HI/Prabhupada 0194 - यहाँ प्रथम श्रेणी के पुरुष है



Lecture on SB 7.6.4 -- Toronto, June 20, 1976

इसलिए हमें शास्त्र-विधि को अपनाना चाहिए, मतलब, यही सभ्यता की वास्तविक प्रगति है । क्योंकि जन्म जन्मान्तर से हम परमेश्वर के साथ अपना रिश्ता भूल गए हैं, और यह केवल एक ही मौका है, मानव जीवन, हम परमेश्वर के साथ हमारे संबंधों को पुनर्जीवित कर सकते हैं । चैतन्य-चरितामृत में यह कहा जाता है कि: अनादि बहिर-मुख जीव कृष्ण भुलि गेला अतैव कृष्ण वेद-पुराण करिला । यह वेद, पुराण क्यों हैं? खासकर भारत में, हमें इतने सारे वैदिक साहित्य मिलते हैं । सबसे पहले, चार वेद - साम, यजुर्वेद, ऋग्, अथर्व । फिर उनका सार तत्वज्ञान, वेदांत सूत्र । तब वेदांत विवरण, पुराण । पुराण का मतलब है पूरक । साधारण व्यक्ति, वे वैदिक भाषा समझ नहीं सकते हैं । इसलिए पुराणों में कहा जाता है. और श्रीमद-भागवत को महा पुराण कहा जाता है । यह निष्कलंक पुराण है, श्रीमद-भागवतम, क्योंकि अन्य पुराणों में भौतिक गतिविधियों का वर्णण है, लेकिन इस महा पुराण में, श्रीमद-भागवतम, बस आध्यात्मिक गतिविधियॉ । यह चाहिए । तो यह श्रीमद-भागवत व्यासदेव द्वारा लिखा गया था नारद के निर्देशन के तहत । महा पुराण।

इसलिए हमें इस का लाभ लेने होगा । कई बहुमूल्य साहित्य । मानव जीवन इस के लिए है । क्यों तुम उपेक्षा कर रहे हो? हमारा, हमारा प्रयास, यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन है कैसे इस ज्ञान वेद और पुराण का प्रसार करें, ताकि इंसान इसका लाभ ले और अपने जीवन को सफल बना सके । अन्यथा, अगर वह सिर्फ सूअर की तरह दिन और रात मजदूरी करे, सूअर दिन और रात पता लगाने के लिए बहुत कड़ी मेहनत कर रहा है "मल कहां है? मल कहां है?" और मल खाने के बाद, जैसे ही वे थोडा मोटा हो जाता है... सूअर इसलिए मोटे होते हैं क्योंकि मल सभी भोजन का सार होता है । चिकित्सा विज्ञान के अनुसार, मल हाईड्रोफोस्फेट्स से भरा है । तो हाईड्रोफोस्फेट्स अच्छा टॉनिक है वे अगर कोई चाहे तो कोशिश कर सकते हैं । (हंसी) लेकिन वास्तव में यह तथ्य है। सुअर बहुत मोटा हो जाता है क्योंकि यह मल है ।

तो यह जीवन एक सुअर बनने के लिए नहीं है । हमें साधु व्यक्ति बनना चाहिए । यही मानव सभ्यता है । इसलिए वैदिक सभ्यता में - ब्राह्मण, प्रथम श्रेणी के पुरुष । कोई प्रथम श्रेणी के पुरुष इस समाज में अब नहीं है । हर कोई तृतीय श्रेणी, चौथी श्रेणी, पांचवीं श्रेणी । सत्य-शम-दम-तितिक्ष अार्जव ज्ञानम्-विज्ञानम् अास्तिक्यम् ब्रह्म-कर्म स्वभाव-जम (भ.गी. १८।४२) । यही प्रथम श्रेणी का पुरुष है । सच्चा, बहुत शांतिपूर्ण, ज्ञान से भरा, बहुत सरल, सहिष्णु, और शास्त्र में विश्वास रखने वाला । ये प्रथम श्रेणी के पुरुषों के लक्षण हैं । तो पूरी दुनिया भर में प्रथम श्रेणी के आदमी कहाँ है? (तोड़) ... कृष्ण भावनामृत आंदोलन कोशिश कर रहा है प्रथम श्रेणी के पुरुष बनाने के लिए कम से कम एक अनुभाग में ताकी लोग देख सकते है, "ओह, यहाँ आदर्श पुरुष हैं ।" इसलिए मेरा अनुरोध है उन व्यक्तियों को जो इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन में शामिल हुए हैं, वे बहुत ध्यान से अपने को प्रथम श्रेणी के पुरुष के रूप में बनाए रखें । लोग सराहना करेंगे और उनका अनुसरन करने की कोशिश करेंगे । यद यद आचरति श्रेष्ठस तत तद एवतरो जना: (भ.गी. ३.२१) ।

अगर पुरुषों का एक वर्ग है, प्रथम श्रेणी का, तो लोग सराहना करेंगे । कम से कम, वे पालन करने की कोशिश करेंगे, भले ही (वे) प्रथम श्रेणी बनने में असमर्थ हों । वे अनुसरन करने की कोशिश करेंगे । तत तद एव, स यत प्रमाणम् कुरुते लोकस तद अनुवर्तते । इसलिए प्रथम श्रेणी के आदमी की आवश्यकता है । अगर वह कार्य करता है, तो दूसरे उसका अनुसरन करेंगे । एक शिक्षक धूम्रपान नहीं करता है, तो छात्रों भी स्वाभाविक रूप से धूम्रपान करना बंद कर देंगे । लेकिन अगर शिक्षक धूम्रपान कर रहा है, तो कैसे छात्र...? वे कक्षा में भी धूम्रपान कर रहे हैं । मैंने न्यूयॉर्क में देखा है । भारत में कम से कम यह अभी तक शुरू नहीं हुसा है । यह शुरू हो जाएगा । वे भी प्रगति कर रहे हैं । (हंसी) ये दुष्ट प्रगति कर रहे हैं, नर्क में जा रहे हैं । (हंसी)

तो, प्रहलाद महाराज सलाह देते हैं , तथाकथित आर्थिक विकास और बकवास गतिविधियों में अपना बहुमूल्य समय बर्बाद मत करो । मुकुंद का भक्त बनने की कोशिश करो । तो फिर तुम्हारा जीवन सफल हो जाएगा ।