HI/Prabhupada 0985 - मनुष्य जीवन विशेष रूप से परम सत्य के बारे में जिज्ञासा करने के लिए है: Difference between revisions

 
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अब यह जीवन, यह मनुष्य जीवन, विशेष रूप से परम सत्य के बारे में जिज्ञासा करने के लिए है । पशु जीवन में हम ऐसा नहीं कर सकते । बड़े, बड़े जानवर, बाघ और शेर और हाथि हैं, और बड़े, बड़े पेड़ भी, वे भी जीव हैं । बड़ी, बड़ी व्हेल मछली समुद्र के भीतर, बहुत विशाल । बड़े, बड़े पहाड़ । पहाड़, उन्मे भी जीवन है । लेकिन वे भगवान के बारे में जिज्ञासा नहीं कर सकते हैं,यह संभव नहीं है । तुम मनुष्य जीवन में भगवान के बारे में जिज्ञासा कर सकते हो, बस । इसलिए किसी भी सभ्य समाज में भगवान की एक जिज्ञासा होती है, जिसे धर्म कहा जाता है । कोई हो सकता है, या डिग्री में अलग-अलग हो सकता है । जैसे भारत में, वे भी जिज्ञासा कर रहे हैं । अभी नहीं, वर्तमान क्षण में नहीं । उन्होंने छोड़ दिया है । लेकिन सैकड़ों और हजारों साल पहले । हजारों नहीं । यहां तक ​​कि दो सौ साल पहले, भारत भगवान के बारे में जिज्ञासा करने इतना जिज्ञासु था । यहां तक ​​कि एक चीनी सज्जन, उन्होंने एक पुस्तक लिखी है, दार्शनिक, इसकी सिफारिश की जाती है - मैं नाम भूल गया, किताब के शीर्षक का - धर्म की कक्षा में न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में इसका अध्ययन किया जाता है । उस किताब में उन्होंने लिखा है कि अगर तुम भगवान के बारे में जानना चाहते हो, अगर तुम धर्म के बारे में जानना चाहते हो, तो तुम्हे भारत जाना चाहिए । हाँ, यह एक तथ्य है । क्योंकि किसी अन्य देश में महान संत और साधु व्यक्ति इतनी गंभीरता से संलग्न होता हैं भगवान को समझने के लिए । इसलिए वेदांत-सूत्र है ।
अब यह जीवन, यह मनुष्य जीवन, विशेष रूप से परम सत्य के बारे में जिज्ञासा करने के लिए है । पशु जीवन में हम ऐसा नहीं कर सकते । बड़े, बड़े जानवर, बाघ और शेर और हाथी हैं, और बड़े, बड़े पेड़ भी, वे भी जीव हैं । बड़ी, बड़ी व्हेल मछली समुद्र के भीतर, बहुत विशाल । बड़े, बड़े पहाड़ । पहाड़, उनमे भी जीवन है । लेकिन वे भगवान के बारे में जिज्ञासा नहीं कर सकते हैं, यह संभव नहीं है । तुम मनुष्य जीवन में भगवान के बारे में जिज्ञासा कर सकते हो, बस । इसलिए किसी भी सभ्य समाज में भगवान की एक जिज्ञासा होती है, जिसे धर्म कहा जाता है । कोई हो सकता है, या स्तर में अलग-अलग हो सकता है ।  


इसलिए हमें पता होना चाहिए कि भगवान एक हैं । भगवान अलग नहीं है । भगवान की कोई प्रतियोगिता नहीं हो सकती । मत्त: परतरं नान्यत किंचिद अस्ति धनन्‌जय ([[Vanisource:BG 7.7|भ गी ७।७]]) भगवान से ऊपर कोई बेहतर सत्य नहीं हो सकता । इसलिए ईश्वर को महान कहा जाता है। भगवान को निरपेक्ष कहा जाता है । तो धर्म का अर्थ है, प्रथम श्रेणी के धर्म का अर्थ है, कैसे अनुयायियों नें भगवान की समझ को विकसित किया है । यही प्रथम श्रेणी का धर्म है । यह नहीं कि कितने जानवरों का हम बलिदान दे सकते हैं या कितनी बार हम कर सकते हैं ... तो कई रस्में और कई अन्य चीजें हैं हर धर्म में । लेकिन, हमें इस परिणाम द्वारा परीक्षण करना है, फलेन परिचीयते । सब कुछ ... जैसे कि हमने इतना अध्ययन किया है, एक वैज्ञानिक नें, लेकिन परीक्षा तो होती है । अगर कोई परीक्षा में पास हो जाता है, तो यह समझा जाता है कि उसने अच्छी तरह से अध्ययन किया है । यह हमारा सामान्य ज्ञान है । स्कूल में, कॉलेजों में, हर जगह । अगर मैं परीक्षा में पास नहीं हुअा और अपने आप को विज्ञापित करता हूं "ओह, मैंने यह पढा है, मैंने वह पढा है।" तो उस का मूल्य क्या है ? मान लो एक आदमी कारोबार कर रहा है । तो अगर हम देखते हंै कि व्यापार करके, उसने कुछ पैसे अर्जित किए हैं, वह अमीर बन गया है, तो हम समझ सकते हैं कि वह सफल व्यापारी है । लेकिन अगर वह, वह एक गरीब आदमी है, और वह कहता है "मैंने यह किया है, मैंने वह किया है, मैंने वह किया है," तुम ऐसा कह सकते हो लेकिन हम परिणाम से जानना चाहता हैैं फलरन परिचीयते । यह एक संस्कृत संस्करण है । लेकिन हमें परिणाम से समझना होगा फलेन, क्या परिणाम मिला है तुम्हे । तुम्हारी परीक्षा का क्या मूल्य है, कितने नम्बर मिले है तुम्हे । इसी तरह अगर हम खुद को बहुत धर्मनिष्ठ घोषित करते हैं, महान धर्मनिष्ठ, महान धर्म के अनुयायी, लेकिन यह क्या है ? यह क्या है ...? तुमने भगवान भावनामृत की भावना को कितना विकसित किया है कितना तुमने भगवान से प्रेम करना सीखा है ।
जैसे भारत में, वे भी जिज्ञासा कर रहे हैं । अभी नहीं, वर्तमान क्षण में नहीं । उन्होंने  छोड़ दिया है । लेकिन सैकड़ों और हजारों साल पहले । हजारों नहीं । यहां तक ​​कि दो सौ साल पहले, भारत भगवान के बारे में जिज्ञासा करने के लिए बहुत जिज्ञासु था । यहां तक ​​कि एक चीनी सज्जन, उन्होंने एक पुस्तक लिखी है, तत्वज्ञानी, इसकी सिफारिश की जाती है - मैं नाम भूल गया, किताब के शीर्षक का - न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में धर्म की कक्षा में इसका अध्ययन किया जाता है । उस किताब में उन्होंने लिखा है कि अगर तुम भगवान के बारे में जानना चाहते हो, अगर तुम धर्म के बारे में जानना चाहते हो, तो तुम्हे भारत जाना चाहिए । हाँ, यह एक तथ्य है । क्योंकि किसी अन्य देश में महान संत और साधु व्यक्ति इतनी गंभीरता से संलग्न नहीं हुए है भगवान को समझने के लिए । इसलिए वेदांत-सूत्र है । इसलिए हमें पता होना चाहिए कि भगवान एक हैं । भगवान अलग नहीं है ।  
 
भगवान की कोई प्रतियोगिता नहीं हो सकती । मत्त: परतरम नान्यत किंचिद अस्ति धनंजय ([[HI/BG 7.7|भ.गी. ७.७]]) | भगवान से ऊपर कोई बेहतर सत्य नहीं हो सकता । इसलिए ईश्वर को महान कहा जाता है। भगवान को निरपेक्ष कहा जाता है । तो धर्म का अर्थ है, प्रथम श्रेणी के धर्म का अर्थ है, कैसे अनुयायियों नें भगवान की समझ को विकसित किया है । यही प्रथम श्रेणी का धर्म है । यह नहीं कि कितने जानवरों का हम बलिदान दे सकते हैं या कितनी बार हम कर सकते हैं... तो कई रस्में और कई अन्य चीजें हैं हर धर्म में । लेकिन, हमें इस परिणाम द्वारा परीक्षण करना है, फलेन परिचीयते ।  
 
सब कुछ... जैसे कि हमने इतना अध्ययन किया है, एक वैज्ञानिक नें, लेकिन परीक्षा तो होती है । अगर कोई परीक्षा में पास हो जाता है, तो यह समझा जाता है कि उसने अच्छी तरह से अध्ययन किया है । यह हमारा सामान्य ज्ञान है । स्कूल में, कॉलेजों में, हर जगह । अगर मैं परीक्षा में पास नहीं हुअा और अपने आप को विज्ञापित करता हूं, "ओह, मैंने यह पढा है, मैंने वह पढा है।" तो उस का मूल्य क्या है ? मान लो एक आदमी कारोबार कर रहा है ।  
 
तो अगर हम देखते है कि व्यापार करके, उसने कुछ पैसे अर्जित किए हैं, वह अमीर बन गया है, तो हम समझ सकते हैं कि वह सफल व्यापारी है । लेकिन अगर वह, वह एक गरीब आदमी है, और वह कहता है, "मैंने यह किया है, मैंने वह किया है, मैंने वह किया है," तुम ऐसा कह सकते हो लेकिन हम परिणाम से जानना चाहता हैैं | फलरन परिचीयते । यह एक संस्कृत संस्करण है । लेकिन हमें परिणाम से समझना होगा, फलेन, क्या परिणाम मिला है तुम्हे । तुम्हारी परीक्षा का क्या मूल्य है, कितने नम्बर मिले है तुम्हे । इसी तरह अगर हम खुद को बहुत धर्मनिष्ठ घोषित करते हैं, महान धर्मनिष्ठ, महान धर्म के अनुयायी, लेकिन यह क्या है ? यह क्या है...? तुमने भगवद भावनामृत की भावना को कितना विकसित किया है, कितना तुमने भगवान से प्रेम करना सीखा है ।  
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Latest revision as of 17:52, 1 October 2020



720905 - Lecture SB 01.02.07 - New Vrindaban, USA

अब यह जीवन, यह मनुष्य जीवन, विशेष रूप से परम सत्य के बारे में जिज्ञासा करने के लिए है । पशु जीवन में हम ऐसा नहीं कर सकते । बड़े, बड़े जानवर, बाघ और शेर और हाथी हैं, और बड़े, बड़े पेड़ भी, वे भी जीव हैं । बड़ी, बड़ी व्हेल मछली समुद्र के भीतर, बहुत विशाल । बड़े, बड़े पहाड़ । पहाड़, उनमे भी जीवन है । लेकिन वे भगवान के बारे में जिज्ञासा नहीं कर सकते हैं, यह संभव नहीं है । तुम मनुष्य जीवन में भगवान के बारे में जिज्ञासा कर सकते हो, बस । इसलिए किसी भी सभ्य समाज में भगवान की एक जिज्ञासा होती है, जिसे धर्म कहा जाता है । कोई हो सकता है, या स्तर में अलग-अलग हो सकता है ।

जैसे भारत में, वे भी जिज्ञासा कर रहे हैं । अभी नहीं, वर्तमान क्षण में नहीं । उन्होंने छोड़ दिया है । लेकिन सैकड़ों और हजारों साल पहले । हजारों नहीं । यहां तक ​​कि दो सौ साल पहले, भारत भगवान के बारे में जिज्ञासा करने के लिए बहुत जिज्ञासु था । यहां तक ​​कि एक चीनी सज्जन, उन्होंने एक पुस्तक लिखी है, तत्वज्ञानी, इसकी सिफारिश की जाती है - मैं नाम भूल गया, किताब के शीर्षक का - न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में धर्म की कक्षा में इसका अध्ययन किया जाता है । उस किताब में उन्होंने लिखा है कि अगर तुम भगवान के बारे में जानना चाहते हो, अगर तुम धर्म के बारे में जानना चाहते हो, तो तुम्हे भारत जाना चाहिए । हाँ, यह एक तथ्य है । क्योंकि किसी अन्य देश में महान संत और साधु व्यक्ति इतनी गंभीरता से संलग्न नहीं हुए है भगवान को समझने के लिए । इसलिए वेदांत-सूत्र है । इसलिए हमें पता होना चाहिए कि भगवान एक हैं । भगवान अलग नहीं है ।

भगवान की कोई प्रतियोगिता नहीं हो सकती । मत्त: परतरम नान्यत किंचिद अस्ति धनंजय (भ.गी. ७.७) | भगवान से ऊपर कोई बेहतर सत्य नहीं हो सकता । इसलिए ईश्वर को महान कहा जाता है। भगवान को निरपेक्ष कहा जाता है । तो धर्म का अर्थ है, प्रथम श्रेणी के धर्म का अर्थ है, कैसे अनुयायियों नें भगवान की समझ को विकसित किया है । यही प्रथम श्रेणी का धर्म है । यह नहीं कि कितने जानवरों का हम बलिदान दे सकते हैं या कितनी बार हम कर सकते हैं... तो कई रस्में और कई अन्य चीजें हैं हर धर्म में । लेकिन, हमें इस परिणाम द्वारा परीक्षण करना है, फलेन परिचीयते ।

सब कुछ... जैसे कि हमने इतना अध्ययन किया है, एक वैज्ञानिक नें, लेकिन परीक्षा तो होती है । अगर कोई परीक्षा में पास हो जाता है, तो यह समझा जाता है कि उसने अच्छी तरह से अध्ययन किया है । यह हमारा सामान्य ज्ञान है । स्कूल में, कॉलेजों में, हर जगह । अगर मैं परीक्षा में पास नहीं हुअा और अपने आप को विज्ञापित करता हूं, "ओह, मैंने यह पढा है, मैंने वह पढा है।" तो उस का मूल्य क्या है ? मान लो एक आदमी कारोबार कर रहा है ।

तो अगर हम देखते है कि व्यापार करके, उसने कुछ पैसे अर्जित किए हैं, वह अमीर बन गया है, तो हम समझ सकते हैं कि वह सफल व्यापारी है । लेकिन अगर वह, वह एक गरीब आदमी है, और वह कहता है, "मैंने यह किया है, मैंने वह किया है, मैंने वह किया है," तुम ऐसा कह सकते हो लेकिन हम परिणाम से जानना चाहता हैैं | फलरन परिचीयते । यह एक संस्कृत संस्करण है । लेकिन हमें परिणाम से समझना होगा, फलेन, क्या परिणाम मिला है तुम्हे । तुम्हारी परीक्षा का क्या मूल्य है, कितने नम्बर मिले है तुम्हे । इसी तरह अगर हम खुद को बहुत धर्मनिष्ठ घोषित करते हैं, महान धर्मनिष्ठ, महान धर्म के अनुयायी, लेकिन यह क्या है ? यह क्या है...? तुमने भगवद भावनामृत की भावना को कितना विकसित किया है, कितना तुमने भगवान से प्रेम करना सीखा है ।