HI/Prabhupada 0359 - हमें परम्परा प्रणाली से इस विज्ञान को जानना चाहिए



Lecture on BG 4.2 -- Bombay, March 22, 1974

वैदिक ज्ञान को प्राप्त करने का मतलब है कृष्ण को समझना । लेकिन अगर तुम कृष्ण को नहीं समझते हो और अगर तुम बात करते हो, इतनी सारी बकवास चीजें, अौर तुम पंडित होने को ढोंग करते हो, तो यह है श्रम एव हि केवलम् । यह कहा गया है । श्रम एव हि । बस समय बर्बाद करना और श्रम करना शून्य के लिए । वासुदेवे भगवती...

धर्म: स्वनुष्ठित: पुंसाम
विश्वक्सेन कथासु य:
नोत्पादयेद यदि रतिम
श्रम एव हि केवलम्
(श्रीमद् भागवतम् १.२.८)

अब, धर्म, हर कोई बहुत अच्छी तरह से अपने विशेष व्यावसायिक कर्तव्य निष्पादित कर रहा है । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र । मैं संगठित समाज के बारे में बोल रहा हूँ, वर्तमान का यह जानवर समाज नहीं । यहाँ तक ​​कि संगठित समाज में, एक ब्राह्मण सिर्फ एक ब्राह्मण की तरह अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहा है । सत्यम शमो दमस तितिक्षः अार्जवम, ज्ञानम विज्ञानम अास्तिक्यम ब्रह्म-कर्म स्वभाव-जम (भ.गी. १८.४२) । फिर भी... धर्म: स्वनुष्ठित:, वह बहुत अच्छी तरह से अपने कर्तव्य को निष्पादित कर रहा है एक ब्राह्मण के रूप में, लेकिन एेसे कर्तव्यों का पालन करके, अगर वह कृष्णभावनामृत का विकास नहीं करता है, फिर श्रम एव हि केवलम् । यह फैसला है । फिर उसने समय बर्बाद किया है । क्योंकि ब्राह्मण बनने का मतलब है, उत्तम ब्राह्मण, ब्रह्मण के बारे में पता होना । अथातो ब्रह्मा-जिज्ञासा । और पर-ब्रह्म, परम ब्रह्म, कृष्ण हैं । अगर वह कृष्ण को समझता नहीं है, तो उसके इस ब्राह्मण के कर्तव्य को क्रियान्वित करने का क्या फायदा है ? यह शास्त्र का फैसला है ।

श्रम एव हि केवलम्, बस समय बर्बाद करना । इसलिए हमें परम्परा प्रणाली से इस विज्ञान को जानना चाहिए । एवम परम्परा-प्राप्तम (भ.गी. ४.२) । तुम्हें सही व्यक्ति के पास जाना चाहिए जो कृष्ण को जानता है । एवम परम्परा... जैसे सूर्य, विवस्वान की तरह, उन्हें श्री कृष्ण ने निर्देश दिया था । तो अगर तुम विवस्वान से निर्देश लेते हो, सूर्य भगवान से, तो तुम्हें सही ज्ञान मिलता है । लेकिन तुम सूर्य ग्रह को नहीं जा सकते हो और विवस्वान से नहीं पूछ सकते हो, "कृष्ण ने तुमसे क्या बात की ?" इसलिए विवस्वान ने उनके बेटे मनु को ज्ञान सौंप दिया । इस युग को वैवस्वत् मनु कहते हैं, यह युग । अब विवस्वान, कयोंकि वे विवस्वान के बेटे हैं, इसलिए इस मनु को वैवस्वत मनु कहा जाता है । वैवस्वत मनु । अब यह युग वैवस्वत मनु का है । मनुर् इक्ष्वाकवे अब्रवीत् । तो मनु ने भी अपने बेटे से बात की ।

तो इस तरह से, एवम परम्परा-प्राप्तम् (भ.गी. ४.२), वे कुछ उदाहरण दे रहे हैं, लेकिन ज्ञान परम्परा से प्राप्त किया जाना चाहिए । लेकिन किसी न किसी वजह से, परम्परा खो गई... जैसे मैंने अपने शिष्य से कुछ बात की है । वह अपने शिष्य को वही बात कहता है । वह अपने शिष्य से वही बात कहता है । लेकिन किसी कारण से अगर यह विकृत होती है, तो ज्ञान खो जाता है । जैसे ही कोई शिष्य परम्परा में अाते हुए ज्ञान को विकृत करता है, तो वह खो जाता है । यही समझाया जा रहा है । स कालेन महता । समय बहुत शक्तिशाली है । यह बदलता है । यही कारण है कि ... समय का मतलब है परिवर्तन, मूल स्थिति को मारता है । तुम्हें अनुभव मिलता है । तुम कुछ खरीदते हो । यह नया, बहुत ताज़ा है । लेकिन समय उसे मार देगा । यह मलीन हो जाएगा । यह बेकार हो जाएगा कुछ समय के बाद । तो समय लड़ रहा है ।

यह भौतिक समय, इसे काल कहा जाता है । काल का मतलब है मौत । या काल का मतलब है काला साँप । तो काला साँप नष्ट करता है । जैसे ही कुछ छूता है, वह नष्ट हो जाता है । इसी तरह, काल ... यह काल भी कृष्ण का दूसरा रूप है । तो कालेन महता । इसलिए इसे महता कहा जाता है । यह बहुत शक्तिशाली है । यह साधारण बात नहीं है । महता । उसका काम है नष्ट करना । स कालेन इह नष्ट । समय के कारण ... काल कैसे नष्ट कर सकता है ? जैसे ही काल देखता है कि तुम विकृत कर रहे हो, तो यह नष्ट हो जाएगा । तो भगवद्गीता को समझने की कोशिश मत करो उन लोगों से जो काल के प्रभाव में हैं - अतीत, वर्तमान, भविष्य । भगवद्गीता को समझने की कोशिश मत करो, तथाकथित बदमाश दार्शनिकों, टिप्पणीकारों से और ... वे एक विकृत तरीके से भगवद्गीता लिखेंगे । कोई कहेगा, "कोई कृष्ण नहीं था । कोई महाभारत नहीं था ।" कोई कहता है, "कृष्ण ने इस पर ज़ोर दिया", " कृष्ण ने उस पर ज़ोर दिया ।" कोई कहेगा, 'कृष्ण ने कर्म पर ज़ोर दिया, कर्म-कांड ।" कोई कहेगा ज्ञान पर, और कोई योग कहेगा । भगवद्गीता के इतने संस्करण हैं । योगी चार्थ, ज्ञाना अर्थ, गीतार् गान अर्थ ... तो असली गीतार् गान श्रीभगवान द्वारा बोला गया है, हमें यह स्वीकार करना होगा । यही गीतार गान है ।