HI/Prabhupada 0266 - कृष्ण पूर्ण ब्रह्मचारी हैं

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Lecture on BG 2.10 -- London, August 16, 1973

प्रभुपाद: तो भीष्मदेव नें, राजसूय-यज्ञ में, स्वीकार किया कि "कोई भी कृष्ण से बेहतर ब्रह्मचारी नहीं है । वे गोपियों के साथ थे, सभी युवा लड़कि, लेकिन वे एक ब्रह्मचारी बने रहे । अगर मैं गोपियों के साथ रहता, तो मैं नहीं जानता, मेरी हालत क्या होती ।" तो इसलिए कृष्ण पूर्ण ब्रह्मचारी हैं, ऋषिकेश . और ये दुष्ट वे कह रहे हैं कि कृष्ण अनैतिक हैं । नहीं । कृष्ण पूर्ण ब्रह्मचारी हैं | धीर । धीर का मतलब है उत्तेजित नहीं होता है, हालांकि उत्तेजित होने का कारण है । तो कृष्ण एक ऐसे ब्रह्मचारी हैं ।

इसके बावजूद ... अपने, यौवन में, १५, १६, साल की उम्र में, सभी गांव की लड़कियॉ दोस्त थीं, वे बहुत ज्यादा कृष्ण की सुंदरता से आकर्षित थीं । वे गांव में कृष्ण के पास अाती थीं नृत्य करने के लिए । लेकिन वे ब्रह्मचारी थे । तुम कभी नहीं सुनाोगे कि कृष्ण का कुछ अवैध संबन्ध था । नहीं । ऐसी किसी बात का विवरण नहीं था । नृत्य वर्णित है, लेकिन कोई गर्भनिरोधक गोली नहीं । नहीं । ये यहां वर्णित नहीं है । इसलिए वे ऋषिकेश हैं । ऋषिकेश का मतलब है पूर्ण ब्रह्मचारी ।

विकार-हेतु, उत्तेजित होने का कारण है तो भी, वे उत्तेजित नहीं हैं । यही कृष्ण हैं । उनके हजारों और हजारों भक्त हैं, और कुछ भक्त, अगर वे प्रेमी के रूप में कृष्ण को चाहते हैं, तो कृष्ण स्वीकार करते हैं, लेकिन उन्हे किसी और की आवश्यकता नहीं है । उन्हें आवश्यकता नहीं है । वे आत्मनिर्भर हैं । उन्हें अपनी इन्द्रिय संतुष्टि के लिए किसी अौर की मदद की जरूरत नहीं है । इसलिए कृष्ण ऋषिकेश हैं, इंद्रियों के स्वामी । तो कम से कम कृष्ण के भक्त ... श्री कृष्ण के भक्तों के कई उदाहरण हैं । वे भी ... क्यों कई? लगभग सभी भक्त, वे इन्द्रियों के स्वामी हैं, गोस्वामी । जैसे हरिदास ठाकुर की तरह, तुम्हें पता है ।

हरिदास ठाकुर जवान आदमी थे, और गांव का जमीनदार, वह मुसलमान था । तो हर कोई हरिदास ठाकुर की प्रशंसा कर रहा था, इतने महान भक्त हैं । तो जमीनदार, गांव का जमीनदार, उसे बहुत ज्यादा ईर्ष्या हो गई । तो उसने एक वेश्या को कार्यरत किया कि वह हरिदास ठाकुर को अपवित्र करे । और वे अर्ध रात्री को अाई, अच्छी तरह से कपड़े पहन कर, आकर्षक । वह भी जवान थी, बहुत खूबसूरत । तो उसने प्रस्ताव रखा कि, "मैं अापकी सुंदरता से आकर्षित होकर यहॉ अाई हूँ ।" हरिदास ठाकुर नें कहा, " जी हां, ठीक है । चलो, बैठ जाओ । मुझे मेरे जप को खत्म करने दो । तो फिर हम आनंद करेंगे ।" तो वह नीचे बैठ गई । लेकिन हरिदास ठाकुर जप, वे जप कर रहे थे, ... हम, हम सोलह माला भी नहीं कर सकते हैं, और वे तीन बार चौंसठ माला जप करते थे । यह कितना है?

रेवतीनन्दन: १९६ ।

प्रभुपाद: १९६ माला । यही उनका एकमात्र काम था । हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण ... तो कभी कभी कोई हरिदास ठाकुर की नकल करना चाहता है । यह संभव नहीं है । तो हरिदास ठाकुर, जब सुबह हो गई , वेश्या, "सर, अब सुबह हो गई है ।" "हाँ, अगली रात मैं ... अगली रात आ जाअो । आज मैं अपने जप को खत्म नहीं कर सका ।" यह एक दलील थी । इस तरह तीन दिन बीत गए । फिर वेश्या परिवर्तित हो गई ... उनके चरणों में गिर गई, "सर, मैं आपको अपवित्र करने के लिए आई थी । मुझे बचा लीजिए, मैं इतनी गिरी हुई हूँ ।" तो हरिदास ठाकुर नें कहा, " हाँ, मुझे पता है । मैं तुरंत इस जगह को त्याग सकता था, जब तुम अाई, लेकिन मैं चाहता था कि तुम मेरे पास आई हो, तो तुम्हे एक वैष्णव में बदला जाए ।" तो वह वेश्या एक महान भक्त बन गई उनकी दया से... हरिदास ठाकुर ने कहा कि, "तुम इस जगह में बैठ जाअो । तुम इस तुलसी के पौधे के सामने हरे कृष्ण का जप करो । अब मैं इस जगह को छोड़ रहा हूँ ।"