HI/Prabhupada 0667 - पूरी अचेतना अायी है इस शरीर के कारण
Lecture on BG 6.16-24 -- Los Angeles, February 17, 1969
भक्त: श्री गौरंग की जय । भक्त: श्लोक सोलह: "हे अर्जुन! उसके योगी बनने की कोई सम्भावना नहीं है, जो अधिक खाता है या बहुत कम खाता है, जो अधिक सोता है अथवा जो पर्याप्त नहीं सोता (भ.गी. ६.१६)।"
प्रभुपाद: हाँ । यह बहुत अच्छा है । कुछ भी प्रतिबंधित नहीं है क्योंकि आख़िरकार, तुम्हे इस शरीर के साथ ही योग प्रक्रिया को निष्पादित करना है । एक बुरे सौदे का सबसे अच्छा उपयोग करना है । तुम समझ रहे हो ? यह भौतिक शरीर सभी कष्टों का स्रोत है । असल में आत्मा को कोई दुख नहीं है । जैसे एक जीव की सामान्य स्थिति है स्वस्थ जीवन । रोग होता है कुछ संदूषण, संक्रमण से । रोग हमारा जीवन नहीं है ।
इसी प्रकार भौतिक अस्तित्व की वर्तमान स्थिति आत्मा की बिमार हालत है । और वह क्या बीमारी है? रोग है यह शरीर । क्योंकि यह शरीर मेरे लिए नहीं है, यह मेरा शरीर नहीं है । जैसे हमारा वस्त्र । तुम वस्त्र नहीं हो । लेकिन हमने अलग तरीके के वस्त्र पहने हैं यहॉ पर । किसी ने लाल रंग, किसी नें सफेद रंग, किसी नें पीला रंग । लेकिन यह रंग, मैं यह रंग नहीं हूँ । इसी प्रकार यह शरीर, मैं सफेद आदमी, काला आदमी, भारतीय, अमेरिकी या यह, हिंदू, मुस्लिम, ईसाई हूँ । यह मेरी स्थिति नहीं है । यह सब रोगग्रस्त हालत है । रोगग्रस्त हालत । तुम बीमारी से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हो । यह योग प्रणाली है ।
परमेश्वर के साथ फिर से संबंध जोडना । क्योंकि मैं हिस्सा हूँ । वही उदाहरण । किसी तरह से उंगली कट जाती है और यह जमीन पर गिर रही है, उसका कोई मूल्य नहीं है । मेरी उंगली, जब यह कट जाती है और यह जमीन पर पड़ी है, उसका कोई मूल्य नहीं है । लेकिन जैसे ही उंगली इस शरीर के साथ जुड़ जाती है, इसका लाखों और अरबों डॉलर का मूल्य है । अमूल्य । इसी तरह हम अब भगवान या कृष्ण से जुदा हुए हैं, इस भौतिक हालत के कारण । जुदा नहीं हैं, भूल गए हैं । संबंध है । भगवान हमारी सभी आवश्यकताओं की आपूर्ति कर रहे हैं, जैसे एक राज्य का कैदी नागरिक विभाग से जुदा है । वह आपराधिक विभाग में आया है । दरअसल जुदा नहीं है । सरकार अभी भी ख्याल रख रही है । लेकिन कानूनी तौर पर जुदा है । इसी प्रकार हम जुदा नहीं हैं ।
हम जुदा नहीं हो सकते क्योंकि कृष्ण के बिना कोई अस्तित्व नहीं है । तो कैसे मैं जुदा हो सकता हूँ ? जुदा होने का मतलब है, कृष्ण को भूल कर, बजाय कृष्ण भावनामृत में अपने आप को तल्लीन करने के, मैं इतनी सारी बकवास चेतना में लगा हूँ । यही वियोग है । यह सोचने के बजाय कि मैं भगवान या कृष्ण का शाश्वत सेवक हूं, मैं सोच रहा हूँ कि मैं अपने समाज का सेवक हूँ, मैं अपने देश का नौकर हूँ, मैं अपने पति का नौकर हूँ, मैं अपनी पत्नी का दास हूं, मैं अपने कुत्ते का नौकर या कई अौर । यह विस्मरण है । तो यह कैसे हो गया ? इस शरीर के कारण । पूरी बात ।
पूरी अचेतना अायी है इस शरीर के कारण । क्योंकि मैं अमेरिका में पैदा हुआ हूँ मैं अमेरिकी की तरह सोच रहा हूँ । अौर क्योंकि मैं अमेरिकी की तरह सोच रहा हूँ, अमेरिकी सरकार का दावा है, "हाँ, तुम आअो और लडो, अपनी जान दो ।" ड्राफ्ट बोर्ड । क्यों? यह शरीर । इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को पता होना चाहिए मैं जीवन की सभी दुःखी हालत से पीड़ित हूँ इस शरीर के कारण। इसलिए हमें इस तरह से कार्य नहीं करना चाहिए कि यह भौतिक शरीर के साथ कारावास जन्म के बाद जन्म जारी रहे । या तो अमेरिकी शरीर, भारतीय शरीर, कुत्ते का शरीर, सूअर का शरीर, इतने सारे - ८४,००,००० शरीर । यही योग कहा जाता है ।
कैसे शरीर के इस दूषण से बाहर निकलें । लेकिन पहला अनुदेश है यह समझना कि मैं यह शरीर नहीं हूं । यही भगवद-गीता के शिक्षण का बुनियादी सिद्धांत है । अशोच्यान अन्वशोचस त्वम प्रज्ञा-वादांश च भाषसे (भ.गी. २.११) | "मेरे प्रिय अर्जुन, तुम बहुत अच्छी तरह से बात कर रहे हो, एक बहुत ही उन्नत शिक्षित आदमी की तरह । लेकिन तुम शारीरिक मंच पर बात कर रहे हो, सब बकवास । " "मैं इसका पिता हूँ, ओह, वे मेरे रिश्तेदार हैं, वे मेरी यह हैं, वे मेरे वह हैं, मैं कैसे मार सकता हूँ, कैसे मैं यह कर सकता हूँ, मैं नहीं कर सकता..." पूरा वातावरण, चेतना है शरीर की ।
इसलिए कृष्ण, अर्जुन के उन्हे आध्यात्मिक गुरु स्वीकार करने के तुरंत बाद, वे तुरंत उसे डांटते हैं जैसे एक गुरु अपने शिष्य को डांटता है: "तुम बकवास, तुम बहुत समझदारी से बात कर रहे हो जैसे कि तुम इतनी सारी बातें को जानते हो । लेकिन तुम्हारी स्थिति यह शरीर है ।" तो पूरी दुनिया, वे अपने अाप को बहुत उन्नत पेश करते हैं शिक्षा के क्षेत्र में - विज्ञान, तत्वज्ञान, यह, वह, राजनीति, इतनी सारी चीजें । लेकिन, उनकी स्थिति यह शरीर है ।
जैसे, एक उदाहरण, एक गिद्ध की तरह । एक गिद्ध बहुत ऊँचा उडता है । सात मील, आठ मील की दूरी पर । कमाल है, तुम ऐसा नहीं कर सकते । और उसकी कमाल की आँखें भी हैं । छोटी आंखें हैं, गिद्ध की, इतनी शक्तिशाली हैं कि वह देख सकती हैं एक शव, मृत शरीर, सात मील दूर से । तो उसकी अच्छी योग्यता है । वह ऊँचा उड सकता है, वह दूरस्थ स्थान से देख सकता है । ओह । लेकिन उसकी वस्तु क्या है ? एक मृत शरीर, बस । उसकी पूर्णता है मृत शरीर का पता लगाना, एक शव का, और खाना, बस ।
तो इसी तरह, हम बहुत ही उच्च शिक्षा तक जा सकते हैं, लेकिन हमारा उद्देश्य क्या है, हम क्या देख रहे हैं ? इन्द्रिय का आनंद कैसे लें, यह शरीर, बस । और विज्ञापन? "ओह, वह सात सौ मील ऊपर अवकाशयान के साथ चला गया है ।" लेकिन तुम क्या करते हो? तुम्हारा व्यवसाय क्या है? इन्द्रिय संतुष्टि, बस । वह जानवर है । तो लोग विचार नहीं कर रहे हैं कि जीवन के इस शारीरिक अवधारणा के साथ वे कैसे फंस रहे हैं ।
तो सब से पहले पता होना चाहिए की हमारी भौतिक अस्तित्व की यह दयनीय हालत इस शरीर की वजह से है । उसी समय यह शरीर स्थायी नहीं है । मान लो मैं, इस शरीर के साथ सब कुछ जोडता हूँ - परिवार, समाज, देश, यह, वह, कई चीज़े । लेकिन कब तक? यह स्थायी नहीं है । असन्न ।असन्न का मतलब है वह नहीं रहेगा । असन्न अपि क्लेशद अास देह: (श्रीमद भागवतम ५.५.४) । केवल परेशानी । स्थायी नहीं और बस मुसीबत दे रही है । यह बुद्धिमत्ता है । कैसे इस शरीर से बाहर निकलें ।
लोग आते हैं, कहते हैं कि "मैं शांत नहीं हूँ । मैं मुसीबत में हूँ । मेरा मन शांत नहीं है ।" लेकिन जब दवा पेश की जाती हैं तो वह स्वीकार नहीं करते हैं । तुम समझ रहो हो ? वो कुछ स्वादिष्ट चाहता है, जो वह समझ सके, बस । बहुत से लोग हमारे पास आते हैं, "स्वामीजी, ओह, यह मेरी स्थिति है ।" और जैसे ही हम दवा का सुझाव देते हैं, वह स्वीकार नहीं करते । क्योंकि वह कुछ दवा चाहते हैं जो उसे स्वीकार होगा । तो हम कैसे दे सकते हैं? तो फिर क्यों तुम एक चिकित्सक के पास जाते हो ? तुम खुद का उपचार करोगे ? तुम समझ रहे हो ?