HI/Prabhupada 0265 - भक्ति का मतलब है ऋषिकेश, इंद्रियों के मालिक, की सेवा करना



Lecture on BG 2.10 -- London, August 16, 1973

प्रद्युम्न: अनुवाद, "हे भरत के वंशज, उस समय कृष्ण मुस्कुराते हुए, दोनों सेनाओं के बीच में, शोक त्रस्त अर्जुन को निम्नलिखित शब्दों से सम्बोधित किया । "

प्रभुपाद: तो ऋषिकेश प्रहसन्न इव । कृष्ण हंसने लगे, मुस्कुराने "क्या बकवास है ये, अर्जुन ।" सबसे पहले उसने (अर्जुनने) कहा, "मुझे ले जाअो ।" सेनयोर उभयोर रथम स्थापय मे अच्युत (भ.गी. १.२१) | "कृष्ण, बस दो पक्षों के सैनिकों के बीच में मेरे रथ को ले जाअो ।" (बाजुमें:) मेरे लिए पानी लाओ । और अब ... वे शुरुआत में बहुत उत्साहित थे, कि "दोनों सेनाओं के बीच मेरे रथ को रखिए ।" अब यह दुष्ट कह रहा है नो योत्स्य "मैं नहीं लड़ूँगा । " धूर्तता देखो । तो अर्जुन भी, कृष्ण का प्रत्यक्ष दोस्त, माया इतनी मजबूत है, कि वो भी दुष्ट हो गया, दूसरों की क्या बात करें । सबसे पहले बहुत उत्साह: "हाँ, दो सेनाओं के बीच मेरे रथ को रखिए ।" और अब ..., न योत्स्य इति गोविन्दम (भ.गी. २.९), "मैं नहीं लडूँगा ।"

यह धूर्तता है । तो वे मुस्कुरा रहे थे कि " यह मेरा दोस्त है, प्रत्यक्ष दोस्त है, और इतना बड़ा.... , और वह अब कह रहा है कि 'मैं नहीं लडूँगा ।' " तो कृष्ण मुस्कुराते हुए, यह मुस्कुराना बहुत महत्वपूर्ण है, प्रहसन्न । तम उवाच ऋषिकेश: प्रहसन्न इव भारत, सेनयोर उभयोर विशीदन्तम, विलाप । सबसे पहले वह लड़ने के लिए बड़े उत्साह के साथ आया था, अब वह विलाप कर रहा है । और कृष्ण यहाँ ऋषिकेश के रूप में उल्लेख किए गए हैं । वे ठोस हैं । वे अच्युत हैं । वे ठोस हैं । वे बदले नहीं हैं ।

इस शब्द ऋषिकेश का एक और महत्व ... क्योंकि नारद-पंचरात्र में भक्ति का मतलब है ऋषिकेश-सेवनम । इसलिए वही नाम, यहाँ उल्लेख किया है ऋषिकेश । ऋषिकेश सेवनम भक्तिर उच्यते । भक्ति का मतलब है ऋषिकेश की सेवा करना, इंद्रियों के मालिक । और इंद्रियों के मालिक, कुछ दुष्ट कृष्ण को अनैतिक वर्णित कर रहे हैं । वे इंद्रियों के स्वामी हैं और वे अनैतिक हैं । दखो कि उसने भगवद गीता का अध्ययन कैसे किया है ।

अगर कृष्ण सही बह्मचारी हैं तो ... कृष्ण आदर्श बह्मचारी हैं, ... यह भीष्मदेव द्वारा घोषित किया गया । भीष्मदेव ब्रह्मांड में प्रथम श्रेणी के बह्मचारी हैं । उन्होंने सत्यवती के पिता को वादा किया ... तुम्हें कहानी पता है । सत्यवती के पिता ... वे, भीष्मदेव के पिता एक मछ्वारे की लडकी से आकर्षित हो गए । तो वे शादी करना चाहते थे । और लड़की के पिता नें इनकार किया, "नहीं, मैं तुम्हें अपनी बेटी को नहीं दे सकता । " तो "क्यों? मैं राजा हूँ, मैं अापकी बेटी का हाथ माँग रहा हूँ ।" "नहीं, तुम्हारा एक बेटा है ।"

भीष्मदेव उनकी पहली पत्नी के पुत्र थे, मां गंगा । मां गंगा शांतनु महाराजा की पत्नी थी, और भीष्मदेव केवल शेष बेटे थे । अनुबंध था शांतनु महाराजा और गंगा, माँ गंगा, के बीच में, कि " मैं तुमसे शादी कर सकती हूँ, अगर तुम अनुमति दो कि पैदा हुए सभी बच्चों को, मैं गंगा के पानी में फेंक दूँगी । और अगर तुम मुझे अनुमति नहीं देते हो, तो तुरंत मैं तुम्हे छोड़ दूँगी ।" तो शांतनु महाराज नें कहा "ठीक है, फिर भी मैं तुम से शादी करूँगा ।" तो वे गंगा में सभी बच्चों को फेंक रही थी । तो यह भीष्मदेव... तो आखिर, पिता हैं, तो वे बहुत दुःखी हो गए कि, " यह क्या है? मुझे किस तरह की पत्नी मिल गई है? " वह बस पानी में सभी बच्चों को फेंक रही है ।"

तो उस समय में भीष्मदेव, शांतनु महाराज नें कहा "नहीं, मैं यह अनुमति नहीं दे सकता । मैं यह अनुमति नहीं दे सकता | " तब मां गंगा ने कहा, "तो फिर मैं जा रही हूँ ।" "हाँ, तुम जा सकती हो । मैं तुम्हें नहीं चाहता हूँ । मैं इस बेटे को चाहता हूँ ।" इसलिए वे पत्नी हीन थे । फिर वे सत्यवती से शादी करना चाहते थे । तो पिता नें कहा, " नहीं, मैं तुम्हें अपनी बेटी नहीं दे सकता हूँ क्योंकि तुम्हारा एक बेटा है, सयाना बेटा ।" वह राजा हो जाएगा । इसलिए मैं मेरी बेटी को नहीं दे सकता तुम्हारी दासी बनने के लिए । उसे ... अगर मुझे लगता कि उसका बेटा राजा बनेगा, तो मैं तुम्हें अपनी बेटी दे सकता हूँ । " तो उन्होंने कहा, "नहीं, यह संभव नहीं है । " लेकिन भीष्मदेव समझ गए कि "मेरे पिता इस लड़की से आकर्षित हैं ।" तो उन्होंने संपर्क किया ... उन्होंने मछुआरे को कहा कि "तुम मेरे पिता को अपनी बेटी अर्पण कर सकते हो, लेकिन तुम सोच रहे हो कि मैं राजा बनूँगा । तो तुम्हारी बेटी का पुत्र राजा बनेगा ।

इस शर्त पर तुम अपनी बेटी की दे सकते हो ।" तो उन्होंने कहा, "नहीं, मैं नहीं कर सकता ।" "क्यों?" "तुम राजा न बनो, लेकिन तुम्हारा बेटा राजा हो सकता है ।" देखो, इस भौतिक गणना को । फिर उस समय उन्होंने कहा, "नहीं, मैं शादी नहीं करूँगा । बस । मैं वादा करता हूँ । मैं शादी नहीं करूँगा । तो वे ब्रह्मचारी बने रहे । इसलिए उनका नाम भीष्म है । भीष्म का मतलब है बहुत ठोस, मजबूती से दृढ । तो वे एक ब्रह्मचारी थे । अपने पिता की इंद्रियों की संतुष्टि के लिए, वे ब्रह्मचारी बने रहे ।