HI/Prabhupada 0395 - परम कोरुणा तात्पर्य: Difference between revisions

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परम कोरुणा, पाहु दुइI जन, निताई गौरचंद्र । यह लोचन दास ठाकुर ने गाया है यह गीत, भगवान चैतन्य के एक महान भक्त, लगभग समकालीन . उन्होंने एक पुस्तक लिखी, चैतन्य-मंगल, भगवान चैतन्य की गतिविधियों का चित्रण । यह एक बहुत ही प्रसिद्ध पुस्तक है, चैतन्य-मंगल । और उन्होंने कई गीतों की रचना की है । व्यावहारिक रूप से सभी वैष्णव, वे दिव्य रूप से काव्यात्मक हैं । वह वैष्णव की २६ योग्यताओं में से एक है । तो वे कहते हैं कि "ये दो भगवान निताई गौरचंद्र, "भगवान नित्यानंद और प्रभु गौरंग, या भगवान चैतन्य, वे बहुत दयालु अवतार हैं ।" सब अवतार-सार शरोमणि । "ये अवतारों का सार हैं ।" इस अवतार के बारे में भगवद गीता में गया है, जब भी धर्म के अमल में ग्लानी अाती है, और अधर्मी गतिविधियों की प्रमुखता होती है, उस समय भगवान अवतरित होते हैं या वह इस भौतिक दुनिया पर उतरते हैं, साधुअों की रक्षा और अधर्मी का नाश करने के लिए । यही इस अवतार के मिशन है । हर अवतार में तुम दो चीजें पाअोगे । भगवान कृष्ण, वे बहुत सुंदर हैं, बहुत दयालु, लेकिन वे राक्षसों के लिए बहुत खतरनाक हैं । राक्षस उन्हें वज्र के रूप में देख रहे थे, और गोपियों उन्हें सबसे सुंदर कामदेव के रूप में देख रही थीं । तो भगवद गीता में भी यह कहा गया है, ये यथा माम प्रपद्यन्ते ([[Vanisource:BG 4.11|भ गी ४।११]]) भगवान का बोध होता है आसुरी प्रवृत्तियों के अनुपात में । तो इस युग में ... बेशक, पिछले अवतार, कल्कि, बस मार देंगे । बहुत समय के बाद, वे आएँगे । लेकिन यहां भगवान चैतन्य, उनका मिशन मारना नहीं है, बस कृपा करना यही भगवान चैतन्य की विशिष्ट विशेषता है । क्योंकि इस उम्र में, ज़ाहिर है, अधर्म की बहुत ज्यादा प्रमुखता है । लेकिन अगर भगवान चैतन्य उन्हें मारना चाहते थे, तो उनकी मुक्ति का कोई सवाल ही नहीं था । वे होगा ... बेशक, जो कोई भी अवतार द्वारा मारा जाता है उसे भी मोक्ष मिलता है । लेकिन आध्यात्मिक ग्रहों के लिए नहीं, बल्कि वे लीन हो जाते हैं ब्रह्म ज्योती में जैसे मायावादी चाहते हैं । दूसरे शब्दों में, मायावादियों का लक्ष्य मोक्ष का, भगवान के दुश्मनों की मुक्ति के लक्ष्य के समान ही है । यह एक बहुत ही मुश्किल काम नहीं है । तो भगवान चैतन्य दयालु है, क्योंकि वे सबको गले लगा रहे हैं कृष्ण के प्रेम को प्रदान करके । रूप गोस्वामी नें भगवान चैतन्य को वर्णित किया है सभी अवतारों में सबसे दानी के रूप में क्योंकि वे हर किसी को कृष्ण दे रहे हैं, किसी भी योग्यता के बिना । तो लोचन दास ठाकुर कहते हैं परम कोरुणा, पहु दुइ जन, निताई गौरचंद्र । और वे सब अवतार का सार हैं । केवल अानंद-कंाड । और उनके उपदेश की प्रक्रिया बहुत भाती है । चैतन्य महाप्रभु सलाह देते हैं, " तुम हरे कृष्ण का जाप करो, नृत्य अच्छी तरह से करो, और जब तुम थकान महसूस करते हो, तो बस आराम करो और कृष्ण प्रसाद खाअो ।" " तो उनका फार्मूला बहुत भाता है । केवल अानंद-कांड । जब वे जगन्नाथ पुरी में थे, हर दिन शाम को, नृत्य, जप अौर नृत्य जारी रहता । अौर नृत्य समाप्त होने के बाद, वे दिल खोल कर जगन्नाथ का प्रसाद वितरित करते । इतने हजारों लोग हर रात को इकट्ठा होते । तो यह आंदोलन केवल दिव्य अानंद है । केवल अानंद-कांड । फिर वे सलाह देते हैं, भजो भजो भाई, चैतन्य निताई "मेरे प्यारे भाई, बस इन दो भगवान की पूजा करने का प्रयास करो, चैतन्य और नित्यानंद ।" सुदृढ विशवास कोरि, विश्वास और दृढता के साथ । हमें भगवान चैतन्य के शब्दों पर भरोसा रखना चाहिए । भगवान चैतन्य का कहना है कि "बस जप करते रहो । केवल जप से, हमें जीवन के सभी पूर्णता मिलेगी ।" तो यह एक तथ्य है । जब तक हम जप नहीं करते हैं, हम बोध नहीं होगा, लेकिन जो जप कर रहे हैं, वे महसूस कर रहे हैं कि उन्हे बहुत जल्दी जीवन के सभी वांछित पूर्णता प्राप्त हो रही है । इसलिए हमें विश्वास और दृढ़ विश्वास के साथ इस मंत्र का जाप करना चाहिए । लेकिन इस संबंध में आवश्यक योग्यता केवल यह है, वे कहते हैं, विषय छाडिया से रसे माजिया, मुखे बोलो हरि हरि । हमें विश्वास और दृढ़ विश्वास के साथ मंत्र जपना चाहिए, अौर साथ साथ हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए, हमें इन्द्रिय संतुष्टि से सावधान रहना चाहिए । विषय छाडिया, विषय का मतलब है इन्द्रिय संतुष्टि । और छाडिया का मतलब है त्यागना । एक इन्द्रिय संतुष्टि को छोड़ देना चाहिए । बेशक, इस भौतिकवादी जीवन में हमें इन्द्रिय मिले हैं और हमें उन्हे इस्तेमाल करने का अभ्यास हो गया है । हम इसे रोक नहीं सकते हैं । लेकिन इसे रोकने का कोई सवाल ही नहीं है, विनियमित करना है । जैसे हम खाना चाहता हैं । विषय का मतलब है, खाना, सोना, संभोग, और बचाव । तो ये बाते पूरी तरह से वर्जित नहीं हैं । लेकिन उनको समायोजित किया जाता है ताकि मेरे कृष्ण भावनामृत को मैं कर सकूँ । इसलिए हम नहीं लेना चाहिए ... जैसे खाना । हमें सिर्फ स्वाद को संतुष्ट करने के लिए नहीं खाना चाहिए । हमें केवल उतना ही खाना चाहिए ताकि मैं तंदरुस्त रहूँ कृष्ण भावनामृत को करने के लिए । तो खाना बंद नहीं होता है, लेकिन यह नियंत्रित किया जाता है । इसी तरह, संभोग । संभोग भी नहीं रोका जाता है । लेकिन नियामक सिद्धांत यह है कि तुम्हे शादी करनी चाहिए, और तुम कृष्ण के प्रति जागरूक बच्चों को पैदा करने के लिए ही संभोग करना चाहिए । वरना मत करो । तो सब कुछ नियंत्रित है । बचाव को रोकने का कोई सवाल ही नहीं है । अर्जुन लड़ रहे थे, बचाव, कृष्ण के आदेश के तहत । तो सब कुछ है । कुछ भी नहीं बंद होता है । बस यह हमारे कृष्ण भावनामृत के संचार के लिए समायोजित किया जाता है । विषय छाडिया । हमें इन विषयों को स्वीकार नहीं करना चाहिए, शारीरिक मांगों के ये चार सिद्धांत, अर्थात्, खाना, सोना, संभोग, और बचाव, इन्द्रिय संतुष्टि के लिए । नहीं । राजनेता, वे इन्द्रिय संतुष्टि के लिए लड़ते हैं । वे लोगों की भलाई के लिए नहीं देखते हैं । अपने राजनीतिक अभ्युदय के लिए वे लड़ते हैं । इस लड़ाई को मना किया गया है । लेकिन जब लड़ाई लोगों की रक्षा के लिए आवश्यक हो , वह लड़ाई करनी चाहिए । इसलिए हमें इन्द्रिय संतुष्टि के इस सिद्धांत को त्यागना होगा या इस प्रक्रिया को । देखो देखो भाई त्रि-भुवने नाइ । फिर वे कहते हैं, "देखो, इतने दयालु और कोई नहीं हैं ।" पशू पाखी झुरे, पाषान विदरे । लेकिन उनकी दया से पक्षि और जानव भी, वे भी जीते हैं । दरअसल, जब चैतन्य महाप्रभु झारिखंड नामक जंगल से गुज़र रहे थे, मध्य भारत में, वे केवल अपने निजी परिचर के साथ थे, और वे अकेला थे, अौर जब वे जंगल से गुजर रहे थे, उन्होंने एक बाघ को छुआ । वह सो रहा था, और बाघ गर्ज कर जवाब दिया । कंपनी, चैतन्य महाप्रभु के परिच ने सोचा, "अब हम मरे ।" लेकिन वास्तव में, चैतन्य महाप्रभु नें बाघ से पूछा "क्यों तुम सो रहे हो ? बस खड़े हो जाओ. . हरे कृष्ण मंत्र जपो ।" और बाघ नृत्य करने लगा । तो वास्तव में, यह हुआ । जब चैतन्य महाप्रभु इस हरे कृष्ण आंदोलन का प्रचार करते थे , बाघ, हिरण, ... हर कोई शामिल हो जाता । तो, ज़ाहिर है, हम इतने शक्तिशाली नहीं हैं । लेकिन यह संभव है कि ... कम से कम, हमने देखा है, कुत्ते संकीर्तन में नाच रहे हैं । तो इसे लेने के लिए भी संभव है ... लेकिन हमें ऐसे महान जोखिम का प्रयास नहीं करना है । लेकिन चैतन्य महाप्रभु बाघों को प्रेरित कर सकते थे नृत्य करने के लिए, हम कम से कम हर इंसान को नृत्य करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं । यह इतना अचछा आंदोलन है । तो पशु पाखी झुरे पाषाण विदरे । पाषाण का मतलब है पत्थर । तो पत्थर दिल आदमी भी पिघल जाता है हरे कृष्ण का जाप करने से । हमने यह अनुभवी देखा है । पाषाण विदरे, शुनि जार गुण गाथा । बस भगवान चैतन्य की दिव्य लीलाओं और विशेषताओं को सुनने मात्र से, यहां तक ​​कि निर्दय पुरुष, वे भी पिघल जाते हैं । कई उदाहरण हैं, जगाई माधाई । कई पतीत आत्माऍ, वे सर्वोच्च आध्यात्मिक मंच प्राप्त करती हैं । फिर लोचन दास ठाकुर कि कहते हैं विषय मजिया रोहिलि पोरिया । "दुर्भाग्य से मैं इतना शरीर या इंद्रियों की इन मांगों में फँसा हूँ कि मैं चैतन्य महाप्रभु के चरण कमलों को भूल गया हूँ । " विषय मजिया रोहिलि पोरिया से पादे नहिलो अाश । "मैं भगवान चैतन्य के चरण कमलों से जुड़े होने की इच्छा नहीं कर सका ।" तो ऐसा क्यों होता है? तो वे विलाप कर रहे हैं कि अापन करम भुन्जये शमन कि, "मैं अपने अतीत के दुष्कर्म की वजह से पीडित हूँ, कि मैं कृष्ण भावनामृतआंदोलन की ओर आकर्षित नहीं हो सका । यह यमराज की मुझ पर एक सजा है, मौत के अधीक्षक । " दरअसल, यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन, संकीर्तन आंदोलन, बहुत अच्छा और आकर्षक है, हर सरल, मेरे कहने का मतलब है, अपरिष्कृत व्यक्ति भी आकर्षित होगा । लेकिन अगर कोई आकर्षित नहीं है, तो यह समझा जाना चाहिए कि उसे मौत के अधीक्षक के कानून द्वारा दंडित किया जा रहा है । वैसे भी, अगर हम जप के इस सिद्धांत से जुडे रहते हैं, फिर अगर यमराज भी मौत के अधीक्षक, वे भी दंडित करने में असफल होंगे । यही ब्रह्म संहिता का फैसला है । ब्रह्म संहिता कहती हैं, जो इस भक्ति जीवन को अपनाता है, उसके पूर्व जन्मों के कर्मों की प्रतिक्रिया को समायोजित किया जाता हैं तुरंत । तो हर किसी को कृष्ण भावनामृत के इस आंदोलन में हिस्सा लेना चाहिए, जाप करके, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
परम करुणा, पाहु दुइ जन, निताई गौरचंद्र । यह गीत लोचन दास ठाकुर रचित है, भगवान चैतन्य के एक महान भक्त, लगभग समकालीन उन्होंने एक पुस्तक लिखी, चैतन्य-मंगल, भगवान चैतन्य की गतिविधियों का चित्रण करते हुए । यह एक बहुत ही प्रसिद्ध पुस्तक है, चैतन्य-मंगल । और उन्होंने कई गीतों की रचना की है । व्यावहारिक रूप से सभी वैष्णव, वे दिव्य रूप से काव्यात्मक हैं । यह वैष्णव की २६ योग्यताओं में से एक है । तो वे कहते हैं कि, " ये दो भगवान," निताई गौरचंद्र, "भगवान नित्यानंद और प्रभु गौरंग, या भगवान चैतन्य, वे बहुत दयालु अवतार हैं ।" सब अवतार सार-शिरोमणि । "वे अवतारों का सार हैं ।"  
 
इस अवतार के बारे में भगवद्गीता में है, जब भी धर्म की ग्लानि होती है, और अधर्मी गतिविधियों की प्रमुखता होती है, उस समय भगवान अवतरित होते हैं या वह इस भौतिक संसार मे अवतरित होते हैं, साधुअों की रक्षा और अधर्मी का नाश करने के लिए । यही इस अवतार का मिशन है। हर अवतार में तुम दो चीजें पाअोगे। भगवान कृष्ण, वे बहुत सुंदर हैं, बहुत दयालु, लेकिन वे राक्षसों के लिए बहुत खतरनाक हैं । राक्षस उन्हें वज्र के रूप में देख रहे थे, और गोपियाँ उन्हें सबसे सुंदर कामदेव के रूप में देख रही थीं । तो भगवद्गीता में भी यह कहा गया है, ये यथा माम प्रपद्यन्ते (.गी. ४.११ )
 
भगवान का साक्षात्कार होता है आसुरी प्रवृत्तियों की स्वतंत्रता के अनुपात में । तो इस युग में... बेशक, अंतिम अवतार, कल्कि, केवल वध करेंगे । बहुत समय के बाद, वे आएँगे । लेकिन यहाँ भगवान चैतन्य, उनका मिशन मारना नहीं है, बस कृपा करना है। यही भगवान चैतन्य की विशिष्ट विशेषता है । क्योंकि इस युग में, निश्चित रुप से, अधर्म बहुत ज्यादा प्रमुख है । लेकिन अगर भगवान चैतन्य उन्हें मारना चाहते, तो उनकी मुक्ति का कोई सवाल ही नहीं था । वे होंगे... निश्चित ही, जो कोई भी अवतार द्वारा मारा जाता है उसे भी मोक्ष मिलता है । लेकिन आध्यात्मिक ग्रहों के लिए नहीं, बल्कि वे लीन हो जाते हैं ब्रह्म ज्योती में जैसे मायावादी चाहते हैं । दूसरे शब्दों में, मायावादियों का मोक्ष पाने का लक्ष्य , भगवान के शत्रुओं की मुक्ति के लक्ष्य के समान ही है । यह एक बहुत ही मुश्किल काम नहीं है ।  
 
तो भगवान चैतन्य दयालु है, क्योंकि वे सबको गले लगा रहे हैं कृष्ण प्रेम प्रदान करके । रूप गोस्वामी नें भगवान चैतन्य को वर्णित किया है सभी अवतारों में सबसे दयालु के रूप में, क्योंकि वे हर किसी को कृष्ण दे रहे हैं, किसी भी योग्यता के बिना । तो लोचन दास ठाकुर कहते हैं परम करुणा, पाहु दुइ जन, निताई गौरचंद्र । और वे सब अवतारों के सार हैं । केवल अानंद-कन्द । और उनके उपदेश करने की कला बहुत मधुर है । चैतन्य महाप्रभु सलाह देते हैं, "तुम हरे कृष्ण का जप करो, अच्छी तरह से नृत्य करो, और जब तुम थकान महसूस करते हो, तो बस आराम करो और कृष्ण प्रसाद पाअो ।" " तो उनका फार्मूला बहुत मनभावन है । केवल अानंद-कन्द । जब वे जगन्नाथ पुरी में थे, हर दिन शाम को, नृत्य, जप अौर नृत्य जारी रहता । अौर नृत्य समाप्त होने के बाद, वे दिल खोल कर जगन्नाथ का प्रसाद वितरित करते । इतने हजारों लोग हर रात को इकट्ठा होते ।  
 
तो यह आंदोलन केवल दिव्य अानंद है । केवल अानंद-कन्द । फिर वे सलाह देते हैं, भजो भजो भाई, चैतन्य निताई "मेरे प्यारे भाई, बस इन दो भगवानों का भजन करने का प्रयास करो, चैतन्य और नित्यानंद ।" सुदृढ विशवास कोरि, "विश्वास और दृढता के साथ ।" हमें भगवान चैतन्य के शब्दों पर भरोसा होना चाहिए । भगवान चैतन्य का कहना है कि, "बस जप करते रहो । केवल जप से, हमें जीवन की सभी पूर्णता मिल जाएगी ।" तो यह एक तथ्य है । जब तक हम जप नहीं करते हैं, हमें साक्षात्कार नहीं होगा, लेकिन जो जप कर रहे हैं, वे अनुभव कर रहे हैं कि उन्हें बहुत जल्दी जीवन की सभी वांछित पूर्णता प्राप्त हो रही है । इसलिए हमें आस्था और दृढ़ विश्वास के साथ इस मंत्र का जप करना चाहिए । लेकिन इस संबंध में आवश्यक योग्यता केवल यह है, वे कहते हैं, विषय छाड़िया से रसे मजिया, मुखे बोलो हरि हरि ।  
 
हमें आस्था और दृढ़ विश्वास के साथ मंत्र जपना चाहिए, अौर साथ ही साथ हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए, हमें इन्द्रिय संतुष्टि से सावधान रहना चाहिए । विषय छाड़िया, विषय का मतलब है इन्द्रिय संतुष्टि । और छाड़िया का मतलब है त्यागना । व्यक्ति को इन्द्रिय संतुष्टि को छोड़ देना चाहिए । बेशक, इस भौतिकवादी जीवन में हमें इन्द्रियाँ मिली हैं और हमें उन्हे इस्तेमाल करने का अभ्यास हो गया है । हम इसे रोक नहीं सकते हैं । लेकिन इसे रोकने का कोई सवाल ही नहीं है, विनियमित करना है । जैसे हम खाना चाहते हैं । विषय का मतलब है, खाना, सोना, संभोग और बचाव । तो ये बाते पूरी तरह से वर्जित नहीं हैं । लेकिन उन्हें समायोजित किया जाता है ताकि मैं कृष्णभावनामृत  का पालन कर सकूँ ।  
 
इसलिए हमें नहीं लेना चाहिए ... जैसे खाना । हमें सिर्फ स्वाद को संतुष्ट करने के लिए नहीं खाना चाहिए । हमें केवल उतना ही खाना चाहिए जिससे मैं कृष्णभावनामृत का पालन करने के लिए तंदरुस्त रह सकूँ । तो खाना बंद नहीं होता है, लेकिन यह नियंत्रित किया जाता है । इसी तरह, संभोग । संभोग भी नहीं रोका जाता है । लेकिन सिद्धांत यह है कि तुम्हें शादी करनी चाहिए, और तुम्हें कृष्ण भावनाभावित बच्चों को पैदा करने के लिए ही संभोग करना चाहिए । वरना मत करो । तो सब कुछ नियंत्रित है । बचाव को रोकने का कोई सवाल ही नहीं है । अर्जुन लड़ रहे थे, बचाव, कृष्ण के आदेश के अनुसार । तो सब कुछ है । कुछ भी बंद नहीं होता है । बस यह हमारे कृष्णभावनामृत के संचार के लिए समायोजित किया जाता है ।  
 
विषय छाड़िया । हमें इन विषयों को स्वीकार नहीं करना चाहिए, शारीरिक मांगों के ये चार सिद्धांत अर्थात्, खाना, सोना, संभोग और बचाव, इन्द्रिय संतुष्टि के लिए । नहीं । राजनेता, वे इन्द्रिय संतुष्टि के लिए लड़ते हैं । वे लोगों की भलाई नहीं देखते हैं । अपने राजनीतिक अभ्युदय के लिए वे लड़ते हैं । इस लड़ाई को मना किया गया है । लेकिन जब लड़ाई लोगों की रक्षा के लिए आवश्यक हो, वह लड़ाई करनी चाहिए । इसलिए हमें इन्द्रिय संतुष्टि के इस सिद्धांत को त्यागना होगा या इस प्रक्रिया को । देखो देखो भाई त्रि-भुवने नाइ । फिर वे कहते हैं, "देखो, इतना दयालु और कोई नहीं हैं ।" पशु पाखी झुरे, पाषाण विदरे । लेकिन उनकी दया से पक्षी और जानवर भी, वे भी जीते हैं ।  
 
दरअसल, जब चैतन्य महाप्रभु झारिखंड नामक जंगल से गुज़र रहे थे, मध्य भारत में, वे केवल अपने निजी परिचर के साथ थे, और वे अकेले थे, अौर जब वे जंगल से गुज़र रहे थे, उन्होंने एक बाघ को छुआ । वह सो रहा था, और बाघ ने गरज कर जवाब दिया । कंपनी, चैतन्य महाप्रभु के परिचर ने सोचा, "अब हम मरे ।" लेकिन वास्तव में, चैतन्य महाप्रभु नें बाघ से पूछा, "तुम क्यों सो रहे हो ? खड़े हो जाओ... हरे कृष्ण मंत्र जपो ।" और बाघ नृत्य करने लगा । तो वास्तव में, यह हुआ । जब चैतन्य महाप्रभु इस हरे कृष्ण आंदोलन का प्रचार करते थे , बाघ, हिरण, ... हर कोई शामिल हो जाता । तो, ज़ाहिर है, हम इतने शक्तिशाली नहीं हैं । लेकिन यह संभव है कि ... कम से कम, हमने देखा है, कुत्ते संकीर्तन में नाच रहे हैं । तो इसे लेने के लिए भी संभव है ... लेकिन हम इस तरह के महान खतरे को नहीं उठा सकते हैं । लेकिन चैतन्य महाप्रभु बाघों को नृत्य करने के लिए प्रेरित कर सकते थे, हम कम से कम हर इंसान को नृत्य करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं । यह इतना अच्छा आंदोलन है ।  
 
तो पशु पाखी झुरे पाषाण विदरे । पाषाण का मतलब है पत्थर । तो पत्थर-दिल आदमी भी पिघल जाता है हरे कृष्ण का जप करने से । हमने यह अनुभव किया है । पाषाण विदरे, शुनि जार गुणगाथा । बस भगवान चैतन्य की दिव्य लीलाओं और विशेषताओं को सुनने मात्र से, यहाँ तक कि निर्दय पुरुष, वे भी पिघल जाते हैं । कई उदाहरण हैं, जगाई माधाई । कई पतित आत्माएँ, वे सर्वोच्च आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करती हैं । फिर लोचन दास ठाकुर कहते हैं विषय मजिया रोहिली पोरिया । "दुर्भाग्य से मैं शरीर या इंद्रियों की इन मांगों में इतना फँसा हूँ, कि मैं चैतन्य महाप्रभु के चरण कमलों को भूल गया हूँ ।  
 
" विषय मजिया रोहिली पोरिया, से पदे नहिलो अाश । "मैं भगवान चैतन्य के चरण कमलों से जुड़े रहने की इच्छा नहीं कर सका ।" तो ऐसा क्यों होता है ? तो वे विलाप कर रहे हैं कि अापन करम भुञ्जाये शमन, कि, "मैं अपने पिछले दुष्कर्मों के कारण पीड़ित हूँ, कि मैं कृष्णभावनामृतआंदोलन की ओर आकर्षित नहीं हो सका । यह यमराज की मेरे लिए एक सज़ा है, मृत्यु के अधीक्षक । " दरअसल, यह कृष्णभावनामृत आंदोलन, संकीर्तन आंदोलन, बहुत अच्छा और आकर्षक है, हर सरल, मेरे कहने का मतलब है, अपरिष्कृत व्यक्ति भी आकर्षित होगा । लेकिन अगर कोई आकर्षित नहीं है, तो यह समझा जाना चाहिए कि उसे मृत्यु के अधीक्षक के कानून द्वारा दंडित किया जा रहा है ।  
 
वैसे भी, अगर हम जप के इस सिद्धांत से जुडे़ रहते हैं, फिर अगर यमराज भी, मृत्यु के अधीक्षक, वे भी दंडित करने में असफल होंगे । यही ब्रह्म-संहिता का फैसला है । ब्रह्म-संहिता कहती है, जो इस भक्तिमय जीवन को अपनाता है, उसके पूर्व जन्मों के प्रतिक्रियाओं को तुरंत समायोजित किया जाता है  । तो हर किसी को कृष्णभावनामृत के इस आंदोलन में हिस्सा लेना चाहिए, जप करके, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।  
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Latest revision as of 09:51, 12 February 2019



Purport to Parama Koruna -- Los Angeles, January 16, 1969

परम करुणा, पाहु दुइ जन, निताई गौरचंद्र । यह गीत लोचन दास ठाकुर रचित है, भगवान चैतन्य के एक महान भक्त, लगभग समकालीन । उन्होंने एक पुस्तक लिखी, चैतन्य-मंगल, भगवान चैतन्य की गतिविधियों का चित्रण करते हुए । यह एक बहुत ही प्रसिद्ध पुस्तक है, चैतन्य-मंगल । और उन्होंने कई गीतों की रचना की है । व्यावहारिक रूप से सभी वैष्णव, वे दिव्य रूप से काव्यात्मक हैं । यह वैष्णव की २६ योग्यताओं में से एक है । तो वे कहते हैं कि, " ये दो भगवान," निताई गौरचंद्र, "भगवान नित्यानंद और प्रभु गौरंग, या भगवान चैतन्य, वे बहुत दयालु अवतार हैं ।" सब अवतार सार-शिरोमणि । "वे अवतारों का सार हैं ।"

इस अवतार के बारे में भगवद्गीता में है, जब भी धर्म की ग्लानि होती है, और अधर्मी गतिविधियों की प्रमुखता होती है, उस समय भगवान अवतरित होते हैं या वह इस भौतिक संसार मे अवतरित होते हैं, साधुअों की रक्षा और अधर्मी का नाश करने के लिए । यही इस अवतार का मिशन है। हर अवतार में तुम दो चीजें पाअोगे। भगवान कृष्ण, वे बहुत सुंदर हैं, बहुत दयालु, लेकिन वे राक्षसों के लिए बहुत खतरनाक हैं । राक्षस उन्हें वज्र के रूप में देख रहे थे, और गोपियाँ उन्हें सबसे सुंदर कामदेव के रूप में देख रही थीं । तो भगवद्गीता में भी यह कहा गया है, ये यथा माम प्रपद्यन्ते (भ.गी. ४.११ ) ।

भगवान का साक्षात्कार होता है आसुरी प्रवृत्तियों की स्वतंत्रता के अनुपात में । तो इस युग में... बेशक, अंतिम अवतार, कल्कि, केवल वध करेंगे । बहुत समय के बाद, वे आएँगे । लेकिन यहाँ भगवान चैतन्य, उनका मिशन मारना नहीं है, बस कृपा करना है। यही भगवान चैतन्य की विशिष्ट विशेषता है । क्योंकि इस युग में, निश्चित रुप से, अधर्म बहुत ज्यादा प्रमुख है । लेकिन अगर भगवान चैतन्य उन्हें मारना चाहते, तो उनकी मुक्ति का कोई सवाल ही नहीं था । वे होंगे... निश्चित ही, जो कोई भी अवतार द्वारा मारा जाता है उसे भी मोक्ष मिलता है । लेकिन आध्यात्मिक ग्रहों के लिए नहीं, बल्कि वे लीन हो जाते हैं ब्रह्म ज्योती में जैसे मायावादी चाहते हैं । दूसरे शब्दों में, मायावादियों का मोक्ष पाने का लक्ष्य , भगवान के शत्रुओं की मुक्ति के लक्ष्य के समान ही है । यह एक बहुत ही मुश्किल काम नहीं है ।

तो भगवान चैतन्य दयालु है, क्योंकि वे सबको गले लगा रहे हैं कृष्ण प्रेम प्रदान करके । रूप गोस्वामी नें भगवान चैतन्य को वर्णित किया है सभी अवतारों में सबसे दयालु के रूप में, क्योंकि वे हर किसी को कृष्ण दे रहे हैं, किसी भी योग्यता के बिना । तो लोचन दास ठाकुर कहते हैं परम करुणा, पाहु दुइ जन, निताई गौरचंद्र । और वे सब अवतारों के सार हैं । केवल अानंद-कन्द । और उनके उपदेश करने की कला बहुत मधुर है । चैतन्य महाप्रभु सलाह देते हैं, "तुम हरे कृष्ण का जप करो, अच्छी तरह से नृत्य करो, और जब तुम थकान महसूस करते हो, तो बस आराम करो और कृष्ण प्रसाद पाअो ।" " तो उनका फार्मूला बहुत मनभावन है । केवल अानंद-कन्द । जब वे जगन्नाथ पुरी में थे, हर दिन शाम को, नृत्य, जप अौर नृत्य जारी रहता । अौर नृत्य समाप्त होने के बाद, वे दिल खोल कर जगन्नाथ का प्रसाद वितरित करते । इतने हजारों लोग हर रात को इकट्ठा होते ।

तो यह आंदोलन केवल दिव्य अानंद है । केवल अानंद-कन्द । फिर वे सलाह देते हैं, भजो भजो भाई, चैतन्य निताई । "मेरे प्यारे भाई, बस इन दो भगवानों का भजन करने का प्रयास करो, चैतन्य और नित्यानंद ।" सुदृढ विशवास कोरि, "विश्वास और दृढता के साथ ।" हमें भगवान चैतन्य के शब्दों पर भरोसा होना चाहिए । भगवान चैतन्य का कहना है कि, "बस जप करते रहो । केवल जप से, हमें जीवन की सभी पूर्णता मिल जाएगी ।" तो यह एक तथ्य है । जब तक हम जप नहीं करते हैं, हमें साक्षात्कार नहीं होगा, लेकिन जो जप कर रहे हैं, वे अनुभव कर रहे हैं कि उन्हें बहुत जल्दी जीवन की सभी वांछित पूर्णता प्राप्त हो रही है । इसलिए हमें आस्था और दृढ़ विश्वास के साथ इस मंत्र का जप करना चाहिए । लेकिन इस संबंध में आवश्यक योग्यता केवल यह है, वे कहते हैं, विषय छाड़िया से रसे मजिया, मुखे बोलो हरि हरि ।

हमें आस्था और दृढ़ विश्वास के साथ मंत्र जपना चाहिए, अौर साथ ही साथ हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए, हमें इन्द्रिय संतुष्टि से सावधान रहना चाहिए । विषय छाड़िया, विषय का मतलब है इन्द्रिय संतुष्टि । और छाड़िया का मतलब है त्यागना । व्यक्ति को इन्द्रिय संतुष्टि को छोड़ देना चाहिए । बेशक, इस भौतिकवादी जीवन में हमें इन्द्रियाँ मिली हैं और हमें उन्हे इस्तेमाल करने का अभ्यास हो गया है । हम इसे रोक नहीं सकते हैं । लेकिन इसे रोकने का कोई सवाल ही नहीं है, विनियमित करना है । जैसे हम खाना चाहते हैं । विषय का मतलब है, खाना, सोना, संभोग और बचाव । तो ये बाते पूरी तरह से वर्जित नहीं हैं । लेकिन उन्हें समायोजित किया जाता है ताकि मैं कृष्णभावनामृत का पालन कर सकूँ ।

इसलिए हमें नहीं लेना चाहिए ... जैसे खाना । हमें सिर्फ स्वाद को संतुष्ट करने के लिए नहीं खाना चाहिए । हमें केवल उतना ही खाना चाहिए जिससे मैं कृष्णभावनामृत का पालन करने के लिए तंदरुस्त रह सकूँ । तो खाना बंद नहीं होता है, लेकिन यह नियंत्रित किया जाता है । इसी तरह, संभोग । संभोग भी नहीं रोका जाता है । लेकिन सिद्धांत यह है कि तुम्हें शादी करनी चाहिए, और तुम्हें कृष्ण भावनाभावित बच्चों को पैदा करने के लिए ही संभोग करना चाहिए । वरना मत करो । तो सब कुछ नियंत्रित है । बचाव को रोकने का कोई सवाल ही नहीं है । अर्जुन लड़ रहे थे, बचाव, कृष्ण के आदेश के अनुसार । तो सब कुछ है । कुछ भी बंद नहीं होता है । बस यह हमारे कृष्णभावनामृत के संचार के लिए समायोजित किया जाता है ।

विषय छाड़िया । हमें इन विषयों को स्वीकार नहीं करना चाहिए, शारीरिक मांगों के ये चार सिद्धांत अर्थात्, खाना, सोना, संभोग और बचाव, इन्द्रिय संतुष्टि के लिए । नहीं । राजनेता, वे इन्द्रिय संतुष्टि के लिए लड़ते हैं । वे लोगों की भलाई नहीं देखते हैं । अपने राजनीतिक अभ्युदय के लिए वे लड़ते हैं । इस लड़ाई को मना किया गया है । लेकिन जब लड़ाई लोगों की रक्षा के लिए आवश्यक हो, वह लड़ाई करनी चाहिए । इसलिए हमें इन्द्रिय संतुष्टि के इस सिद्धांत को त्यागना होगा या इस प्रक्रिया को । देखो देखो भाई त्रि-भुवने नाइ । फिर वे कहते हैं, "देखो, इतना दयालु और कोई नहीं हैं ।" पशु पाखी झुरे, पाषाण विदरे । लेकिन उनकी दया से पक्षी और जानवर भी, वे भी जीते हैं ।

दरअसल, जब चैतन्य महाप्रभु झारिखंड नामक जंगल से गुज़र रहे थे, मध्य भारत में, वे केवल अपने निजी परिचर के साथ थे, और वे अकेले थे, अौर जब वे जंगल से गुज़र रहे थे, उन्होंने एक बाघ को छुआ । वह सो रहा था, और बाघ ने गरज कर जवाब दिया । कंपनी, चैतन्य महाप्रभु के परिचर ने सोचा, "अब हम मरे ।" लेकिन वास्तव में, चैतन्य महाप्रभु नें बाघ से पूछा, "तुम क्यों सो रहे हो ? खड़े हो जाओ... हरे कृष्ण मंत्र जपो ।" और बाघ नृत्य करने लगा । तो वास्तव में, यह हुआ । जब चैतन्य महाप्रभु इस हरे कृष्ण आंदोलन का प्रचार करते थे , बाघ, हिरण, ... हर कोई शामिल हो जाता । तो, ज़ाहिर है, हम इतने शक्तिशाली नहीं हैं । लेकिन यह संभव है कि ... कम से कम, हमने देखा है, कुत्ते संकीर्तन में नाच रहे हैं । तो इसे लेने के लिए भी संभव है ... लेकिन हम इस तरह के महान खतरे को नहीं उठा सकते हैं । लेकिन चैतन्य महाप्रभु बाघों को नृत्य करने के लिए प्रेरित कर सकते थे, हम कम से कम हर इंसान को नृत्य करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं । यह इतना अच्छा आंदोलन है ।

तो पशु पाखी झुरे पाषाण विदरे । पाषाण का मतलब है पत्थर । तो पत्थर-दिल आदमी भी पिघल जाता है हरे कृष्ण का जप करने से । हमने यह अनुभव किया है । पाषाण विदरे, शुनि जार गुणगाथा । बस भगवान चैतन्य की दिव्य लीलाओं और विशेषताओं को सुनने मात्र से, यहाँ तक कि निर्दय पुरुष, वे भी पिघल जाते हैं । कई उदाहरण हैं, जगाई माधाई । कई पतित आत्माएँ, वे सर्वोच्च आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करती हैं । फिर लोचन दास ठाकुर कहते हैं विषय मजिया रोहिली पोरिया । "दुर्भाग्य से मैं शरीर या इंद्रियों की इन मांगों में इतना फँसा हूँ, कि मैं चैतन्य महाप्रभु के चरण कमलों को भूल गया हूँ ।

" विषय मजिया रोहिली पोरिया, से पदे नहिलो अाश । "मैं भगवान चैतन्य के चरण कमलों से जुड़े रहने की इच्छा नहीं कर सका ।" तो ऐसा क्यों होता है ? तो वे विलाप कर रहे हैं कि अापन करम भुञ्जाये शमन, कि, "मैं अपने पिछले दुष्कर्मों के कारण पीड़ित हूँ, कि मैं कृष्णभावनामृतआंदोलन की ओर आकर्षित नहीं हो सका । यह यमराज की मेरे लिए एक सज़ा है, मृत्यु के अधीक्षक । " दरअसल, यह कृष्णभावनामृत आंदोलन, संकीर्तन आंदोलन, बहुत अच्छा और आकर्षक है, हर सरल, मेरे कहने का मतलब है, अपरिष्कृत व्यक्ति भी आकर्षित होगा । लेकिन अगर कोई आकर्षित नहीं है, तो यह समझा जाना चाहिए कि उसे मृत्यु के अधीक्षक के कानून द्वारा दंडित किया जा रहा है ।

वैसे भी, अगर हम जप के इस सिद्धांत से जुडे़ रहते हैं, फिर अगर यमराज भी, मृत्यु के अधीक्षक, वे भी दंडित करने में असफल होंगे । यही ब्रह्म-संहिता का फैसला है । ब्रह्म-संहिता कहती है, जो इस भक्तिमय जीवन को अपनाता है, उसके पूर्व जन्मों के प्रतिक्रियाओं को तुरंत समायोजित किया जाता है । तो हर किसी को कृष्णभावनामृत के इस आंदोलन में हिस्सा लेना चाहिए, जप करके, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।