वे लेखनी बेच रहे हैं । केवल इतना पता लगाअो कि कृष्ण भावानामृत को कैसे फैला सकते हैं, केवल इतना । यह व्यावहारिक है ।