HI/Prabhupada 0978 - अगर तुम्हे ब्राह्मण की आवश्यकता नहीं है, तो तुम भुगतोगे: Difference between revisions

 
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त्यक्त्वा देहम् पुनर जन्म नैति ([[Vanisource:BG 4.9|भ गी ४।९]]) लेकिन लोग इस भौतिक शरीर से इतने आकर्षित हैं कि वे अगले जन्म में बिल्लि और कुत्ता बनने के लिए तैयार हैं, लेकिन वे घर वापस जाने के लिए तैयार नहीं हैं, भगवद ़धाम । यह समस्या है । तो क्यों यह समस्या है ? क्योंकि मानव समाज में अराजकता में है । एक अराजक स्थिति । चार वर्गों का विभाजन होना ही चाहिए । एक वर्ग ब्राह्मण होना चाहिए, पुरुषों का बुद्धिमान वर्ग । और एक को क्षत्रिय होना चाहिए, एक वर्ग, प्रशासकों का । क्योंकि मानव समाज, उन्हे परामर्श करने के लिए अच्छे बुद्धि की आवश्यकता होती है, अच्छे प्रशासक, अच्छा उत्पादक और अच्छे कार्यकर्ता । यही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र का विभाजन है । इसलिए श्री कृष्ण कहते हैं: चतुर वर्ण्यम मया सृष्टम ([[Vanisource:BG 4.13|भ गी ४।१३]]) । मानव जीवन के अच्छे कार्यचलन के लिए, चार विभाजन होना ही चाहिए । अौर अगर तुम कहते हो कि, "हमें ब्राह्मण की आवश्यकता नहीं है।" अगर तुम्हे ब्राह्मण की आवश्यकता नहीं है, तो तुम भुगतोगे । जैसे तुम्हारा यह शरीर है । और अगर तुम्हे लगता है "शरीर का यह भाग बहुत महंगा है, हमेशा खाते रहता है । इसे काट दो ।" तो फिर तुम मर जाअोगे । इसी तरह, केवल अपने शरीर को अच्छी हालत में रखने के लिए, जीवित हालत में, तुम्हारा सिर होना चहिए, तुम्हारे हाथ होने चहिए, तुम्हारा पेट होना चहिए, तुम्हारा पैर होने चहिए । तुम नहीं कह सकते हो कि "मैं शरीर के इस हिस्से से बच सकता हूं ।" नहीं । इसी तरह, चतुर वर्ण्यम मया सृष्टम ([[Vanisource:BG 4.13|भ गी ४।१३]]) समाज के चार विभाजन होने चाहिए अन्यथा यह अराजक या मृत शरीर हो जाएगा । तो वर्तमान समय में, कठिनाई यह है कि कोई ब्राह्मण नहिं है, कोई क्षत्रिय नहीं है । केवल वैश्य और शूद्र हैं, पेट, वैश्य मतलब पेट और शूद्र मतलब पैर । तो, अगर चार विभाजन में से, एक नहीं है, तो समाज को अराजक हालत में होना ही है । चारों की मौजूदगी होनी ही चाहिए । हालांकि अपेक्षाकृत, सिर शरीर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, फिर भी तुम पैर की उपेक्षा नहीं कर सकते हो । यह एक सहयोग संयोजन है । तो हमें सहयोग करने होगा । यह मायने नहीं रखता है । एक बहुत बुद्धिमान है । एक कम बुद्धिमान है । एक कम बुद्धिमान है । चार वर्ग हैं । सबसे बुद्धिमान वर्ग सिर, दिमाग है । और अगला बुद्धिमान वर्ग, प्रशासक, सरकार । अगला बुद्धिमान वर्ग, उद्योगपति, व्यापारी । अगला बुद्धिमान वर्ग कार्यकर्ता है । वे सब आवश्यक हैं । लेकिन वर्तमान समय में, केवल यह उद्योगपति और कार्यकर्ता हैं । कोई बुद्धि नहीं है । कैसे समाज का संचालन करना है ? कैसे पूर्ण मानव समाज बन सकते हैं, मानव समाज के मिशन को पूरा कैसे किया जा सकता है, इन बातों के लिए, कोई बुद्धि नहीं है ।
त्यक्त्वा देहम पुनर जन्म नैति ([[HI/BG 4.9|भ.गी. ४.९]]) | लेकिन लोग इस भौतिक शरीर से इतने आकर्षित हैं की वे अगले जन्म में बिल्लि और कुत्ता बनने के लिए तैयार हैं, लेकिन वे भगवद धाम वापस जाने के लिए तैयार नहीं हैं । यह समस्या है । तो क्यों यह समस्या है ? क्योंकि मानव समाज अराजकता में है । एक अराजक स्थिति । चार वर्गों का विभाजन होना ही चाहिए । एक वर्ग ब्राह्मण होना चाहिए, पुरुषों का बुद्धिमान वर्ग । और एक को क्षत्रिय होना चाहिए, एक वर्ग, प्रशासकों का । क्योंकि मानव समाज, उन्हे परामर्श करने के लिए अच्छे बुद्धि की आवश्यकता होती है, अच्छे प्रशासक, अच्छा उत्पादक और अच्छे कार्यकर्ता ।  
 
यही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र का विभाजन है । इसलिए श्री कृष्ण कहते हैं: चातुर वर्ण्यम मया सृष्टम ([[HI/BG 4.13|भ.गी. ४.१३]]) । मानव जीवन के अच्छे कार्यचलन के लिए, चार विभाजन होना ही चाहिए । अौर अगर तुम कहते हो की, "हमें ब्राह्मण की आवश्यकता नहीं है।" अगर तुम्हे ब्राह्मण की आवश्यकता नहीं है, तो तुम भुगतोगे । जैसे तुम्हारा यह शरीर है । और अगर तुम्हे लगता है "शरीर का यह भाग बहुत महंगा है, हमेशा खाते रहता है । इसे काट दो ।" तो फिर तुम मर जाअोगे ।  
 
इसी तरह, केवल अपने शरीर को अच्छी हालत में रखने के लिए, जीवित हालत में, तुम्हारा सिर होना चहिए, तुम्हारे हाथ होने चहिए, तुम्हारा पेट होना चहिए, तुम्हारे पैर होने चहिए । तुम नहीं कह सकते हो कि "मैं शरीर के इस हिस्से से बच सकता हूं ।" नहीं । इसी तरह, चातुर वर्ण्यम मया सृष्टम ([[HI/BG 4.13|भ.गी. ४.१३]]) | समाज के चार विभाजन होने चाहिए अन्यथा यह अराजक या मृत शरीर हो जाएगा । तो वर्तमान समय में, कठिनाई यह है कि कोई ब्राह्मण नहीं है, कोई क्षत्रिय नहीं है । केवल वैश्य और शूद्र हैं, पेट, वैश्य मतलब पेट और शूद्र मतलब पैर ।  
 
तो, अगर चार विभाजन में से, एक नहीं है, तो समाज को अराजक हालत में होना ही है । चारों की मौजूदगी होनी ही चाहिए । हालांकि अपेक्षाकृत, सिर शरीर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, फिर भी तुम पैर की उपेक्षा नहीं कर सकते हो । यह एक सहयोगिक संयोजन है । तो हमें सहयोग करने होगा । यह मायने नहीं रखता है । एक बहुत बुद्धिमान है । एक कम बुद्धिमान है । एक कम बुद्धिमान है । चार वर्ग हैं । सबसे बुद्धिमान वर्ग सिर, दिमाग है । और अगला बुद्धिमान वर्ग, प्रशासक, सरकार । अगला बुद्धिमान वर्ग, उद्योगपति, व्यापारी । अगला बुद्धिमान वर्ग कार्यकर्ता है । वे सभी आवश्यक हैं । लेकिन वर्तमान समय में, केवल यह उद्योगपति और कार्यकर्ता हैं । कोई बुद्धि नहीं है । कैसे समाज का संचालन करना है ? कैसे मानव समाज आदर्श बन सकता हैं, मानव समाज के मिशन को पूरा कैसे किया जा सकता है, इन बातों के लिए, कोई बुद्धि नहीं है ।  
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Latest revision as of 17:44, 1 October 2020



730408 - Lecture BG 04.13 - New York

त्यक्त्वा देहम पुनर जन्म नैति (भ.गी. ४.९) | लेकिन लोग इस भौतिक शरीर से इतने आकर्षित हैं की वे अगले जन्म में बिल्लि और कुत्ता बनने के लिए तैयार हैं, लेकिन वे भगवद धाम वापस जाने के लिए तैयार नहीं हैं । यह समस्या है । तो क्यों यह समस्या है ? क्योंकि मानव समाज अराजकता में है । एक अराजक स्थिति । चार वर्गों का विभाजन होना ही चाहिए । एक वर्ग ब्राह्मण होना चाहिए, पुरुषों का बुद्धिमान वर्ग । और एक को क्षत्रिय होना चाहिए, एक वर्ग, प्रशासकों का । क्योंकि मानव समाज, उन्हे परामर्श करने के लिए अच्छे बुद्धि की आवश्यकता होती है, अच्छे प्रशासक, अच्छा उत्पादक और अच्छे कार्यकर्ता ।

यही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र का विभाजन है । इसलिए श्री कृष्ण कहते हैं: चातुर वर्ण्यम मया सृष्टम (भ.गी. ४.१३) । मानव जीवन के अच्छे कार्यचलन के लिए, चार विभाजन होना ही चाहिए । अौर अगर तुम कहते हो की, "हमें ब्राह्मण की आवश्यकता नहीं है।" अगर तुम्हे ब्राह्मण की आवश्यकता नहीं है, तो तुम भुगतोगे । जैसे तुम्हारा यह शरीर है । और अगर तुम्हे लगता है "शरीर का यह भाग बहुत महंगा है, हमेशा खाते रहता है । इसे काट दो ।" तो फिर तुम मर जाअोगे ।

इसी तरह, केवल अपने शरीर को अच्छी हालत में रखने के लिए, जीवित हालत में, तुम्हारा सिर होना चहिए, तुम्हारे हाथ होने चहिए, तुम्हारा पेट होना चहिए, तुम्हारे पैर होने चहिए । तुम नहीं कह सकते हो कि "मैं शरीर के इस हिस्से से बच सकता हूं ।" नहीं । इसी तरह, चातुर वर्ण्यम मया सृष्टम (भ.गी. ४.१३) | समाज के चार विभाजन होने चाहिए अन्यथा यह अराजक या मृत शरीर हो जाएगा । तो वर्तमान समय में, कठिनाई यह है कि कोई ब्राह्मण नहीं है, कोई क्षत्रिय नहीं है । केवल वैश्य और शूद्र हैं, पेट, वैश्य मतलब पेट और शूद्र मतलब पैर ।

तो, अगर चार विभाजन में से, एक नहीं है, तो समाज को अराजक हालत में होना ही है । चारों की मौजूदगी होनी ही चाहिए । हालांकि अपेक्षाकृत, सिर शरीर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, फिर भी तुम पैर की उपेक्षा नहीं कर सकते हो । यह एक सहयोगिक संयोजन है । तो हमें सहयोग करने होगा । यह मायने नहीं रखता है । एक बहुत बुद्धिमान है । एक कम बुद्धिमान है । एक कम बुद्धिमान है । चार वर्ग हैं । सबसे बुद्धिमान वर्ग सिर, दिमाग है । और अगला बुद्धिमान वर्ग, प्रशासक, सरकार । अगला बुद्धिमान वर्ग, उद्योगपति, व्यापारी । अगला बुद्धिमान वर्ग कार्यकर्ता है । वे सभी आवश्यक हैं । लेकिन वर्तमान समय में, केवल यह उद्योगपति और कार्यकर्ता हैं । कोई बुद्धि नहीं है । कैसे समाज का संचालन करना है ? कैसे मानव समाज आदर्श बन सकता हैं, मानव समाज के मिशन को पूरा कैसे किया जा सकता है, इन बातों के लिए, कोई बुद्धि नहीं है ।