HI/Prabhupada 0975 - हम छोटे भगवान हैं । सूक्ष्म, नमूने के भगवान: Difference between revisions
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हम आकाश में एक स्पुटनिक को तैरा सकते हैं, और हम इतना श्रेय लेते हैं, की हम बहुत, बहुत महान वैज्ञानिक बन गए हैं । हम भगवान की परवाह नहीं करते हैं । यह मूर्खता है । मूर्ख व्यक्ति इस तरह कहेंगे । लेकिन जो बुद्धिमान है, वह जानता है कि भगवान आकाश में लाखों और अरबों ग्रह तैरा रहे हैं, और उनकी तुलना में हमने क्या किया है ? यह बुद्धिमत्ता है । तो हम हमारे वैज्ञानिक ज्ञान पर बहुत बहुत गर्व करते हैं, और इसलिए, वर्तमान क्षण में, हम भगवान के अस्तित्व को नकारते हैं । कभी कभी हम कहते हैं कि "मैं अब भगवान बन गया हूं ।" ये मूर्खता के बयान हैं । तुम कुछ भी नहीं हो बुद्धि की तुलना में... वे (भगवान) भी बुद्धिमान है । क्योंकि हम भगवान के अंशस्वरूप हैं, इसलिए हम केवल अपना अध्ययन करने से भगवान क्या हैं यह अध्ययन कर सकते हैं । | |||
जैसे अगर तुम समुद्र के पानी की एक बूंद का अध्ययन करते हो, अगर तुम रासायनिक विश्लेषण करते हो, तो तुम्हे उस बूंद में इतने सारे रसायन मिलेंगे । तो तुम समझ सकते हो कि समुद्र की संरचना क्या है । वही संरचना । लेकिन अधिक मात्रा में । यही भगवान और हमारे बीच का अंतर है । हम छोटे भगवान हैं, हम कह सकते हैं, छोटे भगवान । सूक्ष्म, नमूने के भगवान । तो, हम इतना गर्व कर रहे हैं । लेकिन हमें गर्व नहीं करना चाहिए, क्योंकि हमें पता होना चाहिए की हम हमारे सभी गुणों को भगवान से ले रहे हैं । क्योंकि हम अंशस्वरूप हैं । तो मूल रूप से ये सभी गुण भगवान में हैं । और इसलिए वेदांत-सूत्र कहता है कि भगवान क्या है, निरपेक्ष सत्य क्या है ? अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । | |||
जब हम निरपेक्ष सत्य के बारे में जिज्ञासा करते हैं, भगवान के बारे में, जवाब तुरंत दिया जाता है: जन्मादि अस्य यत: ([[Vanisource:SB 1.1.1|श्रीमद भागवतम १.१.१]]) | निरपेक्ष सत्य वह है जो हर किसी का स्रोत है, जिससे सब कुछ आता है । तो सब कुछ भगवान से आ रहा है । वे सभी की आपूर्ति के मूल स्रोत हैं । अब हमारी स्थिति क्या है ? असंख्य जीव हैं । नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम (कठ उपनिषद २.२.१३) । ये वैदिक जानकारी है । भगवान भी जीव हैं, हमारी तरह, लेकिन वे मुख्य जीव हैं । और हम भी जीव हैं । | |||
जैसे एक पिता । पिता के बीस बच्चे हो सकते हैं । बीस बेटे । पूर्व में, लोगों के एक सौ पुत्र हुअा करते थे । | जैसे एक पिता । पिता के बीस बच्चे हो सकते हैं । बीस बेटे । पूर्व में, लोगों के एक सौ पुत्र हुअा करते थे । अभी पिताअों में ऐसी कोई शक्ति नहीं है । लेकिन, पांच हजार साल पहले तक, राजा धृतराष्ट्र नें एक सौ पुत्रों को जन्म दिया । अब हम... हम कहते हैं कि अाबादी बहुत बढ गई है । लेकिन यह तथ्य नहीं है । वर्तमान समय में, कहॉ है बहुत जनसंख्या होने का सवाल ? अब हम में से कितने लोग सैकड़ों बच्चों को जन्म देते हैं ? नहीं । कोई नहीं । लेकिन पूर्व में, एक पिता एक सौ बच्चों को जन्म दे सकता था । तो बहुत जनसंख्या का कोई सवाल ही नहीं है । और अगर जनसंख्या ज्यादा हो भी, हमें वेदों से जानकारी मिलती है: एको बहुनाम यो विदधाति कामान । वह एक प्रमुख जीव, भगवान, वे असंख्य जीवों का पालन कर सकते हैं । | ||
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Latest revision as of 15:42, 28 October 2018
730408 - Lecture BG 04.13 - New York
हम आकाश में एक स्पुटनिक को तैरा सकते हैं, और हम इतना श्रेय लेते हैं, की हम बहुत, बहुत महान वैज्ञानिक बन गए हैं । हम भगवान की परवाह नहीं करते हैं । यह मूर्खता है । मूर्ख व्यक्ति इस तरह कहेंगे । लेकिन जो बुद्धिमान है, वह जानता है कि भगवान आकाश में लाखों और अरबों ग्रह तैरा रहे हैं, और उनकी तुलना में हमने क्या किया है ? यह बुद्धिमत्ता है । तो हम हमारे वैज्ञानिक ज्ञान पर बहुत बहुत गर्व करते हैं, और इसलिए, वर्तमान क्षण में, हम भगवान के अस्तित्व को नकारते हैं । कभी कभी हम कहते हैं कि "मैं अब भगवान बन गया हूं ।" ये मूर्खता के बयान हैं । तुम कुछ भी नहीं हो बुद्धि की तुलना में... वे (भगवान) भी बुद्धिमान है । क्योंकि हम भगवान के अंशस्वरूप हैं, इसलिए हम केवल अपना अध्ययन करने से भगवान क्या हैं यह अध्ययन कर सकते हैं ।
जैसे अगर तुम समुद्र के पानी की एक बूंद का अध्ययन करते हो, अगर तुम रासायनिक विश्लेषण करते हो, तो तुम्हे उस बूंद में इतने सारे रसायन मिलेंगे । तो तुम समझ सकते हो कि समुद्र की संरचना क्या है । वही संरचना । लेकिन अधिक मात्रा में । यही भगवान और हमारे बीच का अंतर है । हम छोटे भगवान हैं, हम कह सकते हैं, छोटे भगवान । सूक्ष्म, नमूने के भगवान । तो, हम इतना गर्व कर रहे हैं । लेकिन हमें गर्व नहीं करना चाहिए, क्योंकि हमें पता होना चाहिए की हम हमारे सभी गुणों को भगवान से ले रहे हैं । क्योंकि हम अंशस्वरूप हैं । तो मूल रूप से ये सभी गुण भगवान में हैं । और इसलिए वेदांत-सूत्र कहता है कि भगवान क्या है, निरपेक्ष सत्य क्या है ? अथातो ब्रह्म जिज्ञासा ।
जब हम निरपेक्ष सत्य के बारे में जिज्ञासा करते हैं, भगवान के बारे में, जवाब तुरंत दिया जाता है: जन्मादि अस्य यत: (श्रीमद भागवतम १.१.१) | निरपेक्ष सत्य वह है जो हर किसी का स्रोत है, जिससे सब कुछ आता है । तो सब कुछ भगवान से आ रहा है । वे सभी की आपूर्ति के मूल स्रोत हैं । अब हमारी स्थिति क्या है ? असंख्य जीव हैं । नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम (कठ उपनिषद २.२.१३) । ये वैदिक जानकारी है । भगवान भी जीव हैं, हमारी तरह, लेकिन वे मुख्य जीव हैं । और हम भी जीव हैं ।
जैसे एक पिता । पिता के बीस बच्चे हो सकते हैं । बीस बेटे । पूर्व में, लोगों के एक सौ पुत्र हुअा करते थे । अभी पिताअों में ऐसी कोई शक्ति नहीं है । लेकिन, पांच हजार साल पहले तक, राजा धृतराष्ट्र नें एक सौ पुत्रों को जन्म दिया । अब हम... हम कहते हैं कि अाबादी बहुत बढ गई है । लेकिन यह तथ्य नहीं है । वर्तमान समय में, कहॉ है बहुत जनसंख्या होने का सवाल ? अब हम में से कितने लोग सैकड़ों बच्चों को जन्म देते हैं ? नहीं । कोई नहीं । लेकिन पूर्व में, एक पिता एक सौ बच्चों को जन्म दे सकता था । तो बहुत जनसंख्या का कोई सवाल ही नहीं है । और अगर जनसंख्या ज्यादा हो भी, हमें वेदों से जानकारी मिलती है: एको बहुनाम यो विदधाति कामान । वह एक प्रमुख जीव, भगवान, वे असंख्य जीवों का पालन कर सकते हैं ।