HI/Prabhupada 0134 - तुम मारोगे नहीं, और तुम मार रहे हो



Morning Walk -- October 4, 1975, Mauritius

प्रभुपाद: ईसाई पादरी, वे मुझे पूछ रहे थे कि, " क्यों ईसाई धर्म क्षीण हो रहा है ? हमने क्या किया है ?" तो मैंने कहा, "आपने क्या नहीं किया है ?" (हँसी)

च्यवन: हाँ ।

प्रभुपाद: "आपने मसीह के आदेशों का शुरुआत से ही उल्लंघन किया है । 'तुम मारोगे नहीं ।" और तुम मार रहे हो, केवल हत्या । तो आपने क्या नहीं किया है ? "

पहला भक्त: वे कहते हैं कि मनुष्य को पशुओं से श्रेष्ठ होना चाहिए ।

प्रभुपाद: इसलिए तुम उन्हें मारो और खाअो । बहुत अच्छा तर्क है । "पिता को बच्चों से श्रेष्ठ होना चाहिए इसलिए बच्चों को मार ड़ालना चाहिए और खा जाना चाहिए ।" तो दुष्ट और वे धार्मिक नेता बने फिर रहे हैं ।

पुष्ट कृष्ण: प्रभुपाद, अगर हम हर पल मार रहे हैं, सांस लेते हुए और घूमते हुए और काम करते हुए, और फिर यह कहते हैं कि, "तुम हत्या नहीं करोगे," तो क्या हमें भगवान ने एक ऐसा निर्देश नहीं दिया है जो कि असंभव है ?

प्रभुपाद: नहीं । जानबुझ कर तुम्हें एसा नहीं करना चाहिए । लेकिन यदि तुम ऐसा अनजाने में करो, तो माफ़ है । न पुनर् बध्यते । अाह्लादिनी-शक्ति, यह अानन्द शक्ति है । तो अानन्द शक्ति कृष्ण के लिए कष्टदायक नहीं है । लेकिन यह दुखदायक है । यह हमारे लिए दुःखद है, बद्ध-जीवात्माओं के लिए । यह गोल्डन मून (एक बार का नाम ?), हर कोई यहाँ अानन्द के लिए आता है, लेकिन वह पाप कार्यों में शामिल होता जा रहा है । इसलिए यह अानन्द नहीं है । यह उसे कष्ट देगा । इतने सारे बाद के परिणाम । यौन जीवन, यदि वह अवैध न भी हो, फिर भी, यह कष्टदायक है, बाद के परिणाम। आपको बच्चों का ख्याल रखना होगा । आपको बच्चों को पैदा करना होगा । यह कष्टदायक है । आपको प्रसव के लिए अस्पताल में भुगतान करना होगा । फिर शिक्षा, फिर डॉक्टर के बिल, तो अति कष्टदायक । तो यह सुख, यौन सुख, उसके बाद कई कष्टदायक चीज़े हैं । ताप-कारी । वही आनंद शक्ति जीव में अल्प मात्रा में है । और जैसे ही वे इसका उपयोग करते हैं, वह कष्टदायक बन जाता है । और आध्यात्मिक जगत् में यही अानन्द शक्ति, कृष्ण का गोपियों के साथ नृत्य, कष्टदायक नहीं है । यह मनभावन है । (ब्रेक)... मनुष्य, यदि वह अच्छा खाद्य-पदार्थ लेता है , वह कष्टदायक है । यदि एक रोगग्रस्त आदमी, यदि वह लेता है ...

च्यवन: वह और अधिक बीमार हो जाता है ।

प्रभुपाद: और अधिक बीमार । इसलिए यह जीवन तपस्या के लिए है, स्वीकार करने के लिए नहीं, स्वेच्छा से अस्वीकार करने के लिए । तब यह अच्छा है ।