HI/Prabhupada 0131 - पिता को समर्पण करना बहुत स्वाभाविक है
Lecture on BG 7.11-16 -- New York, October 7, 1966
यह पागलपन, यह माया, इस भौतिक जगत् के भ्रम को दूर करना बहुत मुश्किल है । यह बहुत मुश्किल है । लेकिन भगवान कृष्ण कहते हैं, माम् एव ये प्रपद्यन्ते एताम तरन्ति ते (भ गी ७.१४) । अगर कोई स्वेच्छा से, या अपने दुःखी जीवन को समझ कर, अगर वह कृष्ण को समर्पण करता है, "मेरे प्रिय कृष्ण, मैं इतने सारे जीवन के लिए आपको भूल गया । अब मैं समझ गया हूँ कि अाप मेरे पिता हैं, आप मेरे रक्षक हैं । मैं आपको आत्मसमर्पण करता हूँ ।" उसी तरह जैसे एक खोया हुआ बच्चा अपने पिता के पास जाता है, "मेरे प्रिय पिताजी, यह मेरी गलतफ़हमी थी कि मैं अापकी सुरंक्षण से दूर चला गया, लेकिन मैंने पीड़ा सही है, अब मैं अापके पास अाया हूँ ।" पिता गले लगाता है " मेरे प्रिय बालक । तुम अा जाअो। मैं तुम्हारे लिए इतने दिनों से उत्सुक था । ओह, खुशी है कि तुम वापस आ गए हो । " पिता इतने दयालु हैं ।
तो हम उसी स्थिति में हैं । जैसे ही हम परम भगवान को आत्मसमर्पण करते हैं... यह बहुत मुश्किल नहीं है । एक बेटे का समर्पण पिता को, यह बहुत मुश्किल काम ? तुम्हें यह बहुत मुश्किल काम लगता है ? एक बेटा अपने पिता को समर्पण करता है । यह बहुत स्वाभाविक है । कोई अपमान नहीं है । पिता हमेशा वरिष्ठ हैं । अगर मैं अपने पिता के पैर छूता हूँ, अगर मैं अपने पिता के सामने झुकता हूँ, यह महिमा है । यह मेरा यश है । कोई अपमान नहीं है । कोई कठिनाई नहीं है । क्यों हम कृष्ण को आत्मसमर्पण न करें?
इसलिए यह प्रक्रिया है । माम् एव ये प्रपद्यन्ते । "यह सभी भ्रमित जीव, जब वे मुझे आत्मसमर्पण करते हैं, " मायाम् एताम् तरन्ति ते (भ गी ७.१४), "उसे कोई दुःख नहीं है जीवन में ।" वह एकदम से पिता के संरक्षण में अा जाता है । तुम भगवद्गीता के अंत में पाअोगे, अहम् त्वाम् सर्व-पापेभ्यो मोक्षयिश्यामि मा शुच: (भ गी १८.६६) । जब पिता... बच्चा जब उसकी माँ के वक्ष पर आता है, माँ उसकी रक्षा करती है। अगर कोई खतरा है, तो माँ पहले अपनी जान देने के लिए तैयार है, फिर बच्चे की जान । इसी तरह, जब हम भगवान के संरक्षण में होते हैं, तो कोई ड़र नहीं है।