HI/Prabhupada 0111 - अनुदेश का पालन करो, तो फिर तुम कहीं भी सुरक्षित हो

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Morning Walk -- February 3, 1975, Hawaii

भक्त (1): श्रील प्रभुपाद, किसी को अपना अधिकार प्राप्त करना हो तो कहॉ से?

प्रभुपाद: गुरु अधिकार है।

भक्त (1): नहीं, मुझे पता है, लेकिन अपने कार्यों के लिए जो सिर्फ चार नियामक सिद्धांतों का पालन और सोलह माला जप के अलावा हैं। वह दिन के दौरान कई अन्य बातें करता है। मान लो, वह मंदिर में नहीं रहता है, तो वह अधिकार कहाँ से प्राप्त करता है?

प्रभुपाद: मैं समझ नहीं रहा हूँ। प्राधिकरण गुरु है। तुमने स्वीकार किया है।

बली मर्दन: सब कुछ के लिए।

जयतीर्थ: मान लो मैं बाहर रह रहा हूँ, बाहर काम कर रहा हूँ, लेकिन मैं अपनी आय का 50% नहीं दे रहा हूँ। तो फिर मैं जो काम कर रहा हूँ, क्या यह वास्तव में गुरु के अधिकार के तहत है?

प्रभुपाद: तो फिर तुम गुरु के निर्देश का पालन नहीं कर रहे हो। यह स्पष्ट तथ्य है।

जयतीर्थ: इसका मतलब है कि दिन भर कि गतिविधियॉ, सारा काम, इसका मतलब है कि मैं गुरु के निर्देश का पालन नहीं कर रहा हूँ। यह अनधिकृत गतिविधि है।

प्रभुपाद: हाँ। तुम गुरु की शिक्षा का पालन नहीं करते हो, तो तुम तुरंत नीचे गिर गए हो। यही तरीका है। नहीं तो क्यों तुम गाते हो , यस्य प्रसादात् भगवत-प्रसादो? गुरु को संतुष्ट करना मेरा कर्तव्य है। वरना मैं कहीं का नहीं रहूँगा। तुम अगर कहीं के भी नहीं होना चाहते , तो तुम अवज्ञा करो। अगर तुम अपनी स्थिति को स्थिर रखना चाहते हो, तो तुम्हे सख्ती से गुरु के निर्देश का पालन करना चाहिए।

भक्त (1): हम तो केवल अापकी पुस्तकों को पढ़ कर आपके सभी निर्देशों को समझ सकते हैं।

प्रभुपाद: हाँ। वैसे भी, शिक्षा का पालन करो। यही आवश्यक है। शिक्षा का पालन करो। तुम जहाँ भी हो , कोई बात नहीं। तुम सुरक्षित हो। शिक्षा का पालन करो। तो फिर तुम कहीं भी सुरक्षित हो। कोई बात नहीं। जैसे मैंने तुम से कहा कि मैने अपने गुरु महाराज को दस दिन से अधिक नहीं देखा है अपने जीवन में, लेकिन मैंने उनके निर्देशें का पालन किया है। मैं एक गृहस्थ था, मैं कभी भी मठ या मंदिर में नहीं रहा । यह व्यावहारिक है। तो कई गुरुभाई ने सिफारिश की " उसे इस बंबई मंदिर का इन्चार्ज होना चाहिए," गुरु महाराज ने कहा " जी हां, बेहतर है कि वह बाहर रहता है, यही अच्छा है, और वह समय अाने पर जो जरूरत है वह करेगा।"

भक्तों: जय ! हरीबोल !

प्रभुपाद: उन्होने एसा कहा। मैं उस समय समझ नहीं सका कि वह क्या उम्मीद कर रहे हैं। बेशक, मैं जानता था कि वह चाहते थे कि मैं प्रचार करूँ।

यशोदानन्दन: मुझे लगता है कि अापने यह भव्य शैली से किया है ।

भक्तों: जय प्रभुपाद! हरीबोल ।

प्रभुपाद: हाँ, भव्य शैली से किया क्योंकि मैने सख्‍ती से मेरे गुरु महाराज के निर्देश का पालन किया, बस। वरना मैं ताकतवर नहीं हूँ। मैंने कोई जादू नहीं किया है। मैंने किया? कोई सोने का निर्माण? (हंसी) फिर भी, मेरे पास बेहतर चेले हैं सोने का निर्माण करने वाले गुरु के मुकाबले।