HI/Prabhupada 0993 - यह व्यवस्था करो कि वह भूखा नहीं रहा है । यह आध्यात्मिक साम्यवाद है: Difference between revisions

 
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{{youtube_right|0lIkPHeeGwo|यह व्यवस्था करो कि वह भूखा नहीं रहा है । यह आध्यात्मिक साम्यवाद है <br >- Prabhupāda 0993}}
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अनुवाद: " क्या तुमने बूढे पुरुषों अौर लड़कों का ख्याल नहीं रखा जो तुम्हारे साथ भोजन करने के पात्र हैं ? क्या तुमने उन्हें छोड़ दिया और अकेले अपना भोजन कर रहे हो ? क्या तुमने कोई निर्लज्ज गलती की है जो घृणित मानी जाती है ?"
अनुवाद: "क्या तुमने बूढे पुरुषों अौर लड़कों का ख्याल नहीं रखा जो तुम्हारे साथ भोजन करने के पात्र हैं ? क्या तुमने उन्हें छोड़ दिया और अकेले अपना भोजन कर रहे हो ? क्या तुमने कोई निर्लज्ज गलती की है जो घृणित मानी जाती है ?"  


प्रभुपाद: तो, "क्या तुमने बूढे पुरुषों अौर लड़कों का ख्याल नहीं रखा जो तुम्हारे साथ भोजन करने के पात्र हैं ?" तो, यह वैदिक संस्कृति है । जो भोजन होता है वितरन करने के लिए, तो पहली प्राथमिकता बच्चों को दी जाती है । हम याद करते हैं, अब हम अठहत्तर वर्ष के हैं, जब हम बच्चे थे, हम चार, पांच साल के थे, हमें याद है । तुम में से कुछ नें यह देखा है (अस्पष्ट), और अगर तुम, कोई है ? तुमने देखा है। तो, पहला दावत बच्चों के लिए है । तो कभी कभी मैं थोड़ा हठी था, मैं नहीं बैठता, "नहीं, मैं अापके साथ ही खाऊंगा, बुज़ुर्ग पुरुष ।" लेकिन यही व्यवस्था थी । सब से पहले बच्चों को भरुपूर खिलाया जाना चाहिए फिर ब्राह्मण, और बच्चे और बूढ़े । परिवार में, बच्चे और बूढ़े ... ज़रा देखो महाराज युधिष्ठिर, कि वे कितने उत्सुक थे धृतराष्ट्र की देखभाल करने के लिए । हालांकि उन्होंने भूमिका निभाई, एक दुश्मन की भूमिका निभाई हमेशा, फिर भी यह परिवार के सदस्य का कर्तव्य है बूढ़ों की देखभाल करना । जब धृतराष्ट्र नें घर छोड़ दिया अपने छोटे भाई विदुर के आरोप लगाने पर, तो, "मेरे प्यारे भाई, तुम अब भी परिवार के जीवन से जुड़े हो, तुम्हे कोई शर्म नहीं है ।। तुम भोजन खा रहे हो, जिस से तुम, जिन्हे तुम अपना दुश्मन मानत हो । तुम शुरू से ही उन्हें मारना चाहते थे । तुमने उनके घर को आग लगा दी । तुमने जंगल में उन्हें भेज दिया । तुम्हें उनके जीवन के खिलाफ साजिश की और अब सब कुछ समाप्त हो गया है, अापके सभी बेट, पोते और दामाद अौर भाई, पिता, चाचा ... " मेरे कहने का मतलब है भीष्म उनके चाचा थे । तो पूरा परिवार । कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में हर कोई मारा गया इन पांच भाइयों को छोड़कर : युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव । सभी पुरुष सदस्यों की मौत हो गई । तो, केवल शेष वंशज महाराजा परिक्षित थे । वह अपनी मां के गर्भ के भीतर थे । और उनके पिता, अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की मृत्यु हो गई । वे सोलह साल के थे । सौभाग्य से उसकी पत्नी गर्भवती थी । अन्यथा कुरु वंश समाप्त हो गया था । तो, उन्होंने उसे डांटा, "अभी भी तुम यहाँ बैठे हो भोजन के एक निवाले के लिए कुत्ते की तरह । तुम्हे कोई शर्म नहीं है, मेरे प्यारे भाई । " तो उसने इसे बहुत गंभीरता से लिया, "हाँ, मेरे प्यारे भाई हाँ, तुम ठीक कह रहे हो । "तो क्या, तुम मुझसे क्या चाहते हो ?" " तुरंत बाहर निकलो ।" "तुरंत बाहर निकलो । और जंगल में जाओ ।" तो वह सहमत हो गया, वह वहाँ चला गया तो महाराजा युधिष्ठिर सुबह में सब से पहले आया करते थे, स्नान लेने के बाद, पूजा के बाद, क्योंकि पहला कर्तव्य था जाओ और बुज़र्गों से मिलो : "मेरे प्यारे चाचा, आप सभी आराम से हैं ? सब कुछ ठीक है ?" और कुछ समय के लिए बात करते हैं उन्हे खुश करने के लिए । यह परिवार के सदस्य का कर्तव्य है - बच्चों की देखभाल करना, बूढ़ों का ख्याल रखना, घर में एक छिपकली का भी ख्याल रखना, घर में एक सांप का भी । यह निषेधाज्ञा हम श्रीमद-भागवतम में पाते हैं , गृहस्थ, वह कितना जिम्मेदार है । इसलिए यह कहा जाता है, चाहे सर्प भी हो.... कोई भी सर्प का ख्याल नहीं रखना चाहता है । हर कोई मारना चाहता है, और कोई भी सर्प को मारने पर खेद नहीं करता है । प्रहलाद महाराज ने कहा, कि मोदेत साधुर अपि वृश्चिक सर्प हत्या ([[Vanisource:SB 7.9.14|श्री भ ७।९।१४]]) । उन्होंने कहा कि "मेरे पिता केवल एक सर्प की तरह थे, वृश्चिक, बिच्छू। तो एक सांप या बिच्छू को मारकर कोई भी दुखी नहीं होता है । तो मेरे प्रभु, आप नाराज नहीं होना । अब सब कुछ समाप्त हो गया है, मेरे पिता समाप्त हो गए हैं ।" तो यह था । लेकिन फिर भी शास्त्र कहता है कि अगर तुम्हारे घर में एक सर्प भी हो, यह ख्याल रखो कि वह बिना भोजन के नहीं है । यही आध्यात्मिक साम्यवाद है । वे साम्यवाद के पीछे हैं, लेकिन वे जानते नहीं हैं कि साम्यवाद क्या है । हर किसी का ध्यान रखा जाएगा । यही साम्यवाद है, वास्तविक साम्यवाद । कोई भी भूखा नहीं रहेगा । किसी को भी कोई कमी नहीं होगी उस राज्य में । यही साम्यवाद है ।
प्रभुपाद: तो, "क्या तुमने बूढे पुरुषों अौर लड़कों का ख्याल नहीं रखा जो तुम्हारे साथ भोजन करने के पात्र हैं ?" तो, यह वैदिक संस्कृति है । जो भोजन होता है वितरन करने के लिए, तो पहली प्राथमिकता बच्चों को दी जाती है । हम याद करते हैं, अभी मैं अठहत्तर वर्ष का हूँ, जब मैं बच्चा था, मैं चार, पांच साल का था, मुझे याद है । तुम में से कुछ नें यह देखा है (अस्पष्ट), और अगर तुम, कोई है ? तुमने देखा है। तो, पहेला भोजन बच्चों के लिए है । तो कभी कभी मैं थोड़ा हठी था, मैं नहीं बैठता, "नहीं, मैं अापके साथ, बुज़ुर्ग पुरुष के साथ, ही खाऊंगा ।" लेकिन यही व्यवस्था थी । सब से पहले बच्चों को भरुपूर खिलाया जाना चाहिए, फिर ब्राह्मण, और बच्चे और बूढ़े ।  
 
परिवार में, बच्चे और बूढ़े... ज़रा देखो महाराज युधिष्ठिर, कि वे कितने उत्सुक थे धृतराष्ट्र की देखभाल करने के लिए । हालांकि उन्होंने भूमिका निभाई, एक दुश्मन की भूमिका निभाई हमेशा, फिर भी यह परिवार के सदस्य का कर्तव्य है बूढ़ों की देखभाल करना । जब धृतराष्ट्र नें घर छोड़ दिया अपने छोटे भाई विदुर के आरोप लगाने पर, तो, "मेरे प्यारे भाई, तुम अभी भी पारिवारिक जीवन से जुड़े हो, तुम्हे कोई शर्म नहीं है ।। तुम भोजन खा रहे हो, जिस से तुम, जिन्हे तुमने अपना दुश्मन माना था । तुम शुरू से ही उन्हें मारना चाहते थे । तुमने उनके घर को आग लगा दी । तुमने उन्हें जंगल में भेज दिया । तुम्हने उनके जीवन के खिलाफ साजिश की और अब सब कुछ समाप्त हो गया है, अापके सभी बेटे, पोते और दामाद अौर भाई, पिता, चाचा... " मेरे कहने का मतलब है भीष्म उनके चाचा थे । तो पूरा परिवार ।  
 
कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में हर कोई मारा गया इन पांच भाइयों को छोड़कर: युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव । सभी पुरुष सदस्यों की मौत हो गई । तो, केवल शेष वंशज महाराज परिक्षित थे । वह अपनी मां के गर्भ के भीतर थे । और उनके पिता, अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की मृत्यु हो गई । वे सोलह साल के थे । सौभाग्य से उनकी पत्नी गर्भवती थी । अन्यथा कुरु वंश समाप्त हो गया था । तो, उन्होंने उसे डांटा, "अभी भी तुम यहाँ बैठे हो भोजन के एक निवाले के लिए कुत्ते की तरह । तुम्हे कोई शर्म नहीं है, मेरे प्यारे भाई । " तो उन्होंने इसे बहुत गंभीरता से लिया, "हाँ, मेरे प्यारे भाई हाँ, तुम ठीक कह रहे हो । "तो क्या, तुम मुझसे क्या चाहते हो ?" "तुरंत बाहर निकलो ।" "तुरंत बाहर निकलो । और जंगल में जाओ ।" तो वे सहमत हो गए, वे वह चले गए ।  
 
महाराज युधिष्ठिर सुबह में सब से पहले आया करते थे, स्नान लेने के बाद, पूजा के बाद, क्योंकि पहला कर्तव्य था जाओ और बुज़र्गों से मिलो: "मेरे प्रिय चाचा, आप सभी आराम से हैं ? सब कुछ ठीक है ?" और कुछ समय के लिए बात करते हैं उन्हे खुश करने के लिए । यह परिवार के सदस्य का कर्तव्य है - बच्चों की देखभाल करना, बूढ़ों का ख्याल रखना, घर में एक छिपकली का भी ख्याल रखना, घर में एक सांप का भी । यह आज्ञा हम श्रीमद-भागवतम में पाते हैं, गृहस्थ, वह कितना जिम्मेदार है । इसलिए यह कहा जाता है, चाहे सर्प भी हो... कोई भी सर्प का ख्याल नहीं रखना चाहता है । हर कोई मारना चाहता है, और कोई भी सर्प को मारने पर खेद नहीं करता है ।  
 
प्रहलाद महाराज ने कहा, कि मोदेत साधुर अपि वृश्चिक सर्प हत्या ([[Vanisource:SB 7.9.14|श्रीमद भागवतम ७.९.१४]]) । उन्होंने कहा कि "मेरे पिता केवल एक सर्प की तरह थे, वृश्चिक, बिच्छू। तो एक सांप या बिच्छू को मारकर कोई भी दुखी नहीं होता है । तो मेरे प्रभु, आप नाराज नहीं होना । अब सब कुछ समाप्त हो गया है, मेरे पिता समाप्त हो गए हैं ।" तो यह था । लेकिन फिर भी शास्त्र कहता है कि अगर तुम्हारे घर में एक सर्प भी हो, यह ख्याल रखो कि वह बिना भोजन के नहीं है । यही आध्यात्मिक साम्यवाद है । वे साम्यवाद के पीछे हैं, लेकिन वे जानते नहीं हैं कि साम्यवाद क्या है । हर किसी का ध्यान रखा जाएगा । यही साम्यवाद है, वास्तविक साम्यवाद । कोई भी भूखा नहीं रहेगा । किसी को भी कोई कमी नहीं होगी उस राज्य में । यही साम्यवाद है ।  
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Latest revision as of 14:59, 29 October 2018



730407 - Lecture SB 01.14.43 - New York

अनुवाद: "क्या तुमने बूढे पुरुषों अौर लड़कों का ख्याल नहीं रखा जो तुम्हारे साथ भोजन करने के पात्र हैं ? क्या तुमने उन्हें छोड़ दिया और अकेले अपना भोजन कर रहे हो ? क्या तुमने कोई निर्लज्ज गलती की है जो घृणित मानी जाती है ?"

प्रभुपाद: तो, "क्या तुमने बूढे पुरुषों अौर लड़कों का ख्याल नहीं रखा जो तुम्हारे साथ भोजन करने के पात्र हैं ?" तो, यह वैदिक संस्कृति है । जो भोजन होता है वितरन करने के लिए, तो पहली प्राथमिकता बच्चों को दी जाती है । हम याद करते हैं, अभी मैं अठहत्तर वर्ष का हूँ, जब मैं बच्चा था, मैं चार, पांच साल का था, मुझे याद है । तुम में से कुछ नें यह देखा है (अस्पष्ट), और अगर तुम, कोई है ? तुमने देखा है। तो, पहेला भोजन बच्चों के लिए है । तो कभी कभी मैं थोड़ा हठी था, मैं नहीं बैठता, "नहीं, मैं अापके साथ, बुज़ुर्ग पुरुष के साथ, ही खाऊंगा ।" लेकिन यही व्यवस्था थी । सब से पहले बच्चों को भरुपूर खिलाया जाना चाहिए, फिर ब्राह्मण, और बच्चे और बूढ़े ।

परिवार में, बच्चे और बूढ़े... ज़रा देखो महाराज युधिष्ठिर, कि वे कितने उत्सुक थे धृतराष्ट्र की देखभाल करने के लिए । हालांकि उन्होंने भूमिका निभाई, एक दुश्मन की भूमिका निभाई हमेशा, फिर भी यह परिवार के सदस्य का कर्तव्य है बूढ़ों की देखभाल करना । जब धृतराष्ट्र नें घर छोड़ दिया अपने छोटे भाई विदुर के आरोप लगाने पर, तो, "मेरे प्यारे भाई, तुम अभी भी पारिवारिक जीवन से जुड़े हो, तुम्हे कोई शर्म नहीं है ।। तुम भोजन खा रहे हो, जिस से तुम, जिन्हे तुमने अपना दुश्मन माना था । तुम शुरू से ही उन्हें मारना चाहते थे । तुमने उनके घर को आग लगा दी । तुमने उन्हें जंगल में भेज दिया । तुम्हने उनके जीवन के खिलाफ साजिश की और अब सब कुछ समाप्त हो गया है, अापके सभी बेटे, पोते और दामाद अौर भाई, पिता, चाचा... " मेरे कहने का मतलब है भीष्म उनके चाचा थे । तो पूरा परिवार ।

कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में हर कोई मारा गया इन पांच भाइयों को छोड़कर: युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव । सभी पुरुष सदस्यों की मौत हो गई । तो, केवल शेष वंशज महाराज परिक्षित थे । वह अपनी मां के गर्भ के भीतर थे । और उनके पिता, अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की मृत्यु हो गई । वे सोलह साल के थे । सौभाग्य से उनकी पत्नी गर्भवती थी । अन्यथा कुरु वंश समाप्त हो गया था । तो, उन्होंने उसे डांटा, "अभी भी तुम यहाँ बैठे हो भोजन के एक निवाले के लिए कुत्ते की तरह । तुम्हे कोई शर्म नहीं है, मेरे प्यारे भाई । " तो उन्होंने इसे बहुत गंभीरता से लिया, "हाँ, मेरे प्यारे भाई हाँ, तुम ठीक कह रहे हो । "तो क्या, तुम मुझसे क्या चाहते हो ?" "तुरंत बाहर निकलो ।" "तुरंत बाहर निकलो । और जंगल में जाओ ।" तो वे सहमत हो गए, वे वह चले गए ।

महाराज युधिष्ठिर सुबह में सब से पहले आया करते थे, स्नान लेने के बाद, पूजा के बाद, क्योंकि पहला कर्तव्य था जाओ और बुज़र्गों से मिलो: "मेरे प्रिय चाचा, आप सभी आराम से हैं ? सब कुछ ठीक है ?" और कुछ समय के लिए बात करते हैं उन्हे खुश करने के लिए । यह परिवार के सदस्य का कर्तव्य है - बच्चों की देखभाल करना, बूढ़ों का ख्याल रखना, घर में एक छिपकली का भी ख्याल रखना, घर में एक सांप का भी । यह आज्ञा हम श्रीमद-भागवतम में पाते हैं, गृहस्थ, वह कितना जिम्मेदार है । इसलिए यह कहा जाता है, चाहे सर्प भी हो... कोई भी सर्प का ख्याल नहीं रखना चाहता है । हर कोई मारना चाहता है, और कोई भी सर्प को मारने पर खेद नहीं करता है ।

प्रहलाद महाराज ने कहा, कि मोदेत साधुर अपि वृश्चिक सर्प हत्या (श्रीमद भागवतम ७.९.१४) । उन्होंने कहा कि "मेरे पिता केवल एक सर्प की तरह थे, वृश्चिक, बिच्छू। तो एक सांप या बिच्छू को मारकर कोई भी दुखी नहीं होता है । तो मेरे प्रभु, आप नाराज नहीं होना । अब सब कुछ समाप्त हो गया है, मेरे पिता समाप्त हो गए हैं ।" तो यह था । लेकिन फिर भी शास्त्र कहता है कि अगर तुम्हारे घर में एक सर्प भी हो, यह ख्याल रखो कि वह बिना भोजन के नहीं है । यही आध्यात्मिक साम्यवाद है । वे साम्यवाद के पीछे हैं, लेकिन वे जानते नहीं हैं कि साम्यवाद क्या है । हर किसी का ध्यान रखा जाएगा । यही साम्यवाद है, वास्तविक साम्यवाद । कोई भी भूखा नहीं रहेगा । किसी को भी कोई कमी नहीं होगी उस राज्य में । यही साम्यवाद है ।