HI/Prabhupada 0431 - भगवान वास्तव में सभी जीव के सही दोस्त हैं

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Lecture on BG 2.11 -- Edinburgh, July 16, 1972

खुशी के लिए, तीन चीजें हैं समझने के लिए । भगवद गीता में कहा गया है ।

भोक्तारम् यज्ञ-तपसाम
सर्व-लोक-महेश्वरम
सुह्रदम सर्व-भूतानाम्
ज्ञात्वा माम शान्तिम ऋच्छति
(भ.गी. ५.२९)

तुम्हे केवल तीन चीजों को समझना होगा तो तुम शांत हो जाअोगे । वह क्या है? पहली बात यह है कि "भगवान भोगी हैं, मैं भोगी नहीं हूँ ।" लेकिन यहाँ, हमारी गलती है, हर कोई सोच रहा है "मैं भोगी हूँ ।" लेकिन वास्तव में, हम भोगी नहीं हैं । उदाहरण के लिए, क्योंकि मैं भगवान का अभिन्न अंग हूँ ... जैसे मेरा हाथ मेरे शरीर का अभिन्न अंग है । अगर हाथ एक अच्छा फल का केक पकडता है, अच्छा स्वादिष्ट केक । हाथ उसका अानन्द नहीं ले सकते है । हाथ उसे उठाता है और मुंह में डालता है । और जब वह पेट में चला जाता है, जब यह शक्ति खाने से अाती है, हाथ उसका अानन्द लेता है । न केवल इस हाथ से - ये हाथ भी, आँखें भी, पैर भी ।

इसी तरह, हम सीधे तरीके कुछ भी आनंद नहीं उठा सकते हैं । अगर हम सब कुछ भगवान के भोग के लिए करते हैं, अौर फिर हम लेते हैं, उस भोग में भाग लेते हैं, यह हमारा स्वस्थ जीवन है । यही तत्वज्ञान है । हम कुछ भी नहीं लेते हैं । भगवत-प्रसादम । भगवत-प्रसादम । हमारा तत्वज्ञान है कि हम अच्छा खाद्य पदार्थ तैयार करते हैं और कृष्ण को अर्पण करते हैं, और उनके खाने के बाद, हम उसे लेते हैं । यही हमारा तत्वज्ञान है । हम कुछ भी नहीं लेते हैं जो कृष्ण को अर्पण न किया गया हो । इसलिए हम कह रहे हैं कि भगवान परम भोगी हैं । हम भोगी नहीं हैं । हम सभी अधीनस्थ हैं ।

तो, भोक्तारम् यज्ञ-तपसाम सर्व-लोक-महेश्वरम (भ.गी. ५.२९) | और भगवान हर वस्तु के मालिक हैं । यह एक तथ्य है । अब मान लो इतना बड़ा सागर । क्या आप मालिक हैं? हम दावा कर रहे हैं कि मैं इस भूमि या इस समुद्र का मालिक हूँ । लेकिन वास्तव में, मेरे जन्म से पहले, समुद्र था, जमीन थी, और मेरी मौत के बाद, समुद्र रहेगा, जमीन रहेगी । मैं मालिक कैसे हुअा? जैसे इस हॉल में । हमारे इस हॉल में प्रवेश करने से पहले, हॉल विद्यमान था, और हमारे इस हॉल को छोड़ने के बाद, हॉल मौजूद रहेगा । तो फिर हम मालिक कैसे बने? अगर हम झूठा दावा करते हैं कि एक घंटे या आधे घंटे के लिए यहां बैठे कर, हम मालिक बन गए हैं, तो यह गलत धारणा है । तो हमें यह समझना है कि हम न तो मालिक हैं और न ही भोगी । भोक्तारम यज्ञ ... भगवान भोगी हैं । और भगवान मालिक है । सर्व-लोक-महेश्वरम ।

और सुह्रदम सर्व भूतानाम (भ.गी. ५.२९) , वे हर किसी के सबसे अच्छे दोस्त हैं । वे केवल मानव समाज के ही दोस्त नहीं हैं । वे पशु समाज के दोस्त हैं । क्योंकि हर जीव भगवान का बेटा है । कैसे हम अादमी के साथ अलग अौर जानवर के साथ अलग तरीके से व्यवहार कर सकते हैं ? नहीं । भगवान वास्तव में सभी जीव के सही दोस्त हैं । अगर हम केवल इन तीन बातों को समझते हैं, तो हम तुरंत शांत हो जाते हैं ।

भोक्तारम् यज्ञ-तपसाम
सर्व-लोक-महेश्वरम
सुह्रदम सर्व-भूतानाम्
ज्ञात्वा माम शान्तिम ऋच्छति
(भ.गी. ५.२९)

यह शांति की प्रक्रिया है । तुम स्थापित नहीं कर सकते ... अगर तुम्हें लगता है कि "मैं भगवान का इकलौता बेटा हूँ "और पशु, कोई आत्मा नहीं है, और चलो मारते हैं ।" यह बहुत अच्छा तत्वज्ञान नहीं है । क्यों नहीं? आत्मा होने के लक्षण क्या हैं ? आत्मा होने के लक्षण चार सूत्र हैं : सोना, संभोग, खाना, और बचाव जानवर भी इन चार बातों में व्यस्त हैं, हम भी इन चार बातों में व्यस्त हैं । फिर पशु और मेरे बीच क्या अंतर है? वैदिक साहित्य के ज्ञान में स्पष्ट अवधारणा है हर चीज़ की, विशेष रूप से वे संक्षेप रूप में है भगवद गीता यथार्थ में । तो हमारा एक ही अनुरोध है कि आप ईश्वर के प्रति जागरूक हो जाऍ । यही अवसर है ।

मानव जीवन ही अवसर है समझने के लिए कि भगवान क्या है, मैं क्या हूँ, भगवान के साथ मेरे संबंध क्या है । पशु - हम इस बैठक में बिल्लियों और कुत्तों को आमंत्रित नहीं कर सकते हैं । यह संभव नहीं है । हमने मनुष्य को आमंत्रित किया है क्योंकि वे समझ नहीं सकते हैं । तो इंसान को समझने के लिए विशेषाधिकार, विशेषाधिकार मिला है । दुर्लभम मानुषम् जन्म । इसलिए इसे दुर्लभ कहा जाता है, बहुत मुश्किल से ही हमें यह मनुष्य जीवन मिला है । अगर हम जीवन के इस रूप को समझने की कोशिश नहीं करते हैं "भगवान क्या है, मैं कौन हूँ, हमारा सम्बन्ध क्या है," तो हम आत्महत्या कर रहे हैं । क्योंकि इस जीवन के बाद, जैसे ही मैं इस शरीर को छोडूँगा, मुझे एक और शरीर को स्वीकार करना होगा । और मुझे पता नहीं है कि मैं कौन सा शरीर स्वीकार करूगा । यह मेरे हाथ में नहीं है | तुम आदेश नहीं दे सकते हो कि "अगले जीवन मुझे एक राजा बनाअो ।" यह संभव नहीं है । अगर तुम वास्तव में एक राजा बनने के लिए योग्य हो, तो प्रकृति तुम्हे राजा के घर में एक शरीर पेश करेगी । तुम ऐसा नहीं कर सकते हो । इसलिए, हमें अगला अच्छा शरीर पाने के लिए काम करना होगा । वह भी भगवद गीता में स्पष्ट किया है:

यांति देव-व्रता देवान
पितृन यांति पितृ-व्रता:
भूतानि यांति भुतेज्या यांति
मद्याजीनो अपि माम
(भ.गी. ९.२५)

तो अगर हमें अगले शरीर के लिए इस जीवन में अपने अाप को तैयार करना है, क्यों न खुद को तैयार करें शरीर पाने के लिए जो भगवद धाम जा सके । यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । हम हर आदमी को सिखा रहे हैं कि कैसे वह खुद को तैयार कर सकता है ताकि इस शरीर को छोड़ने के बाद, वह भगवान के पास सीधे जा सकता है । वापस भगवद धाम । यह भगवद गीता में कहा गया है । त्यक्तवा देहम् पुनर जन्म नैति माम एति कौन्तेय (भ.गी. ४.९) | छोडने के बाद त्यक्त्वा देहम, ... (तोड़) ... हम छोड़ना होगा । मैं इस शरीर को छोडना पसंद नहीं करता, लेकिन मुझे करना होगा । यही प्रकृति का नियम है. "मौत की तरह यकीनन ।"

मौत से पहले, अपने आप को तैयार करना होगा, अगला शरीर क्या है । अगर हम एसा नहीं कर रहे हैं, तो हम अपने आप को मार रहे हैं, आत्महत्या । तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन मानव जाति को बचाने के लिए है जीवन की शारीरिक गलत अवधारणा के कारण प्राणघातक तरीके से घायल होने से । और सरल विधि है सोलह शब्दों के जप द्वारा, या तुम वैज्ञानिक हो या दार्शनिक हो, अगर तुम वैज्ञानिक, दार्शनिक होकर सब कुछ जानना चाहते हो, हमारे पास इस तरह की बड़ी, बड़ी किताबें हैं । या तो तुम किताबें पढ़ो, या बस हमारे साथ शामिल हो जाअो और हरे कृष्ण मंत्र का जप करो । बहुत बहुत धन्यवाद ।