HI/Prabhupada 0979 - भारत की हालत बहुत ही अराजक है: Difference between revisions
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प्रभुपाद: तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन मानव समाज में थोडी सी बुद्धि पैदा कर रहा है । ब्राह्मण । और यह बुद्धिमत्ता... ब्राह्मण का काम है ... ब्राह्मण, यह शब्द, यही शब्द आता है: | प्रभुपाद: तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन मानव समाज में थोडी सी बुद्धि पैदा कर रहा है । ब्राह्मण । और यह बुद्धिमत्ता... ब्राह्मण का काम है... ब्राह्मण, यह शब्द, यही शब्द आता है: | ||
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तो ब्राह्मण मतलब वह जो भगवान को जानता है । यही ब्राह्मण है । और भगवान को ध्यान में रखते हुए, वे | तो ब्राह्मण मतलब वह जो भगवान को जानता है । यही ब्राह्मण है । और भगवान को ध्यान में रखते हुए, वे भगवद भावनाभावित होना दूसरों को सिखाते हैं । भगवान भावनाभावित हुए बिना, मानव समाज केवल पशु समाज है । क्योंकि जानवर भगवद भावनाभावित नहीं हो सकते हैं, कितना भी तुम जानवरों में, बिल्लियों और कुत्तों के बीच प्रचार करो । यह संभव नहीं है । क्योंकि उनमे बुद्धि नहीं है भगवान क्या हैं यह समझने की । तो मानव समाज में, अगर कोई ब्राह्मण नहीं है जो भगवान के बारे में सिखा सके, जो भगवद भावनामृत में लोगों को उठा सके, तो यह भी पशु समाज है । केवल, खाना, सोना और यौन जीवन और रक्षण, ये जानवरों का भी काम है । | ||
बहुत | जानवर भी जानते हैं कैसे खाना है, कैसे सोना है, कैसे यौन जीवन का आनंद लेनाहै, कैसे रक्षा करनी है । वे अपने तरीके से जानते हैं । तो केवल यही सब करना मनुष्य जीवन नहीं है । तब मानव, मानव जन्म के उद्देश्य को पूरा नहीं किया जा सकता है । पुरुषों के चार वर्ग होने ही चाहिए, जैसा कि कृष्ण कहते हैं: चातुर वर्ण्यम मया सृष्टम ([[Vanisource: BG 4.13 (1972) |भ.गी. ४.१३]]) । पुरुषों का एक ब्राह्मणवादी वर्ग होना चाहिए, पुरुषों का एक क्षत्रिय वर्ग, एक वैश्य वर्ग... वे पहले से ही है | लेकिन वे बहुत वैज्ञानिक तरीके से स्थापित नहीं हैं, जैसे की भगवद गीता में प्रतिपादित किया गया है । चातुर वर्ण्यम मया सृष्टम ([[Vanisource: BG 4.13 (1972) |भ.गी. ४.१३]]) । ये गुण-कर्म-विभागश: है । गुण मतलब गुणवत्ता के अनुसार । तो भारत में, पुरुषों के ये चार वर्ग हैं, लेकिन वे नाम के ही हैं । वास्तव में वो भी अराजक स्थिति में है । क्योंकि कोई भी भगवद गीता में दिए गए निर्देशों का पालन नहीं कर रहा है: गुण कर्म विभागश: । | ||
भक्त : जय श्रील प्रभुपाद की जय ! | भारत में, हालांकि, एक व्यक्ति एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ, लेकिन उसके गुण, शूद्र से भी कम हैं, लेकिन फिर भी वह एक ब्राह्मण के रूप में स्वीकार किया जा रहा है । यही कठिनाई है । इसलिए, भारत की हालत इतनी अराजक है । लेकिन यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है । तुम पश्चिमी लोग, तुम्हे समझने का प्रयास करना चाहिए । और हमारे लड़के और लड़कियॉ जो शामिल हुए हैं, वे समझने की कोशिश कर रहे हैं अौर सिद्धांतों का निष्पादित करने की कोशिश कर रहे हैं । तो अगर तुम इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को अपनाते हो, जो ब्राह्मणों के लिए है, अगर तुम अपनी गुणवत्ता द्वारा ब्राह्मण बनते हो, तो तुम्हारे, पश्चिमी राष्ट्र हो जाएॅगे... विशेष रूप से अमेरिका में, वो प्रथम श्रेणी का राष्ट्र हो जाएगा । वो प्रथम श्रेणी का राष्ट्र हो जाएगा । तुम बुद्धीमान हो । तुम्हारे पास संसाधन हैं । तुम जिज्ञासु भी हो । तुम अच्छी चीजों को अपनाते हो । तो तुममे अच्छे गुण हैं । तुम इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को गंभीरता से लो और तुम दुनिया के प्रथम श्रेणी के राष्ट्र बन जाअोगे । यही मेरा अनुरोध है । | ||
बहुत बहुत धन्यवाद । हरे कृष्ण । | |||
भक्त: जय, श्रील प्रभुपाद की जय ! | |||
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Latest revision as of 15:53, 28 October 2018
730408 - Lecture BG 04.13 - New York
प्रभुपाद: तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन मानव समाज में थोडी सी बुद्धि पैदा कर रहा है । ब्राह्मण । और यह बुद्धिमत्ता... ब्राह्मण का काम है... ब्राह्मण, यह शब्द, यही शब्द आता है:
- नमो ब्रह्मण्य देवाय
- गो-ब्राह्मण हिताय च,
- जगद हिताय कृष्णाय
- गोविंदाय नमो नम:
- (चैतन्य चरितामृत मध्य १३.७७, विष्णु पुराण १.१९.६५)
तो ब्राह्मण मतलब वह जो भगवान को जानता है । यही ब्राह्मण है । और भगवान को ध्यान में रखते हुए, वे भगवद भावनाभावित होना दूसरों को सिखाते हैं । भगवान भावनाभावित हुए बिना, मानव समाज केवल पशु समाज है । क्योंकि जानवर भगवद भावनाभावित नहीं हो सकते हैं, कितना भी तुम जानवरों में, बिल्लियों और कुत्तों के बीच प्रचार करो । यह संभव नहीं है । क्योंकि उनमे बुद्धि नहीं है भगवान क्या हैं यह समझने की । तो मानव समाज में, अगर कोई ब्राह्मण नहीं है जो भगवान के बारे में सिखा सके, जो भगवद भावनामृत में लोगों को उठा सके, तो यह भी पशु समाज है । केवल, खाना, सोना और यौन जीवन और रक्षण, ये जानवरों का भी काम है ।
जानवर भी जानते हैं कैसे खाना है, कैसे सोना है, कैसे यौन जीवन का आनंद लेनाहै, कैसे रक्षा करनी है । वे अपने तरीके से जानते हैं । तो केवल यही सब करना मनुष्य जीवन नहीं है । तब मानव, मानव जन्म के उद्देश्य को पूरा नहीं किया जा सकता है । पुरुषों के चार वर्ग होने ही चाहिए, जैसा कि कृष्ण कहते हैं: चातुर वर्ण्यम मया सृष्टम (भ.गी. ४.१३) । पुरुषों का एक ब्राह्मणवादी वर्ग होना चाहिए, पुरुषों का एक क्षत्रिय वर्ग, एक वैश्य वर्ग... वे पहले से ही है | लेकिन वे बहुत वैज्ञानिक तरीके से स्थापित नहीं हैं, जैसे की भगवद गीता में प्रतिपादित किया गया है । चातुर वर्ण्यम मया सृष्टम (भ.गी. ४.१३) । ये गुण-कर्म-विभागश: है । गुण मतलब गुणवत्ता के अनुसार । तो भारत में, पुरुषों के ये चार वर्ग हैं, लेकिन वे नाम के ही हैं । वास्तव में वो भी अराजक स्थिति में है । क्योंकि कोई भी भगवद गीता में दिए गए निर्देशों का पालन नहीं कर रहा है: गुण कर्म विभागश: ।
भारत में, हालांकि, एक व्यक्ति एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ, लेकिन उसके गुण, शूद्र से भी कम हैं, लेकिन फिर भी वह एक ब्राह्मण के रूप में स्वीकार किया जा रहा है । यही कठिनाई है । इसलिए, भारत की हालत इतनी अराजक है । लेकिन यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है । तुम पश्चिमी लोग, तुम्हे समझने का प्रयास करना चाहिए । और हमारे लड़के और लड़कियॉ जो शामिल हुए हैं, वे समझने की कोशिश कर रहे हैं अौर सिद्धांतों का निष्पादित करने की कोशिश कर रहे हैं । तो अगर तुम इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को अपनाते हो, जो ब्राह्मणों के लिए है, अगर तुम अपनी गुणवत्ता द्वारा ब्राह्मण बनते हो, तो तुम्हारे, पश्चिमी राष्ट्र हो जाएॅगे... विशेष रूप से अमेरिका में, वो प्रथम श्रेणी का राष्ट्र हो जाएगा । वो प्रथम श्रेणी का राष्ट्र हो जाएगा । तुम बुद्धीमान हो । तुम्हारे पास संसाधन हैं । तुम जिज्ञासु भी हो । तुम अच्छी चीजों को अपनाते हो । तो तुममे अच्छे गुण हैं । तुम इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को गंभीरता से लो और तुम दुनिया के प्रथम श्रेणी के राष्ट्र बन जाअोगे । यही मेरा अनुरोध है ।
बहुत बहुत धन्यवाद । हरे कृष्ण ।
भक्त: जय, श्रील प्रभुपाद की जय !