राधारानी कृष्ण का विस्तार है । कृष्ण शक्तिमान है, और राधारानी उनकी शक्ति है । जिस तरह आप शक्तिमान से शक्ति को अलग नहीं कर सकते । आग और गर्मी आप अलग नहीं कर सकते । जहां भी अग्नि होती है वहां गर्मी होती है, और जहां भी गर्मी होती है वहाँ अग्नि, इसी तरह, जहां कहीं भी कृष्ण है वहां राधा है । और जहां कहीं राधा है वहां कृष्ण है । वे अविभाज्य हैं । लेकिन वे आनंद ले रहे हैं । तो स्वरूप दामोदर गोस्वामी ने राधा कृष्ण के इस जटिल विषय के बारे में वर्णन एक श्लोक में किया है, बहुत अच्छा श्लोक है । राधा कृष्ण प्रणय विकृतिर आह्लादिनी-शक्तिर अस्माद एकात्मानाव अपि भुवि पूरा देह-भेदम गतौ तौ (चै.च. आदि १.५) । तो राधा और कृष्ण एक परम भगवान है, लेकिन आनंद लेने के लिए, वे दो में विभाजित हुए हैं । फिर से भगवान चैतन्य दो में से एक बन गए । चैतन्याख्यम प्रकटम अधुना । वो एक का अर्थ यहाँ है कृष्ण जो की राधा के परमानंद में है । कई बार कृष्ण राधा के परमानंद में होते है । और कभी राधा कृष्ण के परमानंद में । यह चल रहा है । लेकिन पूरी बात यह है की राधा और कृष्ण का मतलब एक ही है, परम भगवान ।
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