HI/Prabhupada 0099 - कैसे कृष्ण द्वारा मान्यता प्राप्त हो



Lecture on BG 13.4 -- Bombay, September 27, 1973

अतः हम देखते हैं कि विभिन्न प्रकार के लोग हैं, यद्दपि वे सभी मुंबई में रह रहे हों अथवा अन्य शहर में, उसी प्रकार सभी जीव, एक प्रकार के नहीं होते। कुछ सतोगुण से प्रभावित होते हैं, कुछ रजोगुण से प्रभावित होते हैं, और कुछ तमोगुण से प्रभावित होते हैं। अतः तमोगुण से प्रभावित व्यक्ति, जल निमग्न सदृश हैं। जैसे अग्नि जल को स्पर्श करते ही बुझ जाती है। और सूखी घास, अग्नि की एक स्फुलिंग घास को स्पर्श करते ही पुनः अग्नि का रूप धारण कर लेती है ।

अतः जो सतोगुणी हैं, वे कृष्णभावनामृत शीघ्र ग्रहण कर सकते हैं। क्योंकि गीता में कहा गया है, येषां त्व अन्तगतं पापं (भ गी ७.२८)। क्यों लोग इस मंदिर में नहीं आ रहे हैं ? क्योंकि वे तमोगुण से प्रभावित हैं। न मां दुष्कृतिनो मूढ़ाः प्रप्रद्यन्ते नराधमाः । (भ गी ७.१५) वे नहीं आ सकते हैं। जो पाप कृत्यों में व्यस्त हैं, वे कृष्णभावनामृत के महात्म्य को नहीं समझ सकते। यह संभव नहीं है। तब भी सबको एक अवसर प्रदान किया जाता हैं। हम आवेदन करते हैं, "कृपया यहाँ आईये, कृपया... " यह कृष्ण के प्रति हमारा कर्तव्य है । जैसे श्रीकृष्ण स्वयं आते हैं गीता का व्याख्यान करने और आदेश देते हैं, सर्व धर्मान् परित्यज्य मां एकम् शरणं व्रज (भ गी १८.६६) |

हमारा भी यही कर्तव्य है। अतः कृष्ण हमारी प्रशंसा करते हैं, " यह लोग मेरे कार्य में मेरी सहायता कर रहे हैं। मुझे जाना नहीं पड़ा, वे मेरी ओर से कार्य कर रहे हैं । " और उनके कार्य को करने का अर्थ है, हम केवल लोगों से जिज्ञासा करते हैं, "कृपया भगवान कृष्ण को समर्पण किजिए।" अतः हम उनके अति प्रिय हैं, श्री कृष्ण कहते हैं, न च तस्मान् मनुष्येषु कश्चिन मे प्रिय-कृत्तमः (भ गी १८|६९) । अतः हमारा कार्य है, किसी भी प्रकार से, हम श्रीकृष्ण द्वारा पहचाने जा सकें ।

हमें यह सोचने की आवश्यकता नहीं है कि कोई कृष्णभावनामृत को स्वीकार करता है या नहीं। हमारा कर्तव्य केवल आवेदन करना है, " कृपया यहाँ आईये और श्रीकृष्ण के विग्रह का दर्शन किजिए, उन्हें प्रणाम किजिए , प्रसाद ग्रहण किजिए और अपने घर वापस चले जाईये ।" किन्तु लोग नहीं मान रहे हैं । ऐसा क्यों ? दुराचारी व्यक्ति कृष्णभावनामृत को स्वीकार नहीं कर सकते ।

अतः कृष्ण कहते हैं, येषां त्व अन्तगतं पापं । जिसने अपने पापों से पूर्ण मुक्ति प्राप्त कर ली है । येषां त्व अन्त-गतं पापं जनानां पुण्य कर्मणां (भ गी ७|२८)। कौन पापों से मुक्त हो सकता हैं ? जो सर्वदा धार्मिक कार्यों में लगा हुआ है । यदि आप सर्वदा धार्मिक कार्यों में लगे हुए हैं, तो आपके पास पाप कार्य करने का अवसर ही कहाँ है ? अतः सर्वोच्च धार्मिक कार्य है हरे कृष्ण महामंत्र का जप करना । यदि आप सर्वदा हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, जप में लगे हैं, यदि आपका मन भी इसी में लगा हुआ है, तब आपका मन किसी अन्य विषय में मग्न नहीं हो सकता । यही कृष्णभावनामृत की विधि है । ज्योंही हम श्रीकृष्ण को भूल जाते हैं, माया हमे पुनः अपने वश में कर लेती है ।