HI/Prabhupada 0645 - जिसने यह आत्मसाक्षातकार कर लिया है, वह हर जगह वृन्दावन में है

Revision as of 23:40, 8 August 2015 by Rishab (talk | contribs) (Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0645 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1969 Category:HI-Quotes - Lec...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Invalid source, must be from amazon or causelessmery.com

Lecture on BG 6.1 -- Los Angeles, February 13, 1969

प्रभुपाद: हाँ, तुम्हारा प्रश्न क्या है?

भक्त: क्या निर्जीव में क्षीरोदकशायी मौजूद हैं , चट्टानों की तरह निर्जीव चीजों में ?

प्रभुपाद: हम्म?

भक्त: क्षीरोदकशायी विष्णु निर्जीव में मौजूद हैं, पदार्थ में ?

प्रभुपाद: हाँ, हाँ, परमाणु में भी ।

भक्त: उनके चतुरभुज रूप में ...?

प्रभुपाद: अरे हाँ ।

भक्त: ... उनका क्या है.......?

प्रभुपाद: जहॉ भी वे रहते हैं, वे अपनी निजी सामग्री में रहते हैं । अणोर अणियान महतो महियान । वे सबसे बड़ा से बड़े हैं, और वह सबसे छोटे से छोटे हैं । यही विष्णु हैं । अंडांतर-स्थ-परमाणु-चयानंतर-स्थम ( ब्र स ५।३५) । परमाणू का मतलब है परमाणु . तुम परमाणु को नहीं देख सकते, , कितना छोटा है । वे परमाणु के भीतर हैं । वे हर जगह हैं ।

तमाल कृष्णा: प्रभुपाद, आपने हमें बताया कि कृष्ण जहाँ हैं, वही वृन्दावन है । मैं सोच रहा था, अगर कृष्ण हमारे हृदय के भीतर मौजूद हैM, क्या इसका मतलब यह है कि हमारे हृदय में ...

प्रभुपाद: हाँ । जिसने यह अात्मसाक्षातकार कर लिया है, वह वृन्दावन में है हर जगह । अात्मसाक्षात्कार जीव हमेशा वृन्दावन में रह रहा है । चैतन्य महाप्रभु ने कहा है । जिसने कृष्ण का अात्मसाक्षात्कार कर लिया है, फिर वह हमेशा वृन्दावन में रह रहा है । वह कहीं नहीं है ... जैसे कृष्ण या विष्णु हर किसी के हृदय में रह रहे हैं, लेकिन वे कुत्ते के दिल में भी रह रहे हैं । क्या इसका मतलब है कि वे कुत्ते की प्रवृत्ति रखते हैं ? वे वैकुण्ठ में रह रहे हैं । हालांकि वे कुत्ते के हृदय में रह रहे हैं, लेकिन वे वैकुण्ठ में रह रहे हैं । इसी प्रकार एक भक्त किसी जगह में रह रहा हो जो वृन्दावन से दूर है, लेकिन वह वृन्दावन में रह रहा है । यह एक तथ्य है । हां । (समाप्त)