HI/Prabhupada 1000 - माया हमेशा मौके की तलाश में है, छिद्र, कैसे तुम पर फिर से कब्जा करें: Difference between revisions

 
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{{youtube_right|AOugdLq5FTA|माया हमेशा मौके की तलाश में है, छिद्र, तुम पर कैसे फिर से कब्जा करें <br /> - Prabhupāda 1000}}
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प्रभुपाद: तो यह एक महान विज्ञान है। लोगों को यह पता नहीं है । हमार कृष्ण भावनामृत आंदोलन बहुत वैज्ञानिक है, अधिकृत । तो हमारा काम है जहाँ तक संभव हो लोगों को प्रबुद्ध बनना, और उसी समय हमें भी प्रबुद्ध बने रहना चाहिए । हमें फिर से माया का अंधकार न ढक ले यही हमारा होना चाहिए ... कि तुम अपने आप को योग्य रख सको कि माया तुमे न ढक सके । माम एव ये प्रपद्यन्ते मायाम एताम् तरंति ते ([[Vanisource:BG 7.14|भ गी ७।१४]]) । अगर तुम बहुत सख्ती से कृष्ण भावनामृत के सिद्धांत का पालन करते हो, फिर माया तुम्हे नहीं छू पाएगी । यही एकमात्र उपाय है । अन्यथा माया हमेशा रास्ता ढूंढ रही है, छिद्र, कैसे वह तुम पर फिर से कब्जा कर सकती है । लेकिन अगर तुम कृष्ण भावनामृत में सख्ती से बने रहते हो, माया कुछ भी करने में सक्षम नहीं होगी । माम एव ये प्रपद्यन्ते । दैवि हि एष गुण मयी मम माया दुरत्यय ([[Vanisource:BG 7.14|भ गी ७।१४]]) । माया के चंगुल से बाहर निकलना बहुत मुश्किल है । बहुत मुश्किल है । लेकिन श्री कृष्ण कहते हैं, माम एव ये प्रपद्यन्ते मायाम एताम् तरंति ते ([[Vanisource:BG 7.14|भ गी ७।१४]]) अगर हम दृढता से श्री कृष्ण के चरण कमल का पालन करते हैं, सदैव ... इसलिए हमारा, यह कार्यक्रम है श्री कृष्ण के बारे में चौबीस घंटे चिंतन करना । सततम । सततम् चिंतयो कृष्ण । कीर्तनीय: सदा हरि: ([[Vanisource:CC Adi 17.31|चै च अादि १७।३१]]) । ये सिफारिशें हैं । तो अगर हम केवल कृष्ण के बारे में चिंतन करते हैं... अगर तुम कुछ अौर नहीं कर सकते हो, केवल उनके बारे में चिंतन करो । वह उच्चतम ध्यान संबंधी पूर्णता है । तो हमेशा हरे कृष्ण मंत्र का जाप करो, श्री कृष्ण के साथ संपर्क में रहो किसी न किसी तरह से, तो तुम सुरक्षित हो । माया तुम्हे छू नहीं पाएगी । और अगर हम किसी न किसी तरह से अपने दिनों को पारित कर सकते हैं और मृत्यु के समय हम श्री कृष्ण को याद करें, तो पूरा जीवन सफल हो जाता है
प्रभुपाद: तो यह एक महान विज्ञान है। लोगों को यह पता नहीं है । हमार कृष्ण भावनामृत आंदोलन बहुत वैज्ञानिक, अधिकृत, है । तो हमारा काम है जहाँ तक संभव हो लोगों को प्रबुद्ध बनना, और उसी समय हमें भी प्रबुद्ध बने रहना चाहिए । हमें फिर से माया के अंधकार से ढंकने नहीं चाहिए हम... कि तुम अपने आप को योग्य रख सको कि माया तुमे न ढक सके । माम एव ये प्रपद्यन्ते मायाम एताम तरंति ते ([[HI/BG 7.14|भ.गी. ७.१४]]) । अगर तुम बहुत सख्ती से कृष्ण भावनामृत के सिद्धांत का पालन करते हो, फिर माया तुम्हे नहीं छू पाएगी । यही एकमात्र उपाय है । अन्यथा माया हमेशा रास्ता ढूंढ रही है, छिद्र, कैसे वो तुम पर फिर से कब्जा कर सके | लेकिन अगर तुम कृष्ण भावनामृत में सख्ती से बने रहते हो, माया कुछ भी करने में सक्षम नहीं होगी ।  


बहुत बहुत धन्यवाद
माम एव ये प्रपद्यन्ते । दैवि हि एषा गुण मयी मम माया दुरत्यया ([[HI/BG 7.14|भ.गी. ७.१४]]) । माया के चंगुल से बाहर निकलना बहुत मुश्किल है । बहुत मुश्किल है । लेकिन श्री कृष्ण कहते हैं,  माम एव ये प्रपद्यन्ते मायाम एताम तरंति ते: ([[HI/BG 7.14|भ.गी. ७.१४]]) अगर हम दृढता से श्री कृष्ण के चरण कमल से जुड़े रहते हैं, सदैव... इसलिए हमारा, यह कार्यक्रम है श्री कृष्ण के बारे में चौबीस घंटे चिंतन करना । सततम । सततम चिंतयो कृष्ण । कीर्तनीय: सदा हरि: ([[Vanisource:CC Adi 17.31|चैतन्य चरितामृत अादि १७.३१]]) । ये सिफारिशें हैं ।  


भक्त : धन्यवाद, प्रभुपाद की जय !
तो अगर हम केवल कृष्ण के बारे में चिंतन करते हैं... अगर तुम कुछ अौर नहीं कर सकते हो, केवल उनके बारे में चिंतन करो । वह उच्चतम ध्यान संबंधी पूर्णता है । तो हमेशा हरे कृष्ण मंत्र का जप करो, श्री कृष्ण के साथ संपर्क में रहो किसी न किसी तरह से, तो तुम सुरक्षित हो । माया तुम्हे छू नहीं पाएगी । और अगर हम किसी न किसी तरह से अपने दिनों को पारित कर सकते हैं और मृत्यु के समय हम कृष्ण को याद करें, तो पूरा जीवन सफल हो जाता है ।
 
बहुत बहुत धन्यवाद ।
 
भक्त: धन्यवाद, प्रभुपाद की जय !  
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Latest revision as of 17:44, 1 October 2020



730406 - Lecture SB 02.01.01-2 - New York

प्रभुपाद: तो यह एक महान विज्ञान है। लोगों को यह पता नहीं है । हमार कृष्ण भावनामृत आंदोलन बहुत वैज्ञानिक, अधिकृत, है । तो हमारा काम है जहाँ तक संभव हो लोगों को प्रबुद्ध बनना, और उसी समय हमें भी प्रबुद्ध बने रहना चाहिए । हमें फिर से माया के अंधकार से ढंकने नहीं चाहिए । हम... कि तुम अपने आप को योग्य रख सको कि माया तुमे न ढक सके । माम एव ये प्रपद्यन्ते मायाम एताम तरंति ते (भ.गी. ७.१४) । अगर तुम बहुत सख्ती से कृष्ण भावनामृत के सिद्धांत का पालन करते हो, फिर माया तुम्हे नहीं छू पाएगी । यही एकमात्र उपाय है । अन्यथा माया हमेशा रास्ता ढूंढ रही है, छिद्र, कैसे वो तुम पर फिर से कब्जा कर सके | लेकिन अगर तुम कृष्ण भावनामृत में सख्ती से बने रहते हो, माया कुछ भी करने में सक्षम नहीं होगी ।

माम एव ये प्रपद्यन्ते । दैवि हि एषा गुण मयी मम माया दुरत्यया (भ.गी. ७.१४) । माया के चंगुल से बाहर निकलना बहुत मुश्किल है । बहुत मुश्किल है । लेकिन श्री कृष्ण कहते हैं, माम एव ये प्रपद्यन्ते मायाम एताम तरंति ते: (भ.गी. ७.१४) अगर हम दृढता से श्री कृष्ण के चरण कमल से जुड़े रहते हैं, सदैव... इसलिए हमारा, यह कार्यक्रम है श्री कृष्ण के बारे में चौबीस घंटे चिंतन करना । सततम । सततम चिंतयो कृष्ण । कीर्तनीय: सदा हरि: (चैतन्य चरितामृत अादि १७.३१) । ये सिफारिशें हैं ।

तो अगर हम केवल कृष्ण के बारे में चिंतन करते हैं... अगर तुम कुछ अौर नहीं कर सकते हो, केवल उनके बारे में चिंतन करो । वह उच्चतम ध्यान संबंधी पूर्णता है । तो हमेशा हरे कृष्ण मंत्र का जप करो, श्री कृष्ण के साथ संपर्क में रहो किसी न किसी तरह से, तो तुम सुरक्षित हो । माया तुम्हे छू नहीं पाएगी । और अगर हम किसी न किसी तरह से अपने दिनों को पारित कर सकते हैं और मृत्यु के समय हम कृष्ण को याद करें, तो पूरा जीवन सफल हो जाता है ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।

भक्त: धन्यवाद, प्रभुपाद की जय !