HI/Prabhupada 0646 - योग प्रणाली यह नहीं है कि तुम बकवास करते रहो: Difference between revisions

(Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0646 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1969 Category:HI-Quotes - Lec...")
 
m (Text replacement - "(<!-- (BEGIN|END) NAVIGATION (.*?) -->\s*){2,15}" to "<!-- $2 NAVIGATION $3 -->")
 
Line 8: Line 8:
[[Category:Hindi Pages - Yoga System]]
[[Category:Hindi Pages - Yoga System]]
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0645 - जिसने यह आत्मसाक्षातकार कर लिया है, वह हर जगह वृन्दावन में है|0645|HI/Prabhupada 0647 - योग का मतलब है परम के साथ संबंध|0647}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<div class="center">
<div class="center">
Line 16: Line 19:


<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
{{youtube_right|8rfRKcl_td8|योग प्रणाली यह नहीं है कि तुम बकवास करते रहो - Prabhupāda 0646}}
{{youtube_right|T4v0ZEpR3MM|योग प्रणाली यह नहीं है कि तुम बकवास करते रहो - Prabhupāda 0646}}
<!-- END VIDEO LINK -->
<!-- END VIDEO LINK -->


<!-- BEGIN AUDIO LINK (from English page -->
<!-- BEGIN AUDIO LINK (from English page -->
<mp3player>http://vaniquotes.org/w/images/690214BG-LA_Clip1.MP3</mp3player>
<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/690214BG-LA_Clip1.mp3</mp3player>
<!-- END AUDIO LINK -->
<!-- END AUDIO LINK -->


Line 28: Line 31:


<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT (from DotSub) -->
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT (from DotSub) -->
प्रभुपाद: कौन पढ़ रहा है ?
प्रभुपाद: कौन पढ़ रहा है ? भक्त: श्लोक संख्या दो । "जिसे संन्यास कहते हैं उसे ही तुम योग अर्थात परब्रह्म से युक्त होन जानो, क्योंकि इन्द्रियतृप्ति के लिए इच्छा को त्यागे बिना कोई कभी योगी नहीं हो सकता ([[HI/BG 6.2|भ.गी. ६.२]]) ।


भक्त: श्लोक संख्या दो "जिसे संन्यास कहते हैं उसे ही तुम योग अर्थात परब्रह्म से युक्त होन जानो, क्योंकि इन्द्रियतृप्ति के लिए इच्छा को त्यागे बिना कोई कभी योगी नहीं हो सकता ([[Vanisource:BG 6.2|भ गी ६।२]])
प्रभुपाद: यहाँ योग अभ्यास की बात है । योग का मतलब है जुड़ना अब हमारे बद्ध हालात में, हालांकि हम परम भगवान के अभिन्न अंग हैं, लेकिन अब हम अलग हो गए हैं । वही उदाहरण । यह उंगली तुम्हारे शरीर का अभिन्न अंग है, लेकिन यह अगर यह अलग हो जाती है, काट कर, उसका कोई मूल्य नहीं है । लेकिन जब तक यह इस शरीर के साथ जुड़ी हुई है, इसकी कीमत करोड़ों डॉलर या उससे अधिक है । अगर कोई बीमारी है, तो तुम इलाज करने के लिए कोई भी राशि खर्च कर सकते हो ।  


प्रभुपाद: यहाँ योग अभ्यास की बात है । योग का मतलब है जुड़ना । अब हमारे सशर्त हालात में, हालांकि हम परम का अभिन्न अंग हैं, लेकिन अब हम अलग हो हैं । वही उदाहरण । यह उंगली तुम्हारे शरीर का अभिन्न अंग है, लेकिन यह अगर यह अलग हो जाती है, काट कर, उसका कोई मूल्य नहीं है । लेकिन जब तक यह इस शरीर के साथ जुड़ी हुई है, इसकी कीमत करोड़ों डॉलर या उससे अधिक है । अगर कोई बीमारी है, तो तुम इलाज करने के लिए कोई भी राशि खर्च कर सकते हो । इसी तरह हम ...वर्तमान समय में भौतिक अस्तित्व के सशर्त हालत में, हम भगवान से अलग हैं । इसलिए हम भगवान के बारे में बात करने के लिए इतना संकोच कर रहे हैं, भगवान को समझने के लिए, भगवान के साथ हमारे रिश्ते के बारे में । हम सोचते हैं कि यह केवल समय की बर्बादी है । इस बैठक में, हर कोई जानता है, यह मंदिर, श्री कृष्णभावनामृत मंदिर, भगवान की बात कर रहा है । या कोई भी चर्च । लोग बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखते हैं । वे सोचते है कि यह एक प्रकार, क्या कहते हैं, मनोरंजन है आध्यात्मिक उन्नति के नाम पर, अन्यथा यह केवल समय की बर्बादी है । बेहतर है इस समय को कुछ पैसे कमाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है । या एक क्लब में या एक होटल में आनंद लेने के लिए, इन्द्रियतृप्ति । तो भगवान से मुँह मोडने का मतलब है इन्द्रियतृप्ति । जो लोग बहुत ज्यादा इन्द्रियतृप्ति के आदी हैं, वे, मेरे कहने का मतलब है, योग प्रणाली के पात्र नहीं हैं । योग प्रणाली यह नहीं है कि तुम बकवास करते रहो इन्द्रियतृप्ति में और बस ध्यान में बैठ जाओ । यह बस भारी धोखा है । इसका कोई मतलब नहीं है । योग प्रणाली पहले है इन्द्रिय, इन्द्रियों पर नियंत्रण करना, यम, नियम । योग अभ्यास के आठ विभिन्न चरण हैं । यम, नियम, आसन, ध्यान, धारणा, प्राणायाम, प्रत्याहार, समाधि । तो शुरुआत में सबसे पहले हम इस अध्याय में बात करेंगे, भगवान कृष्ण तुम्हे सिखाऍगे की योग प्रणाली है क्या । इसलिए शुरुआत में कृष्ण कहते हैं कि कोई भी एक योगी नहीं बन सकता है , जब तक वह इन्द्रियतृप्ति की इच्छा को नहीं त्यागे । तो जो इन्द्रियतृप्ति में लिप्त है, वह एक बकवास है । वह योगी नहीं है । वह योगी नहीं हो सकता है । योग प्रणाली है सख्ती से ब्रह्मचर्य, कोई सेक्स जीवन नहीं । यही योग प्रणाली है ।कोई भी एक योगी नहीं बन सकता है अगर वह सेक्स जीवन में भोगता है । तथाकथित योगि तुम्हारे देश में आते हैं और कहते हैं "हाँ, तुम जैसे चाहो कर सकते हो । तुम ध्यान करो, मैं तुम्हे कुछ मंत्र देता हूँ ।" ये सब बकवास है । यहाँ आधिकारिक बयान है, कि कोई योगी नहीं बन सकता है, जब तक वह इन्द्रियतृप्ति की इच्छा न त्यागे । यह पहली शर्त है । अागे पढो
इसी तरह हम... वर्तमान समय में, भौतिक अस्तित्व की बद्ध हालत में, हम भगवान से अलग हैं । इसलिए हम भगवान के बारे में बात करने के लिए इतना संकोच कर रहे हैं, भगवान को समझने के लिए, भगवान के साथ हमारे रिश्ते के बारे में । हम सोचते हैं कि यह केवल समय की बर्बादी है । इस बैठक में, हर कोई जानता है, यह मंदिर, कृष्ण भावनामृत मंदिर, भगवान की बात कर रहा है । या कोई भी चर्च । लोग बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखते हैं । वे सोचते है कि यह एक प्रकार का, क्या कहते हैं, मनोरंजन है, आध्यात्मिक उन्नति के नाम पर, अन्यथा यह केवल समय की बर्बादी है । बेहतर है इस समय को कुछ पैसे कमाने के लिए इस्तेमाल किया जाए । या एक क्लब में या एक होटल में आनंद लेने के लिए, इन्द्रियतृप्ति ।


भक्त: श्लोक संख्या तीन "अष्टअांग योग के नवसाधक के लिए कर्म साधन कहलाता है अौर योगसिद्धि पुरुष के लिए समस्त भौतिक कार्यकलापों का परित्याग ही साधन कहा जाता है । ([[Vanisource:BG 6.3|भ गी ६।३]]) "
तो भगवान से मुँह मोडने का मतलब है इन्द्रियतृप्ति जो लोग बहुत ज्यादा इन्द्रियतृप्ति के आदी हैं, वे, मेरे कहने का मतलब है, योग प्रणाली के पात्र नहीं हैं । योग प्रणाली यह नहीं है कि तुम बकवास करते रहो इन्द्रियतृप्ति में और बस ध्यान में बैठ जाओ । यह बस भारी धोखा है । इसका कोई मतलब नहीं है । योग प्रणाली पहले है इन्द्रिय, इन्द्रियों पर नियंत्रण करना, यम, नियम । योग अभ्यास के आठ विभिन्न चरण हैं । यम, नियम, आसन, ध्यान, धारणा, प्राणायाम, प्रत्याहार, समाधि । तो शुरुआत में सबसे पहले हम इस अध्याय में बात करेंगे, भगवान कृष्ण तुम्हे सिखाऍगे की योग प्रणाली है क्या ।  


प्रभुपाद: हाँ । दो चरण हैं । जो योग का अभ्यास कर रहा है पर्णता के मंच तक पहुँचने के लिए और जो पर्णता के मंच को प्राप्त कर चुका है । तो, जब तक कोई पर्णता के मंच पर नहीं है, बस करने की कोशिश कर रहा है, उस समय कई कर्म होते हैं । वह आसन प्रणाली, यम, नियम । तो आम तौर पर तुम्हारे देश में इतने सारे योग सोसाइटी हैं । वे इस आसन प्रणाली को प्रदर्शित करते हैं । कैसे बैठना चाहिए, अलग अासन । यह मदद करता है । लेकिन यह प्रक्रिया है केवल असली मंच तक पहुँचने के लिए । वे केवल साधन हैं । असली योग प्रणाली की पूर्णता उन शारीरिक व्यायाम प्रक्रिया से अलग है । दो चरण हैं । एक मंच है पर्णता तक पहुँचने की कोशिश करना, और दूसरा चरण पर्णता के मंच तक पहुँच जाना ।
इसलिए शुरुआत में कृष्ण कहते हैं कि कोई भी एक योगी नहीं बन सकता है , जब तक वह इन्द्रियतृप्ति की इच्छा को नहीं त्यागे । तो जो इन्द्रियतृप्ति में लिप्त है, वह एक बकवास है । वह योगी नहीं है । वह योगी नहीं हो सकता है । योग प्रणाली है सख्ती से ब्रह्मचर्य, कोई यौन जीवन नहीं । यही योग प्रणाली है । कोई भी एक योगी नहीं बन सकता है अगर वह यौन जीवन में प्रवृत्त है । तथाकथित योगी तुम्हारे देश में आते हैं और कहते हैं, "हाँ, तुम जैसे चाहो कर सकते हो । तुम ध्यान करो, मैं तुम्हे कुछ मंत्र देता हूँ ।" ये सब बकवास है । यहाँ आधिकारिक बयान है, कि कोई योगी नहीं बन सकता है, जब तक वह इन्द्रियतृप्ति की इच्छा न त्यागे । यह पहली शर्त है । अागे पढो ।
 
भक्त: श्लोक संख्या तीन । "अष्टांग योग के नवसाधक के लिए, कर्म साधन कहलाता है अौर योगसिद्ध पुरुष के लिए समस्त भौतिक कार्यकलापों का परित्याग ही साधन कहा जाता है ([[HI/BG 6.3|भ.गी. ६.३]]) ।"
प्रभुपाद: हाँ । दो चरण हैं । जो योग का अभ्यास कर रहा है पूर्णता के मंच तक पहुँचने के लिए, और जो पूर्णता के मंच को प्राप्त कर चुका है । तो, जब तक कोई पूर्णता के मंच पर नहीं है, बस करने की कोशिश कर रहा है, उस समय कई कर्म होते हैं । वह आसन प्रणाली, यम, नियम । तो आम तौर पर तुम्हारे देश में इतने सारे योग संस्थाए हैं । वे इस आसन प्रणाली को प्रदर्शित करते हैं । कैसे बैठना चाहिए, अलग अासन । यह मदद करता है । लेकिन यह प्रक्रिया है केवल असली मंच तक पहुँचने के लिए । वे केवल साधन हैं । असली योग प्रणाली की पूर्णता उन शारीरिक व्यायाम प्रक्रिया से अलग है । दो चरण हैं । एक मंच है पूर्णता तक पहुँचने की कोशिश करना, और दूसरा चरण पूर्णता के मंच तक पहुँच जाना ।  
<!-- END TRANSLATED TEXT -->
<!-- END TRANSLATED TEXT -->

Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture on BG 6.2-5 -- Los Angeles, February 14, 1969

प्रभुपाद: कौन पढ़ रहा है ? भक्त: श्लोक संख्या दो । "जिसे संन्यास कहते हैं उसे ही तुम योग अर्थात परब्रह्म से युक्त होन जानो, क्योंकि इन्द्रियतृप्ति के लिए इच्छा को त्यागे बिना कोई कभी योगी नहीं हो सकता (भ.गी. ६.२) ।

प्रभुपाद: यहाँ योग अभ्यास की बात है । योग का मतलब है जुड़ना । अब हमारे बद्ध हालात में, हालांकि हम परम भगवान के अभिन्न अंग हैं, लेकिन अब हम अलग हो गए हैं । वही उदाहरण । यह उंगली तुम्हारे शरीर का अभिन्न अंग है, लेकिन यह अगर यह अलग हो जाती है, काट कर, उसका कोई मूल्य नहीं है । लेकिन जब तक यह इस शरीर के साथ जुड़ी हुई है, इसकी कीमत करोड़ों डॉलर या उससे अधिक है । अगर कोई बीमारी है, तो तुम इलाज करने के लिए कोई भी राशि खर्च कर सकते हो ।

इसी तरह हम... वर्तमान समय में, भौतिक अस्तित्व की बद्ध हालत में, हम भगवान से अलग हैं । इसलिए हम भगवान के बारे में बात करने के लिए इतना संकोच कर रहे हैं, भगवान को समझने के लिए, भगवान के साथ हमारे रिश्ते के बारे में । हम सोचते हैं कि यह केवल समय की बर्बादी है । इस बैठक में, हर कोई जानता है, यह मंदिर, कृष्ण भावनामृत मंदिर, भगवान की बात कर रहा है । या कोई भी चर्च । लोग बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखते हैं । वे सोचते है कि यह एक प्रकार का, क्या कहते हैं, मनोरंजन है, आध्यात्मिक उन्नति के नाम पर, अन्यथा यह केवल समय की बर्बादी है । बेहतर है इस समय को कुछ पैसे कमाने के लिए इस्तेमाल किया जाए । या एक क्लब में या एक होटल में आनंद लेने के लिए, इन्द्रियतृप्ति ।

तो भगवान से मुँह मोडने का मतलब है इन्द्रियतृप्ति । जो लोग बहुत ज्यादा इन्द्रियतृप्ति के आदी हैं, वे, मेरे कहने का मतलब है, योग प्रणाली के पात्र नहीं हैं । योग प्रणाली यह नहीं है कि तुम बकवास करते रहो इन्द्रियतृप्ति में और बस ध्यान में बैठ जाओ । यह बस भारी धोखा है । इसका कोई मतलब नहीं है । योग प्रणाली पहले है इन्द्रिय, इन्द्रियों पर नियंत्रण करना, यम, नियम । योग अभ्यास के आठ विभिन्न चरण हैं । यम, नियम, आसन, ध्यान, धारणा, प्राणायाम, प्रत्याहार, समाधि । तो शुरुआत में सबसे पहले हम इस अध्याय में बात करेंगे, भगवान कृष्ण तुम्हे सिखाऍगे की योग प्रणाली है क्या । 

इसलिए शुरुआत में कृष्ण कहते हैं कि कोई भी एक योगी नहीं बन सकता है , जब तक वह इन्द्रियतृप्ति की इच्छा को नहीं त्यागे । तो जो इन्द्रियतृप्ति में लिप्त है, वह एक बकवास है । वह योगी नहीं है । वह योगी नहीं हो सकता है । योग प्रणाली है सख्ती से ब्रह्मचर्य, कोई यौन जीवन नहीं । यही योग प्रणाली है । कोई भी एक योगी नहीं बन सकता है अगर वह यौन जीवन में प्रवृत्त है । तथाकथित योगी तुम्हारे देश में आते हैं और कहते हैं, "हाँ, तुम जैसे चाहो कर सकते हो । तुम ध्यान करो, मैं तुम्हे कुछ मंत्र देता हूँ ।" ये सब बकवास है । यहाँ आधिकारिक बयान है, कि कोई योगी नहीं बन सकता है, जब तक वह इन्द्रियतृप्ति की इच्छा न त्यागे । यह पहली शर्त है । अागे पढो ।

भक्त: श्लोक संख्या तीन । "अष्टांग योग के नवसाधक के लिए, कर्म साधन कहलाता है अौर योगसिद्ध पुरुष के लिए समस्त भौतिक कार्यकलापों का परित्याग ही साधन कहा जाता है (भ.गी. ६.३) ।"

प्रभुपाद: हाँ । दो चरण हैं । जो योग का अभ्यास कर रहा है पूर्णता के मंच तक पहुँचने के लिए, और जो पूर्णता के मंच को प्राप्त कर चुका है । तो, जब तक कोई पूर्णता के मंच पर नहीं है, बस करने की कोशिश कर रहा है, उस समय कई कर्म होते हैं । वह आसन प्रणाली, यम, नियम । तो आम तौर पर तुम्हारे देश में इतने सारे योग संस्थाए हैं । वे इस आसन प्रणाली को प्रदर्शित करते हैं । कैसे बैठना चाहिए, अलग अासन । यह मदद करता है । लेकिन यह प्रक्रिया है केवल असली मंच तक पहुँचने के लिए । वे केवल साधन हैं । असली योग प्रणाली की पूर्णता उन शारीरिक व्यायाम प्रक्रिया से अलग है । दो चरण हैं । एक मंच है पूर्णता तक पहुँचने की कोशिश करना, और दूसरा चरण पूर्णता के मंच तक पहुँच जाना ।