HI/Prabhupada 0469 - पराजित या विजयी, कृष्ण पर निर्भर रहो

Revision as of 20:40, 21 July 2015 by Rishab (talk | contribs) (Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0469 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1977 Category:HI-Quotes - Lec...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Invalid source, must be from amazon or causelessmery.com

Lecture on SB 7.9.9 -- Mayapur, March 1, 1977

तो हमारा यह आंदोलन व्यावहारिक गतिविधि पर आधारित है । तुम्हारे पास जो भी प्रतिभा है, जो कुछ तुम्हारे पास थोड़ी ताकत है, शिक्षा है ... तुम्हे कुछ भी सीखने की ज़रूरत नहीं है । जो कुछ भी तुम्ाहरे पास है, जिस भी स्थिति में तुम हो, तुम कृष्ण की सेवा कर सकते हो । ऐसा नहीं है कि पहले तुम्हे कुछ सीखना है और फिर तुम सेवा कर सकते हो । नहीं । सेवा ही सीख है । जितना अधिक तुम सेवा प्रदान करने की कोशिश करते हो, उतना अधिक तुम उन्नत होते हो अनुभवी नौकर बनने के लिए । हम किसी भी अतिरिक्त बुद्धिमत्ता की आवश्यकता नहीं है । वरना ... उदाहरण है गज-यूथ-पाय । हाथी, हाथियों का राजा, वह संतुष्ट है । वह एक जानवर है । वह एक ब्राह्मण नहीं है । वह एक वेदान्तवादी नहीं है । हो सकता है कि वह बहुत बड़ा, मोटअ पशु है, (हँसते हुए) लेकिन फिर भी, है तो पशु ही । हनुमान पशु थे । कई ऐसी बातें हैं । जटायु एक पक्षी था । तो कैसे वे संतुष्ट हैं? जटायु रावण के साथ लड़ा । कल तुमने देखा । रावण सीता देवी का अपहरण कर रहा था, और जटयु पक्षी, वह जा रहा था, उड़ रहा था । रावण मशीन के बिना उड़ान जानता था । वह बहुत, बहुत भौतिक दृष्टटि से शक्तिशाली था । तो जटअयु नें आसमान पर उस पर हमला किया: "तुम कौन हो? तुम सीता को दूर ले जा रहे हो । मैं तुमसे लड़ूँगा । " तो रावण बहुत शक्तिशाली था । वे हार गया, जटअयु, लेकिन वह लड़ा । यही उसकी सेवा है । कोई बात नहीं अगर पराजित हो गए । इसी तरह, हमें लड़ना होगा । जो कृष्ण भावनामृत आंदोलन का विरोध कर रहे हैं, हमें अपनी पूरी क्षमता से उन लोगों के साथ लड़ना होगा । कोई बात नहीं अगर हम हार रहे हैं । वह भी सेवा है । कृष्ण सेवा देखते हैं ।पराजित या विजयी, कृष्ण पर निर्भर रहो । लेकिन लड़ाई होनी चाहिए । करमण्य एवाधिकारस ते मा फलेशु कदाचन (भ गी २।४७) । यही अर्थ है । तुम्हे ईमानदारी, समझदारी से कृष्ण के लिए काम करना है, और जीत या हार, कोई बात नहीं । वैसे ही जैसे जटयु रावण के साथ लड़ाई में हार गया था । उसके पंख काट दिए गए । रावण बहुत बलवान था । अौर प्रभु रामचन्द्र, उन्होंने उसका अंतिम संस्कार समारोह किया, क्योंकि वह भक्त था । यही प्रक्रिया है, यह नहीं कि हमें अतिरिक्त कुछ सीखने की जरूरत है । हमें जो भी क्षमता मिली है , हमें भगवान को सेवा प्रदान करने के लिए इस्तमाल करनी चाहिए । यह आवश्यक नहीं है कि तुम्हे बहुत अमीर या बहुत सुंदर होना चाहिए, बहुत बलवान शरीर से । ऐसा कुछ भी नहीं । स वै पुम्साम परो धर्मो यतो भक्तिर अधोक्शजे अहैतुकि अप्रतिहता (श्री भ १।२।६) किसी भी हालत में, तुम्हारी भक्ति सेवा रुकनी नहीं चाहिए । यही सिद्धांत होना चाहिए, कि हम नहीं रुकेंगे, किसी भी परिस्थिति में । और कृष्ण एक छोटे फूल को भी स्वीकार करने के लिए तैयार हैं, थोड़ा पानी । पत्रम पुषपम फलम तोयम (भ गी ९।२६) उन्होंने नहीं कहा, " मुझे बहुत शानदार और स्वादिष्ट व्यंजन दो । फिर मैं.... " वे संतुष्ट हो जाएँगे । नहीं । वास्तविक आवश्यकता भक्ति है । पत्रम पुषपम फलम तोयम यो मे भक्त्या प्रयच्छति यही वास्तविक आवश्यकता है । भक्त्या माम अभिजानाति यावान यश च (भ गी १८।५५)

इसलिए हमें हमारी भक्ति को विकसित करना होगा, कृष्ण के लिए प्रेम को । प्रेम पुमारर्थो महान, चैतन्य महाप्रभु नें सलाह दी है । लोग धर्म अर्थ-काम मोक्ष के पीछे भागते हैं, लेकिन चैतन्य महाप्रभु ने कहा, "नहीं, भले ही तुम मुक्त हो जाते हो, मोक्ष, कृष्ण की कृपा पाने के लिए यह योग्यता नहीं है । " प्रेम पुमारर्थो महान । पंचम पुरुषार्थ । लोग बहुत धार्मिक होने की कोशिश कर रहे हैं । यह अच्छी बात है । फिर आर्थिक । धर्म अर्थ । अर्थ मतलब है आर्थिक रूप से बहुत अमीर, भव्य । फिर काम, इन्द्रिय भोग में बहुत दक्ष । और फिर मुक्ति । यह सामान्य मांग है । लेकिन भागवत कहता है, "नहीं, ये बातें योग्यता नहीं हैं ।" धर्म: प्रोज्हित-कैतवो अत्र (श्री भ १।१।२)