HI/Prabhupada 1034 - मृत्यु का अर्थ है सात महीनों की नींद । बस । यही मृत्यु है

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720403 - Lecture SB 01.02.05 - Melbourne

मैं, आप, हम में से हर एक, हमें परेशानी होती है मृत्यु के समय, जन्म के समय । जन्म और मृत्यु । हम जीव हैं, हम आत्मा हैं । जन्म और मृत्यु इस शरीर का होता है । शरीर जन्म लेता है और शरीर समाप्त हो जाता है । मृत्यु का अर्थ है सात महीनों के लिए नींद । बस इतना ही । यही मृत्यु है । आत्मा है... जब यह शरीर रहने लायक नहीं रहता है, आत्मा इस शरीर को त्याग देता है । और बेहतर व्यवस्था के द्वारा आत्मा विशेष प्रकार की मां के गर्भ में फिर से डाला जाता है, और आत्मा शरीर के उस विशेष प्रकार को विकसित करती है । सात महीने तक आत्मा बेहोश रहती है । अौर जब शरीर का विकास होता है और फिर से चेतना आती है और बच्चा गर्भ से बाहर आना चाहता है और वह हिलता है । हर माँ को अनुभव है, कि कैसे बच्चा गर्भ के भीतर सात महीने की उम्र में हिलता है ।

तो यह एक महान विज्ञान है, कि कैसे आत्मा, आत्मा, इस भौतिक शरीर के संपर्क में है, और कैसे वह एक शरीर से दूसरे शरीर में जाता है । उदाहरण दया जाता है कि जैसे वासांसी जीर्णानि यथा विहाय (भ.गी. २.२२) । हम हैं... जैसे वस्त्र, हमारा शर्ट और कोट, बहुत पुराना हो जाता है, हम इसे छोड़ देते हैं और हम एक और शर्ट और कोट स्वीकार करते हैं... इसी तरह, मैं, आप, हम में से हर एक, हम आत्मा हैं । हमें भौतिक प्रकृति की व्यवस्था के द्वारा एक प्रकार का शरीर अौर शर्ट और कोट दिया जाता है । प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणि सर्वश: (भ.गी. ३.२७) । वह विशेष शरीर हमें दिया जाता है हमारे जीवन स्तर के हिसाब से । जैसे अाप यूरोपीय, अमेरिकी, आस्ट्रेलियाई, आपको एक विशेष प्रकार मिला है, और आप को अवसर मिला है, जीने के एक विशेष धोरण का । जैसे अगर कोई भारतीय अाता है अापके यूरोपीय, अमेरिकी, ऑस्ट्रेलियाई शहरों में, जैसे अापका मेलबोर्न शहर... "मैं अपने शिष्यों से बात कर रहा था, "अगर कोई भारतीय अाता है, तो वे आश्चर्यचकित हो जाऍगे जीवन के इस धोरण से ।"