HI/Prabhupada 0995 - कृष्ण भावनामृत अंदोलन क्षत्रिय कर्म या वैश्य कर्म के लिए नहीं है: Difference between revisions
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प्रभुपाद: यदि तुम एक सोने के बर्तन या एक लोहे के बर्तन से दूध पीते हो, स्वाद वही रहता है । तुम सोने के बर्तन में डाल कर, दूध का स्वाद बदल नहीं सकते हो । लेकिन ये मूर्ख | प्रभुपाद: यदि तुम एक सोने के बर्तन या एक लोहे के बर्तन से दूध पीते हो, स्वाद वही रहता है । तुम सोने के बर्तन में डाल कर, दूध का स्वाद बदल नहीं सकते हो । लेकिन ये मूर्ख व्यक्ति वे सोच रहे हैं, कि "हमारा भौतिक भोग बहुत सुखद होगा अगर यह सोने के पात्र में डाला जाए बजाय लोहे के ।" मूढा: । वे मूढा: कहलाते हैं । (हंसी) वे नहीं जानते हैं कि हमारा वास्तविक काम है कैसे इस भौतिक शरीर से बाहर निकले । मतलब, जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि-दुःख-दोषानुदर्शनम ([[Vanisource: BG 13.9 (1972) | भ.गी. १३.९]]) । यह वास्तविक ज्ञान है । | ||
हमें यह ध्यान में रखना चाहिए, कि, "जीवन में मेरा असली संकट है ये चार बातें ", जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि जन्म लेना, मरना, बूढा होना अौर रोगग्रस्त होना । यह मेरी समस्या है । " लेकिन वे यह नहीं जानते हैं । वे अब पेट्रोलियम समस्या में व्यस्त हैं । हाँ । उन्होंने यह पेट्रोलियम समस्या खडी की है, यह बिना घोड़े की लोहे की गाड़ी । (हंसी) हाँ । वे सोच रहे हैं , "घोड़े की तुलना में बेहतर है । अब मेरे पास यह टिन की गाड़ी है ।" जैसे ही यह पुरानी होती है इसका कोई मूल्य नहीं रह जाता है । तुम गली में फेंक देते हो, विशेष रूप से तुम्हारे देश में । कोई भी इसका ख्याल नहीं रखता है । और, लेकिन यह गाड़ी तो होनी ही चाहिए । और यह पेट्रोल पर चलती है, और श्रम करो, इतना कठिन परिश्रम, रेगिस्तान में जाअो, ड्रिल करो, और उसके बाद तेल बाहर निकालो, टैंकों में इसे लाअो । और यह उग्र-कर्म कहलाता है । | |||
यह भगवद गीता में कहा गया है कि, ये धूर्त, राक्षस, उन्होंने उग्र-कर्म बनाया है केवल सब लोगों को तकलीफ देने के लिए | बस । क्षयाय जगतो अहिता:, और विनाश को नजदीक लाना, अौर नजदीक । अब वे कर रहे हैं, और बड़ा युद्ध हो सकता है, मतलब विनाश । केवल थोड़े से आराम के लिए । पहेले के ज़माने में भी वे इधर से उधर जाते थे । परिवहन था । लेकिन वे पुराने ढंग को नहीं चाहते हैं अब, क्योंकि कोई अन्य कोई काम नहीं रह गया है । बेहतर काम, वे नहीं जानते हैं । यहाँ बेहतर काम है: राधा- कृष्ण के सामने अाना, और भगवान की महिमा करना और हमारे रिश्ते को समझना । यह हमारा वास्तविक, वास्तविक काम है, लेकिन किसी को वास्तविक काम में दिलचस्पी नहीं है । वे बेकार के कामों में रुचि रखते हैं: कार्यालय में पूरे दिन काम करना, फिर क्लब में जाना, फुटबॉल क्लब, टेनिस क्लब । इस तरह उन्होंने आविष्कार किया है कि कैसे इस बहुमूल्य मानव जीवन को बर्बाद करना है । उन्होंने आविष्कार किया है । उन्हें ज्ञान नहीं है कि कैसे इस जीवन का उपयोग किया जाना चाहिए इसे रोकने के लिए, मेरे कहने का मतलब है, प्रमुख समस्या, जन्म-मृत्यु-जरा । वे नहीं जानते । | |||
तो, यह श्रीमद भागवतम पूरी दुनिया को वास्तविक जीवन दे रहा है, असली, जो जीवन का मतलब है । तो ये शिष्टाचार हैं । देखभाल करना, विशेष रूप से, ब्राह्मण, बूढ़े, बच्चे, महिलाओं और गायों की । यही सभ्यता है । इन जीवों का ध्यान रखा जाना चाहिए । अब ये धूर्त गायों की हत्या कर रेह हैं और महिलाओं को वेश्या बना रहे हैं, और यहां तक कि गर्भ में बच्चों की हत्या कर रहे हैं । और ब्राह्मण के सम्मान का कोई सवाल ही नहीं है, और न ही ब्राह्मण संस्कृति है । तो फिर तुम सुखी कैसे हो सकते हो ? हु ? अौर अगर समाज में कोई ब्राह्मणवादी संस्कृति नहीं है, तो वह समाज पशु समाज से भी कम है । इसलिए हम अपनी प्रार्थना करते हैं, | |||
:नमो ब्रह्मण्य-देवाय- | |||
:गो-ब्राह्मण-हिताय च | |||
:जगद हिताय कृष्णाय | |||
:गोविंदाय नमो नम: | |||
सबसे पहले सम्मान दिया जाता है, गो ब्राह्मण हिताय च, जगद हिताय । अगर तुम वास्तव में पूरी दुनिया के लाभ के लिए कुछ कल्याणकारी कार्य करना चाहते हो, तो इन दो बातो का ध्यान रखा जाना चाहिए, गो ब्राह्मण हिताय च, गाय अौर ब्राह्मण । उन्हे पहली सुरक्षा दी जानी चाहिए । फिर जगद हिताय, फिर पूरी दुनिया का वास्तविक कल्याण होगा । वे नहीं जानते हैं । कृषि गो रक्ष्य वाणिज्यम, गो रक्ष्य, वाणिज्यम, वैश्य कर्म स्वभाव जम । यह पुरुषों के व्यापारी वर्ग का कर्तव्य है: कृषि में सुधार करना, गायों को संरक्षण देना, कृषि गो रक्ष्य वाणिज्यम | अौर अगर अतिरिक्त भोजन बच जाता है, तो तुम व्यापार कर सकते हो, वाणिज्यम । यही व्यापार है । | |||
ब्राह्मण लोग बुद्धिशाली काम करने के लिए होते है। वो सलाह देंगा । जैसे हम, कृष्ण भावनामृत आंदोलन, हम... हम क्षत्रिय कर्म या वैश्य कर्म के लिए नहीं है, भक्त, यदि आवश्यक है तो वे कर सकते हैं । लेकिन असली काम है, ब्राह्मण का काम है, वेद, ब्रह्म, परब्रह्म, निरपेक्ष सत्य को जानना । उसे, उसे पता होना ही चाहिए, और उसे ज्ञान का वितरण करना चाहिए । यह ब्राह्मण है । कीर्तयन्तो । सततम कीर्तयन्तो माम यतंतश च दृढ वृता: ([[Vanisource: BG 9.14 (1972) | भ.गी. ९.१४]]) | ये ब्राह्मण का काम है । तो, हमें यह काम करना है कि प्रचार करें कि भगवान हैं । हमारा भगवान के साथ एक अंतरंग संबंध है । | |||
तो अगर तुम उसके अनुसार कार्य करते हो, तो तुम सुखी रहोगे । यह हमारा कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । ये धूर्त, वे भूल गए हैं, या वे परवाह नहीं करते हैं है जानने की, भगवान को, और यही उनके दुख का कारण है । कल उस प्रेस रिपोर्टर ने पूछा कि... सवाल क्या था ? | |||
भक्त: "क्या ये तेल संकट को हल करने में मदद करेगा ?" | |||
प्रभुपाद: हाँ । तो मैंने जवाब क्या दिया ? | |||
प्रभुपाद: हाँ । असल में, यह तथ्य है । लेकिन वे इसे स्वीकार नहीं करेंगे । वे इसे स्वीकार नहीं करेंगे । अब, समस्या क्या है ? यह बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है । पेट्रोल है, और यह प्रयोग किया जाता है, यह हमारे उपयोग के लिए ही है, लेकिन कठिनाई यह है कि अरबी लोग, वे सोच रहे हैं कि यह मेरा है | भक्त: "हाँ क्यों नहीं ?" | ||
प्रभुपाद: हु ? | |||
भक्त: "क्यों नहीं ?" | |||
प्रभुपाद: तुमको याद नहीं है ? | |||
भक्त: हाँ ।आपने कहा की समाधान तो पहले से ही है, कृष्ण भावनामृत । | |||
प्रभुपाद: हाँ । असल में, यह तथ्य है । लेकिन वे इसे स्वीकार नहीं करेंगे । वे इसे स्वीकार नहीं करेंगे । अब, समस्या क्या है ? यह बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है । पेट्रोल है, और यह प्रयोग किया जाता है, यह हमारे उपयोग के लिए ही है, लेकिन कठिनाई यह है कि अरबी लोग, वे सोच रहे हैं कि यह मेरा है... | |||
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Latest revision as of 17:45, 1 October 2020
730407 - Lecture SB 01.14.43 - New York
प्रभुपाद: यदि तुम एक सोने के बर्तन या एक लोहे के बर्तन से दूध पीते हो, स्वाद वही रहता है । तुम सोने के बर्तन में डाल कर, दूध का स्वाद बदल नहीं सकते हो । लेकिन ये मूर्ख व्यक्ति वे सोच रहे हैं, कि "हमारा भौतिक भोग बहुत सुखद होगा अगर यह सोने के पात्र में डाला जाए बजाय लोहे के ।" मूढा: । वे मूढा: कहलाते हैं । (हंसी) वे नहीं जानते हैं कि हमारा वास्तविक काम है कैसे इस भौतिक शरीर से बाहर निकले । मतलब, जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि-दुःख-दोषानुदर्शनम ( भ.गी. १३.९) । यह वास्तविक ज्ञान है ।
हमें यह ध्यान में रखना चाहिए, कि, "जीवन में मेरा असली संकट है ये चार बातें ", जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि जन्म लेना, मरना, बूढा होना अौर रोगग्रस्त होना । यह मेरी समस्या है । " लेकिन वे यह नहीं जानते हैं । वे अब पेट्रोलियम समस्या में व्यस्त हैं । हाँ । उन्होंने यह पेट्रोलियम समस्या खडी की है, यह बिना घोड़े की लोहे की गाड़ी । (हंसी) हाँ । वे सोच रहे हैं , "घोड़े की तुलना में बेहतर है । अब मेरे पास यह टिन की गाड़ी है ।" जैसे ही यह पुरानी होती है इसका कोई मूल्य नहीं रह जाता है । तुम गली में फेंक देते हो, विशेष रूप से तुम्हारे देश में । कोई भी इसका ख्याल नहीं रखता है । और, लेकिन यह गाड़ी तो होनी ही चाहिए । और यह पेट्रोल पर चलती है, और श्रम करो, इतना कठिन परिश्रम, रेगिस्तान में जाअो, ड्रिल करो, और उसके बाद तेल बाहर निकालो, टैंकों में इसे लाअो । और यह उग्र-कर्म कहलाता है ।
यह भगवद गीता में कहा गया है कि, ये धूर्त, राक्षस, उन्होंने उग्र-कर्म बनाया है केवल सब लोगों को तकलीफ देने के लिए | बस । क्षयाय जगतो अहिता:, और विनाश को नजदीक लाना, अौर नजदीक । अब वे कर रहे हैं, और बड़ा युद्ध हो सकता है, मतलब विनाश । केवल थोड़े से आराम के लिए । पहेले के ज़माने में भी वे इधर से उधर जाते थे । परिवहन था । लेकिन वे पुराने ढंग को नहीं चाहते हैं अब, क्योंकि कोई अन्य कोई काम नहीं रह गया है । बेहतर काम, वे नहीं जानते हैं । यहाँ बेहतर काम है: राधा- कृष्ण के सामने अाना, और भगवान की महिमा करना और हमारे रिश्ते को समझना । यह हमारा वास्तविक, वास्तविक काम है, लेकिन किसी को वास्तविक काम में दिलचस्पी नहीं है । वे बेकार के कामों में रुचि रखते हैं: कार्यालय में पूरे दिन काम करना, फिर क्लब में जाना, फुटबॉल क्लब, टेनिस क्लब । इस तरह उन्होंने आविष्कार किया है कि कैसे इस बहुमूल्य मानव जीवन को बर्बाद करना है । उन्होंने आविष्कार किया है । उन्हें ज्ञान नहीं है कि कैसे इस जीवन का उपयोग किया जाना चाहिए इसे रोकने के लिए, मेरे कहने का मतलब है, प्रमुख समस्या, जन्म-मृत्यु-जरा । वे नहीं जानते ।
तो, यह श्रीमद भागवतम पूरी दुनिया को वास्तविक जीवन दे रहा है, असली, जो जीवन का मतलब है । तो ये शिष्टाचार हैं । देखभाल करना, विशेष रूप से, ब्राह्मण, बूढ़े, बच्चे, महिलाओं और गायों की । यही सभ्यता है । इन जीवों का ध्यान रखा जाना चाहिए । अब ये धूर्त गायों की हत्या कर रेह हैं और महिलाओं को वेश्या बना रहे हैं, और यहां तक कि गर्भ में बच्चों की हत्या कर रहे हैं । और ब्राह्मण के सम्मान का कोई सवाल ही नहीं है, और न ही ब्राह्मण संस्कृति है । तो फिर तुम सुखी कैसे हो सकते हो ? हु ? अौर अगर समाज में कोई ब्राह्मणवादी संस्कृति नहीं है, तो वह समाज पशु समाज से भी कम है । इसलिए हम अपनी प्रार्थना करते हैं,
- नमो ब्रह्मण्य-देवाय-
- गो-ब्राह्मण-हिताय च
- जगद हिताय कृष्णाय
- गोविंदाय नमो नम:
सबसे पहले सम्मान दिया जाता है, गो ब्राह्मण हिताय च, जगद हिताय । अगर तुम वास्तव में पूरी दुनिया के लाभ के लिए कुछ कल्याणकारी कार्य करना चाहते हो, तो इन दो बातो का ध्यान रखा जाना चाहिए, गो ब्राह्मण हिताय च, गाय अौर ब्राह्मण । उन्हे पहली सुरक्षा दी जानी चाहिए । फिर जगद हिताय, फिर पूरी दुनिया का वास्तविक कल्याण होगा । वे नहीं जानते हैं । कृषि गो रक्ष्य वाणिज्यम, गो रक्ष्य, वाणिज्यम, वैश्य कर्म स्वभाव जम । यह पुरुषों के व्यापारी वर्ग का कर्तव्य है: कृषि में सुधार करना, गायों को संरक्षण देना, कृषि गो रक्ष्य वाणिज्यम | अौर अगर अतिरिक्त भोजन बच जाता है, तो तुम व्यापार कर सकते हो, वाणिज्यम । यही व्यापार है ।
ब्राह्मण लोग बुद्धिशाली काम करने के लिए होते है। वो सलाह देंगा । जैसे हम, कृष्ण भावनामृत आंदोलन, हम... हम क्षत्रिय कर्म या वैश्य कर्म के लिए नहीं है, भक्त, यदि आवश्यक है तो वे कर सकते हैं । लेकिन असली काम है, ब्राह्मण का काम है, वेद, ब्रह्म, परब्रह्म, निरपेक्ष सत्य को जानना । उसे, उसे पता होना ही चाहिए, और उसे ज्ञान का वितरण करना चाहिए । यह ब्राह्मण है । कीर्तयन्तो । सततम कीर्तयन्तो माम यतंतश च दृढ वृता: ( भ.गी. ९.१४) | ये ब्राह्मण का काम है । तो, हमें यह काम करना है कि प्रचार करें कि भगवान हैं । हमारा भगवान के साथ एक अंतरंग संबंध है ।
तो अगर तुम उसके अनुसार कार्य करते हो, तो तुम सुखी रहोगे । यह हमारा कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । ये धूर्त, वे भूल गए हैं, या वे परवाह नहीं करते हैं है जानने की, भगवान को, और यही उनके दुख का कारण है । कल उस प्रेस रिपोर्टर ने पूछा कि... सवाल क्या था ?
भक्त: "क्या ये तेल संकट को हल करने में मदद करेगा ?"
प्रभुपाद: हाँ । तो मैंने जवाब क्या दिया ?
भक्त: "हाँ क्यों नहीं ?"
प्रभुपाद: हु ?
भक्त: "क्यों नहीं ?"
प्रभुपाद: तुमको याद नहीं है ?
भक्त: हाँ ।आपने कहा की समाधान तो पहले से ही है, कृष्ण भावनामृत ।
प्रभुपाद: हाँ । असल में, यह तथ्य है । लेकिन वे इसे स्वीकार नहीं करेंगे । वे इसे स्वीकार नहीं करेंगे । अब, समस्या क्या है ? यह बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है । पेट्रोल है, और यह प्रयोग किया जाता है, यह हमारे उपयोग के लिए ही है, लेकिन कठिनाई यह है कि अरबी लोग, वे सोच रहे हैं कि यह मेरा है...