HI/Prabhupada 0252 - हम सोच रहे हैं कि हम स्वतंत्र हैं: Difference between revisions

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तो ये सभी भौतिकवादी व्यक्ति, वे इतने मूर्ख, दुष्ट, बदमाश हैं, वे इन भौतिक गतिविधियों में वृद्धि कर रहे हैं । वे सोच रहे हैं कि वे खुश हो जाएँगे इन बढ़ती भौतिक गतिविधियों से । नहीं, यह संभव नहीं है । दुराशया ये ... और उनके नेता ... अंधा यथान्धैर उपनीयमानास ते अपीश-तन्त्रयम उरु-धामनि बद्ध: ([[Vanisource:SB 7.5.31|श्री भ ७।५।३१]]) हम सब बहुत तंग, हाथ और पैर से बंधे हुए हैं, और हम सोच रहे हैं कि हम स्वतंत्र हैं, स्वतंत्र । भौतिक प्रकृति के नियमों से ... फिर भी हम सोच रहे हैं कि हम स्वतंत्र हैं । वैज्ञानिक भगवान से बचने की कोशिश कर रहा है, विज्ञान द्वारा स्वतंत्र । यह संभव नहीं है । हम भौतिक प्रकृति की चपेट में हैं । भौतिक प्रकृति का मतलब है कृष्ण का एजेंट मयाध्यक्षेन प्रकृति: सूयते स-चराचरम ([[Vanisource:BG 9.10|भ गी ९।१०]]) । प्रकृते: क्रियमाणानि गुनैर कर्माणी सर्वश: ([[Vanisource:BG 3.27|भ गी ३।२७]]) तो हम उलझन में हमेशा रहते हैं अर्जुन की तरह, क्या नहीं करना है, क्या करना है । लेकिन अगर हम इस सिद्धांत को लेते हैं कि "हमें कृष्ण के लिए करना चाहिए ..." तो कृष्ण से दिशा लो और कृष्ण के प्रतिनिधि से दिशा लो और तुम इसे करो: तो कोई कर्म-बंधन: नहीं है । कर्माणि निर्दहति किन्तु च भक्ति-भाजाम ( ब्र स ५।५४) । अन्यथा, हम हर कार्य की प्रतिक्रिया से बंधे हुए हैं । हम बाहर नहीं निकल सकते । तो यह विकलता, "मैं लड़ुँ या नहीं," यह समझाया जाएगा कि "हाँ, तुम्हे कृष्ण के लिए लड़ना चाहिए । तो फिर ठीक है ।" काम: कृष्ण-कर्मापने । जैसे हनुमान की तरह । वे प्रभु रामचंद्र के लिए लड़ाई लड़े । वे खुद के लिए लड़ाई नहीं लडे । इसी तरह, अर्जुन भी, उनका कपि-ध्वज है, उनका झंडा हनुमान के साथ चिह्नित है । उन्हें पता था । तो हनुमान, एक महान सेनानी, रावण के साथ लड़े, अपने निजी हित के लिए नहीं । मतलब था कि रावण के हाथों से सीताजी को कैसे बाहर निकाला जाए, पूरे परिवार को मारकर , और बाहर निकल कर और उन्हे रामचंद्र के पास बिठाया जाए । यह हनुमान भक्तों की नीति है । और रावण की नीति है "राम के साथ से सीता को दूर ले जाअो और आनंद लो ।" इस रावण की नीति है । और हनुमान की नीति है: "रावण के हाथों से सीता को बाहर निकालो और उन्हे राम के पास बिठाअो ।" वही सीता । सीता का मतलब है लक्षमी । तो लक्षमी नारायण की संपत्ति है, भगवान की संपत्ति है । तो हमें इन सभी भौतिकवादी व्यक्तियों कि नीति को सीखना चाहिए, रावणों, कि वे भगवान की संपत्ति का आनंद लेने की कोशिश कर रहे हैं । तो किसी न किसी तरह से..... बेशक हम रावण वर्ग के आदमीयों के साथ नहीं लड़ सकते हैं । यही ... हम इतने मजबूत नहीं हैं । इसलिए हमने भिखारी बनने की पॉलिसी ली है: "सर, आप तो अच्छे आदमी हैं । हमें कुछ दे दीजिए । हमें कुछ दें । क्योंकि अाप अपने जीवन को खराब कर रहे हैं भगवान की संपत्ति रखके, आप नरक में जा रहे हैं । तो किसी न किसी तरह से, अगर आप एक सदस्य हो जाते हैं, तो आप बच जाअोगे, अाप बच जाअोगे । " यह हमारी नीति है । हम भिखारी नहीं है । लेकिन यह एक नीति है । अब हम रावणों के साथ लड़ने के लिए बहुत मजबूत नहीं हैं, अन्यथा, हम लड़ कर सारे पैसे ले लेते । लेकिन यह संभव नहीं है । हम इतने मजबूत नहीं हैं । इसलिए हमनें भिखारी की पॉलिसी ली है । बहुत बहुत धन्यवाद ।
तो ये सभी भौतिकवादी व्यक्ति, वे इतने मूर्ख, दुष्ट, बदमाश हैं, वे इन भौतिक गतिविधियों में वृद्धि कर रहे हैं । वे सोच रहे हैं कि वे खुश हो जाएँगे इन बढ़ती भौतिक गतिविधियों से । नहीं, यह संभव नहीं है । दुराशया ये ... और उनके नेता ... अंधा यथान्धैर उपनीयमानास ते अपीश-तन्त्र्यम उरु-धाम्नी बद्ध: ([[Vanisource:SB 7.5.31|श्रीमद भागवतम ७.५.३१]]) | हम सब बहुत तंग, हाथ और पैर से बंधे हुए हैं, और हम सोच रहे हैं कि हम स्वतंत्र हैं, स्वतंत्र । भौतिक प्रकृति के नियमों से ... फिर भी हम सोच रहे हैं कि हम स्वतंत्र हैं । वैज्ञानिक भगवान से बचने की कोशिश कर रहा है, विज्ञान द्वारा स्वतंत्र । यह संभव नहीं है ।  
 
हम भौतिक प्रकृति की चपेट में हैं । भौतिक प्रकृति का मतलब है कृष्ण का प्रतिनिधि मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते स-चराचरम ([[HI/BG 9.10|भ.गी. ९.१०]]) । प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणी सर्वश: ([[HI/BG 3.27|भ.ग. ३.२७]]) | तो हम उलझन में हमेशा रहते हैं अर्जुन की तरह, क्या नहीं करना है, क्या करना है । लेकिन अगर हम इस सिद्धांत को लेते हैं कि "हमें कृष्ण के लिए करना चाहिए ..." तो कृष्ण से दिशा लो और कृष्ण के प्रतिनिधि से दिशा लो और तुम इसे करो: तो कोई कर्म-बंधन: नहीं है । कर्माणि निर्दहति किन्तु च भक्ति-भाजाम (ब्रह्मसंहिता ५.५४) । अन्यथा, हम हर कार्य की प्रतिक्रिया से बंधे हुए हैं । हम बाहर नहीं निकल सकते ।  
 
तो यह विकलता, "मैं लडु या नहीं," यह समझाया जाएगा कि "हाँ, तुम्हे कृष्ण के लिए लड़ना चाहिए । तो फिर ठीक है ।" काम: कृष्ण-कर्मार्पणे । जैसे हनुमान की तरह । वे प्रभु रामचंद्र के लिए लड़ाई लड़े । वे खुद के लिए लड़ाई नहीं लडे । इसी तरह, अर्जुन भी, उनका कपि-ध्वज है, उनका झंडा हनुमान के साथ चिह्नित है । उन्हें पता था । तो हनुमान, एक महान सेनानी, रावण के साथ लड़े, अपने निजी हित के लिए नहीं ।  
 
मतलब था कि रावण के हाथों से सीताजी को कैसे बाहर निकाला जाए, पूरे परिवार को मारकर , और बाहर निकल कर और उन्हे रामचंद्र के पास बिठाया जाए । यह हनुमान की, भक्तों की, नीति है । और रावण की नीति है "राम के साथ से सीता को दूर ले जाअो और आनंद लो ।" इस रावण की नीति है । और हनुमान की नीति है: "रावण के हाथों से सीता को बाहर निकालो और उन्हे राम के पास बिठाअो ।" वही सीता । सीता का मतलब है लक्ष्मी । तो लक्ष्मी नारायण की संपत्ति है, भगवान की संपत्ति है । तो हमें इन सभी भौतिकवादी व्यक्तियों कि नीति को सीखना चाहिए, रावणों, कि वे भगवान की संपत्ति का आनंद लेने की कोशिश कर रहे हैं ।  
 
तो किसी न किसी तरह से..... बेशक हम रावण वर्ग के आदमीयों के साथ नहीं लड़ सकते हैं । यही ... हम इतने मजबूत नहीं हैं । इसलिए हमने भिखारी बनने की पॉलिसी ली है: "सर, आप तो अच्छे आदमी हैं । हमें कुछ दे दीजिए । हमें कुछ दें । क्योंकि अाप अपने जीवन को खराब कर रहे हैं भगवान की संपत्ति रखके, आप नरक में जा रहे हैं । तो किसी न किसी तरह से, अगर आप एक सदस्य हो जाते हैं, तो आप बच जाअोगे, अाप बच जाअोगे । " यह हमारी नीति है । हम भिखारी नहीं है । लेकिन यह एक नीति है । अब हम रावणों के साथ लड़ने के लिए बहुत मजबूत नहीं हैं, अन्यथा, हम लड़ कर सारे पैसे ले लेते । लेकिन यह संभव नहीं है । हम इतने मजबूत नहीं हैं । इसलिए हमनें भिखारी की नीति ली है । बहुत बहुत धन्यवाद ।  
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Latest revision as of 18:24, 17 September 2020



Lecture on BG 2.6 -- London, August 6, 1973

तो ये सभी भौतिकवादी व्यक्ति, वे इतने मूर्ख, दुष्ट, बदमाश हैं, वे इन भौतिक गतिविधियों में वृद्धि कर रहे हैं । वे सोच रहे हैं कि वे खुश हो जाएँगे इन बढ़ती भौतिक गतिविधियों से । नहीं, यह संभव नहीं है । दुराशया ये ... और उनके नेता ... अंधा यथान्धैर उपनीयमानास ते अपीश-तन्त्र्यम उरु-धाम्नी बद्ध: (श्रीमद भागवतम ७.५.३१) | हम सब बहुत तंग, हाथ और पैर से बंधे हुए हैं, और हम सोच रहे हैं कि हम स्वतंत्र हैं, स्वतंत्र । भौतिक प्रकृति के नियमों से ... फिर भी हम सोच रहे हैं कि हम स्वतंत्र हैं । वैज्ञानिक भगवान से बचने की कोशिश कर रहा है, विज्ञान द्वारा स्वतंत्र । यह संभव नहीं है ।

हम भौतिक प्रकृति की चपेट में हैं । भौतिक प्रकृति का मतलब है कृष्ण का प्रतिनिधि । मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते स-चराचरम (भ.गी. ९.१०) । प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणी सर्वश: (भ.ग. ३.२७) | तो हम उलझन में हमेशा रहते हैं अर्जुन की तरह, क्या नहीं करना है, क्या करना है । लेकिन अगर हम इस सिद्धांत को लेते हैं कि "हमें कृष्ण के लिए करना चाहिए ..." तो कृष्ण से दिशा लो और कृष्ण के प्रतिनिधि से दिशा लो और तुम इसे करो: तो कोई कर्म-बंधन: नहीं है । कर्माणि निर्दहति किन्तु च भक्ति-भाजाम (ब्रह्मसंहिता ५.५४) । अन्यथा, हम हर कार्य की प्रतिक्रिया से बंधे हुए हैं । हम बाहर नहीं निकल सकते ।

तो यह विकलता, "मैं लडु या नहीं," यह समझाया जाएगा कि "हाँ, तुम्हे कृष्ण के लिए लड़ना चाहिए । तो फिर ठीक है ।" काम: कृष्ण-कर्मार्पणे । जैसे हनुमान की तरह । वे प्रभु रामचंद्र के लिए लड़ाई लड़े । वे खुद के लिए लड़ाई नहीं लडे । इसी तरह, अर्जुन भी, उनका कपि-ध्वज है, उनका झंडा हनुमान के साथ चिह्नित है । उन्हें पता था । तो हनुमान, एक महान सेनानी, रावण के साथ लड़े, अपने निजी हित के लिए नहीं ।

मतलब था कि रावण के हाथों से सीताजी को कैसे बाहर निकाला जाए, पूरे परिवार को मारकर , और बाहर निकल कर और उन्हे रामचंद्र के पास बिठाया जाए । यह हनुमान की, भक्तों की, नीति है । और रावण की नीति है "राम के साथ से सीता को दूर ले जाअो और आनंद लो ।" इस रावण की नीति है । और हनुमान की नीति है: "रावण के हाथों से सीता को बाहर निकालो और उन्हे राम के पास बिठाअो ।" वही सीता । सीता का मतलब है लक्ष्मी । तो लक्ष्मी नारायण की संपत्ति है, भगवान की संपत्ति है । तो हमें इन सभी भौतिकवादी व्यक्तियों कि नीति को सीखना चाहिए, रावणों, कि वे भगवान की संपत्ति का आनंद लेने की कोशिश कर रहे हैं ।

तो किसी न किसी तरह से..... बेशक हम रावण वर्ग के आदमीयों के साथ नहीं लड़ सकते हैं । यही ... हम इतने मजबूत नहीं हैं । इसलिए हमने भिखारी बनने की पॉलिसी ली है: "सर, आप तो अच्छे आदमी हैं । हमें कुछ दे दीजिए । हमें कुछ दें । क्योंकि अाप अपने जीवन को खराब कर रहे हैं भगवान की संपत्ति रखके, आप नरक में जा रहे हैं । तो किसी न किसी तरह से, अगर आप एक सदस्य हो जाते हैं, तो आप बच जाअोगे, अाप बच जाअोगे । " यह हमारी नीति है । हम भिखारी नहीं है । लेकिन यह एक नीति है । अब हम रावणों के साथ लड़ने के लिए बहुत मजबूत नहीं हैं, अन्यथा, हम लड़ कर सारे पैसे ले लेते । लेकिन यह संभव नहीं है । हम इतने मजबूत नहीं हैं । इसलिए हमनें भिखारी की नीति ली है । बहुत बहुत धन्यवाद ।