Category:HI-Quotes - 1966
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- HI/Prabhupada 0013 - आध्यात्मिक कार्य चौबीस घंटे
- HI/Prabhupada 0015 - मैं ये शरीर नहीं हूँ
- HI/Prabhupada 0081 - सूर्य लोक में शरीर अग्नि से बने हैं
- HI/Prabhupada 0131 - पिता को समर्पण करना बहुत स्वाभाविक है
- HI/Prabhupada 0165 - शुद्ध कार्यों को भक्ति कहते हैं
- HI/Prabhupada 0166 - तुम बर्फ को गिरने से नहीं रोक सकते
- HI/Prabhupada 0196 - आध्यात्मिक चीजों की लालसा
- HI/Prabhupada 0796 - मत सोचो कि मैं बोल रहा हूँ । मैं बस साधन हूँ । असली वक्ता भगवान हैं
- HI/Prabhupada 0836 - हमें मानव जीवन की पूर्णता के लिए कुछ भी बलिदान करने के लिए तैयार रहना चाहिए
- HI/Prabhupada 1057 - भगवद्-गीता को गीतोपनिषद् भी कहा जाता है, वैदिक ज्ञान का सार
- HI/Prabhupada 1058 - भगवद गीता के वक्ता भगवान श्री कृष्ण हैं
- HI/Prabhupada 1059 - प्रत्येक व्यक्ति का भगवान के साथ विशिष्ट संबंध है
- HI/Prabhupada 1060 - जब तक कोई भगवद गीता का पाठ विनम्र भाव से नहीं करता है...
- HI/Prabhupada 1061 - इस भगवद गीता की विषयवस्तु में पाँच मूल सत्यों का ज्ञान निहित है
- HI/Prabhupada 1062 - हमारी वृत्ति भौतिक प्रकृति को नियंत्रित करने की है
- HI/Prabhupada 1063 - हमें सभी प्रकार के कर्मफल से मुक्ति दो
- HI/Prabhupada 1064 - भगवान हरेक जीव के हृदय में वास करते हैं
- HI/Prabhupada 1065 - व्यक्ति को सर्वप्रथम यह जान लेना चाहिए कि वो यह शरीर नहीं है
- HI/Prabhupada 1066 - अल्पज्ञानी लोग परम सत्य को निराकार मानते हैं
- HI/Prabhupada 1067 - हमें भगवद गीता को किसी भी प्रकार की टीका टिप्पणी के बग़ैर, बिना घटाए स्वीकार करना है
- HI/Prabhupada 1068 - विभिन्न प्रकार के गुणों के अनुसार तीन प्रकार के कर्म हैं
- HI/Prabhupada 1069 - रिलीजन से विश्वास का भाव सूचित होता है । विश्वास परिवर्तित हो सकता है - सनातन धर्म नहीं
- HI/Prabhupada 1070 - सेवा करना जीव का शाश्वत धर्म है
- HI/Prabhupada 1071 - अगर हम भगवान का संग करते हैं, उनका सहयोग करते हैं, तो हम सुखी बन जाते हैं
- HI/Prabhupada 1072 - भौतिक जगत को छोड़ना और नित्य धाम में अनन्दमय जीवन पाना
- HI/Prabhupada 1073 - जब तक हम भौतिक प्रकृति पर प्रभुत्व जताने की प्रवृत्ति को नहीं त्यागते
- HI/Prabhupada 1074 - इस संसार में जितने भी दुख का हम अनुभव करते हैं - ये सब शरीर से उत्पन्न है
- HI/Prabhupada 1075 - इस जीवन के कर्मो से हम अगले जीवन की तैयारी कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 1076 - मृत्यु के समय हम या तो इस संसार में रह सकते हैं या आध्यात्मिक जगत जा सकते हैं
- HI/Prabhupada 1077 - भगवान पूर्ण हैं, उनके नाम और उनमे कोई अंतर नहीं है
- HI/Prabhupada 1078 - मन तथा बुद्धि को चौबीस घंटे भगवान के विचार में लीन करना
- HI/Prabhupada 1079 - भगवद गीता एक दिव्य साहित्य है जिसको हमें ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए
- HI/Prabhupada 1080 - भगवद गीता में संक्षेप रुप से बताया है - एक ईश्वर कृष्ण हैं, वे सांप्रदायिक ईश्वर नहीं हैं