HI/Prabhupada 0669 - मन को केंद्रित करने का मतलब है कृष्ण में अपने मन को दृढ करना

Revision as of 19:04, 17 September 2020 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0019: LinkReviser - Revise links, localize and redirect them to the de facto address)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Lecture on BG 6.16-24 -- Los Angeles, February 17, 1969

भक्त: श्लोक संख्या सत्रह: "जो खाने, सोने, अामोद-प्रमोद तथा काम करने की अादतों में नियमित रहता है, वह योगाभ्यास द्वारा समस्त भौतिक क्लेशों को नष्ट कर सकता है (भ.गी. ६.१७) ।"

प्रभुपाद: हाँ, तुम बस... एक तथाकथित योग कक्षा में भाग लेने का कोई सवाल ही नहीं है और पांच रुपए या पाँच डॉलर शुल्क का भुगतान करना अपना वज़न कम करने के लिए, इत्यादि, अपने स्वास्थ्य को ठीक रखना । तुम केवल अभ्यास करो । यह अभ्यास: जरूरत के हिसाब से खाना, जरूरत के हिसाब से सोना । तुम्हारा स्वास्थ्य उत्तम होगा । किसी भी बाहरी मदद की कोई जरूरत नहीं है । बस इस अभ्यास को करके तुम्हारा सब कुछ ठीक होगा । अागे पढो ।

भक्त: श्लोक संख्या अठारह: "जब योगी, योगाभ्यास द्वारा, अपने मानसिक कार्यो को वश में कर लेता है अौर आध्यात्म में स्थित हो जाता है, समस्त भौतिक इच्छाअों से रहित, तब बह योग में सुस्थिर कहा जाता है (भ.गी. ६.१८) ।"

प्रभुपाद: हाँ । मन को संतुलन में रखना । यह योग की पूर्णता है । मन को रखना... तो फिर कैसे करें ? अगर तुम... भौतिक क्षेत्र में तुम मन को संतुलन में नहीं रख सकते । यह संभव नहीं है । उदाहरण के लिए इस भगवद-गीता को लो । अगर तुम दैनिक चार बार पढ़ते हो, तो तुम थकोगे नहीं । लेकिन किसी भी अन्य पुस्तक को लो, एक घंटा पढ़ने के बाद तुम थक जाअोगे । यह जप, हरे कृष्ण । तुम पूरे दिन और रात मंत्र जप करो, अौर नाचो, तुम थकोगे नहीं । लेकिन कोई और नाम लो । सिर्फ आधे घंटे के बाद, समाप्त । यह परेशानी है । तुम समझ रह हो ? इसलिए मन को केंद्रित करने का मतलब है कृष्ण में अपने मन को दृढ करना, समाप्त, सभी योग । तुम पूर्ण योगी हो । तुम्हे कुछ भी करने को ज़रूरत नहीं है । केवल अपने मन को दृढ करो ।

स वै मन: कृष्ण पदारविन्दयोर वाचांसी वैकुण्ठ (श्रीमद भागवतम ९.४.१८) - अगर तुम बात करते हो, तो तुम कृष्ण की बात करो । अगर तुम खाते हो, कृष्ण के लिए खाअो । यदि तुम सोचते हो, कृष्ण के बारे में सोचो । अगर तुम काम करते हो, कृष्ण के लिए काम करो । तो इस तरह, यह योग अभ्यास परिपूर्ण हो जाएगा । अन्यथा नहीं । और यही योग की पूर्णता है । सभी भौतिक इच्छाओं से रहित । अगर तुम केवल कृष्ण के लिए इच्छुक हो तो सांसारिक इच्छा की गुंजाइश कहॉ है? समाप्त, सभी सांसारिक इच्छा समाप्त । तुम्हे कृत्रिम रूप से इसके लिए प्रयास करना नहीं है । "ओह, मैं किसी अच्छी लड़की को नहीं देखूँगा । मैं अपनी आँखें बंद कर लूँगा ।" तुम ऐसा नहीं कर सकते ।

लेकिन अगर तुम कृष्ण भावनामृत में अपने मन को दृढ करते हो तो तुम इतनी सारी खूबसूरत लड़कियों के साथ नाच रहे हो । सब ठीक है, भाई और बहन होने से कोई सवाल ही नहीं है । यह व्यावहारिक है - योग की पूर्णता | कृत्रिम रूप से तुम ऐसा नहीं कर सकते हो । केवल कृष्ण भावनामृत में सभी पूर्णता है । यह समझने की कोशिश करो । सभी पूर्णता । क्योंकि यह आध्यात्मिक मंच है । आध्यात्मिक मंच है शाश्वत, आनंदित और ज्ञान से भरा । इसलिए कोई गलतफहमी नहीं है । हाँ, अागे पढो ।