HI/Prabhupada 0166 - तुम बर्फ को गिरने से नहीं रोक सकते
Lecture on BG 2.7-11 -- New York, March 2, 1966
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम हमेशा पीड़ित हैं । कष्ट तीन प्रकार के होते हैं । मैं इस आर्थिक समस्या के बारे में बात नहीं कर रहा ... वह भी एक और दुख है । लेकिन वैदिक ज्ञान के अनुसार - या यह एक तथ्य है - दुख तीन प्रकार के होते हैं । एक प्रकार है शरीर और मन से संबंधित पीड़ा ... अब, मान लो कि मुझे थोडा सिरदर्द है । अब मुझे बहुत गर्मी महसूस हो रही है, मुझे बहुत ठंड महसूस हो रही है, और बहुत सारे शारीरिक कष्ट हैं । इसी तरह, हमें मन के कष्ट हैं । मेरा मन आज ठीक नहीं है । मैंने किया है ... किसी ने मुझे कुछ कहा दिया है । तो मैं पीड़ित हूँ । या मैंने कुछ खो दिया है या कुछ दोस्त, इतनी सारी चीजें ।
तो शरीर और मन की पीड़ा, और बादमे प्रकृति के कष्ट । यह अधीदैविक कहा जाता है जिसपर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है । हर दुख में हमारा कोई नियंत्रण नहीं है, विशेष रूप से, ... अगर भारी हिमवर्षा होती है । पूरा न्यूयॉर्क शहर बर्फ से भर जाता है, और हम सभी को असुविधा में डाल देता है । यह एक प्रकार की पीड़ा है । लेकिन तुम्हारा कोई नियंत्रण नहीं है । तुम बर्फ को गिरने से नहीं रोक सकते । तुम देख रहे हो? अगर कुछ कुछ पवन, ठंडी हवा है, तो तुम उसे नहीं रोक सकते हो । इसे अधिदैविक पीड़ा कहा जाता है । और मन की पीड़ा और शरीर की पीड़ा को अध्यात्मिक कहा जाता है । और अन्य कष्ट, अधिभौतिक, अन्य प्राणियों द्वारा हमला, मेरा दुश्मन, कुछ जानवर या कुछ कीड़ा, इतने सारे । तो दुख तीन प्रकार के हमेशा हैं । हमेशा । और ... लेकिन हम यह सभी कष्ट नहीं चाहते । जब ये सवाल आता है ...
अब यहाँ अर्जुन सचेत है कि "वहाँ एक लड़ाई है, और यह मेरा कर्तव्य है दुश्मन के साथ लड़ाई करना, लेिकन पीड़ा है क्योंकि वे मेरे भाइ हैं । " तो उसे लग रहा है । तो जब तक एक इंसान सजाग औ जागृत नहीं है इस तथ्य से कि हम हमेशा दुखी हैं लेकिन हमें यह सभी कष्ट नहीं चाहिए ... यह सवाल ... इस तरह के व्यक्ति को एक आध्यात्मिक गुरु का अाश्रय लेना चाहिए, जब वह सचेत होता है । तुम देख रहे हो? तो जब तक वह जानवर की तरह है, उसे पता नहीं है कि वह दुख में हमेशा है ... वह नहीं जानता है, वह परवाह नहीं करता है, या वह एक समाधान करना नहीं चाहता है । और यहाँ अर्जुन पीड़ित है, और वह एक समाधान करना चाहता है, और इसलिए वह एक आध्यात्मिक गुरु स्वीकार करता है । इसलिए जब हम अपने कष्टों के प्रति जागरूक हैं, हम इस पीड़ित स्थिति के प्रति जागृत हैं ... पीड़ा है । दुख की विस्मृति या अज्ञान का कोई अर्थ नहीं है । पीड़ा तो है ही । लेकिन कोई जब इस पीड़ा का समाधान करने के लिए बहुत गंभीर है, तो एक आध्यात्मिक गुरु की आवश्यकता है ।
जैसे अर्जुन को अब एक आध्यात्मिक गुरु की आवश्यकता है । क्या यह स्पष्ट है? हां । तो दुख तो है । किसी शिक्षा की आवश्यकता नहीं है, बस यह विचार कि एक मामूली सोच, कि "मैं यह सभी कष्ट नहीं चाहता, लेकिन मैं पीड़ित हूँ । क्यों? क्या कोई समाधान है? है क्या? ... लेकिन समाधान है । यह सभी शास्त्र, यह सभी वैदिक ज्ञान, सब कुछ ... और न केवल वैदिक ज्ञान ... अब ... अरे, क्यों तुम स्कूल जा रहे हो? क्यों तुम कॉलेज जा रहे हो? क्यों तुम वैज्ञानिक शिक्षा ले रहे हो? क्यों तुम कानून की शिक्षा ले रहे हो? सब कुछ हमारे कष्टों को समाप्त करने के लिए है । अगार कोई दुख नहीं था, तो कोई भी शिक्षा न लेता । तुम देख रहे हो? लेकिन वह सोचता है कि "अगर मैं शिक्षित हूँ, अगर मैं एक डॉक्टर बनूँ, अगर मैं एक वकील बनूँ या मैं इंजीनियर बनूँ, तो मैं खुश हो जाऊगा ।" खुशी । यही परम लक्ष्य है । "मुझे एक अच्छी नौकरी मिल जाएगी, सरकारी नौकरी । मुझे खुशी होगी ।"
तो खुशी अंत है हर, मेरे कहने का मतलब है, अनुसरण का । तो ... लेकिन इन कष्टों का कम होना, यह अस्थायी हैं । वास्तविक पीड़ा, असली पीड़ा, हमारे इस भौतिक अस्तित्व की वजह से है, तीन प्रकार की पीड़ा । तो जब कोई अपनी पीड़ा के बारे में सचेत है और वह इस पीड़ा का समाधान करना चाहता है, तो एक आध्यात्मिक गुरु की आवश्यकता है । अब, अगर तुम अपने कष्टों का समाधान करना चाहते हो, और तुम किसी व्यक्ति से परामर्श करना चाहते हो, अब किस तरह के व्यक्ति से तुम मिलना चाहोगे जो तुम्हारे सभी दुखों का अंत कर सके? यही चयन होना चाहिए । अगर तुम एक गहना खरीदना चाहते हो, हीरा, और बहुत मूल्यवान चीज, और तुम एक किराने की दुकान पर जाअो ... इस तरह का अज्ञान - तुम्हे धोखा ही मिलेगा । तुम्हे धोखा ही मिलेगा । कम से कम तुम्हे एक गहने की दुकान तक जाना चाहिए. आभूषण की दुकान, तुम देख रहे हो? इतना ज्ञान तुम्हारे पास होना ही चाहिए ।