HI/Prabhupada 0969 - अगर तुम अपनी जीभ को भगवान की सेवा में लगाते हो, वे खुद को तुम्हे प्रकट करेंगे: Difference between revisions

 
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भारत में, शारीरिक भोग मतलब पहले, जीभ । जीभ का भोग । हर जगह । यहाँ भी । जीभ का भोग । तो अगर हम अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण करना चाहते हैं ... इसलिए भक्तिविनोद ठाकुर, पिछले आचार्य के नक्शेकदम पर चलते हुए, वे कहते हैं कि "अपनी जीभ को नियंत्रित करो ।" अपनी जीभ को नियंत्रित करो । और भागवत में भी यह कहा गया है । अत: श्री कृष्ण-नामादि न भवेद ग्राह्यम इनद्रियै: (भ र स १।२।२३४) हमारे, इन कुंद इनद्रियों के साथ, हम श्री कृष्ण को समझ नहीं सकते हैं । यह संभव नहीं है । इन्द्रियॉ इतनी अपूर्ण हैं कि तुम कोई भी पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते हो, भौतिक या आध्यात्मिक, इंद्रियों के द्वारा । यह संभव नहीं है । अत: । भले ही तुम पूरी तरह से इस भौतिक दुनिया के मामलों को पूर्णता से समझते हो । जैसे वे चंद्रमा ग्रह का अध्ययन कर रहे हैं, निकटतम ग्रह । इस चंद्रमा ग्रह के अलावा, लाखों अरबों अन्य ग्रहों हैं । वे कुछ भी नहीं कह सकते हैं । इन्द्रयॉ अपूर्ण हैं । तुम कैसे समझ सकते हो ? मैं देख सकता हूँ, एक मील तक । लेकिन जब लाखों अरबों मील का सवाल है, कैसे तुम अपनी इन्द्रियों का उपयोग कर सकते हो और पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर सकते हो ? तो तुम इन इंद्रियों का उपयोग करके पूरी तरह से भौतिक ज्ञान भी नहीं प्राप्त कर सकते । भगवान और आध्यात्मिक ज्ञान की क्या बात करें ? यह परे है, मानस-गोचर, हमारी अवधारणा के परे । इसलिए शास्त्र कहते हैं: अत: श्री कृष्ण-नामादि न भवेद ग्राह्यम इनद्रियै: (भ र स १।२।२३४) । अगर तुम मानसिक अटकलों द्वारा भगवान को जानना चाहते हो, यह मेंढक दर्शन है, डा मेंढक, अटलांटिक महासागर की गणना करता है, कुएं में बैठे बैठे । यही मेंढक दर्शन कहा जाता है । तुम नहीं समझ सकते हो । तो फिर इसे समझना कैसे संभव है ? अगली पंक्ति है सेवोममुखे हि जिह्वादौ स्वयं एव स्फुरति .... अगर तुम प्रभु की सेवा में अपनी जीभ का उपयोग करते हो, तो वे स्वयं को तुम्हे प्रकट करेंगे । वे प्रकट करेंगे, बोध
भारत में, शारीरिक भोग मतलब पहले, जीभ । जीभ का भोग । हर जगह । यहाँ भी । जीभ का भोग । तो अगर हम अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण करना चाहते हैं... इसलिए भक्तिविनोद ठाकुर, पिछले आचार्य के नक्शेकदम पर चलते हुए, वे कहते हैं कि "अपनी जीभ को नियंत्रित करो ।" अपनी जीभ को नियंत्रित करो । और भागवत में भी यह कहा गया है । अत: श्री कृष्ण-नामादि न भवेद ग्राह्यम इंद्रियै: (भक्तिरसामृतसिन्धु १.२.२३४) हमारी, इन जड़ इन्द्रियों के साथ, हम श्री कृष्ण को समझ नहीं सकते । यह संभव नहीं है । इन्द्रियॉ इतनी अपूर्ण हैं कि तुम कोई भी पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते हो, भौतिक या आध्यात्मिक, इंद्रियों के द्वारा । यह संभव नहीं है ।  


तो इसलिए हमें जीभ को नियंत्रित करना चाहिए । जीभ का काम क्या है ? जीभ के काम है स्वाद चखना और बोलना । तो तुम्हे प्रभु की सेवा में बोलना है, हरे कृष्ण । हरे कृष्ण का मतलब है "हे कृष्ण, हे भगवान की शक्ति, कृपया आपकी सेवा में मुझे संलग्न करें ।" हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे ... यह हरे कृष्ण का अर्थ है । इसका कोई अन्य अर्थ नहीं है । "हे मेरे प्रभु कृष्ण और हे कृष्ण की शक्ति, राधारानी, ​​विशेष रूप से, कृपया आप दोनों आपकी सेवा में मुझे संलग्न करें । " जैसे नरोत्तमदास ठाकुर कहते हैं: हा हा प्रभु नंद सुत वृषभानु सुता जुत : "मेरे प्रभु, कृष्ण, आप नंदा महाराज के बेटे के रूप में प्रख्यात हैं । और अापकी शाश्वत प्रेमिका, राधारानी, ​​वे राजा वृषभानु की बेटी के रूप में जानी जाती है । तो आप दोनों यहां हैं । "हा हा प्रभु नंद सुत वृषभानु सुता...करुणा करह एई बार । "अब मैं अापके पास आया हूँ । कृपया अाप दोनों मुझ पर दया करें ।" यही हरे कृष्ण है: "मुझ पर दया करें ।" नरोत्तम-दास कय, ना ठेलिह रंग-पाय : "आपके चरण कमल, अापके हैं, मेरी उपेक्षा ना करें या आपका चरण कमलों से दूर न करें ।" मैं सोचता हूं कि अगर श्री कृष्ण दूर कर देते हैं धक्का देकर, यह हमारा महान सौभाग्य है । तुम समझ रहे हो । अगर श्री कृष्ण धक्का देते हैं "तुम चले जाओ" यह भी एक महान सौभाग्य है । स्वीकार करने की क्या बात करें ? जैसे जब श्री कृष्ण कालिया के फन पर लात मार रहे थे । तो कालिया की पत्नियों नें प्रार्थना की: "मेरे प्रिय महोदय, मैं नहीं जानती, यह अपराधी, कालिया, कैसे यह इतना भाग्यशाली बना कि उसके फन को अापने लात मारी ? अापके चरण कमलों का स्पर्श, महान, महान संत, साधु लाखों वर्षों से ध्यान करनी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ुह कालिया ... मुझे नहीं पता, क्या उसने किया है अपने पिछले जीवन में कि वह भाग्यशाली है कि अाप उसके फन को लात मार रहे हो ?
अत: । भले ही तुम पूरी तरह से इस भौतिक दुनिया के मामलों को पूर्णता से समझते हो । जैसे वे चंद्र ग्रह का अध्ययन कर रहे हैं, जो निकटतम ग्रह है । इस चंद्र ग्रह के अलावा, लाखों अरबों अन्य ग्रह हैं । वे कुछ भी नहीं कह सकते हैं । इन्द्रयॉ अपूर्ण हैं । तुम कैसे समझ सकते हो ? मैं देख सकता हूँ, एक मील तक । लेकिन जब लाखों अरबों मील का सवाल है, कैसे तुम अपनी इन्द्रियों का उपयोग कर सकते हो और पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर सकते हो ? तो तुम इन इंद्रियों का उपयोग करके पूरी तरह से भौतिक ज्ञान भी नहीं प्राप्त कर सकते । भगवान और आध्यात्मिक ज्ञान की क्या बात करें ? यह परे है, मानस-गोचर, हमारी अवधारणा के परे । इसलिए शास्त्र कहते हैं: अत: श्री कृष्ण-नामादि न भवेद ग्राह्यम इंद्रियै: (भक्तिरसामृतसिन्धु १.२.२३४) ।
 
अगर तुम मानसिक अटकलों द्वारा भगवान को जानना चाहते हो, यह मेंढक तत्वज्ञान है, डॉ मेंढक, अटलांटिक महासागर की गणना करता है, कुएं में बैठे बैठे । यही मेंढक तत्वज्ञान कहा जाता है । तुम नहीं समझ सकते हो । तो फिर इसे समझना कैसे संभव है ? अगली पंक्ति है सेवोममुखे हि जिह्वादौ स्वयं एव स्फुरति... अगर तुम प्रभु की सेवा में अपनी जीभ का उपयोग करते हो, तो वे स्वयं को तुम्हे प्रकट करेंगे । वे प्रकट, साक्षात्कार, करेंगे । तो इसलिए हमें जीभ को नियंत्रित करना चाहिए । जीभ का काम क्या है ? जीभ के काम है स्वाद चखना और बोलना । तो तुम्हे प्रभु की सेवा में बोलना है, हरे कृष्ण ।  
 
हरे कृष्ण का मतलब है "हे कृष्ण, हे भगवान की शक्ति, कृपया आपकी सेवा में मुझे संलग्न करें ।" हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे... यह हरे कृष्ण का अर्थ है । इसका कोई अन्य अर्थ नहीं है । "हे मेरे प्रभु कृष्ण और हे कृष्ण की शक्ति, राधारानी, ​​विशेष रूप से, कृपया आप दोनों आपकी सेवा में मुझे संलग्न करें । " जैसे नरोत्तमदास ठाकुर कहते हैं: हा हा प्रभु नंद सुत वृषभानु सुता जुत: "मेरे प्रभु, कृष्ण, आप नंद महाराज के बेटे के रूप में प्रख्यात हैं । और अापकी शाश्वत प्रेमिका, राधारानी, ​​वे राजा वृषभानु की बेटी के रूप में जानी जाती है । तो आप दोनों यहां हैं । "हा हा प्रभु नंद सुत वृषभानु सुता... करुणा करह एई बार । "अब मैं अापके पास आया हूँ । कृपया अाप दोनों मुझ पर दया करें ।" यही हरे कृष्ण है: "मुझ पर दया करें ।"  
 
नरोत्तम-दास कय, ना ठेलिह रंग-पाय: "आपके चरण कमल, मेरी उपेक्षा ना करें या आपके चरण कमलों से दूर न करें ।" मैं सोचता हूं कि अगर श्री कृष्ण दूर कर देते हैं लात मार कर, यह हमारा महान सौभाग्य है । तुम समझ रहे हो । अगर श्री कृष्ण लात मारते हैं "तुम चले जाओ" यह भी एक महान सौभाग्य है । स्वीकार करने की क्या बात करें ? जैसे जब कृष्ण कालिया के फन पर लात मार रहे थे । तो कालिया की पत्नियों नें प्रार्थना की: "मेरे प्रिय प्रभु, मैं नहीं जानती, यह अपराधी, कालिया, कैसे यह इतना भाग्यशाली बना कि उसके फन को अापने लात मारी ? अापके चरण कमलों का स्पर्श, महान, महान संत, साधु लाखों वर्षों से ध्यान करनी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह कालिया... मुझे नहीं पता, क्या उसने किया है अपने पिछले जीवन में की वह भाग्यशाली है की अाप उसके फन को लात मार रहे हो ?  
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Latest revision as of 17:45, 1 October 2020



730400 - Lecture BG 02.13 - New York

भारत में, शारीरिक भोग मतलब पहले, जीभ । जीभ का भोग । हर जगह । यहाँ भी । जीभ का भोग । तो अगर हम अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण करना चाहते हैं... इसलिए भक्तिविनोद ठाकुर, पिछले आचार्य के नक्शेकदम पर चलते हुए, वे कहते हैं कि "अपनी जीभ को नियंत्रित करो ।" अपनी जीभ को नियंत्रित करो । और भागवत में भी यह कहा गया है । अत: श्री कृष्ण-नामादि न भवेद ग्राह्यम इंद्रियै: (भक्तिरसामृतसिन्धु १.२.२३४) हमारी, इन जड़ इन्द्रियों के साथ, हम श्री कृष्ण को समझ नहीं सकते । यह संभव नहीं है । इन्द्रियॉ इतनी अपूर्ण हैं कि तुम कोई भी पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते हो, भौतिक या आध्यात्मिक, इंद्रियों के द्वारा । यह संभव नहीं है ।

अत: । भले ही तुम पूरी तरह से इस भौतिक दुनिया के मामलों को पूर्णता से समझते हो । जैसे वे चंद्र ग्रह का अध्ययन कर रहे हैं, जो निकटतम ग्रह है । इस चंद्र ग्रह के अलावा, लाखों अरबों अन्य ग्रह हैं । वे कुछ भी नहीं कह सकते हैं । इन्द्रयॉ अपूर्ण हैं । तुम कैसे समझ सकते हो ? मैं देख सकता हूँ, एक मील तक । लेकिन जब लाखों अरबों मील का सवाल है, कैसे तुम अपनी इन्द्रियों का उपयोग कर सकते हो और पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर सकते हो ? तो तुम इन इंद्रियों का उपयोग करके पूरी तरह से भौतिक ज्ञान भी नहीं प्राप्त कर सकते । भगवान और आध्यात्मिक ज्ञान की क्या बात करें ? यह परे है, मानस-गोचर, हमारी अवधारणा के परे । इसलिए शास्त्र कहते हैं: अत: श्री कृष्ण-नामादि न भवेद ग्राह्यम इंद्रियै: (भक्तिरसामृतसिन्धु १.२.२३४) ।

अगर तुम मानसिक अटकलों द्वारा भगवान को जानना चाहते हो, यह मेंढक तत्वज्ञान है, डॉ मेंढक, अटलांटिक महासागर की गणना करता है, कुएं में बैठे बैठे । यही मेंढक तत्वज्ञान कहा जाता है । तुम नहीं समझ सकते हो । तो फिर इसे समझना कैसे संभव है ? अगली पंक्ति है सेवोममुखे हि जिह्वादौ स्वयं एव स्फुरति... अगर तुम प्रभु की सेवा में अपनी जीभ का उपयोग करते हो, तो वे स्वयं को तुम्हे प्रकट करेंगे । वे प्रकट, साक्षात्कार, करेंगे । तो इसलिए हमें जीभ को नियंत्रित करना चाहिए । जीभ का काम क्या है ? जीभ के काम है स्वाद चखना और बोलना । तो तुम्हे प्रभु की सेवा में बोलना है, हरे कृष्ण ।

हरे कृष्ण का मतलब है "हे कृष्ण, हे भगवान की शक्ति, कृपया आपकी सेवा में मुझे संलग्न करें ।" हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे... यह हरे कृष्ण का अर्थ है । इसका कोई अन्य अर्थ नहीं है । "हे मेरे प्रभु कृष्ण और हे कृष्ण की शक्ति, राधारानी, ​​विशेष रूप से, कृपया आप दोनों आपकी सेवा में मुझे संलग्न करें । " जैसे नरोत्तमदास ठाकुर कहते हैं: हा हा प्रभु नंद सुत वृषभानु सुता जुत: "मेरे प्रभु, कृष्ण, आप नंद महाराज के बेटे के रूप में प्रख्यात हैं । और अापकी शाश्वत प्रेमिका, राधारानी, ​​वे राजा वृषभानु की बेटी के रूप में जानी जाती है । तो आप दोनों यहां हैं । "हा हा प्रभु नंद सुत वृषभानु सुता... करुणा करह एई बार । "अब मैं अापके पास आया हूँ । कृपया अाप दोनों मुझ पर दया करें ।" यही हरे कृष्ण है: "मुझ पर दया करें ।"

नरोत्तम-दास कय, ना ठेलिह रंग-पाय: "आपके चरण कमल, मेरी उपेक्षा ना करें या आपके चरण कमलों से दूर न करें ।" मैं सोचता हूं कि अगर श्री कृष्ण दूर कर देते हैं लात मार कर, यह हमारा महान सौभाग्य है । तुम समझ रहे हो । अगर श्री कृष्ण लात मारते हैं "तुम चले जाओ" यह भी एक महान सौभाग्य है । स्वीकार करने की क्या बात करें ? जैसे जब कृष्ण कालिया के फन पर लात मार रहे थे । तो कालिया की पत्नियों नें प्रार्थना की: "मेरे प्रिय प्रभु, मैं नहीं जानती, यह अपराधी, कालिया, कैसे यह इतना भाग्यशाली बना कि उसके फन को अापने लात मारी ? अापके चरण कमलों का स्पर्श, महान, महान संत, साधु लाखों वर्षों से ध्यान करनी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह कालिया... मुझे नहीं पता, क्या उसने किया है अपने पिछले जीवन में की वह भाग्यशाली है की अाप उसके फन को लात मार रहे हो ?