HI/Prabhupada 0999 - अात्मवित मतलब वो व्यक्ति जो आत्मा को जानता है



730406 - Lecture SB 02.01.01-2 - New York

अब, यह कृष्ण संप्रश्न:, श्री कृष्ण के बारे में ये सवाल अौर जवाब, अगर हम केवल सुनते हैं, यह बात चैतन्य महाप्रभु नें भी कही है । स्थाने स्थिता: श्रुति गताम तनु वान मनोभिर । तुम अपनी स्थिति में बने रहो, लेकिन तुम श्री कृष्ण के बारे में सुनने का प्रयास करो । यह कहा गया है । केवल तुम इस मंदिर में आअो और श्री कृष्ण के बारे में सुनने का प्रयास करो, स्थाने स्थिता: श्रुति गताम तनु वान । यह शुद्ध करेगा ।

कृष्ण-कीर्तन, श्री कृष्ण का नाम इतना शक्तिशाली है, केवल अगर तुम सनते हो "कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण," तुम शुद्ध हो जाते हो । तुम शुद्ध हो जाते हो । इसलिए यह कहा जाता है, वरीयान एष ते प्रश्न: कृतो लोक हितम नृप, अात्मवित संमत: (श्रीमद भागवतम २.१.२) । अात्मवित । यह नहीं है कि मैं केवल प्रशंसा कर रहा हूँ । अात्मवित सम्मत: । सभी महान हस्तियॉ जो अात्म साक्षात्कारी हैं, आत्मवित । अात्मवित मतलब जो अात्मा को जानता है । आम लोग, वे आत्मा को नहीं जानते हैं । लेकिन अात्मवित मतलब जो आत्मा को जानता है, अहम ब्रह्मास्मि । "मैं आत्मा हूँ, मैं यह शरीर नहीं हूँ, " और जो इस आत्म-तत्त्व से अच्छी तरह से परिचित है ।

तो जब तक हम अात्म तत्व के बारे में जानते नहीं है, जो कुछ भी वह कर रहा है, वह हार रहा है । वे देख रहे हैं... आम तौर पर लोग, वे सोच रहे हैं कि "अब मैं इस बड़ी गगनचुंबी इमारत का निर्माण कर रहा हूँ । मैं सफल हूँ । मैं रोथ्सचाइल्ड बन गया हूं, मैं फोर्ड बन गया हूं । " यह आत्म-वित नहीं है । अात्म वित... क्योंकि उसके पास भौतिक भव्यता है, इसका मतलब आत्म-वित नहीं । इस विषय पर अगले श्लोक में चर्चा की जाएगी, अपश्यताम अात्म तत्वम (श्रीमद भागवतम २.१.२) । जो अपनी आत्मा को नहीं देख सकता है, गृहेषु गृह मेधिनाम | वे व्यस्त हैं जीवन के इस भौतिकवादी अाचरण में, गृहेषु गृह मेधिनाम । उनकी हालत बहुत... वास्तव में यह पूरी दुनिया की स्थिति है । वे आत्म-वित नहीं हैं । वे आत्म-तत्वम के बारे में पूछताछ नहीं करते; इसलिए वे कम बुद्धिमान हैं ।

हवाई अड्डे में मैंने कहा कि हम, हमारा प्रचार है लोगों को और अधिक बुद्धिमान बनाना । उन्होंने बहुत अच्छी तरह से इसे लिया नहीं होगा । उन्होंने सोचा कि "यह बेचारा स्वामी हमें बुद्धिमान बनाने के लिए आया है ।" लेकिन वास्तव में यह तथ्य है । यह तथ्य है । यह बुद्धिमत्ता नहीं है, कि, जीवन की शारीरिक अवधारणा, "मैंने शारीरिक सुख के लिए अपने पूरे जीवन को खराब किया है, और इस शरीर को त्यागने के बाद, मैं एक बिल्ली और कुत्ता बन गया ।" तब बुद्धिमत्ता क्या है ? क्या यह बहुत अच्छी बुद्धिमत्ता है ? वास्तव में यह हुआ है । मैं चर्चा नहीं करना चाहता हूं । हमारे गुरु भई, श्रीधर महाराज कहते हैं, वे लेखन से बात कर रहे थे... कि हमारा एक महान राजनीतिज्ञ, भारत में, वह अब स्वीडन में एक कुत्ता बन गया है । यह प्रकाशित है ।

भारत में कुछ बड़े लोगों के बारे में पूछताछ थी और उन्होंने जवाब दिया, और एक जवाब है, "यह राजनीतिज्ञ, वह अब स्वीडन में एक सज्जन के दो कुत्तों में से एक है ।" तुम समझ रहे हो । तो इस बार, इस जीवन में मैं बहुत बड़ा आदमी बन सकता हूं, या बड़ा राजनीतिज्ञ, बड़ा राजदूत, बड़ा व्यापारी, लेकिन अगले जीवन में, तुम्हारी मृत्यु के बाद,... तुम्हारी बड़ी, तुम्हारी भौतिक महानता तुम्हारी मदद नहीं करेगी । वो तुम्हारे कर्म पर निर्भर करेगा, और प्रकृति तुम्हे एक खास प्रकार का शरीर देगी, तुम्हे स्वीकार करना होगा । बेशक तुम भूल जाओगे । यह प्रकृति द्वारा दी गई छूट है ।

जैसे हमें याद नहीं है कि हमने अपने पिछले जीवन में क्या किया । अगर मैं याद रखता हूं कि मान लो मैं अपने पिछले जीवन में एक राजा था, अब मैं तो एक कुत्ता बन गया हूं, तो कितनी पीड़ा होगी । इसलिए प्रकृति के नियम के तहत हम भूल जाते हैं । और मौत का मतलब है ये विस्मृति । मौत मतलब ये विस्मृति ।