HI/Prabhupada 0046 - आप जानवर मत बनिये - सामना कीजिए
Morning Walk -- May 28, 1974, Rome
योगेश्वर: भगवान (प्रभुपादके एक शिष्य) ने जाने से पहले, सवालोंकी एक सूची छोडी है मेरे पास । मैं अापसे कुछ सवाल पूछ सकता हूँ ?
प्रभुपाद: हाँ ।
योगेश्वर: एक समस्या जो एसा प्रतीत हो रहा है कि बार बार हो रही है, वो है आतंकवादियों की उपस्थिति, कहने का मतलब है, व्यक्ति जो कुछ राजनीतिक कारणोंसे प्रेरित हैं, ज्यादातर राजनीतिक ।
प्रभुपाद: हाँ पूरा बुनियादी सिद्धांत मैं पहले ही समझा चुका हूँ । क्योंकि वे पशु हैं, तो कभी कभी खूंखार पशु । बस । पशु, पशु विभिन्न प्रकार के होते हैं । बाघ और शेर, वे खूंखार पशु हैं । लेकिन तुम पशु समाजमें रहते हो । तो पशु समाज, कोई, एक अौर जानवर बहुत खूंखार होता है, बहुत आश्चर्यजनक नहीं है । अाखिरकार, तुम पशु समाजमें रह रहे हो । तो तुम मनुष्य बन जाअो, आदर्श । यही एकमात्र समाधान है । हमने पहलेसे ही घोषित कर दिया है, यह पशु समाज है । अगर कोइ खूंखार पशु बाहर आता है, तो यह देखकर दंग क्यों होना ? आखिरकार, यह पशु समाज है । भले ही कोइ एक बाघ आये या हाथी आये, वे सब पशु हैं । लेकिन तुम जानवर नहीं बनो । सामना करो । यह आवश्यक है । मनुष्यको तर्कसंगत जानवर कहा जाता है । अगर तुम तर्क करते हो, यह आवश्यक है । अगर तुम भी एक पशु बने रहोगे, एक अन्य प्रकारका पशु, तो वह तुम्हारे काम नहीं अाएगा । तुम्हे वास्तवमें मनुष्य बनना होगा । लेकिन, दुर्लभम मानुषम जन्म तद अपि अध्रुवम अर्थदम (श्रीमद भागवतम ७.६.१ ) ।
ये लोग, इनके जीवनका कोई उद्देश्य नहीं है । मानवका उद्देश्य क्या है ..., वे नहीं जानते । इसलिए उनकी पशु जैसी वृत्तियाको ठीक कर रहे है, इस तरह से, उस तरह से, इस तरह से, उस तरह से । जैसे वे नग्न नृत्यको देखने जाते हैं । पशु प्रवृत्ति, वह उसकी पत्नीको रोज़ नग्न देख रहा है, और फिर भी वह नग्न नृत्यको देखनेके लिए जा रहा है, और कुछ पैसोंका भुगतान कर रहा है । क्योंकि इस पशुताको छोड़कर उन्हे कोई अौर कार्य नहीं है । है कि नहीं ? तो दूसरी औरतको नग्न देखनेके लिए जानेका क्या फायदा है ? तुम अपनी पत्नीको नग्न, हर दिन, हर रात देख रहे हो । तुम क्यों कर रहे हो ... क्योंकि कोई अन्य कार्य नहीं है । पशु । पुन: पुनश चर्वित चर्वणानाम (श्रीमद भागवतम ७.५.३०)। कुत्तेको, स्वाद क्या है यह उसे पता नहीं । वह तो बस एक हड्डी चबा रहा है, इस तरह से, उस तरह से, इस तरह से, उस तरह से । क्योंकि वह पशु है । उसे अन्य कोइ कार्य नहीं है । तो यह पूरा समाज पशु है । विशेष रूपसे पश्चिमी देशवासी । और उन्होने पशु प्रवृति पर अाधारित एक सभ्यताका विकास किया है, अर्थात "मैं यह शरीर हूँ, और मेरे जीवनका सबसे अच्छा उपयोग इन्द्रिय तृप्ति है।" यह पशु है । "मै यह शरीर हूँ ।" शरीर का अर्थ है इंद्रिया । "और इंद्रियोको संतुष्ट करना ही उच्चतम पूर्णता है ।" यह उनकी सभ्यता है ।
तो तुम्हे वास्तविक मानव सभ्यता प्रस्तुत करना है । तुम्हे आश्चर्य नहीं होना चाहिए, एक पशु, अलग अलग आकार में, अलग अलग क्षमतामें, बाहर आते है । अाखिरकार, वह एक पशु है । बुनियादी सिद्धांत पशुता है । क्योंकि वह सोच रहा है, "मैं यह शरीर हूँ ..." कुत्ता सोच रहा है, "मैं कुत्ता हूँ, बहुत मोटा और बलवान कुत्ता ।" तो दूसरा आदमी सोच रहा है "मैं बड़ा राष्ट्र हूँ ।" लेकिन बुनियादी सिद्धांत क्या है ? एक कुत्ता भी अपने शरीरके आधार पर सोच रहा है, और बड़ा देश भी शरीरके आधार पर सोच रहा है । तो इस कुत्ते और इस बड़े देशके बीच कोई अंतर नहीं है । फर्क सिर्फ इतना है कि मनुष्य, प्रकृतिके उपहारके द्वारा, उसे बेहतर इन्द्रिया मिली हैं । और वह शक्तिहीन है या कोई शिक्षा नहीं है जिससे वह बेहतर उपयोग कर सके अपनी इंद्रियों का, कैसे आध्यात्ममें अग्रिम हों और इस भौतिक संसार से बाहर निकलें । यह समज उसके पास नहीं है । वह बस पशुताके लिए अपनी बेहतर बुद्धिमत्ता का उपयोग कर रहा है । यह अर्थ है । उसे कोई ज्ञान नहीं है कि कैसे बेहतर बुद्धिमत्ता का उपयोग करे । इसलिए वह केवल पशुताके लिए ही उपयोग करता है। और दुनिया भर के लोग, वे पश्चिमी देशवासियोंको देखते हैं, "वे उन्नत हैं ।" वह क्या है ? पशुतामें आगे बढ़ना । मूल सिद्धांत पशुता रहता है । वे आश्चर्यचकित हो जाते हैं । वह भी नकल करते हैं । इसलिए वे पशुताका विस्तार कर रहे हैं, पशु सभ्यता । अब हमें मानव सभ्यताके लाभ के लिए इसका सामना करना चाहिए ।