HI/Prabhupada 0882 - कृष्ण बहुत उत्सुक हैं हमें परम धाम ले जाने के लिए, पर हम ज़िद्दी हैं: Difference between revisions
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तुम सीमित ज्ञान के द्वारा असीमित को नहीं समझ सकते हो । यह संभव नहीं | तुम सीमित ज्ञान के द्वारा असीमित को नहीं समझ सकते हो । यह संभव नहीं है । तो, कुंती देवी जैसे भक्तों की कृपा से, हम समझ सकते हैं कि यहाँ वासुदेव हैं । सर्वव्यापी निरपेक्ष सत्य, परमात्मा, वासुदेव, यहाँ है। कृष्णाय वासुदेवाय ([[Vanisource: SB 1.8.21|श्रीमद भागवतम १.८.२१]]) । तो वासुदेव विचार संभव है मायावादियों के लिए बहुत से, कई जन्मों के बाद । बहुत आसानी से नहीं । बहुनाम जन्मनाम अंते ज्ञानवान माम प्रपद्यते वासुदेव: सर्वम इति स महात्मा सुदुर्लभ: ([[Vanisource: BG 7.19 (1972)|भ.गी. ७.१९]]) | सुदुर्लभ:, "बहुत दुर्लभ," महात्मा, "उदार" । लेकिन जो कृष्ण को नहीं समझ सकता है, वे कृपण है । वे उदार नहीं हैं । अगर कोई उदार होता है, कृष्ण की कृपा से, वह कृष्ण को समझ सकता है । | ||
सेवोन्मुखे हि जिह्वादौ (भक्ति रसामृत सिंधु १.२.२३४) । प्रकिया है सेवनमुखे, सेवा । सेवा, जीभ से शुरुआत, वासुदेव साक्षात्कार संभव है । सेवा, पहली सेवा श्रवणम कीर्तनम है ([[Vanisource: SB 7.5.23|श्रीमद भागवतम् ७.५.२३]]) । हरे कृष्ण मंत्र का जप करो और बार-बार सुनो और प्रसादम लो । ये जीभ के दो काम हैं । तो आपको साक्षात्कार होगा । बहुत ही सरल विधि है । सेवोन्मुखे हि जिह्वादौ स्वयम... कृष्ण बोध कराएँगे, एेसा नहीं है कि तुम्हारे प्रयास से तुम कृष्ण को समझ सकते हो, लेकिन तुम्हारा प्रयास प्रेम से सेवा करना है, यह तुम्हें योग्य बनाएगा । कृष्ण बोध कराएँगे । स्वयम एव स्फुरति अद: । कृष्ण बहुत ज्यादा उत्कंठित हैं तुम्हें परम धाम ले जाने के लिए । लेकिन हम जिद्दी हैं । हम नहीं चाहते । | |||
तो वे हमेशा ढूँढ रहे हैं अवसर कि कैसे तुम्हें परम धाम ले जाया जाए । जैसे स्नेहिल पिता । धूर्त बेटे ने अपने पिता को छोड़ दिया, गली में घूम रहा है और कोई आश्रय, भोजन नहीं है, इतना दुःख । पिता लड़के को घर लाने के लिए अधिक उत्सुक है । इसी तरह, कृष्ण परम पिता हैं । ये सभी जीव इस भौतिक दुनिया में वे वैसे ही हैं जैसे एक बड़े अमीर आदमी का गुमराह बच्चा सड़क पर घूम रहा है । | |||
तो मानव समाज का सबसे बड़ा लाभ है उसे कृष्ण भावनामृत देना । महानतम... तुम कोई लाभ नहीं दे सकते हो; कोई भी भौतिक लाभ जीव को संतुष्ट नहीं करेगा । अगर उसे यह कृष्ण भावनामृत दिया जाए... वही प्रक्रिया । एक भ्रमित लड़का गली में घूम रहा है । अगर उसे याद दिलाया जाए, "मेरे प्रिय पुत्र, तुम इतने पीड़ित क्यों हो ? तुम फलाना अमीर आदमी के बेटे हो । तुम्हारे पिता की इतनी संपत्ति है । क्यों तुम सड़क में घूम रहे हो ?" और अगर उसे चेतना अा जाती है: "हाँ, मैं फलाना बड़े अादमी का बेटा हूँ । क्यों मैं घूमूँ सडक़ों पर?" वह घर वापिस चला जाता है । यद गत्वा न निवर्तन्ते ([[Vanisource: BG 15.6 (1972)|भ.गी. १५.६]]) । इसलिए यह सबसे अच्छी सेवा है, उसे सूचित करना कि, | |||
"तुम कृष्ण के अंशस्वरूप हो । | |||
तुम कृष्ण के पुत्र हो । कृष्ण भव्य हैं, छह प्रकार की संपन्नता । क्यों तुम भ्रमण कर रहे हो, क्यों तुम इस भौतिक दुनिया में सड़ रहे हो ?" यह सबसे बड़ी सेवा है , कृष्ण भावनामृत । लेकिन माया बहुत बलवान है । फिर भी, यह हर कृष्ण भक्त का कर्तव्य है, हर किसी को कृष्ण भावनामृत के बारे में समझाने का प्रयास करना | जैसे कुंतीदेवी बता रही हैं । सबसे पहले उन्होंने कहा, अलक्ष्यम सर्वभूतानाम अंतर बहिर अवस्थि ([[Vanisource: SB 1.8.18|श्रीमद भागवतम १.८.१८]])... हालांकि कृष्ण, परम भगवान, अंदर अौर बाहर, फिर भी, धुर्तों और मूर्खों के लिए, वे अदृश्य हैं । इसलिए वे कह रही हैं: "यहाँ है भगवान, कृष्णाय वासुदेवाय ([[Vanisource: SB 1.8.21|श्रीमद भागवतम १.८.२१]]) ।" वे सर्वव्यापी पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं, लेकिन वे देवकी का पुत्र बनने में बहुत प्रसन्न होते हैं । देवकी-नंदनाय । देवकी-नंदनाय । देवकी-नंदन अथर्ववेद में भी उल्लेखित है । कृष्ण, देवकी-नंदन के रूप में आते हैं, और उनके पालक पिता नंद-गोप, नंद महाराज हैं । | |||
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020
730413 - Lecture SB 01.08.21 - New York
तुम सीमित ज्ञान के द्वारा असीमित को नहीं समझ सकते हो । यह संभव नहीं है । तो, कुंती देवी जैसे भक्तों की कृपा से, हम समझ सकते हैं कि यहाँ वासुदेव हैं । सर्वव्यापी निरपेक्ष सत्य, परमात्मा, वासुदेव, यहाँ है। कृष्णाय वासुदेवाय (श्रीमद भागवतम १.८.२१) । तो वासुदेव विचार संभव है मायावादियों के लिए बहुत से, कई जन्मों के बाद । बहुत आसानी से नहीं । बहुनाम जन्मनाम अंते ज्ञानवान माम प्रपद्यते वासुदेव: सर्वम इति स महात्मा सुदुर्लभ: (भ.गी. ७.१९) | सुदुर्लभ:, "बहुत दुर्लभ," महात्मा, "उदार" । लेकिन जो कृष्ण को नहीं समझ सकता है, वे कृपण है । वे उदार नहीं हैं । अगर कोई उदार होता है, कृष्ण की कृपा से, वह कृष्ण को समझ सकता है ।
सेवोन्मुखे हि जिह्वादौ (भक्ति रसामृत सिंधु १.२.२३४) । प्रकिया है सेवनमुखे, सेवा । सेवा, जीभ से शुरुआत, वासुदेव साक्षात्कार संभव है । सेवा, पहली सेवा श्रवणम कीर्तनम है (श्रीमद भागवतम् ७.५.२३) । हरे कृष्ण मंत्र का जप करो और बार-बार सुनो और प्रसादम लो । ये जीभ के दो काम हैं । तो आपको साक्षात्कार होगा । बहुत ही सरल विधि है । सेवोन्मुखे हि जिह्वादौ स्वयम... कृष्ण बोध कराएँगे, एेसा नहीं है कि तुम्हारे प्रयास से तुम कृष्ण को समझ सकते हो, लेकिन तुम्हारा प्रयास प्रेम से सेवा करना है, यह तुम्हें योग्य बनाएगा । कृष्ण बोध कराएँगे । स्वयम एव स्फुरति अद: । कृष्ण बहुत ज्यादा उत्कंठित हैं तुम्हें परम धाम ले जाने के लिए । लेकिन हम जिद्दी हैं । हम नहीं चाहते ।
तो वे हमेशा ढूँढ रहे हैं अवसर कि कैसे तुम्हें परम धाम ले जाया जाए । जैसे स्नेहिल पिता । धूर्त बेटे ने अपने पिता को छोड़ दिया, गली में घूम रहा है और कोई आश्रय, भोजन नहीं है, इतना दुःख । पिता लड़के को घर लाने के लिए अधिक उत्सुक है । इसी तरह, कृष्ण परम पिता हैं । ये सभी जीव इस भौतिक दुनिया में वे वैसे ही हैं जैसे एक बड़े अमीर आदमी का गुमराह बच्चा सड़क पर घूम रहा है ।
तो मानव समाज का सबसे बड़ा लाभ है उसे कृष्ण भावनामृत देना । महानतम... तुम कोई लाभ नहीं दे सकते हो; कोई भी भौतिक लाभ जीव को संतुष्ट नहीं करेगा । अगर उसे यह कृष्ण भावनामृत दिया जाए... वही प्रक्रिया । एक भ्रमित लड़का गली में घूम रहा है । अगर उसे याद दिलाया जाए, "मेरे प्रिय पुत्र, तुम इतने पीड़ित क्यों हो ? तुम फलाना अमीर आदमी के बेटे हो । तुम्हारे पिता की इतनी संपत्ति है । क्यों तुम सड़क में घूम रहे हो ?" और अगर उसे चेतना अा जाती है: "हाँ, मैं फलाना बड़े अादमी का बेटा हूँ । क्यों मैं घूमूँ सडक़ों पर?" वह घर वापिस चला जाता है । यद गत्वा न निवर्तन्ते (भ.गी. १५.६) । इसलिए यह सबसे अच्छी सेवा है, उसे सूचित करना कि, "तुम कृष्ण के अंशस्वरूप हो ।
तुम कृष्ण के पुत्र हो । कृष्ण भव्य हैं, छह प्रकार की संपन्नता । क्यों तुम भ्रमण कर रहे हो, क्यों तुम इस भौतिक दुनिया में सड़ रहे हो ?" यह सबसे बड़ी सेवा है , कृष्ण भावनामृत । लेकिन माया बहुत बलवान है । फिर भी, यह हर कृष्ण भक्त का कर्तव्य है, हर किसी को कृष्ण भावनामृत के बारे में समझाने का प्रयास करना | जैसे कुंतीदेवी बता रही हैं । सबसे पहले उन्होंने कहा, अलक्ष्यम सर्वभूतानाम अंतर बहिर अवस्थि (श्रीमद भागवतम १.८.१८)... हालांकि कृष्ण, परम भगवान, अंदर अौर बाहर, फिर भी, धुर्तों और मूर्खों के लिए, वे अदृश्य हैं । इसलिए वे कह रही हैं: "यहाँ है भगवान, कृष्णाय वासुदेवाय (श्रीमद भागवतम १.८.२१) ।" वे सर्वव्यापी पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं, लेकिन वे देवकी का पुत्र बनने में बहुत प्रसन्न होते हैं । देवकी-नंदनाय । देवकी-नंदनाय । देवकी-नंदन अथर्ववेद में भी उल्लेखित है । कृष्ण, देवकी-नंदन के रूप में आते हैं, और उनके पालक पिता नंद-गोप, नंद महाराज हैं ।