HI/Prabhupada 0104 - जन्म और मृत्यु के चक्र को रोको

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Lecture on BG 9.1 -- Melbourne, April 19, 1976

पुष्ट कृष्ण : किस प्रकार से एक पशु शरीर में स्थित आत्मा मनुष्य शरीर में प्रवेश करती है ?

प्रभुपाद : जिस प्रकार कारागार में रहने वाला कैदी। कैसे उसे मुक्ति मिलती है ? जब उसके दंड की अवधि समाप्त हो जाती है, तब उसे मुक्त कर दिया जाता है । और यदि दुबारा वह कोई अपराध करता है, उसे पुनः कारागार में ड़ाल दिया जाता है । तो मनुष्य शरीर यह जानने के लिए है कि, जैसा कि मैं समझा रहा हूँ, जीवन की समस्या क्या है । मैं मरना नहीं चाहता, मुझे मृत्यु प्राप्त होती है । मुझे बूढ़ा बनना नहीं चाहता, मैं बूढ़ा बनने के लिए बाध्य हूँ । जन्म मृत्यु जरा व्याधि दुःख दोषानुदर्शनम् (भ गी १३. ९) । तो वह... उसी उदाहरण की तरह, एक चोर । जब वह मुक्त है, यदि वह सोचता है, कि "मुझे छह महीने की जेल की इस दुखदायक स्थिति में क्यों रखा गया था ? " यह अत्यंत कष्टदायक था ।" तब वह वास्तव में मनुष्य बनता है ।

इसी तरह, मनुष्य को विचार-विमर्श करने की उन्नत शक्ति मिली है। यदि वह सोचता है कि, "मुझे इस दुखद स्थिति में क्यों रखा गया है?" सबको यह मानना होगा कि यह अत्यन्त दुखदायक स्थिति है । वह खुश होने की कोशिश कर रहा है, लेकिन कोई खुशी नहीं है । तो वह खुशी कैसे प्राप्त की जा सकती है? यह अवसर केवल मनुष्य जीवन में है । किन्तु यदि प्रकृति की दया से, हम मनुष्य जीवन प्राप्त करते हैं, और यदि हम इसका सही उपयोग नहीं करते हैं, इस अवसर का दुरुपयोग कुत्ते बिल्ली या अन्य पशुओं की तरह करते हैं, तो हमें पशु शरीर फिर से स्वीकार करना होगा, और जब समय समाप्त हो जाएगा... इसमें लंबा, लंबा समय लगता है क्योंकि विकासवादी प्रक्रिया होती है। तो दुबारा आप मनुष्य शरीर में आएँगे, जब समय समाप्त हो जाता है । ठीक वही उदहारण, जैसे एक चोर, जब उसकी दंड अवधि समाप्त हो जाती है, तो वह फिर से स्वतंत्र व्यक्ति हो जाता है । पर यदि वह फिर से पाप करता है, तो वह फिर से कारागार जाता है । तो जन्म और मृत्यु का चक्र है । यदि हम मनुष्य जीवन का उचित उपयोग करें, तो हम इस जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्त हो सकते हैं । और यदि हम मनुष्य जीवन का उचित उपयोग नहीं करते हैं, तो हम फिर से जन्म मृत्यु के चक्र मे बंद्ध जाएँगे ।