HI/Prabhupada 0503 - गुरु स्वीकारना मतलब निरपेक्ष सत्य के बारे में उनसे पूछताछ करना



Lecture on BG 2.15 -- Hyderabad, November 21, 1972

तो वेदांत सूत्र की प्राकृतिक टिपण्णी श्रीमद-भागवतम है । जीवस्य तत्त्व-जिज्ञासा, जीवस्य तत्त्व-जिज्ञासा । यह हमारा जीवन है । जीवस्य, हर जीव का । हर जीव का मतलब है विशेष रूप से मनुष्य । क्योंकि बिल्लि और कुत्ते, वे ब्रह्म के बारे में पूछताछ नहीं कर सकते हैं, या निरपेक्ष सत्य । इसलिए निष्कर्ष यह है कि मनुष्य जीवन में, हमें जीवन की बस पशु प्रवृति में लगे नहीं रहना चाहिए । यह बस समय की बर्बादी है । हमें निरपेक्ष सत्य की पूछताछ करनी चाहिए । अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । और हमें समझने की कोशिश करनी चाहिए । तद विद्धि, तत्त्व-दर्शिभी: । तत्त्व-दर्शि से । ज्ञानिन:, तत्त्व-दर्शिन:, ये शब्द हैं ।

तो मनुष्य जीवन में इसलिए, हर समाज में, प्रणाली यह है कि बच्चों को स्कूल भेजा जाता है, कॉलेज, चीजों को समझने के लिए । इसी तरह, आध्यात्मिक समझ के लिए, तद-विज्ञानार्थम स गुरुम एव अभिगच्छेत (मुंडक उपनिषद १.२.१२) | अभिगच्छेत का मतलब है हमें चाहिए ही । कोई विकल्प नहीं है । हम यह नहीं कह सकते हैं "मैं... मैं नहीं जाऊँगा ।" नहीं । अगर तुम नहीं जाते, तो तुम्हे धोखा मिलता है । यही हमारी वैष्णव प्रणाली है । आदौ गुर्वाश्रयम । पहली बात है प्रामाणिक आध्यात्मिक गुरु की शरण लेना । अदौ गुर्वाश्रय सद-धर्म-पृच्छा । एसा नहीं कि मैं, यह एक प्रथा बन गया है: "मैं एक गुरु स्वीकारता हूँ । अब मेरा काम समाप्त हो गया है । मुझे एक गुरु मिल गया है ।" नहीं । तत्त्व-जिज्ञासा जीवस्य-जिज्ञासा । गुरू का मतलब है, गुरु स्वीकारना मतलब निरपेक्ष सत्य के बारे में उनसे पूछताछ करना । जिज्ञासु श्रेय उत्तमम । ये वैदिक आज्ञा हैं । जो जिज्ञासु हैं, मतलब जिज्ञासु । जिज्ञासु: श्रेय उत्तमम । श्रेय: । श्रेय: मतलब है लाभकारी । तो उत्तमम, विशेष फायदा । जो भी जिज्ञासु है जीवन के मुख्य लाभ के बारे में पता करने के लिए, उसके लिए एक गुरु को स्वीकार करने की जरूरत है ।

तस्माद गुरुम प्रपद्येत
जिझासु: श्रेय: उत्तमम
शब्दे परे च निष्णातम
ब्रह्मणि उपशमाश्रयम
(श्रीमद भागवतम ११.३.२१)

तो यह हमारा कृष्ण भावनमृत आंदोलन है । हम लोगों को शिक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं जीवन के मूल्य को समझने के लिए, विशेष रूप से आध्यात्मिक जीवन के मूल्य को, भागवत । धर्मान भागवतान इह । आध्यात्मिक जीवन को समझने के द्वारा, अपनी वास्तविक संवैधानिक स्थिति को समझने के द्वारा, वह प्रबुद्ध किया जा सकता है, जीवन का उद्देश्य क्या है, क्या जीवन का कर्तव्य है, जीवन का उद्देश्य क्या है । यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।

हरे कृष्ण ।