HI/Prabhupada 0983 - भौतिकवादी व्यक्ति, वे अपनी इन्द्रियों को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं: Difference between revisions
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तेषाम सतत | तेषाम सतत युक्तानाम भजताम प्रीति पूर्वकम, बुद्धि योगम ददामि तम ([[HI/BG 10.10|भ.गी. १०.१०]]) | श्री कृष्ण कहते हैं कि "मैं उसे बुद्धि देता हूँ ।" किसे ? सतत युक्तानाम, चौबीस घंटे जो संलग्न हैं । किस तरह से संलग्न है वह ? भजताम, भजन, जो भक्ति सेवा में संलग्न हैं । किस तरह की भक्ति सेवा ? प्रीति-पूर्वकम, प्रेम और स्नेह के साथ । जो प्रेम और भक्ति के साथ भगवान की भक्ति सेवा में संलग्न है । प्रेम का लक्षण क्या है ? | ||
लक्षण, प्रधान लक्षण, प्रेम का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण, कि भक्त चाहता है कि उसके भगवान का नाम, वैभव, इत्यादि, व्यापक हो । वह देखना चाहता है, "मेरे भगवान का नाम हर जगह जाना चाहिए ।" यह प्रेम है । अगर मैं किसी से प्रेम करता हूं, तो मैं चाहता हूं कि उसका गौरव सारी दुनिया में फैले । और कृष्ण भी भगवद गीता में कहते हैं, न च तस्मात मनुष्येषु कश्चित मे प्रिय कृत्तम: ([[Vanisource: BG 18.69 (1972) |भ.गी. १८.६९]]), जो भी उनकी महिमा का प्रचार करता है, उस व्यक्ति की तुलना में कोई अौर उनको अधिक प्रिय नहीं है । सब कुछ भगवद गीता में है, कैसे तुम प्रेम कर सकते हो, प्रेम के लक्षण क्या हैं, कैसे तुम भगवान को खुश कर सकते हो, कैसे वे तुम्हारे साथ बात कर सकते हैं, सब कुछ है । लेकिन तुम्हे लाभ लेना होगा । | |||
अदांत गोभिर | हम भगवद गीता पढ़ते हैं, लेकिन भगवद गीता को पढ़कर मैं एक राजनीतिज्ञ बन जाता हूं । तो किस तरह का पढना हुअा ये भगवद गीता का ? राजनेता है, अवश्य, लेकिन भगवद गीता को पढ़ने का वास्तविक उद्देश्य है श्री कृष्ण को जानना । अगर कोई कृष्ण को जानता है, वह सब कुछ जानता है । वह राजनीति जानता है, वह अर्थशास्त्र जानता है, वह विज्ञान जानता है, वह तत्वज्ञान को जानता है, वह धर्म को जानता है, वह समाजशास्त्र जानता है, सब कुछ । तस्मिन विज्ञाते सर्वम एतम विज्ञातम् भवन्ति, यह वैदिक आज्ञा है । अगर तुम केवल भगवान कृष्ण को समझते हो, तो सब कुछ तुम्हे बोध हो जाएगा । क्योंकि श्री कृष्ण कहते हैं, बुद्धि-योगम ददामि तम । अगर श्री कृष्ण तुम्हे बुद्धि देते हैं भीतर से, तो उनसे उत्कृष्ट कौन हो सकता है ? कोई भी उनसे उत्कृष्ट नहीं हो सकता है । लेकिन कृष्ण तुम्हे बुद्धि दे सकते हैं अगर तुम भक्त, या श्री कृष्ण के प्रेमी बनो तो । | ||
तेषाम सतत युक्तानाम भजताम प्रीति पूर्वकम, बुद्धि योगम ददामि तम ([[HI/BG 10.10|भ.गी. १०.१०]]) । और वह बुद्धि-योग क्या है, उस बुद्धि-योग का मूल्य क्या है ? वह बुद्धि-योग या भक्ति-योग, मूल्य है येन माम उपयान्ति ते । इस तरह का बुद्धि-योग, ऐसी बुद्धिमत्ता उसे वापस ले जाएगी, वापस भगवद धाम । ऐसा नहीं है कि इस बुद्धिमत्ता के कारण वह नरक में जाएगा । यह भौतिक बुद्धिमत्ता है । | |||
अदांत गोभिर विशताम तमिश्रम ([[Vanisource: SB 7.5.30 | श्रीमद भागवतम ७.५.३०]]) । सब कुछ भागवतम में चर्चित है । भौतिकवादी व्यक्ति के लिए, अदांत गोभि । अदांत मतलब अनियंत्रित, बेलगाम । गो मतलब इन्द्रियॉ । भौतिकवादी व्यक्ति, वे अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं कर सकते हैं । वे इंद्रियों के दास हैं, गोदास । गो मतलब इन्द्रियॉ, और दास मतलब सेवक है । तो जब तुम इन्द्रियों को नियंत्रित करने की स्थिति पर आते हो, तब तुम गोस्वामी हो जाअोगे । यही गोस्वामी है । गोस्वामी मलतब इंद्रियों को नियंत्रित करना, जिसने पूरी तरह से इन्द्रियों को नियंत्रित किया है । स्वामी या गोस्वामी । | |||
स्वामी का मतलब भी वही है अौर गोस्वामी का मतलब भी वही है । आम तौर पर अदांत गोभिर विशताम तमिश्रम । अनियंत्रित इन्द्रियॉ, वे जा रही हैं । एसा नहीं है श्री कृष्ण उन्हें भेज रहे हैं । वह अपना रास्ता खुद साफ कर रहा है, या तो घर वापस जाने का, भगवद धाम वापस, या नरक के अंधेरे क्षेत्र में पतन का । दो चीजें हैं, और यह अवसर मनुष्य जीवन में है । तुम चुन सकते हो । श्री कृष्ण, जैसे उन्होंने अर्जुन से पूछा की क्या "तुम्हारा भ्रम दूर हुअा ।" | |||
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Latest revision as of 17:45, 1 October 2020
720905 - Lecture SB 01.02.06 - New Vrindaban, USA
तेषाम सतत युक्तानाम भजताम प्रीति पूर्वकम, बुद्धि योगम ददामि तम (भ.गी. १०.१०) | श्री कृष्ण कहते हैं कि "मैं उसे बुद्धि देता हूँ ।" किसे ? सतत युक्तानाम, चौबीस घंटे जो संलग्न हैं । किस तरह से संलग्न है वह ? भजताम, भजन, जो भक्ति सेवा में संलग्न हैं । किस तरह की भक्ति सेवा ? प्रीति-पूर्वकम, प्रेम और स्नेह के साथ । जो प्रेम और भक्ति के साथ भगवान की भक्ति सेवा में संलग्न है । प्रेम का लक्षण क्या है ?
लक्षण, प्रधान लक्षण, प्रेम का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण, कि भक्त चाहता है कि उसके भगवान का नाम, वैभव, इत्यादि, व्यापक हो । वह देखना चाहता है, "मेरे भगवान का नाम हर जगह जाना चाहिए ।" यह प्रेम है । अगर मैं किसी से प्रेम करता हूं, तो मैं चाहता हूं कि उसका गौरव सारी दुनिया में फैले । और कृष्ण भी भगवद गीता में कहते हैं, न च तस्मात मनुष्येषु कश्चित मे प्रिय कृत्तम: (भ.गी. १८.६९), जो भी उनकी महिमा का प्रचार करता है, उस व्यक्ति की तुलना में कोई अौर उनको अधिक प्रिय नहीं है । सब कुछ भगवद गीता में है, कैसे तुम प्रेम कर सकते हो, प्रेम के लक्षण क्या हैं, कैसे तुम भगवान को खुश कर सकते हो, कैसे वे तुम्हारे साथ बात कर सकते हैं, सब कुछ है । लेकिन तुम्हे लाभ लेना होगा ।
हम भगवद गीता पढ़ते हैं, लेकिन भगवद गीता को पढ़कर मैं एक राजनीतिज्ञ बन जाता हूं । तो किस तरह का पढना हुअा ये भगवद गीता का ? राजनेता है, अवश्य, लेकिन भगवद गीता को पढ़ने का वास्तविक उद्देश्य है श्री कृष्ण को जानना । अगर कोई कृष्ण को जानता है, वह सब कुछ जानता है । वह राजनीति जानता है, वह अर्थशास्त्र जानता है, वह विज्ञान जानता है, वह तत्वज्ञान को जानता है, वह धर्म को जानता है, वह समाजशास्त्र जानता है, सब कुछ । तस्मिन विज्ञाते सर्वम एतम विज्ञातम् भवन्ति, यह वैदिक आज्ञा है । अगर तुम केवल भगवान कृष्ण को समझते हो, तो सब कुछ तुम्हे बोध हो जाएगा । क्योंकि श्री कृष्ण कहते हैं, बुद्धि-योगम ददामि तम । अगर श्री कृष्ण तुम्हे बुद्धि देते हैं भीतर से, तो उनसे उत्कृष्ट कौन हो सकता है ? कोई भी उनसे उत्कृष्ट नहीं हो सकता है । लेकिन कृष्ण तुम्हे बुद्धि दे सकते हैं अगर तुम भक्त, या श्री कृष्ण के प्रेमी बनो तो ।
तेषाम सतत युक्तानाम भजताम प्रीति पूर्वकम, बुद्धि योगम ददामि तम (भ.गी. १०.१०) । और वह बुद्धि-योग क्या है, उस बुद्धि-योग का मूल्य क्या है ? वह बुद्धि-योग या भक्ति-योग, मूल्य है येन माम उपयान्ति ते । इस तरह का बुद्धि-योग, ऐसी बुद्धिमत्ता उसे वापस ले जाएगी, वापस भगवद धाम । ऐसा नहीं है कि इस बुद्धिमत्ता के कारण वह नरक में जाएगा । यह भौतिक बुद्धिमत्ता है ।
अदांत गोभिर विशताम तमिश्रम ( श्रीमद भागवतम ७.५.३०) । सब कुछ भागवतम में चर्चित है । भौतिकवादी व्यक्ति के लिए, अदांत गोभि । अदांत मतलब अनियंत्रित, बेलगाम । गो मतलब इन्द्रियॉ । भौतिकवादी व्यक्ति, वे अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं कर सकते हैं । वे इंद्रियों के दास हैं, गोदास । गो मतलब इन्द्रियॉ, और दास मतलब सेवक है । तो जब तुम इन्द्रियों को नियंत्रित करने की स्थिति पर आते हो, तब तुम गोस्वामी हो जाअोगे । यही गोस्वामी है । गोस्वामी मलतब इंद्रियों को नियंत्रित करना, जिसने पूरी तरह से इन्द्रियों को नियंत्रित किया है । स्वामी या गोस्वामी ।
स्वामी का मतलब भी वही है अौर गोस्वामी का मतलब भी वही है । आम तौर पर अदांत गोभिर विशताम तमिश्रम । अनियंत्रित इन्द्रियॉ, वे जा रही हैं । एसा नहीं है श्री कृष्ण उन्हें भेज रहे हैं । वह अपना रास्ता खुद साफ कर रहा है, या तो घर वापस जाने का, भगवद धाम वापस, या नरक के अंधेरे क्षेत्र में पतन का । दो चीजें हैं, और यह अवसर मनुष्य जीवन में है । तुम चुन सकते हो । श्री कृष्ण, जैसे उन्होंने अर्जुन से पूछा की क्या "तुम्हारा भ्रम दूर हुअा ।"