HI/Prabhupada 0098 - कृष्ण की सुंदरता से आकर्षित हो
The Nectar of Devotion -- Vrndavana, November 11, 1972
मदन-मोहन । मदन का अर्थ है मैथुन आकर्षण। मदन, मैथुनअाकर्षण, कामदेव अौर कृष्ण को मदन-मोहन कहा जाता है । हम, मेरे कहने का अर्थ है कि, यदि कोई श्रीकृष्ण से आकर्षित होता है तो वह मैथुन आकर्षण से मुक्ति पा सकता है । यही मापदंड है। मदन पूरे विश्व को आकर्षित कर रहा है। हर कोई मैथुन जीवन से आकर्षित है । यह पूरा भौतिक विश्व मैथुन जीवन के आधार पर चल रहा है। यही तथ्य है। यन मैथुनादि-ग्रहमेधि सुःखम् हि तुच्छम् (श्रीमद् भागवतम् ७.९.४५)। यहाँ, खुशी, तथाकथित खुशी है मैथुन, मैथुनादि । मैथुनादि का अर्थ है यहाँ खुशी आरंभ होती है मैथुन से, यौन संबंध से। साधारणतया लोग... एक मनुष्य विवाह करता है । उद्देश्य है यौन इच्छाओं को तुष्ट करने के लिए। फिर वह बच्चे पैदा करता है । फिर जब बच्चे बडे़ हो जाते हैं, वे पुत्री की शादी होती है एक अन्य लड़के के साथ अौर पुत्र की शादी होती है एक अन्य लड़की के साथ । वहाँ भी कारण वही है, मैथुन। और फिर पोते । इस तरह से, यह भौतिक सुख - श्रीयैश्वर्य प्रजेप्सव:(श्रीमद् भागवतम् १.२.२७)) उस दिन हम चर्चा कर रहे थे। श्री का अर्थ है सौन्दर्य, ऐश्वर्य का अर्थ है धन-संपत्ति और प्रजा का अर्थ हैं प्रजनन। अाम तौर पर लोग, उन्हें अच्छा लगता है, अच्छा परिवार, अच्छी जमा-पूँजी, और अच्छी पत्नी, अच्छी पुत्री, अच्छी बहू । यदि एक परिवार सुन्दर महिलाओं और सम्पदा से भरा है। और अनेक बच्चों से, वह समृद्ध माना जाता है । वह अत्यंत संपन्न पुरुषों में गिना जाता है । तो शास्त्र कहता है, " सफलता क्या है ?" यह सफलता अारंभ होती है यौन संबंध से । बस । और उन्हें बनाए रखना ।" तो यन मैथुनादि-ग्रहमेधि सुःखम् हि तुच्छम् (श्रीमद् भागवतम् ७.९.४५) यहाँ खुशी मैथुन से शुरू होती है, मैथुनादि । हम एक अलग तरीके से इसे पॉलिश कर सकते हैं, लेकिन यह मैथुना, मैथुन जीवन का सुख, सुअरों में है । सुअर भी, वे पूरा दिन खा रहे हैं, यहाँ और वहाँ : "मल कहाँ हैं? मल कहाँ है?" और बिना किसी भेदभाव के यौन जीवन जी रहे हैं । सुअर भेदभाव नहीं करते हैं कि माँ, बहन या बेटी है । तो इसलिए शास्त्र कहते हैं, "यहाँ इस भौतिक दुनिया में, हम उलझे हैं, हम केवल इस मैथुन जीवन के कारण इस भौतिक दुनिया में कैद हैं।" यही कामदेव है । कामदेव मैथुन जीवन के देवता हैं, मदन । जब तक हम, क्या कहा जाता है, मदन से प्रेरित हैं, कामदेव, वह नहीं हो सकता है, मेरे कहने का अर्थ है, मैथुन जीवन से आनंदित । और कृष्ण का नाम है मदन-मोहन । मदन-मोहन का अर्थ है जो कृष्ण की ओर आकर्षित होता है, वह मैथुन जीवन से प्राप्त आनंद को भूल जाएगा । यह परीक्षा है । इसलिए उनका नाम मदन-मोहन है । यहाँ हैं मदन-मोहन । सनातन गोस्वामी मदन-मोहन की पूजा करते थे । मदन या मादन । मादन का अर्थ है पागल हो जाना और मदन, कामदेव ।
तो हर कोई मैथुन जीवन के बल से व्यथित है । कई स्थान हैं... भागवतम् में यह कहा जाता है पुम्स: स्रिय मिथुनि भावम एतत तयोर मिथो हृदय-ग्रन्थिम अाहुर (श्रीमद् भागवतम् ५.५.८)। पूरा भौतिक संसार चल रहा है: पुरूष स्त्री से आकर्षित है, स्त्री पुरूष से आकर्षित है । अौर इस आकर्षण की खोज में, जब वे संयुक्त होते हैं, इस भौतिक संसार के लिए उनका लगाव अौर अधिक बढ़ जाता है । और इस तरह से, एकजुट होने के बाद या शादी होने के बाद, एक स्त्री और पुरूष, वे घर ढू़ढ़ते हैं, गृह; क्षेत्र, काम, व्यापार, कारखाने या कृषि क्षेत्र । क्योंकि पैसा कमाना पड़ता है । तो भोजन लाअो । गृह-क्षेत्र ; सुत, बच्चे और; अाप्त, मित्र; वित्त, धन अत: ग्रह क्षेत्र-सुताप्त वित्तैर जनस्य मोहो अयम (श्रीमद् भागवतम् ५.५.८) । इस भौतिक संसार के लिए आकर्षण अधिक से अधिक प्रगाढ़ हो जाता है । इसे मदन, मदन द्वारा आकर्षण कहा जाता है । लेकिन हमारा काम है, इस भौतिक संसार की चका-चौंध से आकर्षित न होना । बल्कि कृष्ण से आकर्षित होना । यही कृष्णभावनामृत आंदोलन है । जब तक तुम कृष्ण की सुंदरता से आकर्षित नहीं हो जाते हो, हमें भौतिक संसार के इस झूठे सौंदर्य की सुंदरता से संतुष्ट होना होगा । इसलिए श्री यमुनाचार्य नें कहा है कि, यदावधि मम चेत: कृष्ण-पदारविन्दयोर नव-नव-धाम रन्तुम अासीत्। "जब से मैं कृष्ण की सुंदरता से आकर्षित हुअा हूँ और मैंने उनके चरण कमलों की सेवा करनी शुरू की है, और तब से मुझे, नई-नई शक्ति मिल रही है, जैसे ही मैं यौन संबंध के बारे में सोचता हूँ, मैं उस पर थूकना चाहता हूँ ।" यही है वितृष्णा, अब और आकर्षण नहीं... इस भौतिक संसार के आकर्षण का केंद्र बिंदु मैथुन जीवन है, और जब हम, मैथुन जीवन से अलग हो जाते हैं... तदावधि मम चेत: ...
- यदावधि मम चेत: कृष्ण-पदारविन्दयोर
- नव-नव- (रस-)धाम (अनुदयत) रन्तुम अासीत:
- तदवधि बत नारी संगमे स्मर्यमाने
- भवति मुख विकार: सुष्ठु निश्थीवनम च
"जैसे ही मैं संभोग के बारे में सोचता हूँ, तुरंत मेरे मुँह अलग दिशा में मुड़ जाता है और मैं उस पर थूकना चाहता हूँ । " तो इसलिए कृष्ण मदन-मोहन हैं । मदन हर किसी को आकर्षित कर रहा है , मैथुन जीवन, और कृष्ण, जब हम कृष्ण से आकर्षित होते हैं, तो मदन भी पराजित हो जाता है । तो जैसे ही मदन पराजित हो जाता है, हम इस भौतिक संसार पर विजय प्राप्त करते हैं । नहीं तो यह बहुत मुश्किल है।