HI/Prabhupada 0827 - आचार्य का कर्तव्य है शास्त्र की आज्ञा को बताना



The Nectar of Devotion -- Vrndavana, November 5, 1972

तो चैतन्य महाप्रभु ने हमें दिया है... यह शास्त्र में है । चैतन्य महाप्रभु ने कहा है... आचार्य का काम है... सब कुछ शास्त्र में है । आचार्य कुछ भी आविष्कार नहीं करता है । यह आचार्य नहीं है । आचार्य केवल बताते हैं, "ये बात है ।" जैसे रात के अंधेरे में हम कुछ भी पूरी तरह से नहीं देख सकते हैं या कुछ भी नहीं देख सकते हैं, लेकिन जब सूर्योदय होता है, सूर्योदय, सूर्योदय का प्रभाव यह है कि हम चीजों को यथा रूप देख सकते हैं । चीज़े निर्मित नहीं हैं । वहां पहले से ही है । चीज़े हैं... मकान, शहर और सब कुछ है, लेकिन जब वहाँ सूर्योदय होता है तो हम सब कुछ अच्छी तरह से देख सकते हैं। इसी तरह, आचार्य, या अवतार, वे कुछ भी बनाते नहीं हैं । वे केवल चीजों को देखने के लिए प्रकाश देते हैं यथा रूप । तो चैतन्य महाप्रभु नें यह श्लोक बताया बृहद नारदिय पुराण से । यह श्लोक बृहद नारदिय पुराण में पहले से ही था ।

हरेर नाम हरेर नाम हरेर नामैव केवलम
कलौ नास्ति एव नास्ति एव नास्ति एव गतिर अन्यथा
(चैतन्य चरितामृत अादि १७.२१) ।

यह श्लोक पहले से ही वहाँ बृहद-नारदीय पुराण में था, कलि युग में हमारी गतिविधियों के संकेत । चैतन्य महाप्रभु, उन्होंने कहा । हालांकि वे खुद कृष्ण हैं - वे एसी बहुत सी बातों का निर्माण कर सकते हैं - लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया । यही आचार्य है । आचार्य धर्म के नए प्रकार का निर्माण नहीं करेगा, एक नए प्रकार का हरे कृष्ण मंत्र । यही शक्तिशाली नहीं है । जैसे... हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे / हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे । यह शास्त्र में है । तो ये शक्ति है । अब अगर हम जोड़ते हैं और घटाते हैं इन सोलह शब्दों से, यह मनगढ़ंत है । इसमें शक्ति नहीं रहेगी । वे यह समझ नहीं सकते हैं । वे सोच रहे हैं कि अगर वे कुछ नए संप्रदाय का निर्माण कर सकते हैं, हरे कृष्ण को जोड़कर, तो वह विशेष रूप से उल्लेख हो जाता है | लेकिन वह पूरी बात को खराब कर देता है । यही... वह कोई भी नई बात नहीं बनाता है । नई बात यह है, कि वह पूरी बात को खराब कर देता है ।

तो चैतन्य महाप्रभु नें कभी एसा नहीं किया हालांकि वे खुद कृष्ण हैं । वे शास्त्र पर ड़टे रहे । कृष्ण, वे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं । वे भी संकेत देते हैं: य: शास्त्र उत्सृज्य वर्तते काम कारत: न सिद्धीम सावाप्नोति (भ.गी. १६.२३) | वे कहते हैं कि कोई भी शास्त्र की आज्ञा को त्याग नहीं सकता है । ब्रह्म-सूत्र-पदैश चैव हेतुमद्भिर विनिश्चित: (भ.गी. १३.५) । कृष्ण कहते हैं । वे दे सकते हैं । जो भी वे कहते हैं, वह शास्त्र है, वह वेद है । लेकिन फिर भी, वे शास्त्र का संदर्भ देते हैं । तो आचार्य का कर्तव्य है शास्त्र की आज्ञा को बताना । वे पहले से ही वेद में हैं । उनका कर्तव्य है... जैसे इतनी दवाइयाँ हैं ।

अगर तुम दवा की दुकान में जाते हो, सभी दवाईयाँ हैं, लेकिन अनुभवी चिकित्सक, वह वही दवा देता है जो विशेष रूप से उपयुक्त है तुम्हारे लिए । तुम नहीं कह सकते हो, "श्रीमान, अाप दवा का चयन क्यों कर रहे हैं ? आप कोई भी एक बोतल दे सकते हैं ।" यह बकवास है । कोई भी नहीं । विशेष शरीर, एक विशेष बोतल, और एक विशेष दवा तुम्हारे लिए उपयुक्त है, अनुभवी चिकित्सक तुम्हे देता है । वह आचार्य है । तो तुम नहीं कह सकते कि "सब कुछ दवा ही है, कोई भी बोतल मैं लूँ, सब ठीक है ।" नहीं । यह नहीं है । यह चल रहा है । यत मत तत पथ । क्यों यत मत तत पथ ? एक विशेष मत जो तुम्हारे लिए उपयुक्त है एक विशेष समय पर, उसे स्वीकार किया जाना चाहिए, कोई अौर मत नहीं । तो इसी तरह, इस युग में, इस कलयुग में, जहॉ लोगों की अायु कम है, जीवन की अवधि बहुत ही कम है वे दुर्भाग्यपूर्ण हैं, वे मंद गति से काम करते हैं, और वे धार्मिक सिद्धांतों के अनधिकृत साधन अपनाते हैं, वे जीवन की इतनी परेशानियों से उन्मुख हैं... इसलिए इस युग के लिए यह विशेष दवा, चैतन्य महाप्रभु द्वारा दी गई:

हरेर नाम हरेर नाम हरेर नामैव केवलम
कलौ नास्ति कलौ नास्ति कलौ नास्ति एव गतिर अन्यथा
(चैतन्य चरितामृत अादि १७.२१) |

प्रभु कहे, इह हैते सर्व-सिद्धि हैबे तोमार । इसलिए हम चैतन्य महाप्रभु की शिक्षा लेनी चाहिए, जो विशेष रूप से इस युग में, कलियुग में, खुद अवतीर्ण हुए हैं । कलौ संकीर्तन प्रायैर यजन्ति हि सु मेधस: । यहशास्त्र की आज्ञा है ।

कृष्ण-वर्णम त्विषाकृष्णम
सांगोपांगास्त्र पार्षदम
यज्ञै: संकीर्तन प्रायैर
यजन्ति हि सु मेधस:
(श्रीमद भागवतम ११.५.३२) |

यह शास्त्र में आज्ञा है कि प्रभु का यह रूप, जो अपने सहयोगी के साथ है... सांगोपांगास्त्र पार्षदम | इसलिए चैतन्य महाप्रभु हमेशा श्री अद्वैत प्रभु के साथ जुड़े हैं, श्री नित्यानंद प्रभु, श्री गदाधर प्रभु, श्री श्रीवास प्रभु । इसलिए पूजा की प्रक्रिया है श्री कृष्ण-चैतन्य प्रभु-नित्यानंद श्री-अद्वैत गदाधार श्रीवासादि-गौर-भक्त-वृन्द । यह उत्तम प्रक्रिया है । शॉर्ट कट नहीं है । नहीं । जैसे संकेत दिया गया है । यह श्रीमद-भागवतम में संकेत है । कृष्ण-वर्णम त्विषाकृष्णम सांगोपांगास्त्र (श्रीमद भागवतम ११.५.३२) | तो जब हमें भगवान चैतन्य की पूजा करनी है, हम उनके सहयोगियों के साथ पूजा करते हैं । श्री कृष्ण-चैतन्य प्रभु-नित्यानंद श्री-अद्वैत गदाधार श्रीवासादि-गौर-भक्त-वृन्द । कोई छोटी विधि नहीं । तो यह शास्त्र आज्ञा है । तो कलियुग की पापी गतिविधियों से छुटकारा पाने के लिए, यह पहले से ही शास्त्र में निर्धारित है और सबसे बड़े अधिकारी, श्री चैतन्य महाप्रभु, इसकी पुष्टि करते हैं । चेतो दर्पण मार्जनम भव महा दावाग्नि निर्वापणम (चैतन्य चरितामृत अन्त्य २०.१२) | तो हम सभी को इस महा-मंत्र को, जप को, अपनाना चाहिए,

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।

बहुत बहुत धन्यवाद । हरे कृष्ण ।