HI/Prabhupada 0977 - यह भौतिक शारीर हमारे आध्यात्मिक शरीर के अनुसार काटा जाता है: Difference between revisions
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अब | अब कृष्ण कहते हैं: चातुर वर्ण्यम मया सृष्टम गुण कर्म विभागश: ([[HI/BG 4.13|भ.गी. ४.१३]]) | अब... जब हम जानवर हैं... हमें जानवरों के शरीर से गुज़रना पड़ता है । विकास के द्वारा, हम मनुष्य शरीर में आए हैं । अब यह अवसर है इस जन्म और मृत्यु के चक्र से बाहर निकलने का । यह हमारी वास्तविक समस्या है । लेकिन लोग, क्योंकि उन्हे कोई जानकारी नहीं है, ज्ञान की कमी... कोई शैक्षणिक संस्थान नहीं है, कैसे आत्मा का स्थानांतरगमन होता है | वे नहीं जानते । बड़े, बड़े एम.ए., पी.एच.डी । लेकिन वे जानते नहीं हैं कि जीव की वास्तविक स्थिति क्या है । लेकिन यह वास्तविक समस्या है । वे असली समस्या को नहीं जानते हैं । | ||
असली समस्या यह है ... यह भगवद गीता में कहा गया है: जन्म-मृत्यु जरा व्याधि ([[ | असली समस्या यह है... यह भगवद गीता में कहा गया है: जन्म-मृत्यु जरा व्याधि ([[HI/BG 13.8-12|भ.गी. १३.९]]), जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी । यह वास्तविक समस्या है । कोई भी जन्म लेना नहीं चाहता है । कम से कम कोई नहीं मरना चाहता है । जन्म और मृत्यु । जन्म जहाँ भी है, मृत्यु को होना ही चाहिए । जो जन्म लेता है उसे मरना ही होगा । तो जन्म-मृत्यु । और बुढ़ापा । जब तक तुम जीवित हो, तुम्हे अपनी स्थिति को बदलना होगा । तो एक स्थिति यह बुढापा है । जैसे अब हम बूढे हो गए हैं । कई शिकायतें हैं । जरा । और व्याधि । और जब हम रोगग्रस्त हो जाते हैं । हर किसी को रोगग्रस्त होना पडता है । हर किसी को बूढा होना पडता है । हर किसी को मरना पडता है । यह समस्या है । | ||
हम जीवन की सभी दुखी हालतों को कम करने की कोशिश कर रहे हैं । यही अस्तित्व के लिए संघर्ष है। हम वैज्ञानिक हैं । हम व्यथित हालत से बाहर निकलने के लिए कई प्रतिकार प्रक्रियाओं की खोज कर रहे हैं । लेकिन मुश्किल स्थिति, जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि से हम मुह मोड रहे हैं । क्योंकि हम कुछ नहीं कर सकते हैं । हम यह भी नहीं कर सकते है ... तथाकथित विज्ञान, वे इस समस्या को हल नहीं कर सकते हैं । यद्यपि कभी कभी वे झूठा अभिमान करते | जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि दुःख-दोषानुदर्शनम । हम जीवन की सभी दुखी हालतों को कम करने की कोशिश कर रहे हैं । यही अस्तित्व के लिए संघर्ष है। हम वैज्ञानिक हैं । हम व्यथित हालत से बाहर निकलने के लिए कई प्रतिकार की प्रक्रियाओं की खोज कर रहे हैं । लेकिन मुश्किल स्थिति, जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि से हम मुह मोड रहे हैं । क्योंकि हम कुछ नहीं कर सकते हैं । हम यह भी नहीं कर सकते है... तथाकथित विज्ञान, वे इस समस्या को हल नहीं कर सकते हैं । यद्यपि कभी कभी वे झूठा अभिमान करते है कि विज्ञान के द्वारा हम अमर हो जाएॅगे इत्यादि । ये बातें पुरुषों के नास्तिक वर्ग नें भी पहले कोशिश की थी रावण, हिरण्यकशिपु की तरह । लेकिन सफल होना संभव नहीं है, जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी को रोकना । यह संभव नहीं है । अगर कोई संभावित प्रक्रिया है, तो यह कृष्ण भावनामृत है । यही कृष्ण भावनामृत है । | ||
अगर तुम कृष्ण भावनाभावित हो जाते हो, तो तुम एक शरीर प्राप्त कर सकते हो । प्राप्त करना नहीं... तुम्हारे पास पहले से ही शरीर, आध्यात्मिक शरीर है । और उस आध्यात्मिक शरीर पर, यह भौतिक शरीर विकसित हुअा है । जैसे वस्त्र । तुम्हारा कोट तुम्हारे शरीर के हिसाब से काटा जाता है । इसी तरह, यह भौतिक शरीर हमारे आध्यात्मिक शरीर के अनुसार काटा जाता है । तो हमारा आध्यात्मिक शरीर है । यह भौतिक शरीर अावरण है । वासांसी जीर्णानि ([[Vanisource: BG 2.22 (1972) |भ.गी. २.२२]]) । जैसे वस्त्र । तुम्हारा शर्ट और कोट तुम्हारे असली शरीर का अावरण है । इसी तरह, भौतिक तत्वों से बना यह शरीर, स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर... स्थूल शरीर पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि से बना है । और सूक्ष्म शरीर, मन, बुद्धि और अहंकार का बना है । | |||
यह शर्ट और कोट है । इस शर्ट और कोट के भीतर, आत्मा है । तो आत्मा अब इस भौतिक के शरीर में कैद है । और हमारा काम मनुष्य शरीर में... पशु शरीर में, हम ऐसा नहीं कर सकते हैं । लेकिन मनुष्य शरीर में हम समझ सकते हैं कि "मैं यह शरीर नहीं हूँ ।" शरीर, यह भौतिक शरीर, एक बाहरी कैद है, और, क्योंकि मुझे यह शरीर मिला है, मैं जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी के अधीन हूँ । अब, मनुष्य शरीर में मैं इसे समझता हूं । तो अगर मैं इस प्रक्रिया को अपनाता हूं, कि कैसे जन्म और मृत्यु के इस चक्र से बाहर निकलना है, तब हमारा मानव जीवन सफल होता है । यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । कैसे, हम कैसे इस भौतिक शरीर से बाहर निकलने के लिए लोगों को मदद कर रहे हैं, और अपने आध्यात्मिक शरीर को पुनर्जीवित करने में, अौर उस आध्यात्मिक शरीर में, तुम वापस घर जाते हो, भगवद धाम । यह प्रक्रिया है । | |||
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Latest revision as of 19:31, 17 September 2020
730408 - Lecture BG 04.13 - New York
अब कृष्ण कहते हैं: चातुर वर्ण्यम मया सृष्टम गुण कर्म विभागश: (भ.गी. ४.१३) | अब... जब हम जानवर हैं... हमें जानवरों के शरीर से गुज़रना पड़ता है । विकास के द्वारा, हम मनुष्य शरीर में आए हैं । अब यह अवसर है इस जन्म और मृत्यु के चक्र से बाहर निकलने का । यह हमारी वास्तविक समस्या है । लेकिन लोग, क्योंकि उन्हे कोई जानकारी नहीं है, ज्ञान की कमी... कोई शैक्षणिक संस्थान नहीं है, कैसे आत्मा का स्थानांतरगमन होता है | वे नहीं जानते । बड़े, बड़े एम.ए., पी.एच.डी । लेकिन वे जानते नहीं हैं कि जीव की वास्तविक स्थिति क्या है । लेकिन यह वास्तविक समस्या है । वे असली समस्या को नहीं जानते हैं ।
असली समस्या यह है... यह भगवद गीता में कहा गया है: जन्म-मृत्यु जरा व्याधि (भ.गी. १३.९), जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी । यह वास्तविक समस्या है । कोई भी जन्म लेना नहीं चाहता है । कम से कम कोई नहीं मरना चाहता है । जन्म और मृत्यु । जन्म जहाँ भी है, मृत्यु को होना ही चाहिए । जो जन्म लेता है उसे मरना ही होगा । तो जन्म-मृत्यु । और बुढ़ापा । जब तक तुम जीवित हो, तुम्हे अपनी स्थिति को बदलना होगा । तो एक स्थिति यह बुढापा है । जैसे अब हम बूढे हो गए हैं । कई शिकायतें हैं । जरा । और व्याधि । और जब हम रोगग्रस्त हो जाते हैं । हर किसी को रोगग्रस्त होना पडता है । हर किसी को बूढा होना पडता है । हर किसी को मरना पडता है । यह समस्या है ।
जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि दुःख-दोषानुदर्शनम । हम जीवन की सभी दुखी हालतों को कम करने की कोशिश कर रहे हैं । यही अस्तित्व के लिए संघर्ष है। हम वैज्ञानिक हैं । हम व्यथित हालत से बाहर निकलने के लिए कई प्रतिकार की प्रक्रियाओं की खोज कर रहे हैं । लेकिन मुश्किल स्थिति, जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि से हम मुह मोड रहे हैं । क्योंकि हम कुछ नहीं कर सकते हैं । हम यह भी नहीं कर सकते है... तथाकथित विज्ञान, वे इस समस्या को हल नहीं कर सकते हैं । यद्यपि कभी कभी वे झूठा अभिमान करते है कि विज्ञान के द्वारा हम अमर हो जाएॅगे इत्यादि । ये बातें पुरुषों के नास्तिक वर्ग नें भी पहले कोशिश की थी रावण, हिरण्यकशिपु की तरह । लेकिन सफल होना संभव नहीं है, जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी को रोकना । यह संभव नहीं है । अगर कोई संभावित प्रक्रिया है, तो यह कृष्ण भावनामृत है । यही कृष्ण भावनामृत है ।
अगर तुम कृष्ण भावनाभावित हो जाते हो, तो तुम एक शरीर प्राप्त कर सकते हो । प्राप्त करना नहीं... तुम्हारे पास पहले से ही शरीर, आध्यात्मिक शरीर है । और उस आध्यात्मिक शरीर पर, यह भौतिक शरीर विकसित हुअा है । जैसे वस्त्र । तुम्हारा कोट तुम्हारे शरीर के हिसाब से काटा जाता है । इसी तरह, यह भौतिक शरीर हमारे आध्यात्मिक शरीर के अनुसार काटा जाता है । तो हमारा आध्यात्मिक शरीर है । यह भौतिक शरीर अावरण है । वासांसी जीर्णानि (भ.गी. २.२२) । जैसे वस्त्र । तुम्हारा शर्ट और कोट तुम्हारे असली शरीर का अावरण है । इसी तरह, भौतिक तत्वों से बना यह शरीर, स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर... स्थूल शरीर पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि से बना है । और सूक्ष्म शरीर, मन, बुद्धि और अहंकार का बना है ।
यह शर्ट और कोट है । इस शर्ट और कोट के भीतर, आत्मा है । तो आत्मा अब इस भौतिक के शरीर में कैद है । और हमारा काम मनुष्य शरीर में... पशु शरीर में, हम ऐसा नहीं कर सकते हैं । लेकिन मनुष्य शरीर में हम समझ सकते हैं कि "मैं यह शरीर नहीं हूँ ।" शरीर, यह भौतिक शरीर, एक बाहरी कैद है, और, क्योंकि मुझे यह शरीर मिला है, मैं जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी के अधीन हूँ । अब, मनुष्य शरीर में मैं इसे समझता हूं । तो अगर मैं इस प्रक्रिया को अपनाता हूं, कि कैसे जन्म और मृत्यु के इस चक्र से बाहर निकलना है, तब हमारा मानव जीवन सफल होता है । यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । कैसे, हम कैसे इस भौतिक शरीर से बाहर निकलने के लिए लोगों को मदद कर रहे हैं, और अपने आध्यात्मिक शरीर को पुनर्जीवित करने में, अौर उस आध्यात्मिक शरीर में, तुम वापस घर जाते हो, भगवद धाम । यह प्रक्रिया है ।