HI/Prabhupada 0633 - हम कृष्ण की चमकति चिंगारी जैसे हैं: Difference between revisions

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तो दुनिया की स्थिति, आत्मा की अज्ञानता के कारण वे इतनी पापी गतिविधियों को पैदा कर रहे हैं और उलझ रहे हैं । लेकिन उन्हे ज्ञान नहीं है कि कैसे वे उलझ रहे हैं । यही माया है, प्रक्षेपात्मिक-शक्ति, अावर्णात्मिक । हालांकि वह उलझ रहा है, लेकिन वह सोच रहा है कि, वह आगे बढ़ रहा है, वह वैज्ञानिक ज्ञान में आगे बढ़ रहा है। यह उनका ज्ञान है । वह सज्जन बात कर रहे थे कि वे एक खनन इंजीनियर हैं । तो खनन इंजीनियर, उसका काम है खान के भीतर बहुत आरामदायक वातावरण बनाना । कल्पना करो, वह पृथ्वी के भीतर गया है एक चूहे के बिल की तरह और वह उस चूहे के बिल को सुधार रहा है । शिक्षित होने के बाद, डिग्री मिलने के बाद, उसकी स्थिति है अंधेरे में प्रवेश करना, अंधेरा, मेरे कहने का मतलब है, पृथ्वी के अंदर और वह वैज्ञानिक उन्नति के लिए कोशिश कर रहा है खान के भीतर की हवा की सफाई द्वारा । वह दंडित है कि उसे मजबूर किया जा रहा है बहार की हवा, ताजा हवा को छोडने का । वह दंडित है पृथ्वी के भीतर जाने के लिएह, और वह वैज्ञानिक उन्नति पर गर्व करता है । यह चल रहा है । यह वैज्ञानिक उन्नति है । तो मनुते अनर्थम । यही व्यासदेव हैं । व्यासदेव, श्रीमद-भागवतम लिखने से पहले, नारद के निर्देश के तहत, उन्होंने स्थिति पर ध्यान किया । भक्ति-योगेन मनसी, सम्यक प्रणितिते अमले, अपश्यत पुरुष्म् पूर्णम् मायाम च तद अपाश्रयम ([[Vanisource:SB 1.7.4|श्री भ १।७।४]]) उन्होंने देखा, साक्षातकार किया, यहाॉ दो चीजें हैं: माया और कृष्ण । मायाम च तद अपाश्रयम । कृष्ण की शरण लेना । यह माया कृष्ण के बिना नहीं रह सकता । लेकिन कृष्ण माया से प्रभावित नहीं हैं । क्योंकि कृष्ण प्रभावित नहीं हैं, अवशोषित । लेकिन जीव, यया सम्मोहितो जीव, जीव, वे माया की उपस्थिति से प्रभावित हो जाते हैं । कृष्ण प्रभावित नहीं हैं । जैसे सूरज और धूप की तरह । धूप संयोजन है रोशन के कणों का । यही धूप है । यह वैज्ञानिक रूप से साबित किया गया है । चिंगारी , छोटे परमाणु चिंगारी, चमकती चिंगारी । तो इसी तरह, हम भी कृष्ण की चमकति चिंगारी जैसे हैं । कृष्ण की सूरज के साथ तुलना की जाती है । कृष्ण - सूर्या सम, माया हया अंधकार । अब जब बादल अाते हैं, माया, सूरज प्रभावित नहीं होता है । लेकिन छोटे कण, धूप, वे प्रभावित होते हैं । समझने की कोशिश करो । यहाँ सूरज है, और नीचे, कई लाखों मील नीचे, बादल । और बादल धूप को ढक रहा है जो संयोजन है रोशनी के कणों का । तो माया या बादल सुरज को ढक नहीं सकता है, लेकिन यह चमकती कणों को ढक सकता है । तो हम प्रभावित होते हैं । कृष्ण प्रभावित नहीं हैं ।
तो दुनिया की स्थिति, आत्मा की अज्ञानता के कारण वे इतनी पापी गतिविधियों को पैदा कर रहे हैं और उलझ रहे हैं । लेकिन उन्हे ज्ञान नहीं है कि कैसे वे उलझ रहे हैं । यही माया है, प्रक्षेपात्मिक-शक्ति, अावर्णात्मिक । हालांकि वह उलझ रहा है, लेकिन वह सोच रहा है कि, वह आगे बढ़ रहा है, वह वैज्ञानिक ज्ञान में आगे बढ़ रहा है। यह उनका ज्ञान है । वह सज्जन बात कर रहे थे कि वे एक खान के इंजीनियर हैं । तो खान के इंजीनियर, उसका काम है खान के भीतर बहुत आरामदायक वातावरण बनाना ।  
 
कल्पना करो, वह पृथ्वी के भीतर गया है एक चूहे के बिल की तरह और वह उस चूहे के बिल को सुधार रहा है । शिक्षित होने के बाद, डिग्री मिलने के बाद, उसकी स्थिति है अंधेरे में प्रवेश करना, अंधेरा, मेरे कहने का मतलब है, पृथ्वी के अंदर, और वह वैज्ञानिक उन्नति के लिए कोशिश कर रहा है खान के भीतर की हवा की सफाई द्वारा । वह दंडित है कि उसे मजबूर किया जा रहा है बहार की हवा, ताजा हवा को छोडने का । वह दंडित है पृथ्वी के भीतर जाने के लिएह, और वह वैज्ञानिक उन्नति पर गर्व करता है । यह चल रहा है । यह वैज्ञानिक उन्नति है ।  
 
तो मनुते अनर्थम । यही व्यासदेव हैं । व्यासदेव, श्रीमद-भागवतम लिखने से पहले, नारद के निर्देश के तहत, उन्होंने स्थिति पर ध्यान किया । भक्ति-योगेन मनसी, सम्यक प्रणितिते अमले, अपश्यत पुरुषम पूर्णम, मायाम च तद अपाश्रयम ([[Vanisource:SB 1.7.4|श्रीमद भागवतम १.७.४]]) | उन्होंने देखा, साक्षातकार किया, यहाँ दो चीजें हैं: माया और कृष्ण । मायाम च तद अपाश्रयम । कृष्ण की शरण लेना । यह माया कृष्ण के बिना नहीं रह सकती । लेकिन कृष्ण माया से प्रभावित नहीं हैं । क्योंकि कृष्ण प्रभावित, अवशोषित, नहीं हैं । लेकिन जीव, यया सम्मोहितो जीव, जीव, वे माया की उपस्थिति से प्रभावित हो जाते हैं । कृष्ण प्रभावित नहीं हैं ।  
 
 
जैसे सूर्य और धूप की तरह । धूप संयोजन है रोशनी के कणों का । यही धूप है । यह वैज्ञानिक रूप से साबित किया गया है । चिंगारी, छोटे परमाणु चिंगारी, चमकती चिंगारी । तो इसी तरह, हम भी कृष्ण की चमकति चिंगारी जैसे हैं । कृष्ण की सूर्य के साथ तुलना की जाती है । कृष्ण - सूर्य सम, माया हय अंधकार । अब जब बादल अाते हैं, माया, सूर्य प्रभावित नहीं होता है । लेकिन छोटे कण, धूप, वे प्रभावित होते हैं । समझने की कोशिश करो । यहाँ सूर्य है, और नीचे, कई लाखों मील नीचे, बादल । और बादल धूप को ढक रहा है जो संयोजन है रोशनी के कणों का । तो माया या बादल सूर्य को ढक नहीं सकता है, लेकिन यह चमकती कणों को ढक सकता है । तो हम प्रभावित होते हैं । कृष्ण प्रभावित नहीं हैं ।  
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Latest revision as of 17:42, 1 October 2020



Lecture on BG 2.28 -- London, August 30, 1973

तो दुनिया की स्थिति, आत्मा की अज्ञानता के कारण वे इतनी पापी गतिविधियों को पैदा कर रहे हैं और उलझ रहे हैं । लेकिन उन्हे ज्ञान नहीं है कि कैसे वे उलझ रहे हैं । यही माया है, प्रक्षेपात्मिक-शक्ति, अावर्णात्मिक । हालांकि वह उलझ रहा है, लेकिन वह सोच रहा है कि, वह आगे बढ़ रहा है, वह वैज्ञानिक ज्ञान में आगे बढ़ रहा है। यह उनका ज्ञान है । वह सज्जन बात कर रहे थे कि वे एक खान के इंजीनियर हैं । तो खान के इंजीनियर, उसका काम है खान के भीतर बहुत आरामदायक वातावरण बनाना ।

कल्पना करो, वह पृथ्वी के भीतर गया है एक चूहे के बिल की तरह और वह उस चूहे के बिल को सुधार रहा है । शिक्षित होने के बाद, डिग्री मिलने के बाद, उसकी स्थिति है अंधेरे में प्रवेश करना, अंधेरा, मेरे कहने का मतलब है, पृथ्वी के अंदर, और वह वैज्ञानिक उन्नति के लिए कोशिश कर रहा है खान के भीतर की हवा की सफाई द्वारा । वह दंडित है कि उसे मजबूर किया जा रहा है बहार की हवा, ताजा हवा को छोडने का । वह दंडित है पृथ्वी के भीतर जाने के लिएह, और वह वैज्ञानिक उन्नति पर गर्व करता है । यह चल रहा है । यह वैज्ञानिक उन्नति है ।

तो मनुते अनर्थम । यही व्यासदेव हैं । व्यासदेव, श्रीमद-भागवतम लिखने से पहले, नारद के निर्देश के तहत, उन्होंने स्थिति पर ध्यान किया । भक्ति-योगेन मनसी, सम्यक प्रणितिते अमले, अपश्यत पुरुषम पूर्णम, मायाम च तद अपाश्रयम (श्रीमद भागवतम १.७.४) | उन्होंने देखा, साक्षातकार किया, यहाँ दो चीजें हैं: माया और कृष्ण । मायाम च तद अपाश्रयम । कृष्ण की शरण लेना । यह माया कृष्ण के बिना नहीं रह सकती । लेकिन कृष्ण माया से प्रभावित नहीं हैं । क्योंकि कृष्ण प्रभावित, अवशोषित, नहीं हैं । लेकिन जीव, यया सम्मोहितो जीव, जीव, वे माया की उपस्थिति से प्रभावित हो जाते हैं । कृष्ण प्रभावित नहीं हैं ।


जैसे सूर्य और धूप की तरह । धूप संयोजन है रोशनी के कणों का । यही धूप है । यह वैज्ञानिक रूप से साबित किया गया है । चिंगारी, छोटे परमाणु चिंगारी, चमकती चिंगारी । तो इसी तरह, हम भी कृष्ण की चमकति चिंगारी जैसे हैं । कृष्ण की सूर्य के साथ तुलना की जाती है । कृष्ण - सूर्य सम, माया हय अंधकार । अब जब बादल अाते हैं, माया, सूर्य प्रभावित नहीं होता है । लेकिन छोटे कण, धूप, वे प्रभावित होते हैं । समझने की कोशिश करो । यहाँ सूर्य है, और नीचे, कई लाखों मील नीचे, बादल । और बादल धूप को ढक रहा है जो संयोजन है रोशनी के कणों का । तो माया या बादल सूर्य को ढक नहीं सकता है, लेकिन यह चमकती कणों को ढक सकता है । तो हम प्रभावित होते हैं । कृष्ण प्रभावित नहीं हैं ।