HI/Prabhupada 0047 - कृष्ण परब्रह्म हैं



Lecture on BG 7.1 -- Upsala University Stockholm, September 8, 1973

योग प्रणाली विभिन्न प्रकारकी होती हैं, भक्ति-योग, ज्ञान-योग, कर्म-योग, हठ-योग, ध्यान-योग । इतने सारे योग । लेकिन भक्ति-योग सर्वोच्च है । यह अाखरी अध्यायमें कहा गया है । मैं तुम्हारे सामने सातवा अध्याय पढ़ रहा हूँ । छठे अध्याय के अंतमें, श्री कृष्ण कहते हैं:

योगिनाम अपि सर्वेषाम
मद-गतेनान्तरात्मना
श्रद्धावान भजते यो माम
स मे युक्ततमो मत:
(भ गी ६.४७ )

योगिनामपि सर्वेषाम । योग प्रणालीका जो अनुसरण करता है, वह योगी कहलाता है । तो कृष्ण कहते हैं, योगिनामपि सर्वेषाम: "सभी योगियोमें ..." मैंने पहले ही कहा है । विभिन्न प्रकारके योगी होते हैं । "सभी योगियोमें ..." योगिनामपि सर्वेषाम । सर्वेषामका अर्थ है "सभी योगियोमें ।" मद-गतेनान्तरात्मना "वह जो अपने अन्त:करणमें मेरे विषयमें सोच रहा है ।" हम कृष्णके विषयमें सोच सकते हैं । हमारे पास कृष्णका रूप है । कृष्णका अर्च विग्रह, हम पूजा करते हैं । तो अगर हम अर्च विग्रह की पूजामें अपने आपको संलग्न करें, कृष्णका रूप, जो कृष्णसे भिन्न नहीं है, या, अर्च विग्रहकी अनुपस्थितिमें, अगर हम कृष्णके पवित्र नामको जपते हैं, वह भी कृष्ण है । अभिन्नत्वान् नाम-नामिनो: (चैतन्य चरितामृत १७.१३३ ) । कृष्ण परब्रह्म हैं । इसलिए, उनमें और उनके नामके बीच कोई अंतर नहीं है । उनके और उनके रूपके बीच कोई अंतर नहीं है । उनके और उनके चित्रके बीच कोई अंतर नहीं है । उनमें और उनके विषयोंके बीच कोई अंतर नहीं है । कृष्णके बारेमें कोइ भी बात कृष्ण है । यह परम ज्ञान कहा जाता है । तो या तो तुम कृष्णके नामका जाप करो या तुम कृष्णके रूपकी पूजा करो- सब कुछ कृष्ण है ।

तो भक्तिमय सेवा के विभिन्न रूप हैं ।

श्रवणम कीर्तनम विष्णो
स्मरणम पाद सेवनम
अर्चनम वन्दनम दास्यम
सख्यम अात्म निवेदनम
(श्रीमद भागवतम ७.५.२३ )

तुम बस कृष्णके बारेमें सुनो । यह सुनना भी कृष्ण है । जैसे हम अभी कृष्णके बारेमें सुननेकी कोशिश कर रहे हैं । तो यह सुनना भी कृष्ण है । यह लड़के और लड़किया, वे जप कर रहे हैं । यह जप भी कृष्ण है । श्रवणम कीर्तनम । फिर स्मरणम । जब तुम कृष्णका नाम जपते हो, तुम कृष्णका चित्र याद करते हो, वह भी कृष्ण है । या तुम कृष्णकी तस्वीर देखते हो । वह भी कृष्ण है । तुम कृष्णका अर्च विग्रह देखते हो । वह भी कृष्ण है । तुम कृष्णके विषयमें कुछ सीखते हो । वह भी कृष्ण है । तो ख़ैर,

श्रवणम कीर्तनम विष्णो
स्मरणम पाद सेवनम
अर्चनम वन्दनम दास्यम
सख्यम अात्म निवेदनम
(श्रीमद भागवतम ७.५.२३ )

अगर तुम नौ विषयोंमे से कोई भी स्वीकार करते हो, तो तुम तुरंत कृष्णसे संपर्क करते हो । या तो तुम सभी नौ विषयों या आठ या सात या छह स्वीकार करो या पाँच या चार या तीन या दो, या कम से कम एक, अगर तुम दृढता से लो और ... जैसे यह जप मान लो । इसमे कुछ भी खर्चा नहीं है । हम दुनिया भर में जप कर रहे हैं । कोई भी हमें सुन कर जप कर सकता है । तुम्हारा कुछ खर्चा नहीं होगा । और अगर तुम जप करो, तो तुम्हारा कोई नुकसान नहीं होता । तो ... यदि तुम करते हो, तो तुम तुरंत कृष्णसे संपर्क करते हो । यही फायदा है । तुरन्त । क्योंकि कृष्णका नाम और कृष्ण ...

अभिन्नत्वान् नाम-नामिनो: (चैतन्य चरितामृत १७.१३३ ) । ये वैदिक साहित्यसे वर्णन है । अभिन्नत्वान् नाम नामिनो: नाम चिन्तामणि: कृष्ण: । कृष्ण का नाम चिन्तामणि है । चिन्तामणि का अर्थ है आध्यात्मिक । चिन्तामणि-प्रकर-सद्मसु कल्प-वृक्ष-लक्षावृतेषु (ब्रह्मसंहिता ५.२९) । यह वैदिक वर्णन हैं । जहा कृष्ण रहते हैं, वह जगह वर्णित है: चिन्तामणि-प्रकर-सद्मसु कल्प-वृक्ष-लक्षावृतेषु सुरभीर् अभिपालयन्तम (ब्रह्मसंहिता ५.२९) । तो नाम, कृष्णका पवित्र नाम, भी चिन्तामणि है, आध्यात्मिक । नाम चिन्तामणि कृष्ण: । वह वही कृष्ण हैं, व्यक्ति । नाम चिन्तामणि: कृष्णश चैतन्य (चैतन्य चरितामृत १७.१३३ ) । चैतन्यका अर्थ है मृत नहीं, लेकिन जीवित । तुम नाम जपसे वैसा ही लाभ प्राप्त कर सकते हो जो व्यक्तिगत रूपसे कृष्ण के साथ बात करनेसे होगा । यह भी संभव है । लेकिन यह धीरे - धीरे अनुभव होगा । नाम चिन्तामणि: कृष्णश् चैतन्य-रस-विग्रह: । रस विग्रह का अर्थ है आनन्द, आनन्द के अागार । जैसे, तुम हरे कृष्ण का जप करते हो, तो धीरे -धीरे तुम कुछ दिव्य आनन्दका स्वाद लेते हो । जैसे यह लड़के और लड़किया, कीर्तन करते हुए, वे अानन्दमें नाच रहे हैं । कोई भी उन्हे समझ नहीं सका । लेकिन वे पागल नहीं हैं, कि वे कीर्तन कर रहे हैं । वास्तवमें , उन्हे कुछ अानन्द मिल रहा है, दिव्य अानन्द । इसलिए वे नाच रहे हैं । यह कुत्ते का नृत्य नहीं है । नहीं । यह वास्तवमें आध्यात्मिक नृत्य है, आत्माका नृत्य है । तो ... इसलिए, उन्हे रस-विग्रह कहा जाता है, पूर्ण अानन्दका अागार ।

नाम चिन्तामणि: कृष्णश् चैतन्य-रस-विग्रह: पूर्ण: (चैतन्य चरितामृत १७.१३३ ) । पूर्ण, पूरा । कृष्णसे एक प्रतिशतभी कम नहीं । नहीं । शत प्रतिशत कृष्ण । पूरा । पूर्ण । पूर्ण का अर्थ है पूरा । पूर्ण: शुद्ध: । शुद्ध का अर्थ है विशुद्ध । भौतिक संसारमें प्रदूषण है । भौतिक, तुम किसीभी नामका जप करो, क्योंकि वह दूषित है, तुम बहुत लंबे समयके लिए इसे जारी नहीं रख सकते हो । यह एक अनुभव है । लेकिन यह हरे कृष्ण मंत्रका जाप, अगर तुम चौबीस घंटेके लिए करते हो, तुम्हे थकान महसूस कभी नहीं होगी । यही परीक्षण है । तुम जप करते रहो । यह लड़के चौबीस घंटे जप कर सकते हैं बिना कुछ भी खाए या पानी पिए । यह इतना अच्छा है । क्योंकि यह पूर्ण है, आध्यात्मिक, शुद्ध । शुद्धका अर्थ है विशुद्ध । भौतिक दूषित नहीं । भौतिक अानन्द, कोई भी अानन्द ... भौतिक दुनियामें सबसे उच्चतम अानन्द यौन-क्रिया है । लेकिन तुम इसका चौबीस घंटे आनंद नहीं ले सकते हो । यह संभव नहीं है । तुम कुछ मिनटके लिए आनंद ले सकते हो । बस । अगर तुम्हे आनंद लेने के लिए मजबूर किया जाए, तुम उसे अस्वीकार करोगे: "नहीं, नहीं ।" यह भोतिक है । लेकिन आध्यात्मिकका अर्थ है जिसका कोई अंत नहीं है । तुम निरन्तर चौबीस घंटे आनंद ले सकते हो । यही आध्यात्मिक आनंद है । ब्रह्म सौख्यम अनन्तम (श्रीमद भागवतम ५.५.१) । अनन्तम । अनन्तम का मतलब है जिसका कोई अंत नहीं ।